सम्भोग से आत्मदर्शन-14

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अब तक आपने पढ़ा कि मैंने छोटी के इलाज के लिए आंटी को सम्भोग के लिए मनाने के क्या-क्या कहा… अगर हाँ या नहीं जो कहना हो आप खुद ही कहना, पर आज के बाद मैं आपको इस विषय में दुबारा कुछ नहीं कहूंगा। इतना कहकर मैं थोड़े दिखावे वाले गुस्से में लाल पीला होकर लौट आया।

मैं वापस आकर उस पल की बातों को सोचने लगा, तब मैंने पाया कि आंटी मेरी आँखों को बहुत ध्यान से देख रही थी, पर वो क्या सोच रही थी इसका अनुमान लगाना बहुत कठिन है। पर हाँ.. उनके दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी, और सीने में ज्वार भांटे सा उफान महसूस हुआ था, उन्होंने भी मेरे शरीर का गर्म अहसास पहली बार नहीं किया था पर पहले के हालात और अब के हालात में फर्क था शायद इसलिए उन्होंने अलग ही अहसास किया होगा. और उनके गदराये शरीर को छूने का या इस तरह अहसास करने का मेरा भी पहला ही अवसर था, क्योंकि पहले जब मैंने उनके कंधे पकड़े थे तब मैं थोड़ा दूर खड़ा था पर इस बार मैंने उनको खुद से लगभग चिपका ही लिया था।

मेरे सवालों का जवाब वो खुद देती या नहीं मुझे नहीं पता, पर मैं खुद को उसके पास जाने से और जवाब जानने से रोक नहीं पाया।

दूसरे दिन मैं जब उनके यहाँ पहुँचा वो कपड़े धो रही थी, शायद वो इस काम को बहुत देर से कर रही थी तभी तो कपड़े धो कर सुखाने की बारी आ गई थी। उसके बाल ऊपर बंधे थे, जिसे औरतें जूड़ा भी कहती हैं, कुछ बाल उनके चेहरे पर आ रहे थे जिन्हें वो बार बार अपने हाथों से मतलब हाथ और कोहनी के बीच वाले हिस्से से ऊपर टांग रही थी, ऐसा करते हुए उसके सुडौल और अनुभवी स्तन की थिरकन मेरे रोम-रोम को उद्दोलित कर रही थी। शायद वो अपना जवाब खुद दे दें, इस इंतजार में मैं इधर-उधर कि बातें करता किसी जिद्दी बच्चे की तरह उन्हें निहारते हुए, उनके साथ घूम रहा था, वो तार पर कपड़े सुखाती रही, वो ऐसे व्यवहार कर रही थी जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

फिर मैंने उनका जवाब ना आते देख पूछ ही लिया- क्यों आंटी जी… क्या सोचा आपने छोटी के इलाज और मेरे कल वाले सवाल के बारे में? आंटी सामान्य ही रही और कुछ नहीं कहा।

फिर मैंने अपनी बात दोहराई, उस समय मेरे और आंटी के बीचों बीच थोड़े ऊपर में तार थी। हम बिल्कुल आमने सामने थे, आंटी के चेहरा सामान्य दिख रहा था, फिर उन्होंने साड़ी को बाल्टी से निकाल कर टांगा और उसे फैला दिया जिससे वो साड़ी हम दोनों के बीचों बीच पर्दे की तरह आ गई।

साड़ी सुखाने का तरीका तो जानते हैं ना आप लोग… पहले पूरी साड़ी को मोड़ कर तार में डाला जाता है, उसके बाद उसे पूरी चौड़ाई में फैलाया जाता है। आंटी ने भी इसी तरह से साड़ी सुखाई और जब हम दोनों के बीच पर्दा पड़ गया तो एक धीमी आवाज मेरे कान से टकराई- हाँ! आंटी ने यह एक शब्द बहुत धीरे से कहा था.. पर मेरे कानों में वो तीव्रता से पहुंचा और मुझे लगा कि प्रकृति का जीव, निर्जीव, हर तत्व मेरे सवाल के जवाब में “हाँ” कह रहा है। तार में टंगी साड़ी की वजह से मुझे लगा कि आंटी निकाह के वक्त ‘कबूल है’ कहते हैं, वैसे ही मेरे निवेदन को पर्दे के पीछे से कबूल कर रही हैं।

मैंने खुशी के मारे साड़ी को एक तरफ जोर से सरकाते हुए आंटी को देखना चाहा, पर आंटी तो साड़ी के पीछे भी अपने दोनों हाथों से चेहरा छुपाये खड़ी थी। आयय हायय… इसे कहते हैं पुराने जमाने की संस्कारी औरत! कसम से यार आंटी की इस अदा ने दिल जीत लिया।

