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मेरी सेक्स स्टोरी के पहले भाग बाप की हवस और बेटे का प्यार-1 में आपने पढ़ा था कि मेरे स्वर्गीय पति का बेटा मनोज मुझे एक पत्र देकर चला गया था. उसका विवरण भी आपने जाना था. अब आगे..
अभी मेरे पति गुज़रे कुछ ही दिन हुए थे कि मेरे चाचा और चाची मेरे पास आए और बोले कि लाला तुम्हारे नाम से सब कुछ कर गए है या नहीं. मैंने कहा- बोल तो रहा था.. मगर पता करना पड़ेगा. मुझे पता लगा है कि उसका पैसा पुरखों का है और इसमें उसके बेटे मनोज का पूरा हक़ बनता है.
यह सुन कर उनका मुँह उतर गया, बोले- बेटी अगर हो सके तो कुछ पैसे हमें दे दो.. देख लो अगर तुम्हारे पास रखे हुए हो तो क्योंकि घर में खाने को भी कुछ नहीं है. मैंने यह सुन कर उनको कुछ पैसे दिए और बोली- मेरे पास अब और नहीं हैं.. जब तक कि यह ना पता लग जाए कि पैसों को असली हक़दार कौन है. मुझसे पैसे न माँगना. खैर उन्होंने मेरी बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और जो पैसे मुझसे लिए थे उनको लेकर चलते बने.
मैंने उसी रात मनोज से फोन पर बात की और बोली कि तुम ठीक कह रहे थे. मेरे चाचा चाची की नज़र अब जो मेरे पास है, उस पर है. तुम काग़ज़ बनवा कर मुझसे साइन करवा लो. मैं यह पैसे अपने पास नहीं रखना चाहती. वैसे भी इसके असली मालिक तो तुम्हीं हो. मैं तो तुम्हारे बाप की नज़रों में एक वस्तु थी, जिसे उन्होंने अपने पैसे के बलबूते पर खरीदा था. उसने मुझसे कहा- मुझे सोचने का कुछ समय दो.. मैं फिर बात करूँगा. अभी तो तुम जैसा चल रहा, चलने दो.
कुछ दिनों बाद मनोज आया और बोला कि मैं दो दिनों के लिए आया हूँ. मुझसे तुम्हारी यह हालत नहीं देखी जा रही. मगर मैं भी मजबूर हूँ. चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि मेरा बाप बुढ़ापे में भी तुम्हारी जिंदगी खराब कर गया है. उसे समझना चाहिए था कि उसका बेटा शादी के लायक है, तब भी बेटे की शादी करने के बजाये अपनी कर ली. मुझे नहीं पता कि तुम दोनों के बीच पति पत्नी वाले रिश्ते कैसे थे. मैं इनको पूछ कर भी तुम्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहता. जो मेरे बाप ने आपके नाम लिखा है उसे अपने नाम पर ही रहने दो और अगर कोई पूछे तो कह देना कि मनोज ने अपने नाम करवा लिया है. इससे तुमसे कोई कुछ माँगने लायक नहीं रहेगा. हाँ कुछ थोड़ी बहुत सहायता करनी पड़े तो कर दिया करना, आख़िर वो भी मजबूरी में ही तुम्हारे पास आते हैं.
मैंने उससे कुछ नहीं कहा और एक पत्र लिख कर उसे यह कहते हुए दिया कि तुम्हें उसकी कसम है, जिससे भी तुम सबसे ज़्यादा प्यार करते हो, अगर इस को वापिस घर पर पहुँचने से पहले खोला या पढ़ा.
उस पत्र में मैंने लिखा था: मनोज (मैं तुम्हें प्रिय नहीं लिख रही हूँ क्योंकि मैं नहीं जानती कि मैं इसकी हक़दार हूँ) यह तो तुम्हें पता ही है की मेरी शादी मेरी मर्ज़ी के बिना तुम्हारे बाप से कर दी गई थी. वो पति पत्नी के रिश्ते बनाने लायक नहीं थी. मगर फिर भी उन्होंने किसी हकीम की दवा खाकर मुझसे अपने संबंध बनाए. कुछ दिनों बाद उस दवा का असर भी कम हो गया और वो कुछ भी कर पाने के लायक नहीं रहे. मैं किसी से कुछ कह भी नहीं सकती थी.. और ना ही किसी और से अनुचित संबंध बना सकती थी. इसलिए मैंने खुद को अपनी किस्मत पर छोड़ दिया. शायद मेरी तकदीर ही यही है. मुझे लगा था कि आपके पिता ने मेरी शादी आपसे करने के लिए चाचा से कहा होगा. मगर जब मैंने चाची से बात करते हुए सुना तो मुझे पता लगा कि मेरे साथ क्या होने वाला है. खुद को अपनी फूटी तकदीर पर छोड़ कर मैं आपके पिता की पत्नी बन गई. उसके आगे क्या हुआ वो मैं आपको बता चुकी हूँ. अब मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि आप जल्दी से जल्दी किसी अच्छी लड़की से शादी करके अपना घर बसा लो. अभागी सुधा (क्या लिखू माँ? जो मुझसे नहीं लिखा जाएगा)
अभी मेरे पति को गुज़रे कुछ दिन ही हुए थे कि मेरी चाची एक दिन मुझसे बोली कि सुधा अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है. कुछ अपने बारे में सोचो. मैंने कहा- चाची जब मेरी शादी की थी तब यह नहीं सोचा गया था? जो अब बोल रही हो. उसने कहा- वो तो हमारी बहुत बड़ी मजबूरी थी.. मगर यह तो हम से नहीं देखा जा सकता कि तुम जवानी में इस तरह से रहो. “फिर बताओ मैं क्या करूँ?” चाची बोली- तुम दुबारा से शादी कर लो. मैंने पूछा- किस से?
