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दोस्तो, मैं लव शर्मा हाज़िर हूँ एक बार फिर आपके सामने गांडू सेक्स स्टोरी: दूध वाला राजकुमार-1 कहानी का अगला भाग लेकर।
इस कहानी के पिछले भाग को आप लोगो ने बहुत पसन्द किया और काफी सारे पाठकों ने इस कहानी का अगला भाग जल्दी प्रकाशित करने का आग्रह किया, लेकिन बहुत ज़्यादा व्यस्तता के चलते कहानी नहीं लिख पाया। लेकिन आपके आग्रह के काफी मेल मिलने पर मैंने समय निकालकर कहानी लिखी। आपसे मिले प्यार के लिए आप सभी का और अन्तरवासना का शुक्रिया।
दोस्तो, मेरी गे सेक्स कहानी ‘दूध वाला राजकुमार’ के पहले भाग को आप सभी ने काफी सराहा और सेक्सी दूधवाले सर्वेश राजपूत के कड़क राजपूती लन्ड और मजबूत जिस्म ने सभी के लन्ड खड़े कर दिए… और गांड में अजब सी खुजली कर दी। सर्वेश के बड़े भाई रत्नेश राजपूत की कहानी के लिए मुझे कई सारे मेल मिले और मैंने उस कड़क लन्ड महाराज रत्नेश के जुझारू सेक्स की यह कहानी लिखी… उम्मीद करता हूं कि आपको कहानी पसंद आएगी।
तो दोस्तो जैसा कि अपने पढ़ा कि मेरे सेक्सी राजकुमार सर्वेश के राजपुताना देसी लन्ड से मेरा दीदार हो चुका था और उसके लन्ड के काम रस को मैं पी चुका था और उसके भाई रत्नेश राजपूत का नाम सुनते ही मेरे मन में किसी महाराजा की छवि आ गयी और किसी प्राचीन महाराजा के लन्ड का स्वाद चखने की तीव्र इच्छा मेरे मन में जाग चुकी थी जिसे उसके दानवी लन्ड से ही शांत किया जा सकता था।
उस दिन सर्वेश के साथ हुए लंबे सेक्स ने हम दोनों को ही मानो एक दूसरे की लत लगा दी थी… सर्वेश अब जब भी मौका मिलता अपना लौड़ा मेरे मुंह में पेल देता और मुँह की मस्त चुदाई कर देता, क्योंकि गांड तो आज तक मैंने कभी नहीं मरवाई।
साला उसका लन्ड भी गजब का था, 10 सेकंड में तनकर फनफनाने लगता और मुंह की ताबड़तोड़ चुदाई कर देता… वैसे होना भी था आखिर राजपूती नया लन्ड और ऊपर से दूध घी की खिलाई से बना लन्ड का घी मुझे तृप्त कर देता।
आप मानोगे नहीं लेकिन सर्वेश 24 घण्टे में 6-7 बार भी लन्ड पेल देता था और मैं खुशी खुशी उसका लन्ड ले लेता… ऐसे सेक्सी राजकुमार का लन्ड फिर किस्मत में हो न हो… वैसे भी मुझे इंदौर मैं ज्यादा दिन तो रहना नहीं था इसलिए मैं भी पूरा आनन्द लेना चाहता था उसके लन्ड और जिस्म का।
मैं भी इंदौर मैं नया था और वहाँ मेरा कोई दोस्त भी नहीं था इसलिए मैं अपना कुछ समय सर्वेश के साथ ही बिता लेता था और शाम के समय वह मुझे आसपास कहीं भी घूमने ले जाता क्योंकि उसे एक्टिवा चलाना पसंद था और मेरे पास एक्टिवा थी। कहीं पर मौका मिलने पर हम लन्ड चुसाई कर लेते।
