घर की लाड़ली-19

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अगले दिन सबको यह पता था कि घर की लाड़ली बेटी का जन्मदिन है तो सबने अपने-अपने काम से छुट्टी ले ली थी. सुबह सुबह ही सबने मयूरी की जन्मदिन की बहुत सारी बधाइयाँ दी. नाश्ते के वक्त अशोक ने यह एलान कर दिया कि आज शाम को जो मयूरी के जन्मदिन का जश्न होगा, उसमें सिर्फ घर के लोग होंगे और बाहर का कोई भी व्यक्ति नहीं होना चाहिए. इस बात पर सबने अपनी सहमति जताई।

फिर नाश्ते के बाद सब लोग शॉपिंग के लिए निकल गए और मयूरी के लिए बहुत सारे कपड़े-वगैरह ले आये. जन्मदिन वाला केक घर के फ्रिज में रख दिया गया.

करीब 8 बजे सब लोग घर के हॉल में इकठे हुए. रजत फ्रिज से केक ले आया और डाइनिंग टेबल पर रख दिया. घर को बहुत अच्छे से पहले ही सजाया जा चुका था. सब लोग बहुत खुश और उत्साहित लग रहे थे. डाइनिंग टेबल के आस-पास से सारी कुर्सियों को हटा दिया गया था. लम्बे से डाइनिंग टेबल के एक तरफ मयूरी खड़ी थी और उसके बगल में उसके पापा और बाकी सारे लोग टेबल के दूसरी तरफ खड़े थे मयूरी के एकदम सामने.

मयूरी ने एक लाल रंग का टॉप और नील रंग का जींस के कपड़े वाला शॉर्ट्स पहना हुआ था और उसके इस पहनावे में उसका गदराया हुआ शरीर एकदम क़यामत लग रहा था. उसने लाल रंग की गहरी लिपस्टिक लगायी हुई थी, मेक-अप की उसको कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि वो प्राकृतिक रूप से की बला की खूबसूरत थी, और वो इस वक्त एकदम माल लग रही थी.

घर के सब लोग मयूरी के केक काटने का इंतजार कर रहे थे कि मयूरी ने मुस्कुराते हुए अपने पापा की ओर देखकर अपनी आँखों से कुछ इशारा किया.

अशोक समझ गया और मयूरी के ठीक बगल में आ खड़ा हुआ. खड़ा होते ही उसने बोलना शुरू किया- आज हमारी लाड़ली का जन्मदिन है और इस शुभ मौके पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ. रजत- हाँ.. पापा… बिल्कुल. अशोक- देखो… इस घर में कुल पांच लोग हैं… तीन मर्द और दो औरत. विक्रम- हाँ… अशोक- और सब के सब वयस्क हैं… मतलब 18 साल या उस से ऊपर की उम्र के… विक्रम- जी पापा…

अशोक ने गहरी सांस ली और मयूरी की तरफ देखा जैसे इजाजत मांग रहा हो… मयूरी ने जैसे आँखों से इशारो-इशारों में अपनी सहमति दी. अशोक अपनी बात जारी रखता है- तो अब जो मैं बात बोलने जा रहा हूँ… उस से इस घर की किस्मत बदलने वाली है… और इसके बाद सब कुछ हमेशा के लिए बदल जायेगा… जिसे चाहकर भी कभी वापिस नहीं लाया जा सकेगा. विक्रम उत्सुकता से- ऐसी क्या बात है पापा? अशोक- बता रहा हूँ… सुनो.

और अशोक धीरे से मयूरी के पीछे जा खड़ा हुआ और अपने दोनों हाथ उसने उसकी कमर पर रख दिए और धीरे-धीरे अपने हाथों को वो ऊपर ले जाने लगा मयूरी की चूचियों की तरफ. पर उसने ऐसा झटके में नहीं किया वक्त लिया… और उसने बातचीत जारी रखी- मेरी बेटी… जितनी खूबसूरत है… उतनी ही हसीन भी है और उसका शरीर कमाल का है… इतना कमाल का है कि अगर किसी की नजर इसकी इन भारी-भारी चूचियों पर एक बार पड़ जाए तो वो अपनी नजर हटा नहीं सकता. ऐसा कहते हुए अशोक ने अपने दोनों हाथों से मयूरी की दोनों चूचियों को जोर से जकड़ लिया और दबाने लगा. मयूरी के मुँह से सुख वाली आहें निकल गयी- आ… ह… आह… पापा.

