बहू की मेहरबानी, सास हुई बेटे के लंड की दीवानी-2

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“माँ जी… बुरा मत मानना… पर क्या इन तेरह साल में कभी आपका मन नहीं हुआ किसी से सेक्स करने का?” “नही… अशोक की परवरिश ही मेरा मकसद बन गया था तो इधर उधर कभी ध्यान ही नहीं गया.” “मतलब आप इतने दिनों से उंगली से ही काम चला रही थी?” रमिता ने सवाल किया। “बताया ना कि कभी मन नहीं हुआ…” “फिर उस दिन इतनी गर्म कैसे हो गई आप…” “वो… वो… रहने दे ना बहू… तू भी क्या बात लेकर बैठ गई।” “बताओ ना प्लीज…”

रमिता के बार बार कहने पर साधना ने बताना शुरू किया:

अब तू मेरी बहू के साथ साथ मेरी सहेली भी बन गई है तो तुझसे कुछ नहीं छुपाऊँगी… असल में उससे एक रात पहले जब मैं पेशाब करने के लिए उठी तो तू और अशोक चुदाई का मजा ले रहे थे। तुम्हारे कमरे से सिसकारियाँ आहें… और तुम्हारी पायल की छमछम की आवाज आ रही थी। मैं समझ गई थी कि मेरा बेटा अशोक मेरी बहू यानि तुम्हारी चुदाई कर रहा है। तुम्हारे कमरे का दरवाजा भी थोड़ा सा खुला हुआ था।

मैंने अपने आप को बहुत रोका पर फिर भी मैं अपने आप को रोक नहीं पाई तुम्हारे कमरे में झाँकने से। अन्दर का नजारा देखा तो मेरा तो सारा बदन सिहर उठा। अशोक अपने मोटे से लंड से तुम्हारी चुत बजा रहा था। मैं देखते ही एकदम से अपने कमरे की तरफ चली गई पर मेरा दिल बेचैन हो गया था। बहुत कोशिश की पर मन नहीं माना और मैं फिर से तुम्हारे कमरे के पास पहुँच गई और पूरे 20 मिनट तक मैंने अपने बेटा बहू की चुदाई का कार्यक्रम देखा। चुत पानी पानी हो गई थी मेरी।

सारा दिन मेरे दिमाग में तुम दोनों की चुदाई का सीन ही चलता रहा। जब कण्ट्रोल नहीं हुआ तो उंगली से अपने आप को शांत करने की कोशिश कर रही थी की तभी तुम आ गई और मेरी चोरी पकड़ी गई। “ओह्ह तो ये बात है…” “बहू, प्लीज किसी सामने ये बात मत करना!”

“मैं समझ सकती हूँ माँ जी… ये भी तो शरीर की जरूरत है… जब मैं दो दिन भी अशोक से चुदे बिना नहीं रह सकती तो आपने तो फिर भी तेरह साल काटे है चुदाई के बिना… पर अब आप चिन्ता मत करो आप के बदन की यह जरूरत मैं पूरी कर दिया करूँगी।” कह कर रमिता साधना से लिपट गई और कुछ देर के लिए फिर से दोनों बदन से बदन रगड़ कर चुत से पानी निकालने लगी।

कहते हैं ना सेक्स की आग में जब मस्ती का तड़का लगता है तो ये बहुत ज्यादा भड़कने लगती है। लगभग एक महीना हो गया था दोनों सास बहू को… जब भी मन करता और समय मिलता दोनों कपड़े उतार कर बेड पर आ जाती मस्ती करने।

फिर एक दिन…

“रमिता मेरी जान… तूने मेरी आदत बिगाड़ के रख दी है… सेक्स की जो आग पिछले तेरह सालों से दबी हुई थी तूने उसको सुलगा दिया है.” “तो क्या हुआ माँ जी… जब तक जिन्दगी है, मजे लो!” “पर रमिता अब दिक्कत कुछ बढ़ती जा रही है.” “मतलब.?” “मतलब यह कि… कभी कभी जब सेक्स हावी हो जाता है तो फिर कण्ट्रोल नहीं होता.” “तो क्या हुआ माँ जी… आपकी बहू है ना आपको मजे देने के लिए!” “बात वो नहीं है रमिता…” साधना कुछ बेचैन सी होकर बोली। “तो क्या बात है माँ जी… खुल कर बोलो… वैसे भी अब हम सास बहू से ज्यादा सहेलियाँ हैं!”

“अब कैसे बताऊँ…” “अरे बिंदास बोलो ना माँ जी…” “रमिता… जब से तूने मुझे ये लत लगाई है… मेरा दिल बेचैन रहने लगा है। अब रात को जब भी आँख खुलती है तो ध्यान तुम्हारे कमरे की तरफ ही जाता है। फिर ये सोच सोच कर चुत सुलगने लगती है कि तू तो अशोक के मोटे लंड से मजे ले रही होगी और मैं अकेली पड़ी अपनी चुत को उंगली से मसल रही होती हूँ.”

