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दोस्तो, मेरा नाम देव है.. मैं झारखंड का रहने वाला हूँ। यह हॉट सेक्स स्टोरी मेरी और मेरी पड़ोसी चाची के बीच की है। मैं चाची को फाँसना चाहता था पर हिम्मत नहीं पड़ती थी। फिर कुछ ऐसा हुआ कि चाची ने खुद ही मुझे फाँस लिया।
तो कहानी शुरू करते हैं। नाम मैं बता ही चुका हूँ, मेरी उम्र 24 साल है। मेरा लंड 8 इंच का है और खूब मोटा है।
मेरे बगल में एक परिवार रहता है रामनाथ चाचा का। छोटे शहरों में सभी पड़ोसी चाचा होते हैं और पड़ोसिनें चाची। इसी नाते मैं उन्हें चाचा कहता था। उनकी पत्नी यानि मेरी चाची का नाम रत्ना है। उनकी उम्र करीब 38 साल की होगी, पर देखने में तीस से ज्यादा की नहीं लगतीं। उनकी फीगर बड़ी मस्त है 34-28-36 की। पर उनसे मेरा कोई ऐसा-वैसा संबंध नहीं था। कभी मैंने उन्हें गलत निगाह से नहीं देखा था। बचपन से ही, जब से होश सम्हाला था, मैं उन्हें चाची के रूप में ही देखता चला आ रहा था।
पर अभी कुछ दिन पहले मेरी निगाह में फर्क आ गया। जबसे अन्तर्वासना में चुदाई की कहानियां पढ़नी शुरू की हैं, तब से मुझे हर लड़की या सुन्दर औरत को चोदने का मन करता है। ऐसे में भला रत्ना चाची के प्रति मेरी निगाह भला शुद्ध-सात्विक कैसे रह सकती थी।
चाची के यहाँ जाना हमेशा से ही मेरे लिये सामान्य बात थी। बचपन में तो सारा-सारा दिन उनके यहाँ खेला करता था। तभी से जब चाची ब्याह कर भी नहीं आयीं थीं। जब चाची ब्याह कर पहले पहल आयीं तब तो मैं घंटों उनके ही आगे-पीछे घूमा करता था। घूंघट काढ़े, बढ़िया-बढ़िया गहने-कपड़ों में सजी चाची मुझे बहुत अच्छी लगती थीं।
पहले कोई बात नहीं थी पर अब मैं हर समय यही जुगाड़ खोजा करता था कि किस तरह चाची की चूत ली जाये। हजार तरकीबें सोच रहा था पर कोई मौका नहीं बन रहा था और हिम्मत भी नहीं पड़ रही थी। अगर मैंने कुछ ऐसा-वैसा कहा या किया और चाची ने पलट के मेरे तमाचा जड़ दिया तो। वे खुद ही तमाचा मार कर संतोष कर लें तो भी कोई बात नहीं, अगर उन्होंने मेरे घर में किसी को बता दिया तब तो बस डूब मरने की ही नौबत आ जायेगी।
पर कुछ भी हो मेरे दिलो-दिमाग पर चाची की सेक्सी फीगर छा गयी थी। रात में भी चाची के ही बारे में सोचता रहता। भगवान से मनाया करता कि कोई जुगाड़ बना दें। लगभग रोज ही बिस्तर पर मैं आँखें बन्द करके सोचता कि चाची मेरे साथ हैं और मैं उनके नाम की मुठ मार कर अपने को किसी हद तक संतुष्ट कर लेता।
शायद भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली, उन्हें मेरी बेचैनी पर तरस आ गया। एक दिन चाची को किसी काम से बाहर जाना था, तो चाची मेरी मम्मी को बोली- दीदी मुझे जरा बाजार तक जाना है, देव को साथ भेज दीजिए, बाइक से लिये जायेगा मुझे। मम्मी ने जवाब दिया- तो ठीक है ले जाइए।
मैंने बाइक निकाली फिर हम लोग बजार चले गए। बाजार में रत्ना चाची एक लेडीज कॉर्नर पर गईं, वहाँ से उन्होंने कुछ ब्रा-पैन्टी लीं। मुझे लगा कि चाची अभी कुछ और भी खरीदेंगी पर उन्होंने उतनी ही खरीदारी कर वापस लौटने के लिये कहा। मुझे थोड़ा अजीब लगा, औरतें किसी जवान लड़के के साथ ब्रा-पैंटी खरीदने कभी नहीं जातीं। यह काम वे अपने पति या किसी पति जैसे ही करीबी के साथ ही करती हैं। तो क्या चाची के मन में भी मेरे लिए कुछ है? सोचकर ही मेरे मन में रसगुल्ले फूटने लगे पर अपनी तरफ से कुछ कहने की हिम्मत अभी भी नहीं थी।
फिर हम लोग घर की तरफ चल दिए। तभी चाची मुझसे मेरी गर्ल-फ्रैंड के बारे में पूछने लगीं। उनकी बात सुनकर मैं फिर अचकचा गया। चाची के साथ पहले कभी मेरी इस तरह की बात नहीं हुयी थी। पर साथ ही अच्छा भी लगा। उम्मीदें जवान होने लगीं कि शायद यही बातें आगे बढ़ने का रास्ता खोल दें। मैंने सकुचाते हुए उन्हें अपनी गर्ल-फ्रैंड के बारे में बता दिया।