और अशोक ने घर में सब के सामने उसकी चूचियों को दबाना चालू रखा. घर के बाकी सारे लोगों की हालत गंभीर हो रही थी और वो इस स्थिति को समझ नहीं पा रहे थे. हो तो सबकुछ वैसे ही रहा था जैसे वो कई दिनों से चाहते थे पर अचानक से होने से सब के सब अवाक् रहे गए. शीतल को तो वैसे भी पता था कि अशोक मयूरी को चोद रहा है पर सब के सामने ऐसे व्यव्हार से वो भी विचलित हो रही थी.

विक्रम- प… प्… पापा… अशोक- विक्रम, तुम्हारे लिए तो यह नया नहीं है ना? तुमने ही तो सबसे पहले मयूरी की चूचियों के दर्शन किये थे. क्यूँ? विक्रम- पा… पा… वो… आपको पता है? शीतल- क्या? शीतल इस बात से अनजान थी और उसके लिए ये बात एकदम नयी थी.

अशोक ने शीतल को जवाब दिया- हाँ मेरी जान… तुम्हारे बड़े बेटे ने सब से पहले मेरी इस फूल जैसी लड़की की कच्छी उतारी… उसकी चूचियों को चूसा, दबाया… उसकी चूत भी चाटी… वो भी इसी घर में… शीतल- क्या? अशोक- हाँ… और तो और… उसने अपना लंड भी चुसवाया अपनी छोटी बहन से… शीतल- म… मतलब…? अशोक- अरे इतना ही नहीं… अगले ही दिन… तुम्हरे इस बड़े बेटे ने मयूरी की चूत की सील भी तोड़ी और खूब चोदा… वो भी तुम्हारे छोटे बेटे के साथ… मिलकर… जैसे वो दोनों तुम्हें चोदते हैं.

शीतल जैसे पकड़ी गयी हो… वो घबरा गयी यह जानकर कि उसके पति को पता चल चुका है कि वो अपने दोनों बेटों से चुदवा रही है- म… मै.. मैं… वो… अशोक- रुको… नहीं… तुम्हारे जैसे नहीं चोदते हैं ये दोनों इसको… क्योंकि तुम तो दोनों एक ही वक्त पर अपनी गांड और चूत भी मरवाती हो ना… पर मयूरी की गांड तो एकदम कोरी थी.. वो तो मैंने तोड़ी है कल. रजत- क्या… आपने दीदी की गांड… अशोक- अरे हाँ… तुम्हें तो अपनी दीदी की गांड बहुत पसंद है ना… अब तुम चाटने के बाद अपना लंड भी पेल सकते हो इसकी मखमली गांड में मेरे बेटे.

अशोक द्वारा घर के सभी लोगों के आपसी चुदाई के रिश्तों का पर्दाफाश करने के बाद सब सदमे में थे. सब चुप थे पर अशोक अब अपना एक हाथ मयूरी की चूची पर से हटाकर उसकी पैंटी में डाल चुका था और अब वो उसकी चूत में उंगली कर रहा था.

मयूरी घर के हर सदस्य के चेहरे के भाव को पढ़ रही थी और वो बहुत ही ज्यादा आनन्दित हो रही थी…

सबको सदमे में चुप देखकर अशोक ने माहौल को सामान्य करने की सोची और बोला- घर के तीनों लंड घर की दोनों चुतों को चोद रहे हैं… मगर… छुप-छुप कर… क्यूँ … जब सब चोद ही रहे हैं तो सबके साथ करो और खूब मजे लो… देखो, मैं यहाँ किसी को गलत नहीं कह रहा… तो तुम लोग बुरा मत सोचो किसी बात के बारे में… मैं खुद भी मयूरी को चोदता हूँ… यहाँ तक कि मैंने इसकी गांड की सील भी तोड़ दी है… तो अब चुदाई पुरे घर में अच्छे से होनी चाहिए… किसी से छुपने या डरने की जरूरत नहीं है… क्यूँ रजत? रजत ख़ुशी से- हाँ पापा… मुझे तो ये सोचकर ही मजा आ रहा है आप अब मेरे साथ दीदी और माँ को चोदेंगे.

