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मेरा नाम सारिका है, मैं एक हाउसवाइफ हूँ, मेरी उम्र 45 साल है, मेरे हबी मेरे से काफी बड़े हैं. उनकी मुझसे दूसरी शादी हुई है. हम सब अच्छे घर से हैं.
ये कहानी मेरी और मेरे सौतेले बेटे के बीच हुए सेक्स सम्बन्ध की है.. बेटे का नाम वरुण है. उसकी उम्र करीब 21 साल की है. मैं साढ़े पांच फुट ऊंची हूँ और मेरी फिगर 36-28-42 की है. मैं 34D साइज़ की ब्रा पहनती हूँ.
वरुण मेरे से थोड़ा ऊँचा है, वो 5 फुट 10 इंच का एक मजबूत कद काठी वाला मर्द जैसा लगने लगा है. मुझे उसमें एक आकर्षण सा दिखता था. चूंकि पति से कुछ होता जाता नहीं था, इसलिए मेरी निगाह वरुण पर ही टिकी थीं. वरुण भी मुझे लालसा भरी निगाहों से देखता था. मैं उससे काफी खुली हुई थी.
वो हमेशा घर पे ही रहता था, किसी कोर्स के लिए उसे नागपुर जाना था. हमारे पास अच्छा खासा पैसा है, इसलिए हमने सोचा ऐसे वहां बजाए एक कमरे के एक छोटा सा फ्लैट ही रेंट पे ले लिया जाए. वरुण उस फ्लैट में रहने लगेगा, एक साल की ही तो बात है. वो इधर अपनी पढ़ाई भी अच्छी तरह से कर सकेगा.
हम वहां चले गए.
मैंने उससे बोला- मैं शनिवार और रविवार को तुझसे मिलने आया करूँगी, तेरा खाने पीने का सामान रख जाया करूँगी. एक लड़का भी यहीं रहेगा, जो तेरे लिए बाकी पांच दिन घर में ही खाना बना के रखेगा और मैं शनिवार रविवार को तेरे लिए बनाऊंगी. वरुण ने कहा- ठीक है.
असल में मैं नहीं चाहती थी कि वो मुझसे ज्यादा दूर रहे और मैंने इस तरह नागपुर जाना चालू किया. वैसे भी वरुण के पापा यानि मेरे मिस्टर बिजनेस में व्यस्त होते हैं. तो उनसे मुझे जाने के लिए परमीशन मिल गई थी.
वहां तो बहुत ही गर्मी थी, इसलिए हमने एक छोटा कूलर भी ले लिया था. हालांकि उसका कोई इतना फायदा नहीं होता था.
मैं जब वहां जाती तो पहनने ओढ़ने के लिहाज से फ्री ही रहती थी. इधर घर में जब अकेली होती तो पेटीकोट और ब्लाउज में ही बनी रहती या फिर कभी कभी गाउन के अन्दर कुछ भी नहीं पहनती थी.
हम दोनों माँ बेटे में पहले से ही काफी खुलापन था. हमारी फ्रेंडशिप सी हो गई थी, इसलिए उसे भी मेरा आना जाना अच्छा लगने लगा. हम घूमने फिरने भी जाते, शॉपिंग भी करते, मूवी भी देखते. मैं जब घर में होती थी, तो वो कहीं नहीं जाता, मेरे ही पास बना रहता.
अब हम दोनों में इतना खुलापन हो गया था, बिल्कुल गर्लफ्रेंड ब्वॉयफ्रेंड जैसी फ्रेंडशिप हो गई थी. मैं उसके सामने भी साड़ी बदल लेती थी, या और भी कपड़े बदल लेती थी.
मैं जब भी घर पर खाना बनाती हूँ.. तो वो किसी ना किसी बहाने से किचन में आ जाता था और मुझे टच करने की कोशिश करता रहता था. हमारा किचन छोटा सा था मतलब एक गलियारे की तरह का ही है.
एक शनिवार की दोपहर मैंने कहा- वरुण बेटे, यहां आज कितनी गर्मी है, सोचती हूँ कि नहा लूँ.
वरुण बाहर गद्दी पर ही था, फ्लैट छोटा था, वन रूम और किचन वाला सैट था. चूंकि एक ही साल के लिए जरूरत थी इसलिए बड़ा नहीं लिया था. इधर बेड नहीं था, हम गद्दी जमीन पर ही बिछा लेते थे.. और उस पर ही सो जाते थे.
वरुण- ठीक है माँ.. आप नहा लो.