“ओह्ह… तो ये बात है… मतलब आप का भी मन करने लगा है अब लंड से मजे लेने का?” “हट पागल… अब इस उम्र में लंड लेकर मैं क्या करुँगी.” “मन करता है तो बताओ ना?” “कुछ नहीं… छोड़ इस बात को!” साधना ये बोल कर अपने कमरे में चली गई।

रमिता को अपनी सास की बातों से यह तो महसूस हो गया था की साधना के मन में लंड लेने की चाहत है। पर दिक्कत यह थी कि वो अपनी सास को खुश रखने के लिए किसका लंड दिलवाए अपनी प्यारी सासू माँ को।

दिन बीतते जा रहे थे और अब साधना कुछ ज्यादा बेचैन रहने लगी थी। यह बात रमिता महसूस कर रही थी। रमिता ने साधना से कई बार इस बारे में बात भी की पर साधना हर बार टाल जाती। एक दिन साधना ने रमिता से जो बोला वो सुन एक बार के लिए तो रमिता अचम्भित हो गई। “रमिता वैसे तो मुझे ये बात नहीं कहनी चाहिए पर अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो एक बात बोलूँ?” “बोलो ना माँ जी… पूछना कैसा?” “रमिता मुझे कहते हुए शर्म महसूस हो रही है कैसे बोलूँ!” “आप मेरी सहेली भी हो और सहेली से कोई बात कहने में कैसी शर्म?”

“रमिता… वो…” “अरे बोलो ना?” “रमिता… मैं चाहती हूँ कि तुम कोई ऐसा इंतजाम करो कि मैं तेरी और अशोक की चुदाई देख सकूँ!” “माँ जी… आपने देखी तो है पहले भी?” “अरे तब तो डर के मारे अच्छे से देख ही नहीं पाई थी… बस अब कुछ ऐसा कर कि शुरू से आखिर तक देखने का मौका मिले.” “कोई नहीं… मैं करती हूँ कुछ इंतजाम!” “तू बहुत अच्छी है रमिता… बहुत ख्याल रखती है मेरा!”

“एक बात तो बताओ सासू मां… आपके मन में कैसे ख्याल आया हमारी चुदाई देखने का?” रमिता ने पूछा। “अब क्या बताऊँ… तू दिन में मेरे साथ मजा करने के बाद रात को अशोक के लंड का मजा लेती है तो कभी कभी तुम्हारे कमरे से मस्ती भरी सिसकारियाँ सुन मेरी चुत में भी आग सी लग जाती है… बहुत कोशिश करती हूँ अपने आप को रोकने की पर कण्ट्रोल नहीं होता है और सारी सारी रात करवटें बदल बदल कर कटती है। उंगली से भी शान्त करने की कोशिश करती हूँ पर आग नहीं बुझती। बस मन करता है तुम दोनों को चुदाई का मजा लेते हुए देखूँ और अपनी चुत में उंगली करूँ शायद कुछ शांति मिले!”

“ओह्ह्ह… ऐसी बात है… कोई ना मम्मी जी मैं कुछ इंतजाम करती हूँ… पर एक बात तो है…” रमिता कुछ कहते कहते रुक गई। “अरे बोल ना क्या बात है?” साधना ने उत्सुकता से पूछा। “मम्मी जी… एक बात बताओ कि अगर मेरी और अशोक की चुदाई देख कर आपका मन भी चुदने को करने लगा तो फिर क्या करोगी?”

यह सुन साधना चुप हो गई, इस बात का उसके पास कोई जवाब नहीं था। चुप्पी रमिता ने ही तोड़ी- मम्मी जी… मुझे लगता है कि आपको भी अपनी चुत की आग को ठण्डा करने के लिए लंड की जरूरत है. “हट पगली… तू फिर शुरू हो गई… अब मेरी उम्र थोड़े ही है लंड लेने की…” साधना ने शर्माते हुए कहा। “माँ जी… लंड लेने के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती… मैंने तो 80-80 साल की बुढ़िया का भी सुना है कि वो लंड लेती हैं। अगर आपको झूठ लग रहा हो तो नेट पर देख लो… जब तक चुत में आग है तब तक लंड लेने की लालसा औरत में रहती ही है. और एक बात लंड लेने से बूढ़ी भी जवान हो जाती है… उम्र रुक सी जाती है.”

