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“ट्रिन… ट्रिन… ट्रिन… ” टेबल पर पड़े मेरे मोबाइल की रिंग से मैं चिहुंका, मैंने मोबाइल उठाकर स्क्रीन पर नज़र डाली और वापस रख दिया, यह मेरे द्वारा सेट किया हुआ डेली अलार्म था। मेरा नाम रोहित सक्सेना है और मेरा ट्रेवल एजेंसी का बिज़नेस है, वैसे तो मेरा बिज़नेस बहुत बड़ा नहीं है कुल 4 लोग जॉब करते हैं लेकिन इस काम में व्यस्तता बहुत रहती है, मैं अक्सर अपने काम में इतना खो जाता हूँ कि मुझे समय का ध्यान ही नहीं रहता और 10 बजे के बाद मुझे काम करना बहुत पसंद नहीं, इसलिए मैंने अपने मोबाइल पर अलार्म लगा रखा है, दरअसल ऐसा मैंने अपनी पत्नी प्रेमा के कहने पर किया है.
जब मेरी नयी नयी शादी हुई थी, तब मेरे पास रहने के लिए अपना घर भी नहीं था, उन दिनों हम लोग किराए के मकान में रहते थे, जिसकी वजह से मेरी कमाई का एक बड़ा भाग किराया देने में चला जाता था, परिणाम स्वरूप मैं प्रेमा के लिए ज़्यादा कुछ नहीं कर पाता था. मुझे इस बात का हमेशा अफ़सोस रहता था.
फिर मैंने एक दिन अपनी नौकरी छोड़ दी और ट्रेवल एजेंसी का काम शुरू कर दिया, तकदीर ने मेरा साथ दिया और मैं कामयाब होता चला गया। चंद सालों बाद हमारे पास अपना घर और अपनी गाड़ी दोनों हो गयी, मैं खुश था सब कुछ ठीक चल रहा था। बस जैसे जैसे मेरी कमाई बढ़ती गयी, मैं अपनी बीवी और बेटे से दूर होता चला गया, मैं रोज़ देर से आने लगा।
एक दिन प्रेमा ने मुझे समझया और उसके कहे मुताबिक मैंने कुछ स्टाफ बढ़ा दिया और घर जल्दी आने की कोशिश करने लगा, इस बात पर कई बार मेरा और प्रेमा का झगड़ा भी हो जाता था. फिर एक दिन उसी ने मेरे मोबाइल में ये डेली अलार्म सेट कर दिया, तब से आज तक मैं अपने नियमित समय पर ऑफिस से निकल जाता हूं, हालाँकि अब घर पर मेरा इंतज़ार करने वाला कोई नहीं है, प्रेमा की 5 साल पहले एक हादसे में जान चली गयी, तब मेरी उम्र 37 थी और मेरा बेटा संजय किशोरावस्था में था।
प्रेमा की मौत के बाद मैंने दोबारा शादी ना करने का निर्णय किया, कुछ दिनों तक मैंने संजय को किसी तरह की कमी नहीं होने दी लेकिन जैसे जैसे वक़्त गुज़रता गया प्रेमा की याद धुँधली होती चली गयी, उसके बाद मुझे औरत की कमी महसूस होने लगी.