अशोक- हाँ बिल्कुल… मैं भी यही चाहता हूँ… पूरा परिवार आराम से सबकी चुदाई करे और खुश रहे… शीतल, तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है… अपने बेटों से जितना चुदना चाहो, चुदो… मुझे को दिक्कत नहीं है. शीतल- वाह… क्या बात है… अब आएगा असली मजा चुदाई का. अशोक- पर एक बात है. शीतल- हमें कुछ नियम तय करने होंगे… क्योंकि ये हम जो भी कर रहे हैं, वो समाज के नियमों की खिलाफ है… इसलिए… विक्रम- क्या नियम पापा?

अशोक- हम, जितना चाहें अपने परिवार में चुदाई करें, कोई दिक्कत नहीं… पर ये बातें, कभी भी, गलती से भी घर के बाहर नहीं जानी चाहिए. विक्रम- ठीक है. अशोक- अगर घर में कोई भी व्यक्ति बाहर का आता है, तो हमें हमेशा सामान्य परिवार की तरह व्यवहार करना होगा. रजत- ठीक है. अशोक- बढ़िया… फिर आज मयूरी का जन्मदिन का जश्न शुरू करें? शीतल- केक काट कर? अशोक- नहीं… हमारी लाड़ली की ये जन्मदिन कुछ अलग तरीके से मनाने की इच्छा है. शीतल- कैसे?

अशोक- ये घर के सभी लोगों से एक साथ चुदना चाहती हैं… मतलब घर के तीनों लंड इनको एक साथ अपने अंदर चाहिए. रजत- वाओ… मजा आएगा. अशोक- फिर शुरू करते हैं. विक्रम- बिल्कुल… अशोक- रुको… अब चूंकि सबकुछ सामने आ ही चुका है, तो मुझे नहीं लगता कि कपड़ों को पहन कर रखने की जरूरत है. रजत- हाँ, बिकुल सही बात है… मैं तो तब से यही सोच रहा हूँ कि कब सब नंगे होंगे. अशोक- चलो फिर, तुम ही सबके कपड़े उतारोगे. रजत- जैसी आपकी आज्ञा पिताजी.

और रजत सबके कपड़े उतरने लगा. पहले वो अपनी माँ के, फिर अपने बड़े भाई के, फिर अपने बहन के और अंत में अपने पिता के कपड़े भी उसने ही उतारे. जब वो अपने पिता के कपड़े उतार रहा था तो अशोक ने उसको रोका और बोला- रजत… रजत- हाँ पापा? अशोक- सुना है कि तुम दोनों भाई लंड भी चूसते हो? रजत- जी पापा… आप देखना, एक बार पूरा परिवार एक साथ आपका लंड चूसेगा… आपको खूब मजा आएगा.

पर उसके बोलते-बोलते तक अशोक ने अपना लंड उसके मुँह में पेल दिया और रजत बड़े मजे से अपने बाप का लंड चूसने लगा.

अशोक फिर मयूरी को बोला- मयूरी… बेटा, तुम डाइनिंग टेबल पर लेट जाओ… आज केक काटेंगे नहीं… सब तुम्हारे शरीर पर से लेकर खाएंगे. मयूरी बड़ी ख़ुशी से- जी पापा… और मयूरी करवट लेकर डाइनिंग टेबल पर लेट गई.

अशोक- विक्रम, तुम केक मयूरी की चूत, गांड, चूचियों, जांघो और गालों पर लगा दो. विक्रम- जी पापा… और विक्रम केक हाथ में लेकर लेटी हुई मयूरी की सभी अंगों पर लगाने लगा. शीतल भी उसकी सहायता करने लगी.

