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लगभग एक सप्ताह और बीत गया, बात आगे नहीं बढ़ रही थी। तभी रमिता के मायके से फ़ोन आया कि रमिता के पिताजी की तबीयत ठीक नहीं है और उन्होंने उसे मिलने के लिए बुलाया है।
रमिता का मायका चंडीगढ़ में था। अशोक ने जब ये खबर रमिता को बताई तो वो बेचैन हो उठी और अशोक से चंडीगढ़ जाने के बारे में बात की। अशोक खुद रमिता के साथ जाना चाहता था तो उसने अपने ऑफिस में अपने बॉस से छुट्टी के लिए बात की तो बॉस ने अर्जेंट मीटिंग का कहते हुए उसको छुट्टी देने से इन्कार कर दिया।
जब अशोक को छुट्टी नहीं मिली तो अशोक ने रमिता को साधना के साथ चले जाने को कहा। एक बार तो रमिता इसके लिए मान गई पर फिर उसने अकेले जाने को कहा। अशोक ने बहुत कहा कि मम्मी जी को साथ ले जाओ पर वो अकेले जाने पर ही अड़ी रही। उसके मन में दूसरी ही खिचड़ी पक रही थी। वो अशोक और साधना को अकेले छोड़ना चाहती थी। खाने पीने और घर के दूसरे काम का बहाना बना कर उसने साधना को साथ ले जाने से मना कर दिया।
अशोक क्या कर सकता था… उसने रमिता को अगली सुबह चंडीगढ़ जाने वाली बस में बैठा दिया और खुद अपनी ड्यूटी पर निकल गया। यहीं से कहानी ने दूसरा मोड़ ले लिया।
मीटिंग लम्बी चली और मीटिंग के बाद डिनर भी ऑफिस में ही था तो अशोक को देर हो गई। क्योंकि रमिता भी नहीं थी तो उसने अपने एक दोस्त के साथ दो पेग व्हिस्की के लगा लिए और खाना खा पी कर रात को करीब बारह बजे घर पहुँचा। उसने इस बारे में अपनी मम्मी साधना को पहले ही फ़ोन करके बता दिया था।
साधना भी खाना खाकर टीवी देखने बैठ गई। टीवी पर रोमांटिक सीन आया तो साधना की चुत भी कुलबुलाई। उसने सोचा कि एक बार चुत से पानी निकाल ही लिया जाए। साधना ने साड़ी उतार कर नाईटी पहन ली थी और नाईटी को ऊपर उठा कर चुत को मसल मसल कर पानी निकाल दिया। पानी निकलने के बाद साधना पर नींद हावी हो गई और वो वहीं सोफे पर ही ढेर हो गई।
रात को अशोक जब आया तो उसने सोचा कि देर हो चुकी है तो क्यों मम्मी को तंग किया, उसने अपनी चाबी से दरवाजा खोला और अंदर आ गया।
अन्दर आते ही सबसे पहले टीवी पर नजर पड़ी फिर जब उसकी नजर सोफे पर सोते हुई अपनी माँ साधना पर पड़ी तो उसकी धड़कनें एकदम से बढ़ गई। सोफे पर साधना लगभग अधनंगी सी लेटी हुई थी… नाईटी घुटनों से ऊपर जाँघों तक उठी हुई थी और साधना दीन-दुनिया से बेखबर सी सो रही थी।
अशोक ने अपनी मम्मी को इस अवस्था में देखा तो उसके दिल में हलचल सी मची। अशोक बिना कुछ बोले अपने कमरे में चला गया और जाकर फ्रेश हुआ और बनियान और लोअर पहन कर वापिस कमरे में आया। वो साधना को जगा कर अन्दर कमरे में भेजने के इरादे से आया था।
अशोक के मन में आया कि साधना उसके सामने अपने आप को अर्धनग्न अवस्था में देख कर पता नहीं क्या सोचेगी तो क्यों ना साधना की नाईटी को ठीक कर दे। वो सोफे के पास खड़ा ये सोच रहा था पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी साधना को छूने की। कुछ देर के बाद उसने हिम्मत करके साधना की नाईटी को ठीक करने के लिए हाथ आगे बढ़ाया और नाईटी को थोड़ा ऊपर उठा कर जैसे ही ठीक करने लगा तो उसकी नजर सीधे अपनी माँ साधना की चुत पर गई।
