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हम लोगों ने राँची की एक नई हाउसिंग कॉलोनी में शिफ्ट किया है. हमारी परिवार कुल जमा 16 सदस्यों का है. रविवार के दिन हम अभी लोग इकट्ठा होते, जिसमें औरतों की किटी पार्टी बच्चों का खेल कूद मनोरंजन प्रोग्राम आदि होता. हम लोगों का चाय वगैरह के साथ नीतिगत निर्णय होते. उसी में हाउसिंग सोसाइटी का निर्माण हुआ तथा अध्यक्ष कोषाध्यक्ष आदि का चयन सर्वसम्मति से हुआ. एक मत से यह भी निर्णय हुआ कि अपनी सोसाइटी में सीसीटीवी भी लगवा लिया जाए. जिसे लगवाने का जिम्मा मेरे कंधे पर आ गया.
सीसीटीवी लग जाने के दो साल के बाद ढेर सारी बैकअप की सीडी इकट्ठा हो गई थीं. रविवारीय बैठक में निर्णय लिया गया कि उन सीडी को नष्ट कर दिया जाए, पर एक बार उन्हें देख लिया जाए.
जब मैं उन सीडी को देख रहा था तो उसमें से कुछ आश्चर्यजनक सीन देखने में आए. उसमें से तीन सीडी के कुछ अंशों का मैंने क्लोन बनाया तथा उन्हें अलग कर रख लिया.
हमारे सोसाइटी में सुनयना भाभी रहती हैं, उन्हें मैंने वह सीडी को पकड़ाते हुए कहा कि भाभी एक बार आप इन सभी सीडी को देख लेतीं.
सुनयना भाभी हम लोगों की सोसायटी की सबसे खास लेडी हैं, जो सबकी सहायता के लिए 24 घंटे 7 दिन तैयार रहती थीं. इसलिए सभी उनको इज्जत करते थे. वे सुदंर थीं, हँसमुख थीं उनकी 30-32 साल की थी, पर उम्र से कम दिखती थी. उनकी अच्छाई सबके लिए मिसाल थी. इस वजह से उनकी तरफ कोई बुरी नजर से देखता भी नहीं था. जबकि कई भाभियों पर कई चांस मारने से चूकते नहीं थे.
उनके नजर में सवाल था, जैसे पूछ रही हों कि मैं क्यों? मैंने कहा- भाभी, एक बार देख लें तब सवाल पूछियेगा.
करीब दो सप्ताह बाद भाभी आईं, उनका चेहरा उतरा हुआ था. भाभी ने पूछा- और किसने ये सीडी देखी है और क्या चाहते हो? ब्लैक मेल करना चाह रहे हो? मैंने कहा- भाभी, आप इस सोसाइटी की सबसे नेक औरत हो, किसी की तकलीफ में सबसे पहले आप आती हैं, इसलिए उसे तो आप अपने दिमाग से निकाल लें. मैंने अब तक किसी को यह सीडी नहीं दिखाई है, बस आपके मुँह से सुनना चाहता था कि राज क्या है, क्या कारण रहा होगा, जो आप कमजोर पड़ गईं. आपका यह रूप देख कर मजा आ गया.
भाभी धीरे धीरे खुल रही थीं. कहने लगीं- कौन देवी बनना चाहता है, हम भी मनुष्य है, सेक्स की इच्छा हमें भी होती है. “जी भाभी.” फिर हँसते हुए बोलीं- क्यों मौके पर चौका मारना चाह रहे हो? “नहीं भाभी, इस तरह के ख्याल आपके बारे में तो सपने में भी कोई नहीं सोच सकता है. भाभी अगर आप नंगी भी सामने खड़ी हो जाएंगी तो हम तो दो बार सोचेंगे कि आपको ढकना है या आपको चोदना है.”
