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मेरा नाम दीपांशु तनेजा है। उम्र 27 साल, कद 5 फीट 6 इंच। मेरा शहर है दिल्ली… जिसे दुनिया दिलवालों की दिल्ली भी कहती है लेकिन यहां पर दिल जैसा आपको कुछ भी देखने को नहीं मिलेगा। झूठा दिखावा, झूठी शान और खोखले रिश्ते। यही है आज की दिल्ली। आपका क़रीबी कब आपकी पीठ में धोखे का खंज़र घोंप दे आपको इसकी भनक भी नहीं लगने देता ये शहर। बातें भले ही कड़वी लगें लेकिन सच हैं, मेरे चचेरे भाई ने ही मेरी दुनिया उस वक्त लूटने की कोशिश की जब मुझे परिवार और प्यारों के सहारे की सबसे ज्यादा ज़रूरत थी।
25वें साल में मेरी शादी हो गई थी। कपड़े का बिज़नेस था जो अच्छा खासा चल रहा था। रीति रिवाजों के मुताबिक शादी में खर्चा भी काफी किया गया था। बीवी काफी सुंदर थी। कविता, ना चाहते हुए भी नाम बदल कर बता रहा हूं। सुहागरात के दिन मेरे मन में भी लड्डू फूट रहे थे जैसे बाकी लड़कों के दिल में फूटते हैं। मैं कमरे में गया और कुंडी लगा दी। वो सामने फूलों से सजे बिस्तर पर बैठी हुई मेरा इंतज़ार कर रही थी। सेक्स की जल्दी तो मुझे थी लेकिन पहली रात थी इसलिए सब्र से काम ले रहा था।
मैं कविता के पास जाकर बिस्तर पर लेट गया, वो बैठी रही। शुरुआत कौन करे; शर्म तो मुझे भी आ रही थी लेकिन रुका भी नहीं जा रहा था। मैंने गले में खराश की आवाज़ बनाते हुए पहल करने की कोशिश की, वो फिर भी नहीं हिली। मैंने सोचा, बड़ी ही शर्मीली किस्म की बीवी है यार, चूत तो सील बंद होनी चाहिए। सोचकर मेरी पैंट में मेरे लिंग ने तनाव में आना शुरु कर दिया था।
मैंने धीरे से कविता को कंधे से पकड़ते हुए अपने पास लेटा लिया। उसके लहंगे की चुन्नी सरक गई और खूबसूरत सा चेहरा शर्म का घूंघट ओढ़े हुए मेरी आंखों के सामने था। उसके कोमल बदन को छूकर मुझमें तो हिम्मत आने लगी थी। या यूं कहें कि चुदास की आग ने धुंआ फेंकना शुरु कर दिया था।
मैंने उसके कंधों को हल्के से दबाना शुरु कर दिया। उसका रिएक्शन अभी भी वैसा ही था, शर्मीली, सिमटी हुई सी वो मेरी तरफ देख भी नहीं रही थी। उसके होंठ सुर्ख लाल थे। पलकों पर सुनहरी छटा और माथे में सिंदूर। किसी अप्सरा जैसी लग रही थी। मैं खुद को बहुत ही किस्मत वाला समझ रहा था कि ऐसी हूर की परी मुझे मिली है। इसको तो पलकों पर बिठाकर रखूंगा।
मैंने हल्के से उसके होठों पर उंगली से टच किया। उसके गुलाबों की पंखुड़ी खुल गई। मैंने उसकी नथ को उतारा और अलग कर दिया। जब उसने नज़रें उठाकर देखा तो मैं उसकी काली आखों की चमक में खो गया। मन कर रहा था उसको देखता ही रहूं।
उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर अपने होठों से हल्का चूम लिया तो लंड ने फन उठा लिया। उसके कोमल हाथों का स्पर्श मेरे हाथों में जिंदगी के सारे खालीपन को भरता हुआ महसूस हो रहा था। उसके हाथों से हथफूल निकाला और उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसाकर उसको लेटाते हुए उसके सीने पर सिर रख दिया। उसके वक्षों के अंदर से आती दिल की धक-धक लंड को बार-बार फड़का रही थी। उसके हाथ को हल्के से सहलाते हुए दोबारा उठा और उसके होठों के करीब होंठ ले गया। सांसें हम दोनों की ही गर्म हो चुकी थी। धीरे से उसके गालों पर प्यार से किस किया और उसके हाथों को दबाते हुए उसके होठों पर अपने प्यासे होंठ रख दिए। लंड ने पैंट में फनफनाना शुरु कर दिया।
उसके लहंगे के बीच में बांया पैर डालते हुए उसके होठों को चूसने लगा। मेक-अप की महक हवस में घुलकर शर्म की दहलीज़ पार कर चुकी थी। लहंगे के ऊपर से उसकी बांई जांघ पर मेरी पैंट में तना मेरा लंड रह-रहकर उसकी जांघ पर झटके दे रहा था; और मेरे हाथ अपने आप ही उसके ब्लाउज़ पर आकर उसके दूधों को दबाने लगे। उसने मेरे हाथों को हटाना चाहा लेकिन अब मेरे अंदर का मर्द अपनी मर्दानगी के प्रदर्शन पर उतर आया था।
मैंने कविता के होठों को चूसते हुए उसके दूधों को पहले से ज्यादा प्रेशर से दबाना शुरु कर दिया। वो भी अब मेरा विरोध नहीं कर रही थी। उसके कोमल बदन पर उभरे उसके दूधों को दबाने का मज़ा मेरे लंड पर भारी पड़ रहा था। लंड अपने पूरे उफान पर था और मेरी कमर मेरे लंड को उसकी जांघ पर धकेलने लगी थी। जैसे लंड उसकी जांघ में ही छेद कर देना चाहता है।
अब मेरे हाथ उसके ब्लाउज के अंदर जाकर उसके दूधों को छूना चाहते थे, उनकी कोमलता को महसूस करना चाहते थे। मेरी उंगलियों और उसके दूधों के बीच में ब्लाउज की बाउंडरी अब और बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मैंने उसके ब्लाउज के हुक खुलवाए और उसके सफेद कोमल, मखमली चूचों के दर्शन करने में मेरी आंखें धन्य हो गईं। दूधों के बीच में हल्के भूरे रंग के निप्पल कस कर पैने हो गए थे। मैंने अगले ही पल उसके चूचों को अपने मुंह में भर लिया और बड़े ही प्यार से उनको चूसने और दबाने लगा।
कविता ने अपने दोनों हाथों को कमर के पीछे रखते हुए अपनी कमर को सहारा दे दिया लेकिन मैंने उसके हाथों को हटवाते हुए उसे फिर से बेड पर गिराकर उसके हाथों को उसकी बगल में नीचे दबाया और उसकी चूचियों में उभरे निप्पलों को बारी-बारी से अपने दातों के बीच हल्के से दबाकर काटने लगा। उसकी सिसकारी निकल पड़ी और वो अपनी छाती को उठाते हुए पीछे तकिए को नोंचने लगी।
अब मैंने दोनों हाथों में दोनों चूचों को पकड़ा और उनको दबाते हुए निप्पलों पर जीभ फेरने लगा। मेरी दोनों जांघें उसकी जांघों के ठीक ऊपर आ चुकी थीं; मेरी पैंट का बीच वाला भाग उसके लहंगे के ऊपर से ही उसकी चूत वाले भाग पर अपना दबाव बना रहा था। चूचों को दबाने और चूसने में जो आनंद मिल रहा था वो यहां पर शब्दों में कहना मुश्किल है।