सर्वेश की दूध डेयरी हमारे फ्लेट से लगभग 1.5 किलोमीटर थी इसलिए वह बोला- चलो भैया, आपको हमारी दूध डेयरी दिखा कर लाता हूँ… भाईसाहब का फोन आया था कुछ काम है उन्हें मुझसे भी… उसके भाई रत्नेश का नाम सुनते ही मेरे मन में तो शहनाइयाँ बजने लगी रत्नेश के उस राजपूताना जिस्म और अंदाज़ को देखने के लिए… मैंने तुरंत हाँ भरी और हम लोग डेयरी पहुँच गए।
वह इलाका थोड़ा सुनसान सा था, डेयरी के सामने खाली जगह पड़ी हुई थी और आसपास दूर दूर कुछ दुकानें थी। डेयरी में कोई आरामदायक कुर्सी पर बैठा हुआ बन्दा किसी बड़े कार्टून से बिस्किट के पैकिट निकाल कर पास ही में जमा रहा था और उसे देख पाना मुश्किल था क्योंकि कुर्सी पीछे की और घूमी हुई थी… और शायद यही रत्नेश भैया थे।
गाड़ी से उतरकर सर्वेश ने आवाज़ लगाई- हाँ भाईसाब काई कई रिया था?( क्या कह रहे थे?) उसने देहाती भाषा में पूछा. इतना पूछते ही कुर्सी हमारी तरफ घूमी और रत्नेश की छवि उजागर हुई… और किसी महाराजा के फरमान की तरह कड़क आवाज़ आयी- काँ गयो थो हावेर नो… अबी तक सुध कोनी थने आवा नी ( कहाँ गया था सुबह से अभी तक आने की सुध नहीं है तुझे?)
हाई… क्या लौंडा था वह… बिल्कुल जैसा मैंने उसके नाम को सुनकर कल्पना की थी। रत्न की तरह ही उसका जिस्म भी बहुत ही कीमती और महंगा लग रहा था… दिल कर रहा था कि कोई भी कीमत चुकानी पड़े इस रत्न की मुझे लेकिन इस राजपूताना रत्न को तो मैं धारण करके ही रहूंगा।
हाइट होगी करीब 5’10” देखने में हट्टा कट्टा ब्लू जीन्स ऊपर टीशर्ट और उस पर लेदर जैकेट… क्योंकि ठंड का मौसम था… इतना कुछ पहने होने के बावजूद मेरी आँखों ने मानो उसके जिस्म को स्कैन कर दिया था… मेरे दिमाग में उसके नंगे कड़क जिस्म और गंडफाड़ू लन्ड की कल्पनायें मानो मुझे पागल कर रही थी।
छाती में अच्छा खासा उभार, लेदर की जैकेट की फूली आस्तीन उसके मज़बूत जिस्म और फूले डोलों की दास्तान ब्यान कर रही थी। बिल्कुल गोरे भरे चेहरे पर काली आंखें और गाढ़ी मोटी भवें (आई ब्रो) और लाल भीगे भीगे से होंठ… चेहरे पर चमक और सेक्सी स्माइल और एक कान में पतला सा सोने का तार डाला हुआ।
इसके अलावा चहरे पर महाराजाओं जैसी मूछें, टीशर्ट में गले के पास से दिखते छाती के बाल और बिल्कुल सर्वेश की तरह गोरा जिस्म। वो दोनों भाई दिखने और पहनावे से दूध वाले गवाले नहीं लगते थे… दोनों ही किसी किसी हीरो से कम नहीं थे लेकिन उनकी बोली और हरकतों से देहाती होने की बू आती थी और पटा लग ही जाता था कि वो गांव वाले हैं।
सर्वेश दुकान में काफी पहले ही जा चुका था और मैं इतनी देर से अपनी गाड़ी से टिक कर उस जवान जिस्म का मुआयना करने में लगा था। सर्वेश को डाँटते हुए वह बिल्कुल किसी जवान शूरवीर जैसा लग रहा था.
