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“यहां न बन पाये तो कह देना कि लखनऊ में करोगी। यहां मैं नौकरी की भी सेटिंग करा दूंगा, रहने की भी और लड़के की भी। रोज ही करना तब.. घर में कोई विरोध करे तो कह देना कि या तो शादी ही करा दो या फिर नौकरी करने दो, क्योंकि घर पर खाली नहीं बैठ सकती। बाकी उन्हें मैं कनविंस कर लूंगा।” “हम्म.. यही करूँगी। मैं भी अब और नहीं झेल पाऊंगी।”
“सोच कर भी अजीब लगता है कि तुम जिस जगह हो, वहां शादी न होने की सूरत में अब तक तीन सौ मर्तबा सेक्स कर चुका होना चाहिये था तुम्हें और किया है सिर्फ तीन बार।”
“मेरी बुरी किस्मत!” उसने जैसे आह भरी। “यह जो योनि होती है न… खाती पीती रहे तो शरीर भी स्वस्थ रखती है और मन भी, लेकिन सूखी रह गयी तो शरीर भी सुखा देती है।” “अंतर्वासना पढ़ पढ़ के इन ढके छुपे शालीन शब्दों की आदत नहीं रही.. अब तो वे खुले-खुले शब्द ही अट्रैक्टिव लगते हैं। मर्यादा तो टूट ही चुकी.. अब उन्हीं शब्दों में कहो भाई।”
“हम्म.. चूत को सही वक्त पर चुदाई मिलना शुरू हो जाये तो वह शरीर को खिला देती है और खुद भी खिल जाती है, लेकिन वहीं अगर उम्र हो जाने के बाद भी चूत चुदाई के लिये तरस जाये तो वह खुद भी सूखती है और शरीर भी सुखा देती है। तुम्हारे साथ बदइत्तेफाकी से वही हुआ है।”
थोड़ी देर तक वह खामोश रही फिर एक ठंडी सांस भरते हुए बोली- रात का वक्त हो, सन्नाटा हो, तन्हाई हो और साथ में अपोजिट सेक्स का बंदा तो कितना भी नजदीकी रिश्ता हो, कितना ही ‘पहले कभी सोचा तक नहीं…’ वाला सम्मान हो.. लेकिन इंसान बहकने जरूर लगता है।
“मैं नहीं बहकता.. जोश में होश खोने वाला दौर कहीं पीछे छूट चुका। उम्र और परिपक्वता धीरे-धीरे नियंत्रण करना सिखा देती है। तुम्हें अजीब लग रहा हो तो सो जाओ.. वैसे भी जो जानना और समझाना था, वह हो चुका।” “मैं अपनी बात कर रही भाईजान.. अब जो सब्जेक्ट छेड़ दिया है… उसके बाद नींद कहां आयेगी। अब तो खुद ही दिल कर रहा है और बातें करने का।” “उन लड़कों में से किसी ने शादी करने में दिलचस्पी न दिखाई?”
“तीनों दूसरे धर्म से थे.. शादी करने का कलेजा कहां रखते होंगे। बस चोदने तक मकसद था और उसमें भी एक-एक बार ही कामयाब हो पाये तो शायद छोड़ने की वजह एक यह भी रही हो।” “और यह जो करंट ब्वायफ्रेंड्स हैं.. इनमें?” “दो सहधर्मी हैं एक अन्य धर्म से… लेकिन तीनों ही उम्र में मुझसे छोटे ही हैं। उनकी दिलचस्पी सिर्फ घूमने फिरने, अपने सर्कल में गर्लफ्रेंड का रौब गांठने और नेट पर टाईमपास करने तक ही लगती है।” “मतलब दोनों मोर्चों पर बेकार हैं.. न शादी न सेक्स।” “यही समझो! खैर.. आप अपने बारे में बताओ। आपकी कैसे गुजरती है? शादी तो आपकी भी नाकाम हुई लेकिन चूत तो आपको भी चाहिये ही होगी न?”
