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अंतर्वासना पाठकों को अंश बजाज का एक बार फिर से प्रणाम! समलैंगिकों को भारतीय दंड संहिता से आज़ादी मिलने पर बहुत-बहुत बधाई। उम्मीद है कि एल जी बी टी समुदाय (लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर ) की मुश्किलें कुछ कम हो गई होंगी, लेकिन समाज में आदर-सम्मान और बराबरी का हक़ पाने के लिए अभी एक लंबी लड़ाई बाकी है। कानून भले ही बदल गया हो मगर लोगों की मानसिकता बदलने में लंबा वक्त लगेगा। खुशी ज़रूर है कि एक शुरूआत तो हुई, अब उम्मीद की किरण ज्यादा साफ, ज्यादा रौशन हो गई है। 6 सितंबर को उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के दिन आंखों से आंसू आना लाज़मी था क्योंकि मरहम का अहसास वही कर सकता है जिसने दर्द को भी जी भर कर जिया हो।
इसी मौके पर अपनी जिंदगी की एक और घटना आप सबके साथ साझा करने का मन किया तो लिखने बैठ गया। बात उस वक्त की है जब मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ता था, लेकिन कहानी की पृष्ठभूमि ग्यारहवीं में ही तैयार होने लगी थी क्योंकि जब मैंने दसवीं उत्तीर्ण करने के बाद नये स्कूल में दाखिला लिया तो लड़कों की तरफ आकर्षण अपने चरम पर था। उस वक्त प्यार और हवस में फर्क करना बहुत मुश्किल था क्योंकि उम्र ही ऐसी थी। बस जो चेहरा पसंद आ गया, उसी के पीछे-पीछे चल दिए।
मेरी कक्षा में एक लड़का था जिसका नाम था गौतम। स्कूल गांव में था तो ज्यादातर लड़के जाटों के ही पढ़ते थे, वो भी जाट था। वो भी 18-19 साल का था और मेरी उम्र भी लगभग इतनी ही थी। उस वक्त उसी उम्र के लड़कों के लिए दिल में ज्यादा गुदगुदी होती थी। मन तो 25 साल तक के लड़कों के लिए भी मचल जाता था। फिर भी हम-उम्र लड़कों के जिस्म ज्यादा आकर्षक लगते थे। गौतम देखने में ठीक-ठाक था, शरीर भी मीडियम शेप में था। नई-नई जवानी में उभरता हुआ लंड, आज भी उसके बारे में सोचता हूं तो लंड खड़ा हो जाता है। स्कूल की टाइट ग्रे पैंट में उसकी जांघों की फिगर, उसके गोल-मटोल चूतड़ और उसकी स्कूल पैंट में चेन के पास उठा हुआ आकार मुझे अक्सर उसकी तरफ देखने के लिए मजबूर करता रहता था।
उस वक्त सही गलत की समझ भी नहीं थी। क्या करना चाहिए, कैसे अप्रोच करना चाहिए, अगर कुछ हुआ तो उसका नतीजा क्या निकलेगा किसी बात की परवाह नहीं थी। रात को उसके लंड के बारे में सोचते हुए अपना लंड हिलाए बिना नींद नहीं आती थी। वीर्य निकलने के बाद ही मन शांत होता था और यह रोज़ की कहानी हो गई थी, हवस की आग प्यार का रूप लेकर मुझे बेचैन करती रहती थी।
धीरे-धीरे उससे दोस्ती तो हो गई लेकिन स्कूल फ्रेंड था इसलिए थोड़ा हिचकता था कि अगर मैंने इसको सीधे-सीधे कुछ बोला तो कहीं ये मुझसे दोस्ती तोड़ ही न दे। और ऐसा भी हो सकता था कि क्लास में कहीं वो मेरी बेइज्जती न कर दे। क्योंकि जाटों का भरोसा नहीं होता; कब क्या कर बैठें; उनको किसी की फीलिंग से ज्यादा कुछ लेना देना नहीं होता। हर बात को मज़ाक बनाकर हंसी में उड़ाना उनके खून में होता है।
