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प्रिय पाठको, मेरी कामुक कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे प्रमोद ने हनीमून के लिए यूरोप जा कर अपनी बीवी को नग्न बीच पर सबके सामने नंगी होने के लिए प्रोत्साहित किया और बाद में एक क्लब में दूसरे जोड़े के सामने उसकी चुदाई भी कर दी। प्रमोद को लगा कि इतना सब होने के बाद शायद वो मोहन से चुदवाने के लिए तैयार हो जाएगी और फिर दोनों दोस्त आपस में मिल कर एक दूसरे की बीवियों को चोदेंगे। अब आगे …
यूरोप से वापस आने के बाद एक अलग ही जोश आ गया था प्रमोद और शारदा के जीवन में। अब शारदा पहले जैसी नहीं रह गई थी; उसे अब चोदा-चादी के इस खेल में मज़ा आने लगा था। दरअसल मज़ा कभी चुदाई में नहीं होता। मज़ा तो उन खेलों में होता है जो चुदाई के साथ साथ खेले जाते हैं। मज़ा समाज के उन नियमों को चकमा देने में होता है जिनको आप बचपन से बिना सोचे समझे निभाए जा रहे हो।
देर रात सुनसान सड़क पर चुदाई करने में ज्यादा मज़ा इसलिए नहीं आता कि सड़क कोई बहुत आरामदायक जगह होती है। चलती ट्रेन में सबके सोने के बाद चुदाई में ज्यादा मज़ा इसलिए नहीं आता कि वो कोई आसान काम है। दिन दिहाड़े किसी और के खेत में घुस के चोदने में ज्यादा मज़ा आता है पर इसलिए नहीं कि खेतों में कोई सौंधी खुशबू होती है।
इन सब जोखिम भरे तरीकों से चोदने-चुदाने में ज्यादा मज़ा इसलिए आता है क्योंकि एक तो जोखिम भरे काम उत्तेजना बढ़ाते हैं और ऊपर से हमारे अन्दर का जो जानवर है जिसको प्रकृति ने नंगा पैदा किया था वो वापस आज़ादी का अनुभव करता है। आज़ादी उन नियमों से जो समाज ने हम पर थोपे हैं जिनका शायद कोई फायदा भी होगा लेकिन फिर भी वो हमें अपने सर पर रखा वज़न ही लगते हैं।
शारदा इस वज़न से मुक्त हो गई थी इसलिए अब वो प्रमोद के साथ ये सारे काम करने में पूरी तरह से उसका साथ देने लगी थी। घर पर अब वो अक्सर नंगी ही रहती थी; जब भी गाँव जाते तो कभी किसी के खेत में तो कभी नदी के किनारे किसी टेकरी के पीछे चुदाई कर लेते। बस में, ट्रेन में, कभी मोहल्ले की पीछे वाली गली में तो कभी अपने ही घर की छत पर। शायद ही कोई जगह बची हो जहाँ प्रमोद ने शारदा को चोदा ना हो।
इस सब में कई महीने निकल गए। अब तो बस एक ही ख्वाहिश बाकी थी कि वो अपने दोस्त मोहन के साथ मिल कर शारदा और संध्या की सामूहिक चुदाई कर पाए। समय निकलते देर नहीं लगती, जल्दी ही पंकज एक साल का हो गया और मोहन ने उसके जन्मदिन पर प्रमोद और शारदा को बुलाया।