“मैं तो मर्द हूँ.. मर्द कब बंदिश में रहता है और कब परवाह ही करता है। दसियों जुगाड़ बनते रहते हैं.. हफ्ते में दो तीन बार चोदने को मिल ही जाती है।” “हम्म.. लकी! काश लड़की को भी समाज इतनी छूट देता।” “अच्छा.. मैंने हाल ही की विजिट से पहले तक कभी तुम्हें शायद गौर से देखा तक नहीं था। न ही कभी पहले तुम्हें ले कर मन में कोई ख्याल आया था, लेकिन अब तुम्हें देखता था तो सोचता जरूर था कि बिना कपड़ों के तुम्हारा बदन कैसा लगता होगा।”
वह मेरी आंखों में झांकने लगी।
“दरअसल मैंने अब तक ढेरों जिस्म भोगे हैं.. उन्हें नंगा देखा है, उन्हें चोदा है लेकिन अब तक कोई भी ऐसी लड़की मेरे नीचे से नहीं गुजरी जो इतनी ज्यादा दुबली पतली हो कि दिमाग में ख्याल आये कि इसका कुल वजूद जैसे बस दो छेद भर हो और उभारने पर वे छेद कैसे दिखते होंगे।” “दो छेद?” “मैं आगे पीछे दोनों छेदों का शौकीन हूँ और दोनों ही मुझे समान रूप से आकर्षित करते हैं।” “तो.. वह ख्वाहिश अब भी है?” “जाहिर है.. जब तक देखने को न मिल जाये, खत्म कैसे हो सकती है।”
मैं उसकी मंशा समझ रहा था, वह मेरी मंशा समझ रही थी.. लेकिन फिर भी काफी देर खामोश रही जैसे किसी कशमकश में पड़ी हो। “इतनी रोशनी में चलेगा?” अंततः उसने नाईट बल्ब की ओर इशारा करते हुए कहा। “क्यों.. शर्म आती है?” “एकदम से ऐसी स्थिति बन जाना कि जिसकी पहले कभी उम्मीद न की गयी हो, थोड़ी झिझक तो पैदा करता ही है। पहले इसे ही रहने दीजिये.. बाद में भले जला लीजियेगा। फिलहाल इसे भी बंद कर दीजिये।”
मेरा दिल धड़क उठा.. वाकई में मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसी नौबत आयेगी। हां यह सच था कि हाल के दिनों में उसे देख कर अक्सर मेरे दिल में उसके नंगे बदन का ख्याल तो जरूर आया था लेकिन उससे आगे सोचने की जरूरत कभी नहीं महसूस हुई थी। बहरहाल मैंने उठ कर कमरे में जलता नाईट बल्ब भी बुझा दिया।
थोड़ी देर बाद उसने “हूँ” की आवाज की, जो इस बात का इशारा था कि मैं लाईट जला सकता हूँ। मैंने वापस स्विच ऑन कर दिया।
नजर घुमा के उसे देखा तो वह चित लेटी हुई थी और एक हाथ आंख पर रख लिया था कि निगाहें मुझसे छुपी रहें। बाकी रात वाले उसके कपड़े उसने चटाई पे डाल दिये थे जहां मैं लेटा था।
मैं उसके पास तख्त पर ही आ बैठा।
नाईट बल्ब वैसे भले कम रोशनी रखता हो मगर वह बंद कमरे में इतनी भी अपर्याप्त नहीं थी कि मैं उसके नग्न जिस्म का अवलोकन न कर सकता।
कामुकता भरे पलों से इतर अगर वह अस्पताल की शय्या पर पड़ी होती तो निश्चित ही उसे देख कर किसी के भी मन में दया ही पैदा होती।
बहुत कम जगहों पर गोश्त था, ज्यादातर जगहों पर हड्डियां चमक रही थीं। गर्दन पतली सी.. नीचे हंसुली की हड्डियां साफ उभरी हुईं। दोनों हाथों पर बस कुहनी के पास थोड़ा ज्यादा मांस था, बाकी पूरे हाथ की हड्डियां चमक रही थीं। सीने पर दोनों अवयव, जो कभी टेनिस बॉल जितना उभार रखते थे वह अब नदारद थे और यूँ लेटने पर तो सीना लड़कों की तरह ही फ्लैट हो गया था। पूरा रिब केस साफ चमक रहा था।
हां फ्लैट सीने पर चूचुक जरूर उभरे हुए थे मतलब भर के और उससे ज्यादा बड़ी बात यह थी कि उसके आसपास का एरोला वाला हिस्सा भी यूँ फूला हुआ था कि निप्पल ही लग रहा था। यह पफी निप्पल थे। बहुत कम इस तरह के चुचुक नजर आते हैं, यह उसका प्लस प्वाइंट था।
नीचे जैसे पीठ से लगता हुआ पेट था और ढलान पर दोनों साईड कूल्हे की हड्डी की खपच्चियां। पेडू पर घने काले बालों का जमावड़ा, जिन्होंने उसकी योनि को पूरी तरह ढक रखा था।
उदर से जुड़ी दो पतली-पतली टांगें, जिनमें जांघें पिंडलियों से बस थोड़ी ही ज्यादा थीं। हाथ पैरों की नसें चमक रही थीं और बगलों के बाल भी नीचे की तरह बढ़े हुए थे। मैं देख कर सोचने लगा कि क्या मेरे सिवा भी किसी के मन में कोई ऐसा शरीर कामुकता पैदा कर सकता था।