मेरे खुले शब्दों पर भाभी हँस दीं, फिर गहरी सांस लेने के बाद बोलीं- अगर न बताऊँ तो? मैंने कहा- भाभी जैसा आपको अच्छा लगे, मैं तो पहले ही कह चुका कि इस बारे में किसी को कुछ नहीं कहूँगा. पर जानने की इच्छा थी. भाभी- चलो कहती हूँ वरना कलेजे पर बोझ बना रहेगा. बहुत दिनों से किसी से शेयर करने की इच्छा थी, चलिए आप ही सही.
मैं मुस्करा दिया और उन्होंने बताना शुरू कर दिया- आप जानते हैं हनुमंत सिन्हा तथा बलवंत सिन्हा दोनों भाई एक साथ रहते हैं. बड़े भाई की शादी सुनिधि भाभी से हुई है. वही सुनिधि, जिस पर आप सभी मर्द की लार टपकती रहती है. गजब का फिगर है सुनिधि भाभी का.. न एकदम गोरी न काली, पर आँखों से सेक्स टपकता था या यों कहें सेक्सी आँखें थीं. चूचियाँ एकदम से इतनी उन्नत थीं कि ब्रा को फाड़कर चूचियाँ निकल आएंगी. पीछे से चूतड़ भी गजब ढाते थे. मतलब वह चलती फिरती सेक्स बम थीं. जिस समय शादी हुई, भाई साहब 35 वर्ष के और भाभी मात्र 21 वर्ष की थीं. शुरूआत के कुछ वर्ष ठीक ठाक रहा, परंतु काम के सिलसिले में भाई साहब बाहर रहते थे तथा उम्र के प्रभाव के कारण, जब भाई साहब 50 के और भाभी 35-36 साल की हुईं तो प्रॉब्लम वहीं से शुरू हुई. उम्र के इस पड़ाव पर भाभी करीब करीब हर रात चुदना चाहती थीं, पर भाई साहब चोदने से भागने लगे थे. उन दोनों में चुदाई बहुत दिन बीत जाने के बाद भी नहीं के बराबर होती थी.
मैं भाभी के मुँह से चुदाई शब्द सुन कर घबड़ा गया, पर देखा कि भाभी पूरी तन्मयता से अपनी कहानी कह रही थीं- सुनिधि भाभी जवान थीं. उन्हें कोई जवान साथी की तलाश थी, तो ऐसे में घर में मौजूद बलवंत सिन्हा से बेहतर कौन हो सकता था. एक रात सुनिधि भाभी सारे बंधनों के तोड़ते हुए बलवंत जी की हो गईं. मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा- भाभी थोड़ा विस्तार से बताओ न.. क्यों केएलपीडी कर रही हैं और ये कहानी आपको कैसे मालूम है? भाभी बोली- कहाँ ठंडा पानी डाल रही हूँ थोड़ा धीरज रखो, अधीर मत बनो. सब बता रही हूँ. ये कहानी स्वयं सुनिधि भाभी ने जब बताई थी, एक बार जब मैंने उन्हें रंगे हाथ पकड़ लिया था. “कैसे भाभी?” “एक दोपहर को मैं नीचे भाभी के फ्लैट में गई तो दरवाजा खुला हुआ था. अन्दर गई तो मादक स्वरलहरी हवा में तैर रही थी. चुपके से देखा तो दंग रह गई. भाभी अपने देवर के साथ नंग धड़ंग पलंग पर रासलीला रचा रही थीं. भाभी के पैर दरवाजे की तरफ थे इसलिए मुझे तो देख नहीं सकी, पर उनकी मस्त मखमली चूत और गांड का छेद साफ दिख रहा था.
मुझे चैन आ गया कि भाभी लंड चूत का प्रयोग करने लगी थीं- देवर जी भाभी की चूची पी रहे थे और पीते हुए चपर चपर की आवाज भी निकाल रहे थे. भाभी उनका लंड सहला रही थीं. देवर अपनी उंगली से उनकी चूत भी सहला रहे थे. थोड़ी ही देर में भाभी की चूत चमकने लगी थी. चूत रस पिघल पिघल कर चूत के चारों तरफ फैल कर चूत को तैयार कर रहा था.