साधना ने नाईटी के नीचे पैंटी नहीं पहनी हुई थी… या यूँ कह सकते है कि उसने चुत में उंगली करते समय वो उतार दी थी। साधना की क्लीन शेव चुत देख अशोक की हालत खराब होने लगी। उसकी नजरों के सामने वही चुत थी जिसमें से वो पैदा हुआ था। अशोक को साधना की चुत रमिता की चुत से भी ज्यादा सुन्दर लग रही थी।
कुछ तो शराब का हल्का हल्का नशा पहले से ही था और कुछ अपनी मम्मी साधना की चुत देख कर अशोक अपने होश में नहीं रहा। कहाँ तो वो अपनी माँ का अर्धनग्न बदन ढकने के लिए आया था पर अब वो खुद अपनी माँ के खूबसूरत बदन को देख कर उत्तेजित हो रहा था। उसने नाईटी को नीचे करने की जगह थोड़ा और ऊपर उठा दिया। साधना की चुत देख अशोक का लंड भी लोअर फाड़ने को बेचैन सा हो गया था।
अशोक ने हाथ आगे बढ़ा कर उंगली से अपनी माँ की चुत को छुआ। चुत का साधना की चुत से निकला नमकीन रस उसकी उंगली पर लग गया। अशोक ने वो रस चख कर देखा तो मदहोश होता चला गया।
तभी साधना ने करवट ली तो अशोक को जैसे होश आया, वो जल्दी से वहाँ से हट गया और अपने कमरे की दरवाजे पर जाकर उसने साधना को आवाज लगाई। अशोक की आवाज सुन कर साधना एकदम से चौंक कर उठी। उसने देखा अशोक अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ा था। तभी उसका ध्यान अपने अस्तव्यस्त कपड़ों पर गया तो और ज्यादा चौंक गई।
साधना सोफे से उठी और रसोई में घुसते हुए उसने अशोक से खाने के लिए पूछा। अशोक ने मना कर दिया और वो अपने कमरे में अन्दर चला गया। उधर साधना रसोई में खड़ी खड़ी सोच रही थी कि क्या अशोक ने उसको अर्धनग्न अवस्था में देख लिया होगा। अगर देख लिया होगा तो वो क्या सोच रहा होगा।
दूसरी तरफ अशोक भी अपने बेड पर लेटा अपनी माँ के बारे में ही सोच रहा था कि उसकी मम्मी इस उम्र में भी कितनी खूबसूरत और मस्त बदन की मालकिन है। सोचते सोचते उसका हाथ कब अपने लंड पर चला गया उसे खुद भी पता नहीं लगा। वो अपनी माँ के बारे में सोच सोच कर मदहोश हुआ जा रहा था कि तभी साधना उसके लिए दूध का गिलास लेकर आ गई।
अशोक को साधना के आने का पता भी नहीं लगा, वो तो आँखें बंद किये अपने तन कर खड़े लंड को लोअर में हाथ डाल कर सहला रहा था। साधना ने जब अशोक को ऐसा करते देखा तो उसकी चुत में भी खुजली सी होने लगी। ये सब रमिता की मेहरबानी थी जो एक माँ बेटा एक दूसरे के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित हो रहे थे।
वो रात तो जैसे तैसे निकल गई। अगली सुबह ही रमिता का फ़ोन आ गया, उसने पहले अशोक से बात की। कुछ देर घर परिवार की बातें करने के बाद उसने अशोक से पूछा- और सुनाओ मेरी जान… कुछ बात बनी या नहीं रात को? “मतलब?” “अजी अब मतलब भी हम ही बतायें?” “पहेली मत बुझाओ… साफ़ साफ़ कहो…क्या कहना चाहती हो?” “मैं ये पूछना चाह रही थी कि रात को कुछ किया या नहीं… या फिर दोनों माँ बेटा अपने अपने कमरे में अपने हाथ से लगे रहे?” “क्या यार रमिता… तुम इससे अलग कुछ सोचती भी हो या नहीं…”
“मैं तो सिर्फ अपने परिवार के बारे में सोचती हूँ जी… आपका और आपकी माँ का ध्यान रखना भी तो मेरा फर्ज है… और जब पता है कि माँ बेटा दोनों एक दूसरे को चाहते है तो उनको मिलवाने का जिम्मा भी तो मेरा ही बनता है.” “ऐसा कुछ नहीं है.” “मुझ से मत छुपाया करो… सब पता है मुझे कि कैसे तुम अपनी खूबसूरत माँ के दीवाने हो… और मुझे अच्छे से पता है कि मम्मी जी भी तुम्हारे लंड की दीवानी है… देख भी चुके हो तुम अपनी आँखों से और सुन भी चुके हो.”