मैं तो मानो उस पहलवानी महाराजा के जिस्म मैं कहीं डूब सा गया था इसलिए मुझे कुछ सुध ही नहीं थी… मुझे कुछ नहीं पता कि दुकान मैं क्या हो रहा है लेकिन थोड़ी देर बाद रत्नेश भैया मेरे साईड में खड़ी अपनी बाइक पर बिल्कुल हीरो की स्टाइल में बैठे और मुझसे कुछ बोला लेकिन मुझे सुध कहाँ थी. इसलिए वह फिर से बोले- भिया दुकान मैं बैठ जाओ, सर्वेश भी बैठा है। आता हूं मैं थोड़ी देर में। मैंने अपने आप को संभालते हुए हाँ बोला और वह वहाँ से चले गये।
इसके बाद अक्सर सर्वेश मुझे अपनी डेयरी पर ले जाता और हम लोग वहीं बातचीत और टाइमपास कर लेते और जब भी सर्वेश के लन्ड का तंबू खड़ा होने लगता मौका देखकर मैं उसके लन्ड के अमृत का पान कर लेता।
अब रत्नेश भाई भी मुझे जानने लगे थे लेकिन उन्हें सर्वेश और मेरे कांड के बारे में कुछ भी पता नहीं था। अब मानो मेरी आँखों को रत्नेश के राजपूताना जिस्म को देखे बिना चैन नहीं आता और मैं मौका पाते ही उनके आसपास आ जाता और उनके मस्त कसरती जिस्म को छूने की कोशिश करता।
अब मेरे पास ज्यादा समय नहीं बचा था क्योंकि मुझे इंदौर मैं 5 दिन हो चुके थे और मुझे अगले दो दिन में इंदौर छोड़ना था… वैसे सर्वेश ने जी भरकर मुझे लन्ड का कामरस पिलाया था और सर्वेश जैसे सेक्सी देसी राजकुमार को पाकर मैं अपने आपको खुशनसीब मनाता था।
लेकिन दिल तो लालची होता है… इसे हमेशा ज्यादा ही चाहिए होता है। और मेरा लालच था रत्नेश भैया… आज मेरा पांचवा दिन था इंदौर मैं और मैं सर्वेश की दुकान पर बैठा बस इसी उधेड़बुन में था कि अब क्या होगा क्या मुझे रत्नेश भैया का लन्ड नसीब होगा या नहीं।
मैं बस उन्हीं को देखे जा रहा था… तभी रत्नेश भैया बोले- यह टीवी 7-8 दिन से खराब पड़ा है सुधरवाने डाल देते हैं यार… क्यों लव… हे ना… टाइम पास नई होता यार इसके बिना… वैसे उनकी बात सही भी थी, उस समय कोई स्मार्ट फोन तो थे नहीं जो उससे टाइम पास हो जाये। मैंने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाई और टीवी सही करवाने की हामी भरी।
तभी उन्होंने कहा- तो चल फिर डाल आते हैं रिपेयर के लिए तू पकड़ कर बैठ जाना गाड़ी पर… आते है थोड़ी देर में… सर्वेश डेयरी देखेगा तब तक। मेरी तो मानो लॉटरी लग गयी थी… महाराजा रत्नेश के साथ घूमने का मौका… मैंने तुरंत हामी भरी और मैं टीवी को पकड़कर बाइक के पीछे बैठ गया और हम लोग सुहानी ठंडी शाम में टीवी को रिपेयरिंग शॉप पर डाल कर घर लौटने लगे।
मैं रत्नेश भैया के साथ बिना स्वेटर पहने ही आ गया था… जब हम लोग निकले थे तब हल्की धूप थी और अब अंधेरा होने लगा था जिससे बाइक पर मुझे गांड फाड़ने वाली ठंड लगने लगी थी। क्योंकि हम लगभग 15 किलोमीटर दूर आ चुके थे इसलिए हमें लौटने में समय भी लगने वाला था।
रत्नेश भैया को भी मेरी ठंड की चिंता हो रही थी इसीलिए उन्होंने कहा- भाई यार तू स्वेटर पहन कर नहीं आया… मैंने भी ध्यान नहीं दिया नहीं तो मैं सर्वेश की जैकिट पहना कर लाता तुझे। मुझे बहुत ज्यादा ठंड लग रही थी क्योंकि नवंबर की शाम थी और बाइक पर तेज हवा भी लग रही थी। मैं मानो ठिठुरने लगा था।