देवर जी ने थोड़ा और नीचे आकर जीभ से चूत को सहलाना चालू कर दिया. भाभी की “सी सी..” की आवाज तेज होने लगी. चूत चाटने से अलग सी आवाज गूँज रही थी. भाभी की चूत तो पहले से चपचपाई हुई थी, तो हर बार जीभ के लय के साथ चप चप की ध्वनि आ रही थी. भाभी की “आँ-उँनं..” की सीत्कार माहौल को और मादक बना रही थी. देवर जी पूरे जोश में आ चुके थे और उन्होंने अपने लौड़े को चूत के निशाने पर लेते हुए धक्का लगा दिया. फचाक के साथ लंड चूत के अन्दर घुस गया था. अब कभी भाभी अपने दोनों पैर हवा में उठा लेतीं, तो कभी पैर नीचे करके चूतड़ उठा उठा कर लंड को निगल रही थीं. कुछ देर में भाभी अपने देवर की कमर पकड़ कर अपनी चूत पर और तेज धक्का देने में मदद करने लगीं, साथ ही उनकी देह अकड़ने लगी, तो मैं समझ गई कि वो अब निकलने वाली हैं.
मैं भाभी के मुंह से चुदाई की सीधी ब्लू फिल्म का आडियो टेप सुन कर लंड सहलाने लगा था.
भाभी आगे बता रही थीं:
उन दोनों को देख मेरे दिल की धड़कन बढ़ रही थी, तथा दिख जाने के डर से मैं उन दोनों को कामलीला के मध्य में छोड़ कर बाहर आ गई और बाहर से दरवाजे पर कुंडी लगा कर ऊपर चली गई. जैसी आशा थी, थोड़ी देर में भाभी का फोन आया कि किसी ने बाहर से कुंडी लगा दी है. मैंने कहा कि आती हूँ. मैंने नीचे आकर दरवाजा खोला, तब तक देवर जी अपनी दुकान जाने के लिए तैयार हो गए थे. दरवाजा खुलते ही वे निकल गए. मैं वहीं बैठ कर भाभी को कुरेदने लगी, मैं उनसे अनजान बन पूछने लगी कि क्या भाभी कोई बाहर से कुंडी लगा कर चला गया और आपको पता भी नहीं चला, किस काम में इतनी व्यस्त थीं. वह सकुचाईं, पर कुछ भी बोलने से कतरा रही थीं. अंत में मुझे ही खुल कर कहना पड़ा कि भाभी बाहर से कुंडी को मैंने ही बंद किया था. मैं किसी को कुछ नहीं कहूँगी, इसमें बुरा क्या है, तलब लगी तो जो सामने था, उससे शांत करवा ली. घर की बात घर में खत्म. भाभी समझ गईं कि मैं उन दोनों की सब रासलीला देख चुकी हूँ.
वे मुस्कुराईं और कहने लगीं- आप सब देख चुकी हैं तो आपसे क्या छुपाना, वैसे भी किसी को मैं अपना राजदार बनाना चाह रही थी. तब मैं शायद 20-21 वर्ष की थी, जब मेरी शादी आपके भैया से हुई थी. उस समय वे 35-36 वर्ष के थे. शुरू में उन्हें रात में सुबह, मैं बिस्तर छोड़ने से पहले बोनस चाहिए होता था, अगर दोपहर में ऑफिस से आ जाते तो उस समय की भी बोनस चुदाई.. मतलब जब रात के अलावा जब भी मौका मिलता तब चुदाई कर लेते थे. घर का ऐसा कौन सी दीवार बची थी, जिसके सहारे खड़ा कर मुझे चोदा न गया हो. आपके भैया ने मुझे तो अच्छी खासी चुदक्कड़ बना दिया था. कुछ वर्ष तो ठीक ठाक चला, पर जब मैं 35-36 वर्ष की हुई तो वो 50-51 साल के हो गए थे. लोचा यहीं से शुरू हुआ. पहले तो मुझे चुदक्कड़ बना दिया गया, पर अब जब भी मेरी बुर को चुदाई की दरकार होती तो वो कोई न कोई बहाना बनाने लगते और दूसरी तरफ पलट कर सो जाते. कभी कभी उंगली से चूत को खोदते खोदते खर्राटा मारने लगते थे, कभी हिम्मत करके चढ़ाई करते भी तो जब तक मेरा चूत रस छोड़ कर ताव में आती, तब तक वे मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य गिरा कर निढाल हो जाते और पलट कर सो जाते. मैं रात भर चूत खोद खोद कर पागल होती रहती. मेरे दिमाग का नस फटती रहती थी.