तब चाची ने अपने किसी रिश्तेदार का नाम बताया. मुझे पक्का पता लग गया था कि चाची उसको मोहरा बना कर सारी संपत्ति पर कब्जा करना चाहती हैं. जिस लड़के का नाम वो बता रही थीं, वो दो बच्चों का बाप था और उसकी बीवी की मौत हो चुकी थी.
यह सब सुन कर मेरा दिल चाचा चाची से पूरी तरह से टूट गया. मैंने सोचा कि अच्छा होगा अगर मैं यहाँ से कहीं और चली ज़ाऊं और फिर से नई जिंदगी शुरू करूँ.
इससे पहले मैं कुछ सोचती मुझे फोन आया कि मनोज बेहोशी की हालत में हॉस्पिटल में भरती है. यह सुन कर मैं उसी समय वहाँ के लिए निकल पड़ी. जब मैं हॉस्पिटल में पहुँची तो वो बेहोश था और कुछ बुदबुदा रहा था. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था.
मैंने जब अपने कान उस के पास ले जा कर सुना तो मैं बहुत हैरान हो गई. वो बोल रहा था ‘सुधा मुझे छोड़ कर ना जाओ.. तुम मेरी हो सिर्फ़ मेरी.. मुझे ना छोड़ कर जाओ.’ अब मुझे पता लगा कि वो अभी भी मुझसे उतना ही प्यार करता है, जितना पहले करता था.
डॉक्टर ने बताया कि इसको कोई दिमाग में किसी सोच ने असर किया है, जिससे यह बेहोश हो गया है. मुझे पता लगा कि वो पिछले दो दिनों से इसी तरह से है.
मैंने डॉक्टर से पूछा कि इसका इलाज़ क्या है? डॉक्टर ने मुझे बताया कि जिसे यह याद करता है.. अगर वो इसके पास आकर इससे प्यार से बात करे, तो यह होश में आ जाएगा.
यह सुन कर मैंने सभी को कमरे से जाने के लिए कहा और उसके साथ उसी के बिस्तर पर लेट गई और बोलती रही कि मनोज मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाली.. तुम होश में आओ.
मैं उसको अपनी बाजुओं में लेकर उसके साथ प्यार का पूरा अहसास कराती रही. डॉक्टर की सलाह पर मैं अपने ऊपर के कपड़े उतार कर उसे मम्मों को चुसवाती रही और वो बेहोशी की हालत में मेरे दूध चूसते हुए बोलता रहा- मुझे ना छोड़ कर जाना प्लीज़.. मुझे छोड़ कर ना जाना!
वो कई बार मेरे मम्मों को चूसते हुए ज़ोर से दबा भी देता था. मगर मैं उससे कुछ नहीं कह सकती थी कि ज़रा प्यार से दबाओ.. क्योंकि वो होश में नहीं था. यह सब में अपनी मर्ज़ी के बिना, डॉक्टर किस सलाह पर ही कर रही थी ताकि उसे होश आ जाए. पता नहीं इसकी वजह से या ऊपर वाले की मेहरबानी से, उसे होश आ गया.
जब उसे होश आया तो मैं उसकी बांहों में जकड़ी हुई थी. उसके हाथ मेरे मम्मों को दबा रहे थे, जो पूरी तरह से नंगे किए हुए थे.
मैंने जल्दी से अपनी दूरी उससे बना ली. मगर डॉक्टर ने उसे बताया कि इस लड़की ने तुम्हें होश में लाने के लिए अपनी जिस्म को नंगा करके तुम्हें सौंप दिया ताकि तुम्हें यह अहसास हो कि तुम अपनी प्रेमिका के साथ हो, वो तुम्हारे साथ ही है.. छोड़ कर नहीं गई. इस लड़की ने रात दिन तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारी जो सेवा की है.. वो शायद कोई नर्स भी नहीं कर सकती. फिर इसने तो अपना शरीर तक तुम्हें बेहोशी की हालत में इस्तेमाल करने दिया. उसे पता है कि तुम बिना जाने यह सब कर रहे हो, मगर वो बेचारी तो कई बार शरम करते हुए कोई कपड़ा अपने ऊपर करती थी, जिस से उनका नंगापन किसी को नज़र ना आए.