ब्लू फिल्मों में नंगी औरतों को चुदते हुए देखकर मुट्ठ तो बहुत बार मारी थी लेकिन एक औरत के नंगे कोमल बदन की छुअन के अहसास के सामने वो 2-3 मिनट का मनोरंजन कहीं भी स्टैंड नहीं करता। आज पता लग रहा था कि मर्द क्यों चूत के पीछे पागल होते हैं। औरतों के नंगे जिस्म को अपनी नंगी आंखों से अपने सामने मचलते हुए देखना, उसको छूना, उसके साथ खेलना वासना की सबसे बड़ी खूबी है।
कविता के सफेद, कोमल दूध अब तनकर खड़े हो गए थे जिनकी दृढ़ता मुझे अपने हाथों में अलग से महसूस हो रही थी। उसके लहंगे का नाड़ा खोलकर मैंने उसकी टांगों से निकलवाकर लहंगे को बेड के साथ लगे सोफे पर डाल दिया। नीचे पेटीकोट था। उसकी पतली और गोरी कमर पर बंधा लाल रंग का पेटीकोट गज़ब लग रहा था। मन कर रहा था उसको फाड़ के उसकी चूत को नंगी कर दूं लेकिन चूंकि वो मेरी बीवी थी इसलिए अपनी हवस की आग पर कंट्रोल के पानी का छींटा मारा और उसके पेटीकोट का नाड़ा खोला, नाड़ा खोलने के बाद धीरे-धीरे उसकी जांघों से सरकाते हुए उसको नंगी कर दिया। उसकी सफेद पैंटी के बीचों बीच गीला धब्बा दिखाई दे रहा था।
सफेद, नंगे तने हुए दूध… पतली कमसिन कमर के नीचे चूत को ढके हुए सफेद पैंटी में वो मेरे सामने लेटी हुई अपनी जांघों को एक दूसरे पर रगड़ रही थी जैसे चूत को छिपाना चाह रही हो। मैंने उसके घुटनों से पकड़ते हुए उसकी टांगों को सीधा किया तो पैंटी के बीच में चूत की शेप उभर कर दिखने लगी जिसने बीचों-बीच से पैंटी को गीला कर दिया था। मैंने उसकी नाभि के पास जाकर उसके इर्द-गिर्द उसके पेट पर किस किया तो वो तड़पने लगी। उसकी जांघों को फैलाया मैंने और अपने घुटने उनके बीच में रखते हुए उसकी गीली पैंटी के नज़दीक मुंह को ले जाकर उस पर नाक रख दी। आह…चूत…
मैंने पैंटी के ऊपर से ही अपने होंठ उसकी उभरी चूत की शेप पर रखे और उसकी चूत में मुंह मारने लगा। मेरे हाथ उसकी छाती पर तने उसके चूचों को ढूंढते हुए उनको अपने आगोश में भरने लगे। दबाने लगे। नीचे मैं चूत की खुशबू में खोने लगा।
अब चूत को देखने के लिए और इंतज़ार करना मेरे वश में नहीं था। मैं धीरे से अपने दांतों से पकड़ते हुए उसकी पैंटी को नीचे खींचने लगा और मेरी नाक में चूत की गंध का अहसास बढ़ने लगा। आंखें खोलकर देखा तो चूत के ऊपर उगे बाल जिनको ट्रिम किया गया था, चूत के नंगी होने का संकेत देने लगे। धीरे-धीरे पूरी पैंटी को नीचे खींच दिया मैंने और उसकी गीली चूत नंगी होकर मेरी नज़रों के सामने थी।
अब मैं और नहीं रुक सकता था। मैंने जल्दी से पैंटी को उसकी जांघों से निकालकर नीचे पैरों से भी निकलवाकर एक तरफ फेंका और कविता की जांघों को चौड़ा फैलाते हुए उसकी चूत की फांकों पर अपने होंठ रख दिए। वो अपनी जांघों के बीच में मेरे मुंह को दबाने लगी। मैंने उसके कूल्हों के पास से उसको पकड़ा और अपनी तरफ खींचा जिससे मेरे मुंह की पहुंच अच्छी तरह उसकी चूत तक पहुंच गई। उसकी टांगों को फैलाते हुए मैं उसकी चूत में मुंह मारने लगा। चूत से तरल पदार्थ निकल रहा था जिसे मैं चाट रहा था और चूत फूली-फूली सी महसूस हो रही थी।