मेरे छोटे देवर गबरू जवान हो गए थे. मैं धीरे धीरे उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने लगी. जान बूझ कर कभी मैं अपनी चूचियों का सिनेमा दिखा देती, तो कभी चूत की एक झलक दे देती. कई दिनों तक इसी तरह चलता रहा, वो भी मेरे तरफ आकर्षित हो रहे थे. अब तो वे मुझसे जानबूझ कर एडल्ट सवाल पूछते.
एक रात जब मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गई थी, तो मैंने सोची कि एक बार ट्राय करने में क्या है, सो सारी शर्म हया को छोड़ अपने देवर के कमरे में चली गई. बच्चे लोग अपने अपने कमरे में सो रहे थे. उस दिन भगवान भी मेरा साथ दे रहे थे. देवर जी का कमरा खुला हुआ था. मैं झीनी नाइटी पहनी हुई थी. जिसके अन्दर से सब कुछ दिख रहा था.
देवर के कमरे में जाकर नाइट लैंप जला दी. देवर की आंख पर लाइट पड़ते ही अकचका कर उठ गए. मुझ पर नजर पड़ते ही उनका मुँह खुला का खुला रह गया. वह धीरे से बोले- भाभी आप बहुत सुन्दर हो.. भगवान ने तुम्हें फुरसत में बनाया है.
ये कहते कहते खड़े हो गए और एक गरमा गरम चुम्मा मेरे अधरों पर रख दिया. मैं ऊपर से गुस्सा होते हुए कहने लगी कि ये क्या कर रहे हैं, पर शरीर दिमाग का साथ नहीं दे रहा था. उनकी कमर पर हाथ रखकर उन्हें अपनी ओर खींच रही थी. देवर ने सॉरी भाभी कहते हुए पूछा कि आप रात में मेरे रूम में क्यों आई और मेरी कमर से हाथ हटाओ भी भाभी. मेरा लंड खड़ा हो रहा है, जल्दी हटाओ नहीं तो कसम से चोद दूँगा, बाद में कहना मत.
मैं बोली कि आई थी फर्स्ट एड बॉक्स लेने.. पर अब कम्पलीट इलाज करवा कर जाऊंगी. ये कहते हुए मैंने उनका होंठ काट खाया. अप्रत्याशित आक्रमण के कारण वो मुझे लिए दिए पलंग पर गिर गए. वो नीचे थे और मैं उनके ऊपर. देवर जी ने मुझे पटक कर नीचे कर दिया और कूद कर ऊपर चढ़ गए. मेरी नाइटी को तो एक तरह से नोंच कर जिस्म से अलग ही कर दिया.
मैंने कहा- अरे बाबा मैं भागी नहीं जा रही हूँ.
पर वो कहाँ सुनने वाले थे, एक बांध टूट चुका था. देवर बोले कि भाभी चोदना तो आपको कब से चाहता था, पर डरता था. उनका प्यार मेरे रोम रोम को भिगो रहा था. वो कभी मेरे मस्तक पर चुम्मी लेते तो कभी गालों पर. उनके होंठों ने मेरे शरीर को कहाँ कहाँ नहीं छुआ था. पलट कर मेरे पीठ पर, चूतड़ पर, फिर मुझे पलट देते, कभी मेरी चूची को चूसते तो कभी चूची का आटा गूंथते.. हाथों को उठा कर मेरी बगलों को चाट कर गीला कर देते.. फिर उचक कर नाभि के चारों तरफ जीभ चुभलाने लगते.