बातों ही बातों में चाची ने आचानक पूछा- कभी सेक्स किए हो उसके साथ? चाची की बात सुनकर मैं तो बिलकुल ही चिहुँक गया, हड़बड़ाहट में ही मैंने बाइक रोक दी। चाची मेरी घबराहट समझ गयीं, मुस्कुराकर बोलीं- डरो मत मैं किसी से नही बोलूँगी।
फिर क्या था … हम लोग खुलकर बातें करने लगे। बातों में पता ही नहीं चला कि कब घर पहुँच गए। मैं अभी चाची से बिछड़ना नहीं चाहता था पर सभ्यता का तकाजा था कि मैंने उनसे जाने की इजाजत मांगी। उन्होंने भी इजाजत दे दी। पर जैसे ही मैं अपने दरवाजे की ओर बढ़ा, उन्होंने पीछे से आवाज दी- थोड़ी देर बाद घर आना कुछ दिखाना है। मैंने बोला- ठीक है। और धड़कते दिल के साथ अपने घर आ गया।
माँ का सामना करने का साहस नहीं हो रहा था। मन में लड्डू फूट रहे थे। चेहरा तमतमा रहा था। किसी तरह बेसब्री से मैंने एक घंटा काटा और माँ से बोलकर चाची के घर चल दिया।
जब मैं उनके घर पहुँचा तो देखा कि दरवाजा खुला है। मैंने अंदर जाकर सोफे पर बैठ कर टीवी आन किया और अपना ध्यान उसकी ओर लगाने की कोशिश करने लगा। पर दिमाग उधर लग ही नहीं रहा था वह तो यही सोच रहा था कि चाची कहाँ हैं? वे आयें तो मेरी आँखों को सुकून मिले।
तभी मुझे आभास हुआ कि बाथरूम से कुछ आवाज आ रही है। शायद चाची बाथरूम में नहा रही थीं। अचानक मेरे दिल में चाची को नंगी देखने की लालसा जाग उठी। शायद दरवाजे की किसी झिर्री से देखने का मौका हाथ लग ही जाये। मैं तुरंत बाथरूम की तरफ गया। आह! बाथरूम का दरवाजा आधा खुला हुआ था।
मैं झाँकने लगा, मैंने देखा कि रत्ना चाची बिल्कुल नंगी नहा रही थीं, उनकी पीठ मेरी तरफ थी। चाची को उस अवस्था में देखकर मेरे गाल तमतमा गये, पैंट में लंड कड़क होने लगा। मैं भूल गया कि मैं कहाँ हूँ और क्या कर रहा हूँ। मैं तो तब चाची के बदन के तिलिस्म में खो गया था।
अचानक चाची मुड़ीं। उनके मुड़ते ही मुझे होश आया, होश आने के साथ ही बुरी तरह घबरा भी गया, मारे घबराहट कुछ समझ नहीं आया बस वहाँ से निकल आया।
कमरे में आकर मैं सोचने लगा कि कुछ न कुछ बात तो है। अब अपने आप चाची ने बाजार में जो बातें मुझसे की थीं वो सब मुझे याद आने लगीं। मैं सोचने लगा कि मुझे बुला कर फिर बाथरूम का दरवाजा खुला छोड़कर पूरी तरह नंगी होकर नहाने के पीछे कुछ न कुछ मतलब जरूर है। बार-बार वही सीन आँखों के सामने आने लगा, सोचने लगा कि उसे दोबारा जाकर देखूँ परंतु हिम्मत नही हो रही थी। एक तरफ उम्मीदें बढ़ रही थीं दूसरी तरफ बहाने भी सोच रहा था कि अगर चाची आकर गुस्सा हुयीं तो क्या कहूँगा। देख तो उन्होंने भी मुझे शर्तिया लिया था।
मैं दोबारा चाची के घर चला गया. चाची नहाकर निकलीं तो सिर्फ तौलिया लपेटे हुये थीं। हाय! क्या गजब लग रही थीं। अपना तो पूरी तरह कड़क होकर खड़ा हो गया। बिना सोचे-समझे मुँह से निकल गया- चाची आप बहुत खूबसूरत लग रही हो। बोलने के साथ ही एक बार डर भी लगा पर वह डर अगले ही क्षण चाची ने दूर भी कर दिया। बोलीं- तो इतना घबरा क्यों रहे हो? कहकर वे बड़ी अदा से हँ पड़ीं। “वो वो वो …” मैं हकलाने लगा।
वो हँसती हुई बोलीं- वैसे तो कितना घूरा करते हो आज कल मुझे … जैसे मुझे खा जाना चाहते हो। पर मौका मिलने पर इतने डरपोक निकलोगे, मैंने नहीं सोचा था। किसी तरह हिम्मत कर मैंने कहा- वो आपने कुछ दिखाने को बुलाया था। उन्होंने फिर हँसते हुए कहा- तो देखने लायक हालत में तो आओ पहले। कहने के साथ ही उन्होंने तौलिया खोल कर बेड पर उछाल दी।
अब चाची बस ब्रा और पैंटी में थीं। मैंने गौर किया कि ये वही ब्रा और पैंटी थीं जो आज उन्होंने मेरे साथ खरीदी थीं। उनका सांचे में ढला जिस्म देख कर मेरा बदन थरथरा उठा। मेरी साँसें तेज हो गयी। पैंट में लंड तो पहले ही अकड़ रहा था। वो बोलीं- यही दिखानी थीं। कैसी लग रही हैं?