मैंने अपनी पैंट के ऊपर से अपने लंड को मसलना शुरु कर दिया। कविता ने मेरे सिर को पकड़ा और अपनी चूत में धकेलने लगी। वो मेरी कमर पर नोंच भी रही थी। कुछ देर तक चूत चाटने के बाद मैंने अपनी जीभ को पैना किया और चूत के अंदर दे दी, ‘ओह्ह्हह…’ उसके मुंह से निकला. वो उछल पड़ी और अपनी चूत को बार-बार उठाते हुए मेरे मुंह पर मारने लगी।
मुझसे ज्यादा कामुक तो मुझे मेरी नई नवेली बीवी लग रही थी। मैं तेज़ी से उसकी चूत के अंदर जीभ को अंदर बाहर करने लगा। साथ में अपना लंड भी रगड़ रहा था। लंड को रगड़ने में इतना आनंद मुझे भी कभी नहीं आया था। मन कर रहा था उसकी चूत में लंड डालकर उसको फाड़ दूं लेकिन पता नहीं क्यों मैं उसको तड़पाने में ज्यादा आनंद का अनुभव कर रहा था। कभी उसकी चूत में जीभ घुसेड़ देता तो कभी उसकी चूत की फांकों को दांतों से खींच लेता, वो तड़पती रही, मचलती रही।
अब मुझसे भी और कंट्रोल नहीं हुआ, मैंने उसकी चूत से जीभ निकाली और अपनी शर्ट उतारने लगा। वो नंगी बिस्तर पर नागिन की तरह लहराती हुई मुझे देख रही थी। मैंने अपनी शर्ट और बनियान निकाल फेंका और घुटनों के बल खड़ा होकर अपनी पैंट का हुक खोला। पैंट को नीचे किया तो मेरे लंड ने फ्रेंची का बुरा हाल कर दिया था। मेरी फ्रेंची का आगे वाला भाग पूरा तरह से लंड के तरल पदार्थ में सन गया था।
मैंने पैंट निकाली और फिर फ्रेंची को भी अपनी जांघों से अलग कर दिया। लंड की टोपी पूरी गीली होकर झाग में सनी हुई थी। मैंने कविता की चूत को अपनी चार उंगलियों से रगड़ा तो उसने मुझे अपने ऊपर गिरा लिया और मेरे होठों को चूमने काटने लगी। उसकी टांगें मेरी कमर पर आकर लिपट गईं और लंड चूत से जा टकराया। उसने अपने हाथों से मेरे चूतड़ों को चूत की तरफ दबाया तो लंड उसकी चूत पर रगड़ खाने लगा। अब वो पागलों की तरह मुझे चूमने और चाटने में लगी थी। उसने मेरे चूतड़ों को अपने दोनों हाथों में लेकर कई बार दबाया, मेरी गांड की दरार में अपना हाथ फेरा और मुझे अपनी तरफ इतनी ज़ोर से धकेला की लंड उसकी चूत में जा फंसा।
लंड के फंसते ही वो फिर से मेरे होठों को चूसने लगी। मेरी कमर पर अपने हाथों को फिराती हुई मेरी गांड पर टांगों को लपेटे हुए मुझे बार-बार अपनी चूत चोदने के लिए भड़काने लगी। मेरी छाती उसके दूधों को दबा रही थी और लंड चूत में अंदर ही अंदर फिसलता हुआ अपना रास्ता तय करने लगा, जब पूरा लंड चूत में समा गया तो कविता ने अपने आप ही धक्के देना चालू कर दिया। मैं भी हैरान था कि औरत सच में इतनी गरम होती हैं क्या..