मैंने अपने एक दोस्त को अपनी समस्या बताई तो उसने कहा- तुम्हें इस आयु में शादी करने की ज़रूरत ही क्या है… संजय अब इतना बड़ा हो चुका है कि वो अब माँ के बगैर भी रह सकता है। बात तेरी… तो तुम बाहर से काम चला सकते हो! “बाहर से मतलब?” मैंने उससे पूछा। “अबे गधे… मैं एस्कॉर्ट यानि कालगर्ल की बात कर रहा हूं, इस उम्र में शादी करने से अच्छा है नयी नयी लड़कियों की जवानी का मजा लूटो। तुम तो लकी हो प्यारे… कोई रोकने वाला भी नहीं है!” उसने हंसते हुए कहा।
उसकी बात सुनकर मेरा मन भी गदगद हो गया। “लेकिन… संजय को पता चला तो?” मैंने डरते हुए पूछा। “उसका भी हल है… उसे बोर्डिंग भेज दे पढ़ने के लिये… फिर लड़कियों के लिए बाहर जाने की भी जरूरत नहीं… घर पर बुलाओ बीवी की तरह रात भर मज़े लो और सुबह तक भूल जाओ!” उसने आँखें चमकाते हुए कहा।
मैं उसके प्रभाव में आ गया और अगले दिन ही मैं संजय को लेकर बैंगलोर चला गया और उसे बोर्डिंग में डाल दिया। तब से आज तक मेरा नयी नयी लड़कियों को घर बुलाकर भोगने का सिलसिला चालू है। हालांकि मैं ऐसा रोज़ नहीं करता, सप्ताह में 1 या 2 बार ही ऐसा करता हूँ।
मैंने ऑफिस बंद किया और अपनी गाड़ी में घुस गया… अगले ही पल मेरी गाड़ी हवा से बात करती हुई सड़क पर दोड़ने लगी, आज मेरे मन में किसी कमसिन लड़की को चोदने का विचार था। मैं जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहता था इसलिये मैंने गाड़ी को हाईवे पर डाल दिया और तेज़ रफ़्तार से जाने लगा।
अचानक ही मेरी नज़र हाईवे पर खड़ी एक लड़की पर पड़ी, वो ऐसी जगह खड़ी थी जहाँ न तो बस स्टॉप था, न ही कोई सिगनल, मुझे उसे अकेले देखकर आश्चर्य हुआ, जैसे जैसे मेरी गाड़ी उसके नज़दीक होती गयी, मैं गाड़ी का रफ़्तार भी कम करता चला गया, उस लड़की के पहनावे से लगता था कि वो किसी अच्छे घर की लड़की है।
मेरी गाड़ी अब उसके नज़दीक पहुँच चुकी थी, लेकिन इससे पहले की मैं कुछ समझ पाता, उस लड़की ने एक छलांग मारी और मेरी गाड़ी के आगे आ गयी। मैं लगभग गाड़ी के ब्रेक पर चढ़ गया, गाड़ी चर्राती हुई एक झटके में रुक गयी.
इससे पहले कि मैं उसे कुछ कहता, उसने एक और अचम्भित कर देने वाली हरकत की, वो लड़की पलक झपकते ही मेरी गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर अंदर आ गयी। मैं हैरत और फटी फटी नज़रों से उसे देखने लगा, मेरे समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, मैं भय और बैचेनी से मरा जा रहा था।
“कौन हैं आप?” बड़ी मुश्किल से मेरे मुंह से ये शब्द निकले। “गाड़ी चलाओ…” उसने गुर्राते हुए कहा। “लेकिन आपको जाना कहाँ है… और इस तरह मेरी गाड़ी में ज़बरदस्ती बैठने का मतलब क्या है?” मैंने साहस बटोर कर उससे प्रश्न किया। “तुम्हारे घर में कौन कौन है?” उसने उल्टा प्रश्न किया, उसकी आवाज़ में एक कठोरता थी। “कोई नहीं, मैं अकेला रहता हूं, और मेरा घर भी बहुत छोटा है, और मैं धनी आदमी भी नहीं हूँ.” मैंने हकलाते हुए कहा।