जन्मदिन मनाने के बाद मोहन और पंकज अकेले में बैठ कर बातें कर रहे थे। प्रमोद- और सुना! संध्या भाभी की टाइट हुई कि नहीं? मोहन- अरे तू भी क्या शर्मा रहा है सीधे सीधे बोल ना कि भाभी की चूत टाइट हुई या नहीं? प्रमोद- हाँ यार वही, तूने कहा था ना कि भाभी की चूत वापस टाइट हो जाए फिर प्रोग्राम करेंगे। मोहन- इसीलिए तो तुम लोगों को बुलाया है। तेरी शारदा तैयार हो तो अभी कर लेते हैं।
प्रमोद- अरे तैयार तो हो ही जाएगी। यूरोप में जो जो करके हम आये हैं उसके बाद मुझे नहीं लगता कि मना करेगी, लेकिन फिर भी मुझे एक बार बात कर लेने दे। अगर सब सही रहा तो न्यू इयर की पार्टी मनाने तुम हमारे यहाँ आ जाना फिर वहीं करेंगे जो करना है। मोहन- ठीक है फिर। जहाँ इतना इंतज़ार किया वहां थोड़ा और सही। लेकिन अपनी यूरोप की कहानी ज़रा विस्तार में तो सुना।
फिर देर रात तक प्रमोद ने मोहन को यूरोप की पूरी कहानी एक एक बारीकी के साथ सुना दी।
अगले दिन शारदा और प्रमोद शहर वापस आ गए। उस रात प्रमोद ने वो विडियो कैसेट निकाले जो वो एम्स्टर्डम से ले कर आया था। इनमें उस समय की 8-10 मानी हुई पोर्न फ़िल्में थीं। उसने उनमें से वो फिल्म निकाली जिसमें दो जोड़े आपस में एक दूसरे के पति-पत्नी के साथ मिल कर सामूहिक सेक्स करते हैं।
फिल्म को देखते देखते शारदा उत्तेजित हो कर प्रमोद का लंड और अपनी चूत सहलाने लगी। प्रमोद- याद है, हमने भी एम्स्टर्डम में ऐसे ही किसी अनजान कपल के साथ सेक्स किया था। शारदा- हाँ! बड़ा मज़ा आया था। लेकिन ये लोग तो अदला बदली कर रहे हैं मैंने तो आपके ही साथ किया था बस। प्रमोद- तो अदला बदली भी कर लेती, मैंने कब मना किया था। शारदा- अरे नहीं, ये कभी नहीं हो सकता। आपके अलावा कोई मुझे छू नहीं सकता।
प्रमोद- लेकिन मेरी इजाज़त तो तब तो कर सकती हो ना? शारदा- अरे ऐसे कैसे … मेरा शरीर है तो आपकी इजाज़त से क्या होगा। अग्नि के सात फेरे ले कर ये शरीर आपको सौंपा है तो आपके अलावा किसी और को छूने भी नहीं दूँगी मैं। प्रमोद- ठीक है ठीक है बाबा … लेकिन जो एम्स्टर्डम के उस क्लब में किया था वैसा कुछ तो कर सकती हो ना?
शारदा मुस्कुराती हुई- क्यों? फिर से एम्स्टर्डम चलने का मन है क्या? प्रमोद- नहीं लेकिन वो काम तो यहाँ भी हो सकता है ना! शारदा- यहाँ भी वैसे क्लब हैं क्या? प्रमोद- क्लब तो नहीं हैं लेकिन तुम हाँ तो करो हम घर में ही क्लब बना लेंगे। शारदा- देखना कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाए। किसे बुलाओगे; रंडियों को?