मैं गुनगुनाते हुए बाथरूम में चली गई. उस वक्त करीब ढाई बजे होंगे. नहाते समय मैंने सोचा कि वैसे भी मैं वरुण के सामने कपड़े बदल लेती हूँ तो क्यों नहीं आज टॉवेल पहन कर ही बाहर आ जाती हूँ. मैंने दो टॉवेल लिए, शॉवर के बाद एक टॉवेल से बदन पोंछा. मेरे बाल थोड़े गीले ही थे. मैंने दूसरे पतले से टॉवेल से अपने बदन को लपेटा और बाहर आ गई.
अब मैं जानबूझ कर वरुण के सामने आ गई थी.. और बाल पोंछ रही थी. मेरे उरोज अब उस टॉवल के वजह से तने हुए दिख रहे थे. जिस वजह से वरुण मेरी तरफ वासना भरी नजरों से देख रहा था. ये मैंने जान लिया.
तभी वरुण गद्दी से उठा और मेरी तरफ आकर उसने मुझे कस के पकड़ लिया. मैं- आउच.. वरुण बेटा, क्या कर रहे हो? क्या हुआ तुम्हें, छोड़ो मुझे..!
वरुण ने मुझे ऐसे पकड़ा कि मेरे मुँह में अपना मुँह डाल कर किस सा किया. मैं- क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे.. वरुण- नहीं मॉम, प्लीज़ थोड़ी देर.. मैं- ऐसा नहीं करते बेटा.. छोड़ो बेटा, मुझे मैं तेरी माँ हूँ. वरुण- नहीं, नहीं छोडूँगा.. प्लीज़ थोड़ी देर करने दो, मुझे मत रोको.
उसी वक्त मेरा टॉवेल खुल कर नीचे गिर या और वरुण ने अपनी शॉर्ट और अंडरवीयर कब निकाल दिया, वो मुझे पता ही नहीं चला.
अब मुझे भी थोड़ा मजा आ रहा था. मैं भी कब उसके आगोश में आ गई, वो भी नहीं समझा. वह खड़े खड़े ही अपना लंड मेरी बुर में घुसाने की कोशिश करने लगा. मेरी चुत की चुदास भड़क उठी और मैंने टांगें खोल दीं. मेरी चूत ने वरुण के लंड को लीलने की चाहत दिखा दी थी, मेरी चुत पानी छोड़ने लगी थी.
मैंने चूत का मुँह खोलते हुए लंड को अन्दर ले लिया. उसके बड़े और मोटे लंड के सुपारे के घुसते ही मेरे मुँह से कराह निकल गई- आउच.. वो मेरे उरोज दबाने लगा.. मेरी चुचियों के साथ खेलने लगा, उनको चूसने लगा, काटने लगा.
मैं- नहीं बेटे.. लगती है इतना जोर से मत काटो.. नहीं तो मेरी चुचियों पर निशान बन जाएंगे. वरुण- उम्माह.. क्या मस्त चूचे है तेरे मॉम.. आह… मोटे मोटे… आई लव यू.. मैं- ओह्ह नहीं.. दर्द होता है… धीरे धीरे करो ना!
अब वो मुझे खड़े खड़े ही लंड पेल कर चोदने लगा. वो अपना लंबा मोटा लंड मेरी बुर में घुसाने लगा. मेरा टॉवेल पूरी तरह हट गई थी, मैं पूरी नंगी हो चुकी थी अपने बेटे के सामने… वो मुझे खड़े खड़े ही चोद रहा था. तभी वरुण बोला- चलो मॉम, बाथरूम में चलते हैं.
वह अपना लंड मेरी बुर से बिना निकाले मुझे बाथरूम में ले गया. अब वो नीचे से जोर से अपना लंड हिला हिला कर मुझे चोदने लगा, शॉवर भी चालू कर दिया. हम दोनों नंगे नहाते हुए चुदाई का खेल खेल रहे थे. उसके मोटे लंड से मुझे बहुत ही दर्द हो रहा था लेकिन मजा भी आ रहा था.
मैंने दोनों हाथ ऊपर कर लिए और शॉवर का रॉड पकड़ लिया, वो नीचे से लंड के फटके दे रहा था. तभी उसका ध्यान बाथरूम के छोटे स्टूल पे गया. उसने बाथरूम का स्टूल लिया, मेरा एक पैर स्टूल पे रखा इससे मेरी चूत का दरवाजा थोड़ा खुल गया. और मेरा बेटा फिर से मुझे यानी अपनी मॉम को चोदने में चालू हो गया.
कुछ मिनट जबरदस्त चुदाई के बाद उसने मुझे जोर से पकड़ा और रुक गया, वो अब झड़ने लगा था, मैं भी अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर ठंडी हो गई. मेरे बेटे के लंड का पानी उसकी मॉम की चूत में घुसने लगा. उसने अपने लंड के पानी से मेरी पूरी चूत को भर दिया.