यह भी हो सकता है कि उन्होंने अपने अनुभव से जान लिया हो कि मैं हाँ सुनने के बाद उनके चेहरे ओ देखना चाहूंगा। वास्तव में कोई औरत किसी पुरुष के मन को कितने अच्छे और जल्दी से समझती है, और हम मर्द इस मामले में काफी पीछे रहते हैं।

खैर बात जो भी रही हो, पानी में काम करने की वजह से उनकी आधी साड़ी तो भीग ही चुकी थी, और दोनों हाठों से चेहरा छुपाने से उनकी कोहनी उनके वक्ष स्थल से सट गई थी, जिसकी वजह से बगल से देखने में उनके उभार में तनाव स्पष्ट तनाव नजर आ रहा था। जिसकी वजह से आंटी को गले लगाने से खुद को रोक पाना मेरे लिए संभव नहीं था।

मैंने आंटी को गले लगाना चाहा और हाथ को हाथों को चेहरे से हटाना चाहा, पर आंटी ने उसी मुद्रा में कहा- संदीप मुझ पर अहसान करो, तुम कुछ देर के लिए चले जाओ, नहीं तो मैं शर्म से मर जाऊंगी, तुम एक घंटे बाद आ जाना, तब तक शायद मैं खुद को संभाल पाऊं। तभी मैंने कहा- वाह आंटी जी, कल तक तो आप मुझे डरपोक कह रही थी, और आज आपका ये हाल है, ऐसे भी आप तो अनुभवी हो फिर ऐसी हालत क्यूं हो रही है आपकी।

उन्होंने जल्दी से साड़ी फिर फैलाई और उसके दूसरी ओर जाकर कहा- इधर मत आना संदीप, और सुनो जब कोई किशोर गाड़ी सीखता है तब आसानी से सीख जाता है पर जब कोई अधेड़ गाड़ी सीखता है तो उसे सीखने में बहुत तकलीफ होती है और कुछ तो अच्छे से सीख भी नहीं पाते। मैंने अपने पति के अलावा कभी कुछ नहीं किया है, पति के साथ भी सोना भी सबकी मजबूरी भी होती है और फर्ज भी। इसलिए उस समय भी इस तरह से शरमाना नहीं होता। और जो मेरे मायके में हुआ था वो बहुत बुरा था, मजबूरी थी, कविता (तनु) के साथ तुम्हारा मिलन भी इसलिए बर्दाश्त कर पाई क्योंकि मुझे उसकी पहले की हरकतों का हल्का फुल्का पता चल चुका था। पर अपनी सहमति से पहली बार अपने पांव डिगा रही हूं, इसलिए खुद को इस बात के लिए तैयार करने में मुझे थोड़ी शर्म आ रही है। अगर तुम मेरे साथ जबरन करना चाहो तो कर लो तब मुझे शर्माने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

मैं उनकी बातें समझ सकता था, ये शर्म और कुछ नहीं उम्र दराज और पारम्परिक धारणाओं से घिरे होने कि निशानी थी। इस पर मैंने कहा- ठीक है, फिर आप खुद को इस बात के लिए तैयार कर लो, मैं आज नहीं कल आ जाऊंगा। और छोटी को भी हम कैसे संभालेंगे और इलाज करेंगे वो आप देख लेना। उधर से सिर्फ हम्म की आवाज आई।

मैंने दुबारा कहा- आप छोटी के सामने कर लोगी या प पह पहले.. मैंने ये स्वर जानबूझ कर ही अटकाते हुए निकाला था। उन्होंने कहा- हम छोटी के सामने ही… क्योंकि उसके सामने हमारे मन में खुद के सुख से ज्यादा उसके इलाज का अहसास रहेगा तो हमारी शर्म थोड़ी दूर हो सकती है। मैंने कहा- ठीक है, जैसी आपकी मर्जी!

इतना कहकर मैं लौटने लगा, तभी एक आवाज और मेरे कान से टकराई- सॉरी और थैंक्स। इन दोनों शब्दों को आंटी ने क्यों कहा, मैं जानता था इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुराया और अभिवादन की मुद्रा में हवा में हाथ लहरा कर लौट आया।

आप सब तो समझ ही रहे होंगे कि मुझे दूसरे दिन के लिए कितनी बेचैनी रही होगी। उस पल से लेकर दूसरे दिन उनके घर पर पहुँचते तक हर पल मेरे लिए सदियों के समान लंबा हो गया था। मैं उस दिन बाकी दिनों की बजाय थोड़ा जल्दी ही पहुँच गया। आंटी भी उस दिन जल्दी ही तैयार हो चुकी थी, मैंने महसूस किया कि आज वो मुझसे भाग नहीं रही है, लेकिन शर्म हया कि परतें ओढ़ी हुई मुझसे नजरें चुरा रही है। जो होना था वो तो होना ही था, उनकी सहमति तो मिल ही चुकी थी, इसलिए मैंने उन बातों को ना छेड़ कर दूसरी बातों को करना ज्यादा उचित समझा।