मैं तो पहले से चुदासी थी. वो मुझे अपने लंड के लिए तड़पाते रहे. इस बार उन्होंने मेरी बुर को छोड़ते हुए मेरी एड़ी से चूमना शुरू कर दिया. मैं तो ऐंठ कर रह गई थी, मेरी चूत से पानी की धार निकल रही थी. उनकी जीभ जैसे ही मेरे चूत पर आई, मैं झड़ने लगी. इतने दिनों का सब्र का बांध टूट पड़ा, मैं भलभला कर झड़ गई और पूरी तरह से उनके मुँह को चूतरस से भर दिया. वो पूरा का पूरा रस गटक गए.
“अरे भाभी ये क्या? मैं तो अधूरा ही रह गया!” “अरे कोई बात नहीं आप कन्टीन्यू रखिए अभी केवल तन भरा है, मन नहीं.”
वे फिर से दोगुने उत्साह से वो मेरे बदन पर टूट पड़े थे. अब चूँकि एक बार स्खलित हो चुकी थी तो वर्षों की प्यास कम हो चुकी थी, पर पूर्ण शांति नहीं हुई थी.
मैंने फिर से उनका साथ देना शुरू कर दिया. इस बार उनकी गंजी जंघिया उतरवा दी. वो मेरे मम्मों के साथ खेल रहे थे और मैं उनके लंड के साथ मचल रही थी. एकदम से सोंटा हुआ लंड था. हम दोनों अपनी पोजीशन बदलते हुए 69 में हो गए. देवर जी मेरी चूत को फिर से चूसने लगे और मैं उनके लंड के ढक्कन को नीचे कर सुपारा का दीदार करने लगी. उसी के साथ एक तेज गंध मेरे नाक में घुसी, जिसने मेरी कामोत्तेजना को और बढ़ा दिया. सुपाड़े पर जमे हुए उजली मलाई जैसे पदार्थ को लार और हाथ से साफ करके लंड चूसने लगी.
देवर जी अब कामोत्तेजना से भर गए थे. उनके लंड का सुपारा रक्त के दवाब के कारण सुर्ख लाल हो गया. अब वो चुदाई का मजा लेना चाहते थे, सो वो मेरे टाँगों के बीच में आकर अपने लौड़े से बुर की फांक को चौड़ा कर रगड़ने लगे. चूत से पिघला गर्म लावा, फिर से निकलने लगा. पहला धक्का और लंड बुरी तरीके से कांपते हुए छेद के बाहर छिटक गया.
फिर मैंने उनके लंड को पकड़ कर अपनी चूत छेद के बाहर टिकाया और दोनों पैर को फंसाते हुए चूतड़ उठाते हुए जोर से धक्का लगा दिया. देवर जी के लंड ने सरसराते हुए योनिद्वार को फाड़ कर अन्दर तक भेद दिया. मेरी वर्षों की प्यास बुझ रही थी.
देवर जी के लंड के हर स्ट्रोक के साथ “हूँ हूँ चट् चट्..” की ध्वनि तथा मेरी मादक सीत्कारें कमरे में गूँज रही थीं.
अंततः देवर जी ने मेरे कंधों को जोर से पकड़ कर अंतिम शॉट मारे और एक गरम फव्वारा मेरी चूत में समा गया, प्रत्युत्तर में मेरी चूत भी रस छोड़ने लगी. देवर जी मेरी एक चूची को मुँह में लिए मेरे ऊपर ही लुड़क गए.
दो पल बाद मुझे चूमते हुए बोले- मजा आ गया भाभी आप मेरे लिए पहली थीं.. अब से मैं आपका दास हो गया हूँ.
मैंने उनको अपनी बांहों में जकड़ लिया और हम दोनों यूं ही चिपक कर सो से गए.
घंटे भर बाद मैं वहाँ से उठ कर पति के बगल में आकर सो गई. हम दोनों के प्रेम काम का आलम यह हो गया था कि जब भी मौका मिलता, तब चौका लगने लगा था.
देवर भाभी की चुदाई की कहानी जारी रहेगी. [email protected]
कहानी का अगला भाग: देवर भाभी की कामवासना और चुत चुदाई-2
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