“तुम चाहती क्या हो?” “मैं चाहती हूँ कि तुम मम्मी जी की तड़पती जवानी को अपने लंड से शांत कर दो… मैं उन्हें तड़पते हुए नहीं देख सकती!” “तुम पागल हो!” “जो मर्जी समझो… सिर्फ तुम दोनों को एकान्त देने के लिए ही मैं अपने मायके आई हूँ… वैसे मेरे पापा बिल्कुल ठीक है और मेरी दिल्ली में ही उनसे इस बारे में बात हो गई थी… पर मैं तुम दोनों को कुछ करने का मौका देना चाहती थी तभी अकेली आई थी… समझे… अब मौका मत जाने दो… और चोद डालो अपनी माँ की चुत!”
अशोक से कुछ कहते नहीं बन रहा था क्योंकि वो खुद भी तो अपनी माँ की रसीली चुत का मजा लेना चाहता था।
रमिता ने मम्मी से बात करवाने को कहा तो अशोक ने रसोई में काम कर रही अपनी माँ को फ़ोन पकड़ा दिया और खुद अपने कमरे में चला गया। “कैसे हो मम्मी जी?” रमिता ने पूछा। “मैं तो ठीक हूँ… तुम अपने पिता जी की तबीयत का बताओ?” “वो ठीक है तुम अपनी बताओ… बात कुछ आगे बढ़ी या नहीं?” “कमीनी तुझे इसके सिवा कुछ सूझता नहीं है क्या?”
“मम्मी जी आपको अच्छे से पता है कि मैं चंडीगढ़ क्यों आई हूँ… इस मौके को खराब मत करो… और ले लो अशोक के मोटे लंड से मजा!” “हरामजादी… तुम पक्का मुझे मेरे बेटे से चुदवा कर ही मानेगी.”