“बस कर बहू… अब क्या मुझे चुदवा कर ही मानोगी… पहले ही चुत चाट चाट के मेरी दबी हुई आग को सुलगा चुकी हो तुम!” “माँ जी आप इशारा तो करो… कोई ना कोई लंड भी खोज ही लेंगे आपके लिए!” रमिता ने हँसते हुए कहा। “बहू… जब भरी जवानी में अशोक के पापा अकेले छोड़ के ड्यूटी पर जाते थे तब कोई लंड नहीं खोजा तो अब बुढ़ापे में खोज के क्या नरक में जाना है?” “वो तो ठीक है माँ जी… पर अगर चुत में आग लगी है तो उसको तो ठण्डा करना ही पड़ेगा ना… नहीं तो बहुत ख़राब करती है ये आग!” “बस कर… जैसे पिछले कुछ दिनों से तुम मेरी आग ठंडी कर रही है बस वैसे ही करती रह… अब लंड लेने की ना तो उम्र है और ना ही कोई चाहत!”

बात करते करते ही दोनों सास बहू बेड पर जल्दी ही नंगी हो गई और फिर शुरू हो गया एक दूसरे की चुत से पानी निकालने का मुकाबला.

शांत होने के बाद रमिता बोली- आप चिन्ता ना करो, आजकल में ही मैं आपको मेरी और अशोक की चुदाई का लाइव टेलीकास्ट दिखाती हूँ और फिर जल्दी ही आपकी चुत के लिए भी एक मोटे लम्बे लंड का इंतजाम करती हूँ. “मुझे नहीं चाहिए किसी का लंड… इस उम्र में बदनाम करवाएगी क्या कमीनी…” “चिन्ता ना करो माँ जी… बदनामी नहीं होने दूँगी आपकी… आपके लिए ऐसा लंड देखूँगी जिसमे बदनामी का कोई डर ना हो…” कह कर रमिता उठ कर अपने कमरे में चली गई।

साधना अभी भी बेड पर नंगी पड़ी अपने चुचे मसलते हुए सोच रही थी कि क्या उसकी बहू सच में उसके लिए लंड का इंतजाम करेगी? और अगर करेगी तो किसका? ऐसा कौन है जिससे चुदवाने पर उसकी बदनामी का खतरा कम है? यही सोचते सोचते उसकी आँख लग गई।

शाम को सात बजे उसकी आँख खुली तो अपने आप को बेड पर नंगी पड़े देख वो शरमा गई और जल्दी से उठ कर उसने अपने कपड़े पहने और बाहर आई। अशोक ड्यूटी से आ चुका था। साधना का दिमाग एक बार फिर ये सोच कर धक् रह गया कि अगर अशोक उसके कमरे में आ जाता और अपनी माँ ऐसे नंगी पड़े देख लेता तो वो उसके बारे में क्या सोचता! पर बाहर सब कुछ सामान्य था।

ऐसे ही दो तीन दिन बीते। फिर एक सुबह रमिता ने साधना को बताया कि आज रात को तैयार रहना मेरी और अशोक की चुदाई देखने के लिए। सुनते ही साधना की दिल की धड़कनों ने शताब्दी एक्सप्रेस की स्पीड पकड़ ली। वो शरमा भी रही थी और मन भी कर रहा था वो चुदाई का नजारा देखने का।

साधना के लिए तो शाम तक का समय काटना पहाड़ जैसा हो गया था। शर्म के मारे कुछ कह नहीं रही थी पर नजर घड़ी पर ही थी कि कब रात होगी और कब वो लाइव चुदाई देखेगी। चुदाई भी किसकी… अपनी बहू और बेटे की।

शाम हुई, अशोक घर आ गया, सबने खाना पीना किया, सोने की तैयारी होने लगी। साथ ही साथ साधना की बेचैनी और दिल की धड़कनें भी बढ़ने लगी। अशोक अपने कमरे में जाकर टीवी देखने लगा।

तभी रमिता साधना के कमरे में आई और उसको अपने साथ चलने को कहा। साधना बिना कुछ बोले उसके साथ चल दी। रमिता के कमरे के दरवाजे पर जाकर रमिता ने साधना को रुकने को कहा और बोली कि जब मैं बोलूं तब अन्दर आ जाना।

साधना दरवाजे पर खड़ी रमिता के बुलावे का इंतज़ार करने लगी, एक एक पल भारी हो रहा था, अजीब सा डर भी था कि कहीं अशोक को पता लग गया तो क्या होगा। चुदाई देखने की ललक उसकी चुत से पानी के रूप में टपक रही थी जो उसे वही खड़े रहने को मजबूर कर रही थी।

दस मिनट बाद रमिता के कमरे की लाइट बंद हो गई। उसने सोचा कि अब तो लाइट भी बंद हो गई शायद रमिता का प्लान फेल हो गया है, वो मुड़कर वापिस अपने कमरे की तरफ जाने लगी। तभी रमिता कमरे से बाहर आई और साधना का हाथ पकड़ कर कमरे में ले गई।

कहानी जारी रहेगी.

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