अब रास्ता साफ था; डरने की कोई जरूरत नहीं थी; चाची भी वही चाहती थीं जो मैं चाहता था। मैं बोला- गजब की लग रही हो चाची। सच में इतनी हॉट होगी आप मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। मेरी बात सुनकर चाची एक आँख दाब कर बड़ी कुटिलता से मुस्कुरायीं और बोलीं- तो फिर सोच क्या रहे हो? मैंने जवाब दिया- कुछ नहीं चाची। कहने के साथ ही मैंने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया। उनके मादक शरीर के स्पर्श ने मुझे ऊपर से लेकर नीचे तक सनसना दिया था।
मैंने ले जाकर उन्हें बेड पर पटक दिया और उनके ऊपर चढ़ गया। वे अब भी मुस्कुरा रही थीं, वैसे ही बोलीं- क्या इन कपड़ों में ही करोगे सब कुछ? अब मेरी हिम्मत पूरी तरह से खुल चुकी थी, बेझिझक मैं बोला- आप ही आजाद करा दो न मुझे इनसे! उन्होंने फिर आँख दाबते हुए कहा- आय हाय मेरे राजा! अब की न मर्दों वाली बात।
कहने के साथ ही उनकी उँगलियाँ मेरे कपड़ों के साथ उलझ गयीं। कुछ ही देर में मैं उनके सामने पूरी तरह से नंगा पड़ा था। उन्होंने मेरे कड़क लंड को अपनी मुट्ठी में दबा लिया। मैंने भी उनको उस ब्रा और पैंटी से आजाद करने में कतई देर नहीं की। यह हॉट सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
जैसे ही उनके बूब्स खुलकर मेरे सामने आये मेरे से रहा नहीं गया, मैंने अपने दोनों हाथों में उनके खरबूजे जैसे बूब्स भर लिये और मनमाने तरीके से दबाने लगा। सच में बहुत मजा आ रहा था। वो ‘सीसी! उम्म्ह! अहह! हाय! याह! सीईइ..! करने लगीं। फिर मैंने उनके एक बूब को अपने मुँह में भर लिया और अपना एक हाथ नीचे सरकाते हुए उनकी चूत पर रख दिया। उनकी चूत पूरी तरह चिकनी थी। ऐसा लग रहा था जैसे थोड़ी देर पहले ही बनाई हो। उन्हें पूरा मजा आ रहा था।
मैं चाची की चूत में उँगली करने लगा तो उनकी सिसकारियाँ और तेज हो गयीं ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ फिर मैंने अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिये और चूसने लगा। वो भी मुझे पूरा सहयोग दे रही थीं। अब मेरे होंठ उनके होठों पर थे, एक हाथ उनके बूब्स के साथ खेल रहा था और दूसरा उनकी चूत में उँगली कर रहा था। मेरी लॉटरी निकल आयी थी।
अचानक वे बोलीं- नीचे वाले होंठ भी तो चूस। देख कितना मजा आता है। मैं उनके आदेश पर अमल करता हुआ 69 की पोजीशन में आ गया और उनकी चूत चाटने लगा। उन्होंने मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया था और लॉलीपॉप की तरह चूस रही थीं। हम दोनों के ही मुँह से सिसकारियाँ छूट रही थीं। हमारी सांसें हमारी छाती को फाड़ कर बाहर आना चाह रही थीं।
मुझे इस काम का अभ्यास तो था नहीं, आज दूसरी बार ही सेक्स कर रहा था। पहली बार अपनी गर्ल-फ्रैंड के साथ किया था। हाँ, उसके साथ चूमा-चाटी अक्सर कर लिया करता था। बहरहाल चाची के अभ्यस्त होंठों की चुसाई का नतीजा यह हुआ कि जल्दी ही मुझे लगने लगा कि मैं झड़ जाऊँगा। मैंने चाची को बताया तो वो बेझिझक बोली- छोड़ दे मेरे मुँह में ही। मेरा शरीर एक बार अकड़ा और फिर मेरी पिचकारी छूट ही गयी। चाची बिना किसी झिझक के मेरा सारा वीर्य गटक गयीं।