अभी साधना यह बोल ही रही थी कि अचानक अशोक रसोई में आ गया। अशोक ने भी यह सुन लिया था। अब शक की कोई गुंजाईश नहीं रह गई थी कि साधना अशोक से चुदना चाहती है।
अशोक को देखते ही साधना की भी बोलती बंद हो गई। वो समझ चुकी थी कि अशोक ने सब सुन लिया है, उसने फोन काट कर अशोक की तरफ बढ़ा दिया।
अब अशोक आपने आप को रोक नहीं पाया और उसने फ़ोन की जगह साधना के बढ़े हुए हाथ को पकड़ लिया और साधना को अपनी तरफ खींचा। साधना के शरीर में झुरझरी सी फ़ैल गई। उसने अपना हाथ छुड़वाने की असफल सी कोशिश की। अशोक ने आगे बढ़ कर साधना को अपनी बाहों में भर लिया।
“अशोक… ये क्या कर रहा है… छोड़ मुझे…” साधना ने गुस्सा दिखाते हुए कहा। पर अशोक को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया, उसने एक हाथ से नाईटी के ऊपर से ही साधना के कूल्हे को सहलाना शुरू कर दिया।
साधना छटपटाई और छूटने की कोशिश की। अशोक ने एक हाथ से साधना के सर को पकड़ लिया और इससे पहले की साधना कुछ समझ पाती अशोक ने अपने होंठ साधना के होंठों पर टिका दिए। अशोक का लंड अब तक खड़ा होकर लोअर में तम्बू बना रहा था। साधना के होंठों को चूसते हुए जब अशोक ने उसके कूल्हे दबाते हुए उसको अपने से लिपटाया तो अशोक का लंड साधना को अपनी नाभि के पास चुभता हुआ महसूस हुआ।
लंड के स्पर्श के एहसास मात्र से साधना की कामवासना भड़क उठी और वो भी अशोक से लिपट गई। माँ बेटे के बीच की शर्म एकदम से ना जाने कहाँ गुम हो गई। दोनों कामाग्नि में जलने लगे और समाज की दृष्टि में वर्जित सम्बन्ध स्थापित करने में व्यस्त हो गए।
अशोक के हाथ अब अपनी माँ की नाईटी में घुस कर उसके मुलायम बदन का मुआयना कर रहे थे। फिर तो कब नाईटी ने साधना के बदन का साथ छोड़ा खुद साधना को भी पता नहीं चला। वो अब सिर्फ एक पैंटी में अपने सगे बेटे अशोक के सामने खड़ी थी। अशोक ने भी जब अपनी माँ के मस्त तने हुए बड़े बड़े मम्मे देखे तो वो अपने आप को रोक नहीं पाया और टूट पड़ा वो अपनी माँ के मम्मों पर… एक मम्मे को मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरे मम्मे को अपने हाथ में लेकर बेरहमी से मसलने लगा।
साधना को याद आया कि जब अशोक चार साल का था जब उसने उसके मम्मों से दूध पीना बंद किया था और आज बीस साल बाद वो उन्ही मम्मो को चूस और मसल रहा था। ये बात साधना को और ज्यादा उत्तेजित कर रही थी।
“आह… ऊईईईई मा… धीरे कर अशोक बेटा… धीरे… जान ही निकाल लेगा क्या…” साधना मस्ती भरे दर्द को सहते हुए आहें और सिसकारियां भर रही थी। उसके हाथ भी अपने आप ही अशोक के लोअर में कैद लंड को ढूँढ रहे थे। पहले तो वो लोअर के ऊपर से ही लंड को सहला कर उसकी लम्बाई मोटाई का अंदाज लेती रही फिर जब कण्ट्रोल नहीं हुआ तो उसने एक ही झटके में अशोक का लोअर और अंडरवियर नीचे खींच कर लंड को बाहर निकाल लिया।
अशोक के लम्बे और मोटे गर्म लंड को अपने हाथ में पकड़ते ही साधना की चुत से झरना फूट पड़ा था।
उधर अशोक ने भी जब अपने लंड पर अपनी सगी माँ के हाथ को महसूस किया तो वो सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसका लंड और भी जबरदस्त ढंग से अकड़ गया।
साधना ने अशोक के लंड को अपनी हथेली में भर लिया था और अब वो अपने मम्मे चुसवाते हुए अशोक के लंड को मसल रही थी। अशोक का हाथ भी अगले ही पल अपनी माँ की पैंटी में घुस गया। चिकनी और पनियाई हुई चुत गर्म होकर जैसे भांप छोड़ रही थी। उसने जैसे ही अपनी माँ के दाने को सहलाया तो साधना के शरीर में झुरझरी सी फ़ैल गई। आज बरसों बाद किसी मर्द ने उसकी चुत को और उसके दाने को छेड़ा या सहलाया था।
साधना मस्ती के मारे अपने बेटे से और जोर से लिपट गई। अशोक ने भी अपनी मम्मी को अपनी गोद में उठाया और अपने बेडरूम में ले गया।
कहानी जारी रहेगी.
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