तभी रत्नेश भैया ने कहा- मुझसे बिल्कुल चिपककर बैठ जा… आगे सरक थोड़ा… मेरा दिल खुश हो गया और मैं उनके कड़क जिस्म से थोड़ा चिपक गया. वो फिर बोले- अब अपने दोनों हाथ मेरी जैकिट में घुसा ले, हाथों में ठंड नहीं लगेगी… और थोड़ा आगे सरक…
उनकी इस बात को सुनकर तो मानो मेरी ठंड कही गायब ही हो गयी… जाने अनजाने ही सही लेकिन आगे मेरे साथ वह होने वाला था जो में दिल से चाहता था… मतलब रत्नेश भैया के जिस्म के करीब आना… और वो तो खुद मुझे अपने कड़क जिस्म से लिपट जाने का न्योता दे रहे थे।
वैसे उनकी हाइट मुझसे ज्यादा थी और वो काफी हट्टे-कट्टे थे इसलिए मेरा चेहरा उनकी गर्दन तक ही पहुँच रहा था और उनके करीब आ जाने से तेज हवा से मुझे निजात मिल गयी लेकिन मैंने अभी तक अपने हाथों को उनकी जैकिट में नहीं डाला था।
अचानक ही उन्होंने गाड़ी से एक हाथ छोड़कर मेरा हाथ पकड़ा और अपनी जैकिट के अंदर पेट के सामने रख दिए… और बोले- ऐसे रख ले दूसरा हाथ भी… मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी थी क्योंकि मैंने तो जैकिट की जेब में हाथ रखने का सोचा था लेकिन उन्होंने तो जैकिट के अंदर अपने पेट पर मेरे हाथ रखवा दिए थे अब उनके जिस्म और मेरे हाथ के बीच में बस एक टीशर्ट बची थी।
वास्तव में उनके जिस्म में काफी गर्मी थी मेरे ठंडे हाथ गर्म हो चुके थे… उनकी इस तरह की हरकत से मुझे किसी राजपुताना महाराजा की कमसिन महारानी होने की फीलिंग आ रही थी… और अब मैं भी अपनी शर्म और औपचारिकता छोड़कर उनके जिस्म से लिपट चुका था और अपने देसी मर्द के हॉट जिस्म की गर्मी में डूब चुका था।
मेरे दोनों हाथ उनकी जैकिट के अंदर उनके सख्त पेट पर रखे हुए थे और मैं पीछे बैठा हुआ उनके जिस्म की खुशबू को पाने की कोशिश कर रहा था लेकिन जिस्म की खुशबू मुझे नहीं आ पा रही थी क्योंकि उन्होंने लेदर जैकिट पहन रखी थी। मैं बस यूं ही उनकी चौड़ी पीठ पर अपना सर रखकर आनन्द ले रहा था।
रत्नेश भैया लगभग एक साल पहले तक गांव में कुश्ती लड़ते थे लेकिन अब उनकी कसरत थोड़ी छूट चुकी थी लेकिन अब भी उनका जिस्म बिल्कुल कड़क और हट्टा कट्टा था… क्योंकि यह उनकी बचपन की मेहनत थी… हालांकि समय मिलने पर आज भी वे कसरत कर लिया करते थे।
उनकी जैकिट से उनकी छाती लगभग 4 इंच उभरी हुई दिखाई देती थी और उस पर हल्के बाल जो कि उनकी टीशर्ट की ऊपरी खुली बटन से बाहर की और निकल आते थे। इसके अलावा उनकी जैकिट की आस्तीन में उनके हाथ की भुजायें (बाईसेप) काफी मोटी और फंसी हुई दिखाई देती थी… ऐसा लगता था मानो अभी जैकिट को फाड़कर आज़ाद हो जायेंगी।
मैं अक्सर यही सब देख करता था… और देखते ही देखते मेरे अंदर अन्तरवासना की बाढ़ सी आ जाती और मानो मैं बेकाबू सा हो जाता… रत्नेश भैया के ऐसे जिस्म से लिपटकर अब मेरे लिए काबू कर पाना मुश्किल था।