“डरो मत… में कोई लूटेरन नहीं हूँ… बस तुम्हारे साथ तुम्हारे घर में एन्जॉय करना चाहती हूँ।” उसने मेरे गालों को सहलाते हुए मुस्कुरा कर कहा। “घर में क्यों? हम होटल चलते हैं… यह ज़्यादा अच्छा रहेगा।” मैं उस बला को अपने घर नहीं ले जाना चाहता था। “हरामी की औलाद… जान से मार डालूँगी तुझे। अगर तू अपने घर के बजाये कहीं और ले गया तो!” उसने गुस्से से मेरा गर्दन दबाते हुए कहा। उसकी पकड़ इतनी तेज़ थी कि मेरा दम घुटने लगा। मैंने बाहर निकलती आँखों से उसकी ओर देखा, उसने मेरा गर्दन छोड़ दी, मैं अपनी उखड़ी हुई सांसों को नियंत्रित करने लगा।
“बोल घर जाएगा या होटल?” उसने गुर्रा कर मुझसे कहा। “घर…” मैंने हकलाते हुए जवाब दिया। “आज तू कटने वाला है बेटा!” मेरे दिल ने सरगोशी की… ‘ये पागल लड़की तेरे ही घर में तेरा बिरयानी बनाकर खाने वाली है।’
मैं रास्ते भर सोचता जा रहा था कि कैसे इस मुसीबत से छुटकारा पाऊं, लेकिन मुझे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। मैंने गाड़ी की गति इस उम्मीद से धीमी कर दी कि कहीं रास्ते में इस लड़की का दिमाग ठिकाने में आ जाए और यह मेरी गाड़ी से उतर जाए। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ… लगभग 15 मिनट गाड़ी दोड़ने के बाद मैं अपने घर पहुँच गया।
मैंने गेट का लॉक खोला और अंदर घुस गया। वो लड़की भी मेरे आगे ही अंदर आ गयी, अन्दर पहुँचते ही वो रहस्मयी लड़की सोफ़े पर धम्म से जा बैठी और मुझसे बोली- इतने बड़े घर में तू अकेला रहता है? तुझे डर नहीं लगता? “पहले नहीं लगता था लेकिन अब लगने लगा है, कल से अकेला नहीं रहूँगा.” मैंने अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए जवाब दिया। वह लड़की मेरी बात सुनकर जोर से हंसने लगी।
“तू खाना कहाँ खाता है? मेरा मतलब है तू होटल में खाता है या खुद बनाता है?” उसने मेरी और मुस्कुरा कर देखते हुए पूछा। “मेरी नौकरानी खाना बना के रख देती है.” मैंने डरते हुए जवाब दिया। “अभी क्या बनाया है खाने में?” उसने कहते हुए अपने होंठों पर जीभ घुमाई. “पता नहीं… देखना पड़ेगा।” “तो जाकर देख न घोंचू…” उसने गुस्से में कहा और मैं सुनते ही दुम दबा के किचन की तरफ भाग गया।
मैंने जल्दी से किचन में खाना चेक किया और लौट कर उससे बोला- आलू के 4 पराँठे, थोड़े चावल और मटन है. मैंने एक ही साँस में पूरा मेनू उसे बता दिया। “ह्म्म्म अच्छा है… तेरे फ्रीज़ में बीयर तो होगी ना?” उसने फिर पूछा। हां… है!” मैंने उसे जवाब दिया। तो जा पहले किचन से सारा खाना ले आ और बियर की दो बोतल उठा ला!”