प्रमोद- नहीं यार, वो मोहन को मैंने बताया था कि हमने क्या क्या किया वहां तो उसका भी मन था। अब परदेस जाना वो चाहता नहीं है तो मैंने सोचा आगर तुम हाँ करो तो उसको और संध्या भाभी को यहीं पर वो सब मज़े करवा दें। शारदा कुछ सोचते हुए- हम्म … संध्या भाभी तो शायद मान भी जाएंगी। लेकिन मुझे आपके अलावा कोई छुएगा नहीं; ये वादा करो तो मुझे मंज़ूर है। प्रमोद- एम्स्टर्डम में भी तो किसी ने कुछ नहीं किया था ना तुमको। बस वैसे ही करेंगे। चिंता ना करो मोहन नहीं चोदेगा तुमको। मैं ही चोदूँगा बस … ऐसे …
फिर प्रमोद ने इसी ख़ुशी में शारदा को जम के चोदा। शारदा भी उन यादों से काफी उत्तेजित हो गई थी। साथ साथ वो अदला-बदली करके चुदाई करने वाली फिल्म का वीडियो भी देखती जा रही थी। उसे भी चुदाई में बड़ा मज़ा आया। अगले ही दिन प्रमोद ने मोहन को सन्देश भिजवा दिया कि न्यू इयर मनाने शहर आ जाए। यह तो बस एक कोडवर्ड था जिससे मोहन समझ जाए कि शारदा तैयार है।
31 दिसंबर 1987 की शाम के पहले ही मोहन और संध्या, पंकज को अपनी दादी के भरोसे छोड़ कर एक रात के लिए प्रमोद के घर आ गए। यहाँ कोई बड़ा बूढ़ा तो था नहीं, सब हमउम्र थे और ना केवल मोहन-प्रमोद बल्कि संध्या-शारदा के भी काफी हद तक अन्तरंग समबन्ध रह चुके थे। यह अलग बात है कि शारदा को किसी और के साथ ऐसे समबन्ध रखना सही नहीं लगता था इसलिए उसने संध्या से दूरी बनाई हुई थी लेकिन आज तो उनके संबंधों में एक नया मोड़ आने वाला था।
संध्या अन्दर रसोई में शारदा का हाथ बंटाने चली गई। संध्या- क्या बना रही है? शारदा- मसाला पापड़ के लिए मसाला बना रही हूँ। खाना तो ये बोले खाने की शायद ज़रूरत ना पड़े नाश्ते से ही पेट भरने का प्रोग्राम है। संध्या- हाँ, वैसे भी ऐसे में थोड़ा पेट हल्का ही रहे तो सही है। शारदा- तुमको पता है ना ये दोनों क्या क्या सोच कर बैठे हुए हैं?
संध्या- मुझे इनके प्लान का तुझसे तो ज्यादा ही पता रहता है। शारदा- हाँ, जब इन्होंने कहा तो मुझे यही लगा था कि तुम तो तैयार हो ही जाओगी। संध्या- देख शारदा! मेरा तो सीधा हिसाब है पति बोले तो मैं तो किसी और से भी चुदवा लूँ। शारदा- हाय दैया! दीदी, आप भी ना … कैसी बातें करती हो।
इधर संध्या और शारदा की बातें शुरू हो रहीं थीं जिसमें यूरोप की यात्रा की यादें थीं तो संध्या की टिप्पणियां भी थीं कि अगर वो होती तो क्या क्या हो सकता था। संध्या शारदा को और भी बिंदास बनाने की कोशिश कर रही थी। उधर मोहन और प्रमोद योजना बना रहे थे कि कैसे इन महिलाओं की स्वाभाविक शर्म के पर्दे को गिराया जाए और अपने लक्ष्य तक पहुंचा जाए।
प्रमोद- बाकी सब तो ठीक है यार लेकिन शारदा ने साफ़ कह दिया है कि वो मेरे अलावा किसी और से नहीं चुदवाएगी। मैंने सोचा एक बार साथ मिल के चुदाई तो कर लें फिर हो सकता है उसकी हिम्मत बढ़ जाए और हम अदला-बदली भी कर पाएं। मोहन- तू फिकर मत कर, मैं संध्या को ही चोदूँगा। लेकिन संध्या ने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी है, तो अगर तुम दोनों का जुगाड़ जम जाए तो मुझे आपत्ति नहीं है, तू संध्या को चोद सकता है।
रात 9 बजे तक तो ऐसे ही बातें चलती रहीं और उधर रसोई का काम ख़त्म करके शारदा और संध्या भी तैयार हो गईं थीं। फिर दारु पीते हुए गप्पें लड़ाने का दौर शुरू हुआ। मोहन और प्रमोद स्कॉच पी रहे थे और महिलाओं के लिए व्हाइट वाइन लाई गई थी। कुछ देर तक इधर उधर की बातों के बाद यूरोप की बातें शुरू हुईं। शारदा शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी लेकिन संध्या आगे होकर शारदा की बताई हुई बातें चटखारे लेकर सुना रही थी।
मोहन- फिर वो नंगे बीच पर बस नंगे होकर घूमे ही … या कुछ किया भी? प्रमोद- दिन में तो नहीं, लेकिन रात को किया था … जुगनुओं के साथ। संध्या- क्या बात कर रहे हो प्रमोद भाईसाहब। बस जुगनुओं के साथ? शारदा तो बता रही थी किसी क्लब में किसी और जोड़े के साथ भी किया था? शारदा (धीरे से)- क्या दीदी आप भी … सबके सामने!