क्योंकि ठंड थी इसलिए वो चुपचाप होकर गाड़ी चला रहे थे ताकि मुंह में हवा ना घुसे। मेरे हाथ उनके पेट पर मानो बंध से गये थे… मैं ना तो उन्हें हटा सकता था और ना ही अपनी मर्जी के मुताबिक उनके कसरती गर्म जिस्म पर सहला सकता था। मेरा दिल कर रहा था कि अभी उनकी कड़क उभार वाली मज़बूत छाती पर अपनी उंगलियों से छूकर उनके मर्दाना जिस्म को अपने आगोश में भर लूं… लेकिन ऐसा तो संभव नहीं था।
अब हमें पहुँचने में लगभग 20 मिनट और लगने वाले थे और मेरे दिल में उथल पुथल मची हुई थी कि आखिर क्या किया जाए। मैंने बात निकलते हुए कहा- भैया आप तो सालों से कुश्ती लड़ा करते थे और कसरत भी करते हैं… आपका पेट सख्त तो लग रहा है लेकिन आपकी सिक्स पैक एब्स नहीं है… और सर्वेश को तो बस 5-6 महीने हुए है जिम करते हुए और उसके सिक्स पैक साफ दिखते हैं।
मेरी बात सुनकर वह थोड़ा हँसे और बोले- भाई कुश्ती और अखाड़े की कसरत में सिक्स पैक का कोई काम नहीं है… ये तो सब नकली काम होता है सिक्स पैक वगेरह… आजकल के लौंडों को बस 2-3 महीनों में थोड़ी कसरत और दवाइयों से सिक्स पैक बनवा देते हैं जिम वाले… उनमें कोई ताकत थोड़े ही होती है। जबकि अखाड़े की खिलाई और कसरत शरीर को पूरा बलवान बनाती है… छाती और भुजाओं में बल देती है… सिक्स पैक तो नकली चीज़ है… मेरा पेट सख्त है और छाती की मजबूती देख तू… खुद अपने हाथों से ही छूकर देख ले तू!
उनका इतना कहना हुआ और मानो मेरे हाथ उनकी मर्दाना छाती को छूने को आतुर हो गए… मैंने जैकिट के अंदर ही अंदर अपने हाथ उनकी कातिलाना छाती के उभार पर रख दिये और बस एक ही बार उनकी कांख(अंडर आर्म) से लेकर छाती के उभार के बीच बनी लकीर तक अपने हाथ को चला दिया जिससे उनके सेक्सी हल्के बालों वाली छाती का पूरा 4-5 इंच का उभार और सख्ती मुझे महसूस हुई।
और अब मैं सेक्स में पागल हो चुका था और मेरा लन्ड झटके मारने लगा था… मेरा लन्ड प्री कम से लथपथ हो चुका था और वीर्य बस आने को ही था. मुझे अपने आप को कंट्रोल करना बहुत ज़रूरी था… मेरी आवाज नहीं निकल रही थी लेकिन फिर भी मैंने कहा- हाँ यार भैया… बहुत सख्त है आपकी छाती तो… किसी पत्थर जैसी मज़बूत है।
इसके जवाब में वो कहने लगे- मैंने सर्वेश को भी समझाया था कि ये जिम और सिक्स पैक के चक्कर में मत पड़… लेकिन उसको तो बस फिल्में देख देख कर हीरो ही बनना है… पागल है. वे पता नहीं क्या क्या बोले जा रहे थे लेकिन अब मेरे दिमाग में तो उस उनकी मज़बूत छाती की कड़क छुअन का अनुभव ही चल रहा था… मुझे आगे की उनकी कोई बात मानो ध्यान ही नहीं थी।
अगले 5 मिनट में हम पहुँचने वाले थे और लन्ड को शांत करना ज़रूरी था… अब मैं थोड़ा पीछे हटा और अपने हाथ यह कहते हुए बाहर निकल लिए कि ‘पहुँचने वाले हिं अब तो हम लोग…’ पीछे हटकर मैंने अपना एक हाथ रत्नेश भैया की मोटी भुजा पर रख दिया और दूसरे हाथ से अपनी लोवर की चेन खोली और अपना हाथ अंदर डालकर लन्ड को 4-5 झटके दिए… इतने में ही रत्नेश भैया के लन्ड की प्यास में फड़फड़ाते हुए मेरे लन्ड से ढेर सारा माल निकल पड़ा.