केक को पूरी तरह से मयूरी के सारे कामांगों पर लगवाने के बाद अब अशोक आगे बोला- तो आज मयूरी का जन्मदिन बिना केक काटे ही मनाया जायेगा. चलो सब लोग मयूरी के शरीर पर लगे केक को खाना शुरू करो.

और अशोक का आदेश पाते ही घर के सब लोग यहाँ तक की अशोक खुद भी मयूरी के शरीर एक एक-एक हिस्से पर लगे केक को मुँह से खाने लगे. अशोक मयूरी की चूचियों पर लगे केक को अपने होंठ और जीब से चाटने और खाने लगा जबकि विक्रम मयूरी की चूत पर लगे केक को खा रहा था. और रजत को उसकी मनपसंद जगह मिल गयी मयूरी की कोमल गांड. शीतल मयूरी की जाँघों पर लगे केक को अपनी जीभ और होंठों से चाट-चाट कर खाने लगी.

घर के इतने सारे लोगों के होंठों और जबान से अपने शरीर के हर हिस्से को चटवाने के प्रहार को मयूरी सह नहीं पाई। वो आनन्द से कराहने लगी, उसे एक अलग ही सुख का अनुभव हो रहा था जो अपने भाइयों, माँ और बाप से इतनी बार चुदवाने के बाद भी नहीं आया था- आ… ह… आह… ये क्या कर रहे हो तुमलोग… आह… मुझे मार डालोगे क्या… आह… अशोक- मयूरी, मेरी जान… तुम्हें अपने जन्मदिन के तोहफे का ये पहला चरण कैसा लग रहा है? मयूरी- ओ… पापा… मेरी जान… मुझे बहुत अच्छा लग… रहा है… आह…

और फिर सब लोग फिर से मयूरी को किसी भूखे भेड़िये की झुण्ड की तरह चाटने लगे. इस वक्त घर के सारे सदस्य मयूरी के सारे गुप्तांगों पर अपने जीभ और होंठ से प्रहार पर प्रहार किये जा रहे थे, और इस अद्भुत सुख का मयूरी खूब आनन्द ले रही थी.

इतनी देर में मयूरी करीब तीन बार झड़ चुकी थी.

फिर जब सबने उसके शरीर पर लगे केक को पूरा का पूरा चाट लिया तो मयूरी ने बड़े ही शिकायती लहजे में कहा- अशोक डार्लिंग… मयूरी के लिए ये पहली बार था जब उसने अपने पापा को उसके नाम से बुलाया था.

पर इस वक्त उसके मुँह से अपना नाम सुनकर अशोक को और भी मजा आ रहा था. उसने जवाब दिया- हाँ… मेरी जान… बोलो? मयूरी- सबने तो केक खा लिया, पर मुझे तो खिलाया ही नहीं? अशोक- अभी खिलाते तुझे केक मेरी चुड़क्कड़ बेटी…

और ऐसा कहते ही उसने घर के सभी लोगों को फिर से आदेश दिया- सब लोग अपने-अपने लंड पर केक लगाओ… और शीतल, तुम अपनी चूत पर केक लगाओ, आज मेरी बिटिया को उसके जन्मदिन का केक खिलाना है.

सबने बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी अपने लंड और चूत पर केक लगा लिया और तीनों मयूरी के ठीक सामने खड़ा कर दिया. अशोक- मयूरी… लो खा लो केक… अब तुम्हें सबके लंड और अपनी माँ की चूत पर लगे केक को खाकर ख़त्म करना है बेटा… मयूरी- जी पापा… जरूर…

मयूरी ने सबसे पहले अपने प्यारे पापा के लंड पर लगा केक खाना शुरू किया. उसने अशोक के लंड का केक ख़त्म भी नहीं किया था कि विक्रम ने अपना लंड उसके मुँह में ठूंस दिया. तो रजत भी जबरदस्ती अपना लंड उसके मुँह में ठूंसने लगा. अब घर के तीनों लंड मयूरी के मुँह में जबरदस्ती जैसे तैसे ठूंसे जा रहे थे और वो मजे ले लेकर जैसे भी हो सबका लंड चूस और चाट भी रही थी. अंत में सबके लंड पर लगे केक को पूरी तरह चाट-चाट कर साफ़ करने के बाद अपनी माँ की चूत पर लगे केक को भी चाट-चाट कर खाकर ख़त्म किया.