आखिर सबने मिल कर एक सेक्सी फिल्म देखने का फैसला किया। प्रमोद ने जो ब्लू फिल्मों की कैस्सेट्स लेकर आया था उनमें से सबसे कम सेक्स वाली फिल्म लगा दी। इसमें चुदाई को बहुत ज्यादा गहराई से नहीं दिखाया था। बस नंगे होकर चुम्बन-आलिंगन तक ही दिखाया था लेकिन बहुत ही उत्तेजक तरीके से जैसे कि स्तनों को लड़के की छाती से चिपक कर दबना या उनकी जीभों का आपस में खेल करना जो कि काफी करीब से फिल्माया गया था। इसको देख कर सब काफी उत्तेजित हो गए थे।
संध्या मोहन के साथ ही बैठ गई थी और मोहन मैक्सी के ऊपर से ही उसके स्तनों को दबा रहा था। एक बार तो उस से रहा नहीं गया और उसने उंदर हाथ डाल कर संध्या का एक स्तन मसल डाला। उधर वाइन का असर शारदा पर भी होने लगा था और इस फिल्म के दृश्यों ने उसकी वासना भड़का दी थी वो भी प्रमोद के साथ जीभ से जीभ लड़ा कर चुम्बन करने लगी।
फिल्म ख़त्म हुई तब तक 12 बजने में 10 मिनट कम थे।
मोहन- यार, काश हम भी तुम्हारे नग्न समुद्रतट यानि न्यूड बीच वाला अनुभव ले पाते। संध्या- मुझे तो उस क्लब में जाकर चुदवाने का मन कर रहा है। प्रमोद- क्यों ना हम यहीं वो क्लब बना लें। मान लो यही वो क्लब है और हम न्यू इयर मनाने यहाँ आये हैं। संध्या- एक काम करते हैं जैसे ही 12 बजेंगे, हम सब एक साथ नंगे हो जाएँगे तो फिर किसी को पहले या बाद में नहीं होना पड़ेगा और शर्म भी नहीं आएगी।
मोहन- ठीक है फिर ऐसे कपड़े पहन लेते हैं जो एक झटके में निकल जाएं। शारदा- आप लोग अन्दर जा कर लुंगी पहन लो। संध्या- हाँ, हमारे कपड़े तो वैसे भी केवल ये डोरियों से अटके हैं बस अन्दर के कपड़े निकालने पड़ेंगे तो वो हम पहले ही निकाल लेते हैं।
संध्या और शारदा ने जो मैक्सी पहनी थीं उनमें कंधे पर बस दो डोरी थीं जिनके सहारे पूरी ड्रेस लटक रही थी। जब दोनों मर्द बेडरूम में लुंगी लेने गए तो संध्या ने अपनी निगरानी में शारदा के ब्रा और पेंटी निकलवा दिए और खुद के भी निकाल दिए। 12 बजने में 1 ही मिनट बचा था।
प्रमोद (ऊंची आवाज़ में)- एक काम करो आप लोग भी यहाँ बेडरूम में ही आ जाओ। शारदा- ठीक है जी। शारदा ने नशे में लहराती हुई आवाज़ में जवाब दिया.