मैंने अपनी नाक उनके बालों में लगा दी और उनके बालों की खुशबू को अपने में समा लिया और कड़क भुजा को महसूस करते हुए आनन्द लिया।
हालांकि मुठ मारने से मुझे थोड़ी शांति तो मिली थी लेकिन अभी भी दिल की तड़प जारी थी और इसका समाधान सिर्फ और सिर्फ रत्नेश भैया का दानवी लन्ड ही हो सकता था जिसे पाना मेरे लिए शेर के मुँह से खाना छीनने जितना कठिन था।
रत्नेश भैया ने मुझे अपने फ्लैट के सामने छोड़ दिया क्योंकि शाम हो चुकी थी ऊपर से मैं अब मुठ मारकर थक चुका था… सेक्सी देसी मर्द को छूकर मेरा ढेर सारा माल निकल चुका था जिससे अब थोड़ी कमजोरी, भूख, ठंड और नींद मुझे सताने लगी थी, इसीलिए मुझे जल्दी ही नींद आ गयी।
सुबह जल्दी ही मेरी नींद खुल गयी और कड़ाके की ठंड में लन्ड फिर खड़ा हो गया और रत्नेश भैया के राजपूताना जिस्म और मस्त लन्ड की भूख मुझे फिर से सताने लगी, मुझे रह रह कर आंखों के सामने बस उनकी 4 इंच उभरी सख्त छाती और उनका चोदू अंदाज़ दिखाई दे रहा था।
जैसे शेर यदि खून का स्वाद चख ले तो वह खाकर ही मानता है कुछ वैसा ही आज मेरे साथ हो रहा था, मेरे दिमाग पर रत्नेश भैया का लन्ड ही छाया हुआ था। मैं थोड़ा गुमसुम कुछ सोचता और खोया हुआ सा हो गया था और भैया भाभी को भी ऐसा लगने लगा था कि मुझे क्या हो गया है।
एक दो दिन में मुझे वापस लौटना था और इसीलिए चिंता थोड़ी बढ़ चुकी थी। अब मैं यह सोच रहा था कि मुझे रत्नेश भैया के लफड़े में पड़ना ही नहीं था, बड़ा परेशान हो रहा हूँ अब। लेकिन दिल कहाँ मानने वाला था अब… अब तो बस दिल तड़प रहा था किसी न किसी तरह महाराजा रत्नेश के जुझारू लन्ड के स्वाद को चखने के लिये। लेकिन हर चीज़ की कोई कीमत होती है।
अन्तरवासना पर कहानी के अगले भाग में आप जानेंगे कि आखिर कैसे मैंने रतनेश भैया के लन्ड का स्वाद चखा और इसके लिए मुझे क्या कीमत चुकानी पड़ी।
अपनी प्रतिक्रियाएँ मुझे इस मेल आई डी पर ज़रूर दें, आपका प्यार ही मेरी प्रेरणा है। [email protected]
कहानी का अगला भाग: गे सेक्स कहानी: दूध वाला राजकुमार-3
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