मैंने उसके आदेश का पालन किया लगभग 15 मिनट में खाना और बियर डाइनिंग टेबल पर सजा दिया। वो सोफ़े से उठी और डाइनिंग टेबल पर पहुँच गयी, उसने मेरी ओर देखा और मुझसे बोली- तू नहीं खायेगा? “तुम खा लो… मैं बाद में खा लूँगा!” मैंने डरते हुए जवाब दिया। “बाद में क्या अचार खायेगा… अभी आजा मेरे साथ… मुझे अकेले खाना पसंद नहीं!” उसने डाँटते हुए कहा।
मैं मशीन की तरह उसके आदेश का पालन कर रहा था। मैं उसके दूसरी तरफ की कुर्सी पर बैठ गया और खाना शुरू कर दिया।
वो बड़े आराम से खाना खा रही थी, जैसे किसी के घर में मेहमान बन कर आयी हो। मैं खाते खाते उसे देख लेता था। “कौन है ये लड़की? कपड़ों से तो अच्छे घर की लगती है, कॉलगर्ल ऐसी हरकत करेगी नहीं, लेकिन इसका लैंग्वेज रण्डियों के जैसी ही है।”
लगभग पन्द्रह मिनट तक मैं उसके साथ बैठकर खाना खाता रहा, खाना तो सब उसी ने खाया, मुझसे तो डर के मारे खाया भी नहीं जा रहा था, मैं तो बस उसका साथ दे रहा था।
वो उठी और फिर से सोफ़े पर बैठ गयी। कुछ देर वो उसी प्रकार बैठी रही मैंने डाइनिंग टेबल से खाने के बर्तन उठाये और किचन में रख दिये।
“बीयर और मिलेगी?” उसने मेरी ओर देखते हुए कहा। “हाँ एक बोतल और है!” मैंने उसे बताया और फ्रीज़ से बीयर निकाल कर उसके सामने रख दी। “2 गिलास ले आ!” उसने बीयर की बोतल खोलते हुए कहा। मैंने रसोई से 2 गिलास लाकर उसके सामने रख दिये और खड़ा होकर उसे देखने लगा।
“तू भी आ जा…” उसने दोनों गिलास में बियर डालते हुए मुझसे कहा। मैं लपक कर उसके पास गया। मुझे बियर की वास्तव में बहुत जरूरत थी। उसने एक गिलास उठाकर मेरी ओर बढ़ाया और दूसरा गिलास खुद उठा लिया। “चीयर्स!” उसने अपना गिलास मेरी और बढ़ाते हुए मुझसे कहा। “चीयर्स!” मैंने भी उत्तर दिया और बियर का घूँट भरने लगा।
बियर मेरे गले से उतरते ही मेरा डर धीरे धीरे कम होने लगा और में उसका साथ देने लगा। थोड़ी ही देर में बियर की बोतल खाली हो गयी। “तुम और पिओगी?” मैंने उसकी ओर देखते हुए पूछा। “तुम्हारे पास और बियर है?” उसने मेरी ओर देखकर कहा। “हाँ है…”
मैं उठा और फ्रीज़ से एक और बोतल निकाल लाया। “तुम तो कह रहे थे… तुम्हारे पास एक ही बोतल है फिर ये कहाँ से आयी?” उसने मुझे घूरते हुए कहा। “मैंने झूठ बोला था… यह बोतल मैंने अपने लिए बचा रखी थी… तुम पीओगी?” मैंने अपने गिलास में बीयर ड़ालते हुए उससे पूछा। “नहीं… अभी नहीं!” उसने उत्तर दिया और मुझे देखने लगी।
मैंने भी अभी तक उसे ठीक से देखा नहीं था, डर की वजह से मैं उसे देख ही नहीं पाया था लेकिन अब बियर की वजह से मेरा सारा डर दूर हो चुका था। मैंने उस लड़की को ऊपर से नीचे तक देखा। उसने ऊपर पीले रंग का स्ट्रैप्लेस टॉप और नीचे काले रंग की जीन्स पहन रखी थी। उसकी आधी छातियाँ नंगी थी और टाइट टॉप में उसके बड़े बड़े बूब्स तने हुए थे। मैंने ऐसी सुन्दर लड़की पहले कभी नहीं देखी थी, उसकी गोल गोल जाघें बहुत ही जबरदस्त थी। ऑफिस से निकलते समय मैंने ऐसी ही किसी लड़की को घर बुलाकर चोदने का प्लान किया था लेकिन इस तरह से नहीं… जैसा अभी मेरे साथ हो रहा था।
मैं आँखें फाड़े उसकी सुंदरता को देखने लगा। दिल किया जाके उसके बूब्स दबा दूँ।
अचानक वो उठी और अपने जीन्स की बेल्ट खोलने लगी। मैं थोड़ा डर गया कि कहीं ये मुझे पीटना तो नहीं चाहती।
कहानी जारी रहेगी. कहानी आपको कैसी लग रही है, नीचे लिखे इमेल आईडी पर मेल करके बतायें! [email protected]
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