साल भर तो मैंने उसके बारे में सोचकर रात में मुट्ठ मारकर ही काम चलाया। पूरी ग्यारहवीं ऐसे ही निकल गई। एक साल के अंदर हमारी दोस्ती काफी गहरी हो गई थी लेकिन उससे सीधे बोलने की हिम्मत अब भी नहीं होती थी। पढ़ाई में मैं अच्छा था इसलिए उसको अक्सर मेरी ज़रूरत पड़ती रहती थी और मुझे भी उसके लिए कुछ करने की अलग ही खुशी होती थी। वो अक्सर होमवर्क के लिए मेरी नोटबुक मांग लिया करता था। ज़रूरत पड़ने पर मैं उसका होमवर्क भी कर देता था, उसको अपनी तरफ खींचने का उस वक्त यही एक तरीका मुझे नज़र आता था। मुझे नहीं पता था कि वो मेरे बारे में क्या सोचता है लेकिन मैं उसको पाने के लिए हमेशा डोरे डालता रहता था।
बारहवीं में आए तो वो और जवान हो गया, उसकी चेहरे पर हल्की-हल्की दाढ़ी दिखाई देनी शुरू हो गई थी। गांड पहले से ज्यादा सुडौल, जांघों में पैंट ज्यादा फंसने लगी थी जो चेन को कुछ ज्यादा ही उठाकर रखती थी। उसकी तरफ आकर्षण अब ज्यादा बढ़ने लगा था। अब मैं उसी के साथ बैठता था। क्लास में वो जब बेंच पर बैठता तो उसकी जांघें और ज्यादा कस जातीं और मेरी नज़रें उसके लंड को पैंट के अंदर ही टटोलने की कोशिश करती हुई अक्सर नीचे ही लगी रहती थीं। बार-बार मन करता था कि उसकी उठी हुई चेन के नीचे अंडरवियर में सोए उसके लंड पर हाथ रख दूं लेकिन बस लंड की तरफ ताड़ते हुए मन मसोसकर रह जाता था।
आधा साल इसी कशमकश में बीत गया था लेकिन उसके और ज्यादा करीब जाने का कोई तरीका मुझे सूझ नहीं रहा था। उस समय तक बटन वाले मोबाइल फोन चलन में आ चुके थे और एस एम एस का बड़ा ही क्रेज होता था। उसका नम्बर मेरे पास था और मैं उसको जोक्स या प्यार वाले मैसेज भी कर देता था। कई बार मज़ाक में उसको जान या डार्लिंग भी लिख देता था। उसने भी कभी इस तरह के मैसेज को लेकर कोई रेस्पोन्स मुझे नहीं दिया था, इसलिए अभी आगे बढ़ने का कोई फायदा नहीं था।
दिन गुज़र रहे थे और बारहवीं के प्री-बोर्ड के इम्तिहान नज़दीक आने वाले थे। एग्ज़ाम्स की गहमागहमी स्कूल में शुरू हो चुकी थी। एक दिन गौतम ने कहा- यार तू मेरे घर आ जा ना, दोनों साथ में बैठ के कुछ पढ़ लेंगे, मुझसे अकेले में नहीं पढ़ा जाता। मैंने कहा- ठीक है, मैं आ जाऊंगा। मन में अंदर ही अंदर लड्डू फूट रहे थे, क्योंकि मैं तो उसके पास जाने का मौका ढ़ूढ़ता ही रहता था। लेकिन वो पास के दूसरे गांव से आता था। मुझे माँ को इसके लिए मनाना था। बात पढ़ाई की थी तो माँ जल्दी ही मान गई।
रविवार को दोपहर के समय मैं गौतम के घर पर पहुंच गया। मैंने उसके घर के बाहर जाकर डोरबेल बजाई और उसको आवाज़ लगाई- गौतम? 2-3 मिनट बाद अंदर से मेरी माँ की उम्र की औरत ने गेट खोला तो मैंने अंदाज़ा लगाया कि ये गौतम की माँ होगी।
“नमस्ते आंटी… गौतम ने पढ़ने के लिए बुलाया था.” आंटी ने कहा- क्या नाम है बेटा तेरा? “अंश!” मैंने कहा. आंटी ने आवाज़ लगाई- गौतम… कोई लड़का अंश तुझसे मिलने आया है.
