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फोन लेकर कम्मो बहुत खुश नजर आ रही थी. हम रेस्तरां के केबिन में बैठे थे. “अब तो खुश न?” मैंने उससे कहा. “हां अंकल जी. थैंक यू” वो हंस कर बोली. “सिर्फ थैंक यू? कंजूस कहीं की!” मैंने कहा. “फिर?” “अरे एक चुम्मी ही दे देतीं कम से कम!” मैंने तपाक से कहा.
“अच्छा लो अंकल जी ले लो!” कम्मो ने कहा और अपना मुंह मेरी तरफ बढ़ा दिया. मैंने कम्मो की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से चिपका लिया और उसका माथा गाल कई कई बार चूम डाले. फिर तो मुझ पर जैसे दीवानगी सी सवार हो गयी. मैं कम्मो को सब जगह चूमता चला गया उसके गाल, गला गर्दन और फिर हमारे होंठ कब एक दूसरे के होंठों से जुड़ गये पता ही न चला. ‘कुंवारी कन्या के अधरों का प्रथम रसपान का स्वाद कितना अलौकिक कितना मधुर होता है.’ ये मैंने उस दिन जाना.
कम्मो कोई विरोध नहीं कर रही थी वरन वो भी मेरे संग बहती सी चली जा रही थी की जहां नियति ले जाये वहीं चले चलें जैसी मनःस्थिति थी हम दोनों की. जो कुछ हो रहा था वो जैसे स्वयं ही, बिना हमारे कुछ किये ही हो रहा था. मैंने कब कम्मो के उरोज दबोच लिए और उन्हें कब मसलने लगा मुझे खुद याद नहीं.
“अंकल जी धीरे … इत्त्ति जोर से नहीं; दुखते हैं.” कम्मो कांपती सी आवाज में बोली. मुझे होश सा आया तो मैंने देखा कि मेरा हाथ कम्मो के कुर्ते के अन्दर उसकी ब्रा के भीतर उसके नग्न स्तनों को मसल रहा था … गूंथ रहा था …मसल रहा था. उसके फूल से कोमल स्तन मेरी सख्त मुट्ठी में जैसे कराह से रहे थे. मुझे अपनी स्थिति का भान हुआ तो मैंने अपना हाथ उसकी ब्रा से बाहर निकाल लिया.
मैंने देखा तो कम्मो की नज़रें झुकी हुयीं थीं. मैंने उसे फिर से अपनी बांहों में भर लिया और उसका निचला होंठ चूसने लगा. साथ में मेरा एक हाथ उसकी जांघों को सहलाए जा रहा था. अब कम्मो भी चुम्बन में मेरा साथ देने लगी थी और उसकी पैर स्वयमेव खुल से गये थे. मेरा हाथ उसकी जांघों के जोड़ पर जा पहुंचा और अपनी मंजिल को सलवार के ऊपर से ही छू लिया और धीरे से मसल दिया.
पुरुष के हाथों की छुअन का असर, उसकी तासीर लड़की के जिस्म पर जादू के जैसा असर दिखाती है. विशेष तौर पर अगर उसके स्तनों या चूत को छेड़ दिया जाए तो. कम्मो की चूत पर मेरा हाथ लगते ही वो मोम की तरह पिघल गयी और कम्मो ने चुम्बन तोड़ कर अपना सिर मेज पर झुका दिया. मेरी उंगलियाँ सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत से खेलती रहीं, मसलती रहीं, चूत की दरार में घुसने का प्रयास करती रहीं पर सलवार के ऊपर से ऐसा हो पाना संभव ही नहीं था. हां कम्मो की झांटों का झुरमुट मुझे अच्छी तरह से महसूस हो रहा था.