हम दोनों काफी समय तक वैसे ही पानी में भीगते रहे, फिर अलग हो गए. वो बाहर चला गया और मैं फिर नहाते हुए उसके लंड को लेकर सोचने लगी. शाम को 6 बजे मेरे बेटे ने कहा- चलो, बाहर घूमने चलते हैं.
हम घूमने चले गए. हम दोनों ने शॉपिंग की, मूवी देखी, खाना खाया और देर रात करीब सवा बारह पर घर वापस आए. इस दौरान हम में सेक्स को लेकर कुछ भी बातचीत नहीं हुई.
हम घर आ गए, कमरा बहुत गरम हो रहा था. मैं बाथरूम में गई और शॉवर ले लिया. मेरे नहाने के बाद वरुण भी शॉवर लेने घुस गया.
मैं बाहर के रूम में आकर गद्दी पर लेट गई. वरुण भी नहा कर आया. वो टॉवेल में ही था. सब जगह की लाईट ऑफ थी, सिर्फ किचन की लाईट ऑन रखी थी. उसने मुझे देखा, मैंने भी उसे देखा, उसका ध्यान बाजू में गया और वो समझ गया. मैंने मेरा टॉवेल बाजू में रखा था.. और मैंने मेरे ऊपर चादर ले ली थी.
वो समझ गया कि मैं चादर के अन्दर नंगी हूँ. उसने मेरे सामने ही उसका टॉवेल निकाला और पूरा नंगा खड़ा हो गया. उसका लंबा मोटा लंड मेरे सामने झूल रहा था. बेटे का लंड देख कर मेरी आँखों में चमक आ गई. उसने किचन की लाईट को ऑफ किया और मेरी चादर में आ गया.
अब रूम में अंधेरा था. क्या हो रहा था कुछ मालूम नहीं पड़ रहा था. बस महसूस हो रहा था. उसने अपनी मॉम की चुत में अपनी उंगली को डालना चालू किया. अंधेरा था सो कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था. वो अपनी मॉम की चूत की फिंगर फकिंग कर रहा था और मैं भी बेफिक्र हो कर इस का मजा लेने लगी. अँधेरे के कारण कोई झिझक नहीं हो रही थी.
थोड़ी देर के बाद उसने मुझे उलटा लिटा दिया. अब मेरे उठे हुए चूतड़ों के बीच मेरी कोमल गांड उसकी तरफा हो गई थी. उसने मेरे पेट के नीचे तकिया रखा. मैंने सोचा शायद उसको मुझे पीछे से चोदने का मन है.
तभी उसने मेरी गांड के होल पर थूका और अपनी उंगली डाल के मेरी गांड को चिपचिपा कर दिया. मैं कुछ समझ पाती, तब तक उसने अपने लंड का सुपारा मेरी गांड के छेद पर रखा और जोर का झटका लगा दिया. उसने अपना लंड मेरी गांड में एक ही झटके में आधा घुसेड़ दिया और जानवरों के जैसे चोदना चालू कर दिया.
इसी के साथ उसने एक हाथ की उंगली को मेरी चुत में घुसेड़ा और मुझे अपनी तरफ करके मेरे मुँह में अपना मुँह डाल दिया ताकि मैं चीख न सकूं. अब वो अपने लंड से मेरी गांड मार रहा था. उसके मुँह बंद कर देने से मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी.
हालांकि मैं शादी से पहले गांड मराने का सुख ले चुकी हूँ इसलिए मेरी गांड खुली हुई थी. पर वरुण का लंड बहुत मोटा था. उसके लंड ने मेरी गांड में हाहाकार मचा दिया था.
लगभग 15 मिनट तक वो मेरी गांड मारता रहा था. वो 15 मिनट मेरे लिए खतरनाक भी थे और मजे के भी थे. इसके बाद उसने अपने मूसल लंड का पूरा पानी मेरी गांड में छोड़ दिया. इधर मेरी चूत में उसकी उंगली ने भी कमाल दिखाया था, मेरी चूत भी झड़ गई थी.
रात को उसने मेरी 3 बार गांड मारी. जब और सुबह जब मैं उठी तो मेरी हालत खराब हो रही थी, इस चुदाई के कारण मैं दोपहर तक दिक्कत में रही.
फिर उसने मुझे शाम को स्टेशन पे ड्रॉप किया. स्टेशन छोड़ने के पहले भी उसने मेरी बुर को एक बार हचक कर चोद दिया था.
अब मैं हमेशा शनिवार का इन्तजार करती हूँ कि कब उसके पास जाऊं और चूत व गांड की चुदाई करवाऊं. लेकिन मैं जब भी जाती तो सबसे पहले अपनी गांड ही चुदवाती थी क्योंकि गांड मराने का मजा अलग ही आता है.
लेखक के आग्रह पर इमले आईडी नहीं दिया गया है.
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