मुझे आंटी ने अंदर आने को कहा, मैं अंदर दाखिल हुआ तो आंटी ने गेट ढालते हुए दोबारा आवाज़ लगाई- अरे कित बड़ रया है… यो छोरा गेट प खड़ा। सुणता नी तन्नै? गौतम अंदर से आवाज़ लगाता हुआ बोला- आया माँ…
2 मिनट बाद वो अंदर के कमरे से बाहर निकल कर आया. उसने आसमानी नीले रंग का स्पोर्ट्स वाला शार्ट्स पहन रखा था जिसमें अंदर लटक रहा उसका लंड उसके कदमों के साथ इधर-उधर डोलता हुआ एक बार दाईं.. तो एक बार बाईं जांघ से टकरा रहा था। उसने छाती पर काले रंग की सैंडो बनियान डाली हुई थी। उसकी गोरी-गोरी जवान छाती और कंधों से साइड में निकलते मीडियम साइज के डोले … छाती पर नई जवानी के हल्के-हल्के भूरे बाल अभी उग ही रहे थे, जिनको देखकर मेरे लंड में गुदगुदी सी हो उठी थी।
नज़र फिर से नीचे की तरफ ताड़ने लगी तो देखा कि जांघों के बाल छाती के बालों की तुलना में थोड़े ज्यादा बड़े और काले हो गए थे। कुल मिलाकर वो जवानी की दहलीज पर कदम रखता हुआ जवान लौड़ा बनता जा रहा था। मैंने पहली बार उसको बिना शर्ट और पैंट के देखा था।
वो नंगे पैरों मेरे सामने आकर खड़ा हो गया; मैं उसको देखकर हल्के से मुस्कुराया। वो बोला- अंदर आ जा अंश… मेरे कमरे में बैठकर पढ़ते हैं।
मेरे हाथ में नोटबुक तो थी ही इसलिए आंटी ने भी कोई सवाल-जवाब नहीं किया। हम दोनों उसके रूम में अंदर चले गए। बेड पर बैठकर मैंने नोटबुक खोल ली। सामने चल रहे टीवी पर उसने एफटीवी चैनल लगा रखा था। मैं समझ गया कि ये बिकनी वाली मॉडल्स को देखने में बिज़ी था इसलिए इसका लंड अपने आकार में आया हुआ था।
मैंने कहा- टीवी तो बंद कर दे… टीवी देखते हुए डिस्टर्बेंस होगा, पढ़ाई नहीं हो पाएगी। उसने रिमोट उठाकर टीवी बंद कर दिया और आलथी-पालथी मारकर बेड पर मेरे सामने बैठ गया।
इस पोजिशन में उसकी जांघों पर शार्ट्स कुछ और ऊपर सरक कर उसकी जांघों को लगभग उसके उसके आंडों के पास तक और नंगा करने के बाद रुक गए थे, अब अगर शार्ट्स को थोड़ा और ऊपर की तरफ चढ़ा दिया जाए तो उसके आंड ही दिखाई दे जाते। उसके आंडों की शेप नीले शॉर्ट्स में नीचे बैग बनाकर अलग से दिखाई दे रही थी। उसकी जांघें काफी गोरी थीं जिन पर ऊपर तक बाल उगे हुए थे लेकिन वो बाल अभी नए-नए लग रहे थे। मेरे सामने बैठे हुए उसने दोनों कुहनियाँ अपने दोनों घुटनों पर टिकाई हुई थीं और उसकी बनियान अब छाती पर से ढीली होकर आगे की तरफ लटक सी गई थी जिससे मुझे उसकी छाती के अंदर तक का नज़ारा भी दिखने लगा था। हल्के बालों से भरी हुई उसकी छाती के अंदर उसके निप्पल भी दिखाई दे रहे थे। जिनको देखकर मेरी हालत खराब हो रही थी और मन कर रहा था कि उसकी बनियान को उतारकर उसके निप्पलों को चूस लूं।
उसकी नज़र नोटबुक में थी और मेरी नज़र कभी उसके शार्ट्स पर और कभी उसकी छाती पर बारी-बारी से ताड़ रही थी। कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। लेकिन शुरूआत करूं भी तो कैसे। हम पढ़ने लगे।