लेकिन सिर्फ इतने भर से ही मुझे संतोष होने वाला नहीं था, पता नहीं कम्मो लंड से चोदने को मिले न मिले क्योंकि जगह की समस्या बनी हुई थी; पर मैं उसकी नंगी चूत से तो खेल ही सकता था. इसी धुन में मैंने उसकी कुर्ती पेट के ऊपर से ऊपर की तरफ सरका दी इससे उसका पेट अनावृत हो गया. उफ्फ क्या मखमली जिस्म पाया था कम्मो ने!
मैंने उसके पेट को सहलाया और फिर उसकी नाभि में उंगली रख के हिलाया; इतने से ही कम्मो हिल गयी और उसकी हंसी छूट गयी- अंकल जी गुदगुदी मत करो ऐसे! वो अपने मुंह पर हाथ रख कर खिलखिलाते हुए बोली.
लेकिन मैंने उसकी बात अनसुनी करते हुए अपना हाथ झटके से उसकी सलवार में घुसा दिया और इससे पहले कि कम्मो कुछ समझ पाती या संभल पाती मैंने उसकी पैंटी की इलास्टिक के नीचे से उंगलियां अन्दर सरका दीं और उसकी नंगी झांटों भरी चूत मेरी मुट्ठी में कैद हो गयी; मुझे लगा जैसी कोई ताजा मुलायम नर्म गर्म पाव मैंने पकड़ रखा हो. मेरी हसरत पूरी हो चुकी थी. कम्मो की इज्जत मेरी मुट्ठी में कैद थी. उसका लालकिला मेरे अधिकार में आ चुका था बस अब उसमें प्रवेश करके उसे भोगना, उस पर राज करना, उसकी प्राचीर की सवारी करना भर शेष रह गया था.
मैंने अपनी मुट्ठी खोल के हथेली उसकी चूत से चिपका दी और झांटों को सहलाता, खींचता हुआ उसकी चूत से खेलने लगा; बीच बीच में मैं उसकी झांटें हौले से खींच लेता तो वो चिहुंक पड़ती. उसकी गद्देदार नंगी चूत को यूं सहलाने का आनन्द ही अलग आ रहा था. चूत की फांकें आपस में चिपकी हुईं थीं मैंने दरार में उंगली ऊपर से नीचे तक और नीचे से ऊपर तक फिरा दी. कम्मो ने मेरा कन्धा पकड़ कर जोर से अपने नाखून मेरे कंधे में गड़ा दिए, शायद उत्तेजना वश उसने ऐसा किया होगा.
अब मैं उसकी चूत को मुट्ठी में भर कर दबाने, मसलने के साथ साथ दरार में कुरेदने लगा; उसकी चूत के रस से मेरा हाथ चिपचिपा हो गया. फिर मैंने अपने अंगूठे को चूतरस से गीला करके उसकी चूत का दाना टटोलने लगा, अंगूठे से अनारदाने को छेड़ने लगा. लड़की की क्लिट को छेड़ो और वो चुदने को न मचल जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता. कम्मो ने भी अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया और आनन्द से आंखें मूंद लीं और और अपने पैर और चौड़े कर दिए इससे उसकी चूत और खुल गयी और मुझे उससे खेलने के लिए ज्यादा स्थान मिलने लगा.
ऐसा कोई एक डेढ़ मिनट ही चला होगा कि वो मेरा हाथ अपनी चूत पर से हटाने का प्रयास करने लगी. वो मेरा हाथ अपनी चूत से हटाने का भरपूर प्रयास करती लग रही थी. लेकिन उसके हाथ में शक्ति नहीं बस एक तरह की रस्म अदायगी सी लगी मुझे. कि कहीं मैं उसे इतना बेशर्म, इतनी चीप न समझ लूं कि मैं उसकी चूत को छेड़ रहा था और वो चुपचाप बिना कोई प्रतिवाद किये अपनी चूत में उंगली करवाते हुए चुपचाप मजा लेती रही थी.