“झांटे बहुत बड़ी हैं.. बिलकुल ही नहीं बनाती क्या?” “जैसी कुढ़-कुढ़ के जिंदगी गुजर रही है, उसमें जल्दी इच्छा ही नहीं होती।” “हम्म.. पीछे पलटो।”
उसने चेहरे से हाथ हटाया.. एक पल को मेरा चेहरा निहारा जिस पर शायद उसे मन माफिक भाव न ही दिखे हों.. फिर औंधी हो गयी।
कंधे की हड्डी, पक्खे, रीढ़ की हड्डी साफ तौर पर नुमाया थी। नितम्ब जो बाहर निकले हुए होने चाहिये और पहले कभी थे भी.. वे लड़कों की तरह फ्लैट थे। मैंने मुट्ठी में भर कर दोनों पुट्ठों को दबोचा.. उनमें कोई सख्ती नहीं थी और वे आसानी से फैल गये। बड़ी आसानी से गुदा का गुलाबी छेद बाहर उभर आया।
“इसने भी टेस्ट किया क्या लंड का?” मैंने छेद पर उंगली फिराते हुए कहा। “एक बार।”
फिर वह सीधी हो गयी.. और मेरी आँखों में देखने लगी। “वैसे मानना पड़ेगा इमरान भाई.. बहुत नियंत्रण है खुद पे। सामने लड़की का जिस्म देख कर भी टूट नहीं पड़ रहे।” “उम्र और मैच्योरिटी इंसान को समझदार बना देती है.. वैसे इन लम्हों का तुम पर क्या असर पड़ रहा है?” “यह अहसास ही काफी है कि मेरा नंगा जिस्म किसी की नजर में है.. बुर को गीला कर देने के लिये।” दिख तो रही नहीं थी लेकिन मैंने उंगली लगा कर देखा तो वाकई वह बहने लगी थी।
“अगर रेजर के इस्तेमाल से परहेज न हो तो कहो यह मलबा हटा दूं।” “हटा दो.. मुझे कौन सा माडलिंग करनी है या पोर्न फिल्मों में काम करना है।”
इजाजत मिलने की देर थी, मैंने कमरे में ही मौजूद नीचे के बाल शेव करने वाली मशीन उठाई, अखबार लिया और वापस उसके पास आ कर बैठ गया।
उसकी बगल के नीचे अखबार रख कर पहले बगलों के बाल साफ किये, फिर नितम्बों के नीचे अखबार रख के योनि के आसपास फैले बालों को साफ करने लगा। इस काम में उसकी ऊपर से लंबी दिखती मगर अंदर से छोटी योनि का निरीक्षण करने का भी मौका मिल गया।
यूँ खाली लकीर देखने से भ्रम होता था कि उसकी योनि बड़ी और काफी इस्तेमाल की हुई होगी, लेकिन अंदर से खोलने पर एकदम बंद दिखती थी और लगता ही नहीं था कि वह सेक्स करती हो। क्लिटोरिस भी छोटी-छोटी थीं और भगांकुर भी छोटा ही था। मैंने वहां उंगली छुहाई तो वह ‘सी’ करके सिहर गयी थी।
काम खत्म होते उसकी योनि से बहता रस उसके नीचे वाले छेद से गुजर कर चादर तक पंहुचने लगा था.. और काम खत्म होने के बाद वह स्पष्ट चमकने लगी थी।
“देख कर तो लगता नहीं कि पहले कभी सेक्स किया है.. चलो लंड की सुविधा नहीं थी लेकिन क्या हस्तमैथुन से भी परहेज था?” “क्लिटरिस हुड को रगड़ के मजा ले लेती थी.. उंगली या कोई और चीज घुसाने लायक जतन करने के लिये वक्त और सुविधा चाहिये जो साल में कभी कभार मिलती है, तब कर ही लेती हूँ।” कहते हुए वह कुहनी के बल उठ कर अपनी चिकनी हो गयी योनि देखने लगी।
“देखने से सील पैक चूत ही लगती है।” मैंने प्रशंसात्मक स्वर में कहते हुए बालों की अखबारी पुड़िया बना कर कचरे में डाली और मशीन रख कर वापस उसके पास आ गया।
“अब सही लग रही है.. कम से कम अट्रैक्टिव तो लग रही थोड़ी।” “मुझे इंसल्टिंग लग रहा थोड़ा।” “क्या?” “यही कि मेरा बेकार सा विरक्ति पैदा करने वाला बदन भी आपके सामने बिना कपड़ों के है और आपका ठीकठाक होते हुए भी कपड़ों में।”
समझदार को इशारा काफी था। मैंने अपने कपड़े उतारने में देर नहीं लगाई और नंगा होकर उसके पहलू में लेट गया। जबकि वह मेरे नंगे होते ही मेरे अर्धउत्तेजित लिंग को गौर से देखने लगी थी।
“एक अरसे बाद यह नियामत देखने को मिली है।” उसने एक हाथ से मेरे लिंग को पकड़ते हुए कहा और वह कमबख्त ठुनकता हुआ लकड़ी हो गया। “मुंह में लेने की नौबत आई कभी इसे?” “एक बार.. तीसरे वाले ने चुसाया था। वह हालाँकि शौकीन था और उसके साथ लंबी ट्यूनिंग चल पाती तो वह जुगाड़ बना के जब तब मजे देता लेकिन मेरी बुरी किस्मत।”
“उनके साइज क्या थे?”