10-15 मिनट हुए थे कि आंटी ने बाहर से आवाज़ लगाई- गौतम, मैं ज़रा तेरी ताई के घर जा रही हूं। बाहर का ध्यान रखना कभी अंदर ही घुसा रहे। “ठीक है माँ.. ” उसने अंदर से आवाज़ देते हुए कहा। आंटी ने फिर आवाज़ लगाई- गेट न भीतर तै बंद कर ले ऊठ कै…
वो गेट बंद करने चला गया और मैंने एक गहरी सांस ली। मैं कमरे में इधर-उधर देख ही रहा था कि वो फिर से दाखिल हुआ, अंदर आकर वो बेड पर लेट गया। मैंने कहा- पढ़ना नहीं है क्या…लेट क्यूं गया? वो बोला- रूक जा यार, किताबी कीड़े। इतना पढ़ूंगा तो दिमाग की दही हो जाएगी। थोड़ी कमर सीधी करने दे।
वो बेड के सिरहाने की तरफ सिर करके मेरी बगल में लेटा हुआ था और टीवी फिर से ऑन कर दिया। चैनल को फिर से फैशन टीवी पर लगा दिया। मेरी हंसी छूट गई। वो बोला- क्या हुआ? मैंने कहा- तू हर टाइम यही देखता रहता है क्या? वो बोला- यार… यही तो देखने की चीज़ है… देख साली की चूची कैसे उछल रही हैं बिकनी में, इसकी चूत तो बिल्कुल चिकनी और मखमली होगी।
कहते हुए उसने अपने लंड को शार्ट्स के ऊपर से ही हल्के से सहला दिया। उसकी इस हरकत पर मेरी नज़र उसके लंड पर जा टिकी। वो साइड में अलग से अधसोई अवस्था में उसकी बाईं जांघ पर पड़ा हुआ था। उसने टांगें फैला रखी थी और हाथों को मोड़कर पीछे सिर के नीचे दबाकर लेटा हुआ था जिससे उसके गोरे-गोरे डोलों के निचली तरफ अंडरआर्म के भूरे बाल कुछ ज्यादा ही सेक्सी लग रहे थे।
मैंने कहा- आंटी को पता नहीं चलता तेरी इन हरकतों के बारे में? वो बोला- बेवकूफ… मैं माँ के सामने ये सब देखूंगा क्या?
तभी टीवी स्क्रीन पर कैलेंडर मेकिंग वाला वीडियो चल पड़ा जिसमें एक मॉडल के चूचों को नंगे ही शूट किया जा रहा था। उसके मोटे-मोटे चूचे जो गेहुंए रंग के थे रेत में सने हुए थे और उसने नीचे पैंटी भी ऐसी पहनी थी जो उसकी चूत के मुंह को भी बड़ी मुश्किल से छुपा रही थी।
उसको देखकर गौतम की सिसकारी निकल गई और उसने सिर के नीचे से अपने हाथ को निकालते हुए सीधा लंड पर रखते हुए उसे सहलाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते उसका लंड उसके शार्ट्स में तन गया। उसका लंड वो बार-बार लंड को सहलाते हुए जांघों को हिला रहा था।
उसके तने हुए लंड को देखकर मेरे मुंह में पानी आना शुरू हो गया था, मन कर रहा था कि अभी उसके शार्ट्स को निकालकर उसको नंगा करके उसके लंड को मुंह में लेकर चूस लूं … लेकिन हिम्मत जुटा ही नहीं पा रहा था। बस धड़कन धक-धक हो रही थी; जिस लंड को देखने के लिए डेढ़ साल से इंतज़ार कर रहा था वो मेरी नज़रों के सामने तनकर उछाले मार रहा था, लेकिन मेरी पहुंच के बहुत करीब होते हुए भी मुझसे बहुत दूर…
तभी बेल बजी और उसने झट से टीवी ऑफ कर दिया। लंड को शार्ट्स की इलास्टिक के नीचे दबाकर बनियान के नीचे छिपाते हुए वो बेड से उठा और कमरे से बाहर गेट खोलने निकल गया। उसको गए हुए 3-4 मिनट हो गए लेकिन वो नहीं लौटा। मैंने कमरे की शीशे वाली खिड़की से बाहर की तरफ देखा तो गेट तिरछे रूप में हल्का सा खुला हुआ था और वो किसी से बातें कर रहा था। बाहर खड़ा इन्सान मुझे वहां से नज़र नहीं आ रहा था। वो बार-बार अपने शार्ट्स के ऊपर लंड को खुजलाते हुए बातें कर रहा था। मैंने उसकी बातें सुनने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वहां पर चल क्या रहा है।