“बस भी करो अंकल जी, कोई देख लेगा. वो नौकर खाना लेकर भी आता होगा!” कम्मो ने मुझे अपने से दूर हटाया और खुद दूर खिसक कर बैठ गयी. मैं भी जैसे होश में आ गया; कुछ समय के लिए मैं भूल ही बैठा था कि हम लोग किसी होटल के फॅमिली केबिन में बैठे हैं. मैंने कम्मो की ओर देखा तो ऐसा लगा जैसे वो मीलों दौड़ के आई हो. मेरा भी यही हाल था.
मैंने जो कभी बिल्कुल भी नहीं सोचा था, न प्लान किया था कम्मो के संग वही कर बैठा था मैं. मेरी कनपटियां तप रहीं थीं और लंड भी तनाव में आ चुका था; पैंट के नीचे दबे होने से लंड बुरी तरह अकड़ गया था और उसमें हल्का हल्का दर्द सा भी होने लगा था.
मैंने कम्मो का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो उसने इन्कार में सिर हिलाया फिर मैंने जोर से खींचा तो वो मुझसे आ लगी और मैंने उसे फिर से चूम लिया. “कम्मो, मेरी बात का बुरा तो नहीं लगा न?” पता नहीं अचानक मुझे वो क्या हो गया था. मैंने उसकी बगल में हाथ ले जा कर उसका दायां वाला स्तन सहलाते हुए पूछा. वो चुप रही, कुछ नहीं बोली और न ही कोई प्रतिवाद किया. “बता न कम्मो” मैंने थोड़ा जोर देकर पूछा और उसका बूब कस के मसल दिया. “अंकल जी, यहां कुछ मत करो कोई देख लेगा तो गड़बड़ हो जायेगी.” वो धीमे से बोली.
उसके कहने का मतलब साफ़ था कि उसे इस छेड़छाड़ से कोई आपत्ति नहीं थी. बस किसी के देखे जाने का डर था. मतलब मेरे लिए ग्रीन सिग्नल था कि कम्मो चुदने के लिए पूरी तरह से तैयार थी.
“हाथ हटा लो अपना प्लीज!” वो बोली. मैंने उसका बूब छोड़ दिया. वो भी थोड़ा हट के बैठ गयी. इतने में वेटर भी खाना ले आया और उसने मेज पर सजा दिया.
इडली, मसाला डोसा, सांभर, नारियल की चटनी, वड़ा सब कुछ सामने मेज पर सजा था और साथ में छुरी और कांटे भी. कम्मो ने छुरी कांटो को असमंजस से देखा तो मैं उसका मतलब समझ गया.
“कम्मो, चल हाथ से खाते हैं. ये कांटे वांटे हटा दे एक तरफ!” मैंने कहा और खाना शुरू किया. “अंकल जी, हाथ तो धो लेते कम से कम!” कम्मो ने मुझे टोका. “क्यों हाथ में क्या हुआ?” मैंने पूछा. “अच्छा! अभी मेरे वहां हाथ नहीं लगाया आपने उस गन्दी जगह में!” वो सिर झुका कर बोली. “अरे जाने दे यार. वो कोई गन्दी नहीं होती. चूत का रस तो बहुत हेल्दी होता है, अभी तो तेरी चूत चाटनी भी है मुझे!” मैंने खाते खाते कहा. “छीः कितने गंदे हो न अंकल आप!” वो मुझे झिड़कते हुए बोली.
मैं हंस के रह गया और खाने पर ध्यान लगाया. वो भी कुछ नहीं बोली और मजे से खाना खाती रही. खाने के बाद मैंने रसगुल्ले और आइसक्रीम भी आर्डर कर दिया. इस तरह खा पी कर हम लोग तृप्त हो गये. कम्मो भी खूब खुश लग रही थी.
रेस्टोरेंट से निकल कर हम लोग चांदनी चौक का बाज़ार घूमने लगे. अब मैं और कम्मो एक दूसरे का हाथ पकड़े चल रहे थे; किसी भी तरह की शर्म झिझक हमारे बीच नहीं रह गयी थी. वो रिश्तेदारी वाला रिश्ता हम भूल चुके थे और स्त्री पुरुष वाले रिश्ते में हम बंध चुके थे. सो कम्मो भी अब किसी बिंदास प्रेमिका की तरह मेरे साथ निभा रही थी.