दोनों बेडरूम में पहुंचे तो प्रमोद और मोहन लुंगी लपेट कर आधे नंगे खड़े थे और आखिरी मिनट के सेकंड्स गिन रहे थे।
49 … 50 … 51 … 52 … 53 … 54 … 55 … 56 … 57 … 58 … 59 … हैप्पी न्यू इयर !!! एक झटके में दोनों लुंगियां ज़मीन पर थीं। अगले ही क्षण संध्या की मैक्सी भी फर्श पर गिर गई लेकिन शारदा ने अपनी मैक्सी निकलने के बजाए दोनों हाथों से अपनी आँखें बंद कर लीं थीं। आखिर संध्या ने ही उसे अपने गले लगाते हुए उसकी मैक्सी नीचे खसका दी। वैसे शायद वो ऐसी हालत में संध्या को अपने से चिपकने ना देती लेकिन अभी शर्म के मारे वो उससे चिपक गई और अपना सर उसके कंधे पर झुका कर आँखें मूँद लीं।
मोहन जाकर संध्या के पीछे चिपक गया और प्रमोद शारदा का पीछे। संध्या ने प्रमोद को आँख मारते हुए चुम्बन का इशारा किया और अपने होंठ आगे कर दिए। प्रमोद भी हल्का नशे में था और न्यू इयर पार्टी की मस्ती थी सो अलग। उसने भी आवाज़ किये बिना अपने होंठ संध्या के होंठों से टकरा कर हल्का सा चुम्बन ले लिया। तभी संध्या ने शारदा धक्का दे कर अपने से अलग किया।
संध्या- अब तू अपना पति सम्हाल; मैं अपना सम्हालती हूँ।
इतना कह कर संध्या पलटी और घुटनों के बल बैठ कर मोहन का लंड चूसने लगी। प्रमोद ने शारदा को पीछे से पकड़ लिया और एक हाथ से उसके स्तन मसलने लगा और दूसरे से उसकी चूत का दाना। एम्स्टर्डम में तो कोई अनजान था जिसके सामने शारदा ने चुदवाया था और वहां एक जोड़ा स्टेज पर खुले आम चुदाई कर रहा था जिसे देख कर उसे जोश आ गया था; लेकिन यहाँ तो उसके पति का लंगोटिया यार था जिसके सामने वो नंगी खड़ी थी और वो अपनी पत्नी से लंड चुसवाते हुए उसके नंगे बदन को निहार रहा था।
पहली बार अपने बचपन के दोस्त की नंगी बीवी को देखते हुए मोहन के लंड को लोहे की रॉड बनने में देर नहीं लगी। उसने संध्या को वहीँ बिस्तर पर पटका और उसकी कमर के नीचे तकिया लगा कर उसे चोदने लगा। संध्या के दोनों पैरों को उसने अपने हाथों से पकड़ रखा था और खुद घुटने मोड़ कर बिस्तर पर बैठे बैठे उसे चोद रहा था।
प्रमोद और शारदा कुछ देर तक तो उनकी चुदाई देखते रहे फिर प्रमोद संध्या के बाजू में पीछे दीवार पर तकिया लगा कर अधलेटा सा बैठ गया और शारदा को अपना लंड चूसने के लिए कहा। पहले तो कुछ देर उसने बिस्तर के किनारे बैठ कर प्रमोद का लंड चूसा लेकिन फिर सुविधा के हिसाब से बिस्तर पर पैर मोड़ कर बैठी और झुक कर चूसने लगी। ऐसे में उसकी गांड मोहन की आँखों के ठीक सामने थी और दोनों जंघाओं के बीच उसकी चिकनी मुनिया भी झाँक रही थी।
मोहन कभी शारदा की गांड और चूत को देखता तो कभी उसके झूलते मम्मों को। संध्या का ध्यान काफी देर से मोहन की नज़रों पर था। उसने भी सोचा क्यों ना वो कोई शरारत करे। उसने अपना सर प्रमोद की ओर घुमाया और जैसे ही प्रमोद ने उसकी ओर देखा, संध्या ने अपने हाथों से अपने स्तनों को सहलाते हुए आँखों से उनकी ओर इशारा किया और फिर अपने होंठों से एक हवाई चुम्बन प्रमोद की ओर फेंका।