इतने में ही उसने अंदर की तरफ देखा तो मैं वापस बैठ गया। कुछ पल बाद वो भी आ गया। मैंने पूछा- कोई था क्या गेट पर? वो बोला- हां, पड़ोस वाली चाची की लड़की थी, माँ को पूछ रही थी, बहुत लाइन मारी इस पर लेकिन साली भाव ही नहीं देती… लेकिन माल है यार… कसम से, इसकी चूत के दर्शन भी हो जाए मेरा लौड़ा तो पानी फेंक देगा।
मैंने कहा- तेरे जैसे लड़के को भी भाव नहीं देती? उसने कहा- हां साले, मैं बड़ा शाहरुख खान हूं.. .जो लड़कियाँ मेरे आगे-पीछे घूमेंगी? मैंने कहा- शाहरुख भी कोई हीरो है? उससे ज्यादा सेक्सी तो तू लगता है।
उसने मेरी तरफ देखा और हंसते हुए बोला- हट बहनचोद, चुतिया बना रहा है. मैंने कहा- सच में … मुझे तो कोई कमी नहीं लगती तेरे अंदर, मैं लड़की होता तो तुझे बॉयफ्रेंड बना लेता। वो बोला- हाय… ये बात पड़ोस वाली शीतल क्यों नहीं बोलती। साला मुट्ठी मार-मारकर थक गया हूं उसके नाम की।
मैं मन में थोड़ा खीझ गया… मैं यहां इस पर डोरे डाल रहा हूं और इसको शीतल की पड़ी है। मुझे जलन सी हो रही थी उसकी बातें सुनकर। मुझे लगा, ये तो चूत के पीछे पागल है, मेरा चांस कहां है. मैंने बात बदलते हुए कहा- वो सब छोड़, पढ़ाई नहीं करनी क्या? वो बोला- यार, तेरे आने से पहले मैंने मुट्ठ मार ली थी। थकान हो रही है, पढ़ने का मूड़ नहीं है, सिर भारी हो रहा है। मैंने कहा- दिखा, बुखार तो नहीं है?
बहाने से मैंने उसके माथे पर हाथ रखा तो वो बोला- अंश यार, थोड़ा, सिर दबा दे ना.
मैंने नोटबुक बंद करके एक तरफ रखी और उसके माथे पर हाथ फिराते हुए उसके सिर को हल्के से दबाते हुए उसके बालों में हाथ फिराने लगा। वो बोला- साले, तेरे हाथ तो बिल्कुल लड़कियों की तरह नरम हैं… पर मज़ा आ रहा है।
मुझे भी खुशी हुई कि इसको कुछ तो अच्छा लगा मेरे अंदर… मैंने अब और ज्यादा प्यार से उसके सिर को मसाज देना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में वो खर्राटे लेने लगा। मैंने उसके चेहरे को देखा तो उसके लाल होंठ हल्के से खुले हुए थे। बहुत दिल किया उनको चूसने का लेकिन ये सिर्फ ख्याली पुलाव ही थे। असल में ऐसा कुछ करता तो पता नहीं वो कैसे रिएक्ट करता इसलिए मैंने ध्यान को वहां से हटा लिया और हल्के से उसके बालों में हाथ फिराता रहा।
10-15 मिनट तक ऐसे ही प्यार से उसके बालों में हाथ फिराते हुए उसके चेहरे को देख रहा था कि तभी फिर से गेट की घंटी बजी और आंटी की आवाज़ सुनाई दी- गौतम… गेट खोल। उसकी आंख खुली तो मैं उससे अलग हो गया, वो उठकर गेट खोलने गया और 2 मिनट बाद वापस कमरे में दाखिल हुआ तो उसका लंड उसके शार्ट्स में तंबू बनाकर, उसको पूरे जोश में उठाए हुए था… शायद सोकर उठने के बाद की सारी ऊर्जा उसके लंड में आकर इकट्ठा हो गई थी।
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी। [email protected]
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