इस तरह से मनोज को पता लग गया था कि मैंने उसे होश में लाने के लिए क्या क्या किया था. जब हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई तो मैं उसे घर पर ले गई और बोली कि अब मुझे जाने की इज़ाज़त दो. मनोज ने कहा- सुधा, मैं जानता हूँ कि तुमने मुझे होश में लाने के लिए क्या क्या किया है. अब तुम यहाँ से ना जाओ. मगर मैं तुमसे कोई ऐसे बात भी नहीं करूँगा, जिससे तुमको मेरे बारे में कोई मौका मिले कि मेरी सोच ठीक नहीं है. मैंने उससे कहा- मनोज ऐसी कोई बात नहीं.. ना ही मुझे किसी का डर ही है कोई क्या कहेगा. मगर मुझे खुद से डर लगता है कि कहीं मेरे या तुम्हारे कदम डगमगा ना जाएं. मनोज ने कहा- तुम फिकर ना करो.. मैं कभी तुम्हारे कमरे में झांकूंगा भी नहीं. तुम अब कहीं नहीं जाओगी.
इस तरह से अब हम दोनों एक ही छत के नीचे दो अजनबियों की तरह से रहने लगे. रात को वो अपना कमरा बंद कर लेता था और मुझे कह देता था कि अपना कमरा अन्दर से बंद रखना.
दिन में जब वो अपने ऑफिस चला जाता था तो मैं घर का कुछ इधर उधर का काम देख लेती थी. मगर उसने मुझसे कहा हुआ था कि मैं उसके कमरे में ना जाया करूँ.
मगर एक दिन मुझे पता नहीं क्या सूझी कि मैं उसके कमरे में चली गई और देखा कि उसके कमरे में बहुत सी अश्लील किताबें थीं और उनमें से बहुत सी फोटो वाली भी थीं. कई फोटो सिर्फ नंगी लड़कियों की थीं और कुछ में चुदाई करती हुई.
देखते देखते मुझे एक किताब हाथ में आई जो पिक्चर्स वाली थी. उसमें बहुत सी नंगी लड़कियों की फोटो थीं, जिसमें उन्होंने अपने मम्मों को दबा दबा कर दिखलाया था और कुछ ऐसी थीं, जिसमें वो अपनी चूत को खोल कर दिखा रही थीं. बहुत से चुदाई वाली थीं, जो कई तरह से चुदाई करते हुए दिखलाई हुई थीं. मगर मुझे तब बड़ी हैरानी हुई, जब मैंने एक फोटो पर उसकी और अपनी फोटो देखी, जिसमें हम दोनों चुदाई कर रहे थे. मैं यह देख कर हक्की बक्की हो गई क्योंकि आज तक मैंने तो मनोज को कभी नंगा ही नहीं देखा था, फिर यह कैसे हुआ. मैं बहुत देर तक उस फोटो को देखती रही, तब जा कर पता लगा कि उसने कम्प्यूटर की मदद से मेरा और अपना फेस उस फोटो पर लगाया था. अब मुझे पता लगा कि मनोज रोज़ रात को यही सब देखता रहता है. मैं अब उसको मना भी नहीं कर सकती थी. न ही उसको बता सकती थी कि मैं उसके कमरे में जाकर सब कुछ देख आई हूँ.
अब मेरी जवानी भी कूदने लगी और मेरी चूत भी उसका लंड लेने को बेताब हो गई.. क्योंकि मुझे पता लग चुका था कि वो मेरा दीवाना है. मैंने अब जानबूझ कर उससे कुछ नज़दीकी बढ़ानी शुरू कर दी. जैसे कि उसके कमरे में उसके सामने जाना शुरू कर दिया. मैं उससे कहा करती कि इस कमरे से बाहर भी कोई दुनिया है. हमेशा इसी में ना रहा करो.
जब भी मैं उसके कमरे में जाती तो इधर उधर भी देखा करती थी ताकि कुछ ऐसा उसके सामने मिल जाए, जिससे मैं उससे पूछूँ कि यह सब क्या है. मगर शायद वो सब कुछ अलमारी में बंद कर के रखता था या बिस्तर के नीचे ताकि मैं ना देख सकूँ.
मैं अब अपना कमरा बंद भी नहीं करती थी और खुला रखती थी. जब वो घर पर होता था तो मैं उसी के सामने नहा कर जब बाहर आती थी, तो सिर्फ एक तौलिया ही लपेटा हुआ होता था, जो मेरे मम्मों और चूत को ढकता था. मैं जानबूझ कर तौलिया ऐसे बाँधती थी ताकि वो किसी दिन उसके सामने नीचे गिर जाए और वो मेरी चूत और मम्मों के दर्शन कर ले.
चुत को लंड की दरकार होती है तो चुदाई की कहानी बनती ही है. आपके मेल का स्वागत है.
[email protected] कहानी जारी है.
कहानी का अगला भाग: बाप की हवस और बेटे का प्यार-3
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