इस मस्त छोरी की अल्हड़ जवानी और जिस्म का मालिक बन मैं भी ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था. बस बेचैनी और इन्तजार इस बात का था कि कैसे भी जगह का जुगाड़ हो जाये तो मेरा लंड भी इस कामिनी की कुंवारी चूत का भोग लगा के तृप्त हो ले और मैं भी इसकी चूत के रस का पान करके धन्य हो जाऊं. पर ऐसा हो पाने की कोई संभावना दूर दूर तक नजर नहीं आती थी.
यूं ही घूमते घूमते एक मॉल दिखा तो हम लोग उसमें चले गये. ऐसे सजे धजे बाजार देख कर कम्मो तो देखती ही रह गयी. क़रीब एक सवा घंटा हमलोग मॉल में घूमते रहे. वहीं से मैंने कम्मो को दो सलवार सूट भी दिलवा दिए. उसने थोड़ी ना नुकुर तो की पर ले लिए.
वैसे भी मुझे अपनी बहूरानी को दिखाने के लिए कम्मो को कपड़े दिलवाने ही थे नहीं तो वो जरूर टोकती कि अपनी नातिन को फोन दिलाने ले गये थे तो उसे अपने पैसे से कपड़े तो दिला ही देते कम से कम. रिश्तेदारी के इस तरह के फर्ज निभाना भी जरूरी था मैंने वो भी पूरा कर दिया था.
मैंने तो कम्मो से ये भी कहा था कि अपनी पसंद की ब्रा पैंटी भी ले ले पर उसने हंस के मना कर दिया था कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा कि अंकल जी के साथ ये कैसे खरीदीं? लेकिन मैंने जबरदस्ती करके उसे उसके साइज़ 34B की डिजाइनर ब्रा और पैंटी के दो सेट दिलवा ही दिए और उसे समझा दिया कि ये ब्रा पैंटी मैं अपनी जेब में रखे रहूँगा और बाद में उसे सबसे छुपा के चुपके से दे दूंगा और वो चुपचाप इसे अपने कपड़ों के साथ बैग में रख लेगी. मेरी यह बात कम्मो ने भी मान ली थी.
फिर हम लोग मॉल से निकल कर बाहर आये तो मुझे याद आया कि अभी कम्मो को गोलगप्पे खिलवाना तो रह ही गया. गोलगप्पे वाला तलाश करके मैंने कम्मो की ये फरमाइश भी पूरी कर दी. कम्मो ने पूरे मजे ले ले कर गोलगप्पे खाए; उसका मुंह पूरा खुलता और गोलगप्पा गप्प से खा जाती इधर मेरे मन में ये ख़याल आता की काश मेरा वाला गोलगप्पा भी ये मुंह में ले लेती, चूस डालती, चाट देती अच्छे से. पर ये सब दिवा स्वप्न ही तो थे.
इतना सब निपटने के बाद पांच बजने को थे अब हमें वापिस धर्मशाला जाने का था. आज रात में ही शादी थी, बरात के लिए तैयार भी होना था सो मैंने ओला की कैब बुक कर ली और चल दिए.
फोन का कैरी बैग और सामान के बैग कम्मो ने पिछली सीट पर रख दिए और मुझसे सट कर बैठ गयी और मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया. कुछ ही घंटों में कम्मो के व्यवहार में कितना परिवर्तन आ चुका था उसकी शर्म हया लाज सब गायब हो चुके थे और उसकी जगह अपनत्व और अधिकार ने ले ली थी. हमारे यहां की लड़कियों की ये विशेषता है कि उनके साथ इस तरह के इंटिमेट सम्बन्ध बनते ही इनके व्यव्हार, बोलचाल में अधिकार झलकने लगता है. अपने पुरुष साथी पर अपना हक़, अपना एकाधिकार, ‘सिर्फ मेरा’ वाली भावनाएं स्वतः ही आ जाती हैं; दरअसल यह भी उनके प्रेम का अन्य रूप ही होता है.