लंड भी चिकना था और चूत भी, धक्कों के साथ पच्च..पच्च की आवाज़ भी होने लगी। अब मैंने भी अपनी पॉजिशन संभाली और कविता की चूत में अपनी तरफ से धक्के देने लगा। जब मैंने धक्के देना शुरु किया तो उसके चेहरे के भाव और कामुक हो गए। उसके लाल सुर्ख होंठ इस्स.. इस्स्स् करने लगे जिनमें हल्के मीठे दर्द का भाव भी था।
उसकी ये हालत देखकर मैं ज्यादा देर खुद को संभाल नहीं पाया और 4-5 धक्कों के बाद ही मेरे लंड ने उसकी चूत में थूकना शुरु कर दिया। ये क्या हुआ…मैंने मन ही मन कहा..
अब क्या करूं, ऐन वक्त पर लंड ने मेरा साथ छोड़ दिया और मेरे धक्के अचानक बंद हो गए। कविता ने सिर उठाकर देखा तो मुझे उससे नज़रें मिलाने में शर्म सी महसूस हो रही थी। वो समझ गई कि मेरी गर्मी उसकी चूत में जाते ही ठंडी हो गई है।
उसके चेहरे के भाव धीरे-धीरे नॉर्मल हो गए। उसने मुझे अपने से अलग कर दिया और उठकर बैठ गई। मैं भी एक तरफ लेट गया। मेरी सांसें अभी सामान्य नहीं हुई थीं। उसने मेरे चेहरे की तरफ देखा और फिर मेरे सिकुड़ते हुए लंड को। वो हल्के से मुस्कुराई, जैसे कुछ छिपा रही हो। फिर मेरी छाती पर हाथ फेरती हुई मेरे साथ ही लेट गई। मैंने उसका सिर अपनी छाती पर रखवा लिया लेकिन 2 मिनट बाद वो अलग हो गई। उसने अपनी पैंटी पहन ली और पेटीकोट पहन कर ब्लाउज भी पहन लिया।
मैंने पूछा- क्या हुआ? वो बोली- कुछ नहीं, थकान सी हो रही है, मुझे नींद आ रही है। इतना कहकर वो लेट गई और अपने पेट पर हाथ रखकर उसने आंखें बंद कर लीं।
मैंने सोचा कि शायद वो सच में ही थकी हुई है। लेकिन मेरी तो नींद उड़ गई थी। मैं सोच में था कि ये मेरे बारे में क्या सोच रही होगी। बस 4-5 धक्कों में ही मेरी मर्दानगी हांफने लगी। मैं इसी सोच में लेटा रहा। मुझे भी कब नींद आई पता नहीं चला, लेकिन सुबह 4 बजे के करीब फिर से आंख खुली और मैंने कविता की तरफ देखा। उसके ब्लाउज में से उसके चूचों की दरार दिख रही थी। उसकी टांगें चौड़ी होकर फैली हुई थीं। और वो गहरी नींद में थी।
उसकी ये स्थिति देखते ही लंड खड़ा हो गया और मैंने धीरे से उसके चूचों को दबाना शुरु कर दिया। जब मेरे हाथों का दबाव उसके चूचों पर बढ़ने लगा तो उसकी आंखें खुल गईं। उसने खुद ही ब्लाउज खोल दिया और पेटीकोट भी निकाल दिया। मैं भी ज्यादा खेल नहीं करना चाह रहा था कि कहीं फिर से रात वाली कहानी ना दोहराई जाए।
उसने चूत को मेरे सामने नंगी कर दिया और मैंने कविता की टांगों को फैलाते हुए उसकी चूत पर लंड को रखा और धक्का दे दिया। वो उचक गई और मैंने उसके होठों को चूसना शुरु कर दिया। मैंने देर ना करते हुए उसकी चूत में लंड को अंदर बाहर करना चालू किया। 4-5 धक्कों में ही लंड ने फिर से मेरा साथ छोड़ दिया। अबकी बार तो मैं मारे शर्म के खुद ही उठ गया और सीधा बाथरूम में चला गया।
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी. [email protected] कहानी का अगला भाग: चूत चीज़ क्या है… मेरी गांड लीजिए-2
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