रजत- केक कैसा लगा दीदी? मयूरी- बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट मेरे भाई… मुझे बहुत मजा आया… तुम्हें केक कैसा लगा? रजत- दीदी, आपको तो पता है ना कि मुझे अपनी गांड का स्वाद बहुत पसंद है… उस पर केक का स्वाद तो जैसे मजा ही आ गया.

अशोक- फिर कार्यक्रम आगे बढ़ाएं? विक्रम- जरूर पापा… देर किस बात की! अशोक- ठीक है फिर… केक का काम तो हो चुका, अब जन्मदिन का असली तोहफा देने की बारी है. शीतल- हाँ.. बिल्कुल… अशोक- मयूरी, तुम तैयार हो? मयूरी- हाँ पापा… इस दिन का तो बहुत इंतज़ार किया है मैंने… मैं बिल्कुल तैयार हूँ. अशोक- ठीक है फिर… नीचे जमीन पर लेट जाओ. मयूरी- जी पापा…

और मयूरी नीचे जमीन पर लेट गयी. अशोक ने अपना लंड मयूरी की चूत पर सेट किया और रजत को उसकी गांड मारने का इशारा किया. विक्रम को उसने मयूरी के मुँह में लंड डालने को बोला. फिर अशोक के इशारे पर तीनों ने एक साथ अपना-अपना लंड मयूरी की एक-एक छेद में पेल दिया.

और तब शुरू हुआ घर में सामूहिक चुदाई का ये पहला दौर… मयूरी के लिए तो जैसे उसके सपने को साकार होने जैसा था. मयूरी कुछ बोल भी नहीं पाती क्योंकि विक्रम उसके मुँह में ताबड़तोड़ चुदाई कर रहा होता है और अपना लंड उसके गले तक पेल रहा होता है. इधर अशोक और रजत उसकी चूत गांड का हलवा बनाने में लगे थे. शीतल मयूरी की चूचियों को चूस रही थी.

यह नायाब चुदाई लगभग आधे घंटे तक चली . जब किसी का लंड झड़ जाता तो थोड़ी देर में वो अपना लंड खड़ा कर के फिर से चुदाई करने लगता. फिर अपना अपना लंड बदल-बदल कर तीनों ने मयूरी की खूब चुदाई की.

उसके बाद सबने वैसे ही शीतल की भी खूब चुदाई की और फिर विक्रम और अशोक ने मयूरी की और रजत ने अकेले शीतल की चुदाई की. इस दौरान सबने एक साथ अशोक के लंड को भी खूब चूसा… पूरी रात सब पार्टनर बदल-बदल कर चुदाई करते रहे और उस दिन के बाद घर में चुदाई का जश्न जारी रहा.

समाप्त

यह कहानी मेरी जिंदगी की पहली रचना ‘चुड़क्कड़ परिवार’ शृंखला की अगली कड़ी है. मैं सेक्स और चुदाई के कहानियों का शुरू से शौक़ीन रहा हूँ. विशेष रूप से रिश्तों में चुदाई की कहानियों का बड़ा प्रशंसक रहा हूँ. मुझे अपनी इस शृंखला की यह कड़ी को लिखने में बहुत वक्त लग गया, पर ये बहुत ही रोमांच से भरी हुई कहानी तैयार हुई है. पाठकों से आग्रह है कि आपको ये कहानी कैसी लगी, आप अपनी राय मुझे मेरे ईमेल आईडी पर जरूर दें ताकि मैं इसकी दूसरी कड़ी भी लिख पाऊँ. मेरी ईमेल आईडी है: [email protected]

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