“क्या सोचने लगे अंकल जी?” वो मुझे चिकोटी काट कर बोली “कम्मो मैं सोच रहा था कि अब आगे हमारा रिश्ता और मजबूत कैसे होगा?” मैंने चुदाई की बात स्पष्ट न कह कर यूं दूसरे ढंग से कहीं. “अंकल जी, अब मैं क्या बता सकती हूं इस बारे में. मैं तो आपके साथ ही हूं. मेरी तो हर बात में हां है; अब जो सोचना जो करना है वो आप जानो; मैं तो हर जगह आपके संग हूं.” वो मेरे कंधे पर अपना सिर रख कर समर्पित भाव से बोली और मेरी छाती सहलाने लगी.
“कम्मो, देखो जो मैं चाहता हूं, वही तुम भी चाहती हो अब. लेकिन हमारे मिलन के लिए कोई सुरक्षित जगह हो चाहिये ही न; मैं तुम्हे किसी ऐसी वैसी जगह लेके तो नहीं जा सकता न. इसलिए मुझे लगता है कि हम वो सब कर नहीं पायेंगे, हमारे सारे अरमान यूं ही धरे के धरे रह जायेंगे. देखो अभी हम लोग धर्मशाला पहुंच जायेंगे, फिर बारात की तैयारी; रात भर शादी में रुकना पड़ेगा. फिर कल मुझे वापिस जाना है. हम लोग मिल के भी नहीं मिल सके इसका अफ़सोस तो हमेशा रहेगा मुझे!” मैंने अत्यंत भावुक होकर कहा.
कम्मो चुप रही. वो बेचारी कहती भी क्या. वो तो मुझ पर अपना सब कुछ लुटाने, सबकुछ न्यौछावर करने को प्रस्तुत ही थी; कमी तो मेरी तरफ से थी कि मैं इतनी बड़ी दिल्ली में कोई एकांत कोना नहीं तलाश पा रहा था. ऐसी बेबसी का सामना मुझे पहले कभी नहीं करना पड़ा था. कम्मो मुझसे चिपकी हुई चुपचाप थी, वो बेचारी कहती भी तो क्या.
“अंकल जी, आप एक दिन और रुक नहीं सकते क्या?” वो जैसे तैसे बोली. “कम्मो, चलो मैं एक दिन और रुक भी जाऊं तो उससे क्या होगा, जगह की समस्या तो हल होगी नहीं. हमलोग शादी में आये हैं. कल सुबह तक आधे लोग रह जायेंगे; शाम तक धर्मशाला खाली करनी पड़ेगी. फिर तुझे भी तो जाना होगा न!”
“हां अंकल जी, मुझे भी कल ही वापिस घर जाना है. मुझे तो मजबूरी में आना पड़ा अकेले. पिताजी की तबियत ठीक नहीं थी न और न ही मेरी मम्मी आने को तैयार थी. मैं भी कल दोपहर में किसी ट्रेन से मेरठ चली जाऊँगी वहां से एक घंटे का बस का सफ़र है शाम होने से पहले ही पहुंच जाउंगी अपने घर, रुक तो मैं भी नहीं सकती.” वो भी हताश स्वर में बोली.
मैं चुप रहा और उसे अपने से चिपटाए हुए उसके धक धक करते करते दिल की धड़कन महसूस करता रहा.
“अंकल जी, क्या आप यहां से मेरे साथ मेरे घर नहीं चल सकते? मम्मी पापा तो खेतों में निकल जाते हैं सुबह ही; मैं सारे दिन घर में अकेली ही रहती हूं.” उसने मुझे अपना प्रस्ताव दिया.
जवानी की प्यास की कहानी जारी रहेगी. [email protected]
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