मेरा लंड बेचारा मुरझाकर लटक गया। मैं ढीला पड़ने लगा। तो चाची बोलीं- ढीला मत पड़ राजा। मैंने तुझे जितना मजा दिया है उतना ही मुझे दे। मैं बोला- पर चाची मेरा तो … उन्होंने मादक स्वर में मेरी बात बीच ही में काट दी- उसकी चिंता तू मत कर, मुझे करने दे। तू अपना काम कर।
मैं पूरे मन से अपना काम करने लगा। पूरे जोश से उनकी चूत चाटने लगा। फिर मैंने अपनी दो उँगलियाँ उनकी चूत में डाल दीं और उँगलियों से उन्हें चोदने लगा। उनकी सिसकारियाँ तेज हो गयीं। उन्होंने मेरे लंड के साथ खेलना तेज कर दिया। मेरा लंड फिर खड़ा होने लगा। थोड़ी ही देर में वे भी झड़ गयीं।
कुछ देर हम वैसे ही लेटे रहे। उन्होंने मुझे फिर सीधा कर लिया और मुझे प्यार करने लगीं। मेरे होठों पर, गालों पर सब जगह उनके होंठ अपने दस्तखत करने लगे।
थोड़ी ही देर में मैं फिर पूरी तरह तैयार था। मुझे रेडी देखकर वो बोलीं- तो फिर असली काम शुरू करें राजा? मैंने जवाब दिया- नेक काम में देर कैसी रानी। मैंने पहली बार उन्हें रानी कहा था। आखिर हम मुख मैथुन कर ही चुके थे और असली मैथुन के लिये जा रहे थे, अब इतना तो बनता ही था।
मेरी हामी सुनते ही वो बोलीं- तो राजा वो वैसलीन की डिब्बी उठा जरा। मैंने सामने टेबल पर रखा वैसलीन की डिब्बी उठाया और उँगली से वैसलीन निकाल कर अपने लंड पर चुपड़ ली। जब मैंने वैसलीन चुपड़ ली तो वो बोलीं- अब आ जा राजा! कहने के साथ ही उन्होंने अपने पैर खोल दिये और बोलीं- धीरे से पेलना। उनकी बात मैंने एक कान से सुनी और दूसरे से निकाल दी।
मैंने बस अपना लंड उनकी चूत पर सेट किया और एक जोर का झटका मारा। लंड उनकी चूत में दूर तक उतरता चला गया। कुछ लंड पर लगी वैसलीन का कमाल था तो कुछ चाची भी कोई नई नवेली तो थीं नहीं, जाने कितनी बार कितनी तरह के लंड झेल चुकी होगी उनकी चूत। हम दोनों की रेलगाड़ी फुल स्पीड में दौड़ने लगी। मैं पसीना-पसीना होने लगा।
थोड़ी देर बाद में मैं उनकी चूत में ही झड़ गया। झड़ने से पहले मैंने पूछा- चाची मैं झड़ने वाला हूँ, क्या करूँ ? मेरा मतलब था कि चूत में ही निकल जाने दूँ या लंड बाहर निकाल लूं? उन्होंने फिर बेफिक्री से बोला- चिंता क्यों करता है बेकार में … चूत में ही झड़ जा। मैंने अपना सारा माल उनकी चूत में झड़ जाने दिया।
हम लोग एक बार फिर ढीले पड़ गये। कुछ देर दोनों वैसे ही लेटे एक दूसरे को प्यार करते रहे फिर उठकर बाथरूम गए, साथ नहाए और फिर मैं अपने घर आ गया। अब जब भी टाइम मिलता है, मैं उनकी चूचियां दबा कर किस कर लेता हूँ। और यह टाइम तो रोज ही एक-दो बार मिल जाता है। अब तो कभी-कभी औरों की मौजूदगी में भी मैं नजर बचा कर उनकी चूचियाँ दबा देता हूँ। हफ्ते में एक-दो बार उनकी चूत मारने का मौका भी मिल ही जाता है।
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