“पहले वाले का तुमसे थोड़ा लंबा और थोड़ा मोटा था.. सील तो उसी ने तोड़ी थी, फिर खुद जल्दी झड़ भी गया जिससे दर्द ही रहा, मजा न आ पाया। दूसरी बार में थोड़ा मजा आया लेकिन तब भी वह देर तक नहीं ले पाया जैसा मैं चाहती थी।”
“और दूसरा?” “उसका एकदम तुम्हारे साइज का था। उसने तीन राउंड चोदा था और लंबा भी चला था। दो बार चूत को रगड़ा था और तीसरे राउंड में गांड मारी थी।” “मजा आया था कुछ?” “मैंने पोर्न में दसियों बार देखा था और अन्तर्वासना पर भी पढ़ा था, इसलिये मैं खुद भी यह टेस्ट करना चाहती थी तभी करने भी दिया उसे.. लेकिन उतना मजा नहीं आया और दर्द भी काफी हुआ।” “पहली बार में दर्द तो आगे भी होता है और उसका मजा एक दो बार में नहीं आता.. धीरे-धीरे आना शुरू होता है।” “हो सकता है.. मुझे तो बार-बार का मौका ही हाथ न लगा।”
“और वह तीसरा लड़का?” “उसका तुमसे काफी लंबा और मोटा दोनों था, वह खुद भी काफी लंबा चौड़ा था। यूँ उसके साथ इसी वजह से घूमना फिरना जितना वीयर्ड लगता था, चुदाई में उतना ही मजा देता था। उसके लिये मैं कोई हल्की फुल्की गुड़िया जैसी थी, जिसे वह किसी भी तरह से और किसी भी एंगल से चोद सकता था और उसने चोदा भी। पहले राउंड में उसके हैवी लंड की वजह से तकलीफ जरूर हुई लेकिन अगले दो राउंड में मजा भी खूब जबरदस्त आया।”
“वह लखनऊ में ही है?” “हां.. लेकिन दूरी की वजह से मेरा कोई कांटैक्ट नहीं रहा अब।” “यहां रहना तो फिर बना लेना। कांटैक्ट बनने में कितनी देर लगती है और चूँकि वह तुम्हें चोद चुका है तो भले उसकी गर्लफ्रेंड हो, लेकिन तुम चुदने में दिलचस्पी दिखाओगी तो मान ही जायेगा।”
“पहले कभी इस तरफ मैं सोच भी नहीं सकती थी, लेकिन अब आप कह रहे हो तो सोचती हूँ इसी तरह की ट्राई करूँगी। सिर्फ मेरे चाहने से घरवाले कभी न मानते.. लेकिन आप कहोगे तो जरूर मान जायेंगे।”
फिर थोड़ी देर के लिये हमारे बीच में खामोशी छा गयी और मैं उसकी तरफ करवट लिये उसे देखता रहा।
“किसी ने तुम्हारी चूत चाटी कभी।” “नहीं.. चाहत तो देख-देख के हर बार पैदा हुई लेकिन कभी सामने वाले खुद से तैयार नहीं हुए और मैं कह पाई नहीं। अजीब मानसिकता है यहां लड़कों की.. पोर्न देख के लड़की से तो वैसे ही एक्ट की उम्मीद करते हैं लेकिन खुद पीछे हट जाते हैं।”
“हर कोई तो नहीं हट जाता.. पर इत्तेफाक से तुम्हें हटने वाले ही मिले।” “मेरी बुरी किस्मत।”
“वैसे जो पोर्न देखती या पढ़ती हो.. कभी उसकी नायिका की तरह दो या तीन लड़कों के साथ एकसाथ मजा लेने की ख्वाहिश नहीं होती?” “अब मेरी तरह एक लंड को भी तरसती लड़की को ऐसी ख्वाहिश न हो, यह तो नामुमकिन है.. लेकिन जहां एक लड़के के लाले पड़े हों, वहां दो की तो उम्मीद करना ही चूतियापा है।” “कोई बात नहीं.. यहां रह गयी तो जो भी इच्छा होगी, बताना। हर ख्वाहिश पूरी करने की गारंटी है।”
क्रमशः कहानी के बारे में अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करायें। मेरी मेल आईडी हैं.. [email protected] फेसबुक: https://www.facebook.com/imranovaish2
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