प्रमोद इस मादक आमंत्रण के सम्मोहन में बंध कर जैसे खुद-ब-खुद संध्या की ओर झुका और उसके रसीले आमों का रस चूसने लगा। शारदा तो प्रमोद के लंड पर झुकी थी इसलिए देख नहीं पाई कि अभी अभी क्या हुआ लेकिन इस हरकत ने मोहन का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। उसकी आँखों के सामने उसका दोस्त उसकी बीवी के स्तनों को मसलते हुए चूस रहा था। मोहन की उत्तेजना और बढ़ गई और उस से रहा नहीं गया। उसने भी शारदा की गांड पर हाथ फेरते हुए एक उंगली उसकी भीगी-भीगी चुनिया-मुनिया के अन्दर सरका दी।
शारदा को तो जैसे करंट लग गया। पहले तो वो कुछ क्षणों के लिए जैसे मदहोशी के आगोश में समां गई लेकिन जैसे ही वो मदहोशी टूटी उसे याद आया कि उसके पति ने वादा किया था कि उसके अलावा शारदा को कोई नहीं चोदेगा और वो अचानक उठ कर बैठ गई और गुस्से से मोहन की ओर मुड़ी…
शारदा- आपकी हिम्म… त…
लेकिन तभी उसे एहसास हुआ कि उसने अभी अभी क्या देखा था। उसने अपना सर वापस प्रमोद की ओर घुमाया और देखा कि वो अभी भी संध्या का स्तनपान करने में व्यस्त था।
शारदा- अब समझ आया। यही चाहिए था ना आपको? तो फिर मेरी क्या ज़रूरत थी। मुझे अपने चरित्र पर कोई दाग नहीं लगवाना; आपको जो करना है कीजिये; मैं मना नहीं करती लेकिन मुझे इस सब में शामिल नहीं होना है। मैं जा रही हूँ। आप लोग मज़े करो।
इस से पहले कि प्रमोद सम्हाल पाता या समझ पाता कि क्या हुआ है, शारदा बाहर निकल गई।
प्रमोद- क्या हुआ यार, अचानक से इतना क्यों भड़क गई। अच्छा नहीं लगा तो मना कर देती। मोहन- नहीं यार! भाभी भड़कीं तो मेरी हरकत से थी फिर तेरी हरकत देख के उनका गुस्सा बेकाबू हो गया। प्रमोद- तुझे तो मैंने बताया था ना कि वो मेरे अलावा किसी से नहीं चुदवाएगी फिर तूने हरकत की क्यों? मोहन- नहीं यार, मेरा चोदने का कोई इरादा नहीं था। वो तो तुझे संध्या के बोबे चूसते देखा तो सोचा छूने में क्या हर्ज़ है तो मैंने एक उंगली भाभी की चूत में डाल दी पीछे से, ये सोच के कि उनको भी थोड़ा मज़ा आ जाएगा।
प्रमोद- अरे यार! गलती मेरी ही है। उसने कहा था कि उसे मेरे अलावा कोई हाथ नहीं लगाएगा और मैंने तुझे बोल दिया कि मेरे अलावा कोई नहीं चोदेगा। अब तो ये ग़लतफ़हमी महंगी पड़ गई। खैर तुम अपनी चुदाई खत्म करो मैं जा के देखता हूँ मना सकता हूँ या नहीं अब उसको। आधे घंटे में वापस ना आऊं तो फिर इंतज़ार मत करना।
मोहन और संध्या का तो मन फीका पड़ गया था, तो उन्होंने फिर आगे चुदाई नहीं की। प्रमोद ने भी शारदा को मानाने की कोशिश की लेकिन उसने बात करने से साफ़ इन्कार कर दिया। प्रमोद ने फिर वापस जाना सही नहीं समझा, वो वहीं शारदा के साथ चिपक कर सो गया।
उधर मोहन-संध्या ने भी कुछ समय तक इंतज़ार किया फिर वो भी सो गए। अगली सुबह दोनों जल्दी निकल गए क्योकि पंकज को उसकी दादी के भरोसे छोड़ कर आए थे तो ज्यादा देर रुक नहीं सकते थे।
इस सामूहिक चुदाई का तो कुछ नहीं हो पाया क्योंकि शारदा के संस्कार उसे पराए मर्द से चुदवाने की इजज़र नहीं डे रहे थे लेकिन संध्या क्या उसके और प्रमोद के बीच कोई और नया समीकरण बन पाएगा? देखते हैं अगले भाग में!
दोस्तो, यह ग्रुप सेक्स कहानी आपको कैसी लगी, बताने के लिए मुझे यहाँ मेल कर सकते हैं [email protected] आपके प्रोत्साहन से मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है।
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