उन्होंने मालिश करके छोटी को भी नहला खिला लिया था, पर शायद खुद ने नाश्ता नहीं किया था, क्योंकि जब वो मेरे लिए चाय बनाने किचन में गई, तब मैं भी उनके पीछे चला गया, इसमें कोई बड़ी बात नहीं थी, और तब मैंने वहाँ बर्तन में पराँठा और कढ़ाई में सब्जी रखी देखी। मैंने कहा- आपने अभी तक नाश्ता नहीं किया है क्या? उन्होंने ना में सर हिलाया, फिर कहा- मेरा मन नहीं है।

उन्होंने नाश्ता नहीं किया था तो मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, मतलब वो मेरे कारण भूखी रहेंगी, यह बात मुझे पसंद नहीं आई। फिर मैंने बहाना करते हुए कहा- अरे वाह… क्या बात है आज तो हमने भी नाश्ता नहीं किया है, चलो ना दोनों साथ मिलकर नाश्ता करते हैं। उन्होंने मेरी तरफ सामान्य भाव से देखा और कहा- नाटक करने की जरूरत नहीं है, मेरा मन नहीं है इसलिए नाश्ता नहीं कर रही, और तुम्हें करना है तो चलो बैठो, नाश्ता कर लो!

मैंने सोचा कि इन्हें मैं अपने साथ नाश्ता करवा सकता हूं, इसलिए मैंने उन्हें नाश्ता लगाने को कहा, उन्होंने चाय बना कर ढक कर रख दी और मुझे बरामदे में चटाई पर बिठा कर नाश्ता परोसने लगी, और जितनी बार वो झुकती थी, उनके खूबसूरत मम्में मेरी आंखों के सामने आ जाते थे। हालांकि उन्होंने साड़ी बहुत अच्छे से पहनी थी, पल्लू भी ठीक से डाला था, फिर भी जब उभार उन्नत और भारी हो, तब उन्हें छुपाने के आपके सारे जतन व्यर्थ होते हैं। ऐसे तो 34.28.36 साइज कहने से ही समझ आ जाता है कि उसकी मादकता कितनी ज्यादा थी, और उसके सपाट और चिकने पेट ने मेरे मन में हलचल मचा दी।

कोई भी औरत जब साड़ी पहनती है तो उसकी कमर किसी भी आवरण से परे होती है और उस जगह से ही आप किसी स्त्री को बिना छुये या बिना पास जाये भी अनावरित कर सकते हो। मतलब स्त्री के नग्न रूप का आभास किया जा सकता है, आंटी ने काम करने के लिए कमर में साड़ी बांध रखी थी. अरे हाँ यार, मैं तो आप लोगों को बताना भूल ही गया कि आंटी ने आज अपनी पुरानी साड़ी पहनी थी, साड़ी रेशमी थी और रंग बादामी, जिसमें ब्लाउज का रंग मेरून कलर का था, और पूरी साड़ी का बार्डर उसी रंग में थी, साड़ी उनके अंगों से चिपक रही थी।

कुल मिला कर वो कयामत की खूबसूरती लिए आज मेरे आगोश में आने को बेचैन थी। मुझे अभी ऐसा ही लग रहा था जैसे मैं शादी की विडियो देखने के पहले प्री विडियो देख रहा हूं।

मेरे मुंह में नाश्ते की खुशबू से पानी आ रहा था, और मेरे लंड में उनके बूबे देख कर। आंटी के नाश्ते के लिए चार पराठे बचे थे, नाश्ता थाली में निकल जाने के बाद मैंने आंटी को कहा- हम दोनों दो दो पराँठे खायेंगे। तब आंटी ने फिर मना किया, अब मैं भी उठने को हुआ तो आंटी को मजबूरन मेरे साथ बैठना पड़ा।

बैठने से पहले वो हाथ धोने के लिए जाने वाली थी तो मैंने कहा- अरे, आईये ना मैं खुद अपने हाथों से खिलाऊंगा आज आपको। पर उन्होंने कहा- अच्छा ठीक है… पर मैं एक पराँठा ही खा पाऊंगी। मैंने सोचा ‘पहले एक तो खाने दो, फिर दूसरी भी जिद करके खिला दूंगा।’ मैंने कहा- ठीक है! और उसे अपने हाथों से पराठा तोड़ कर खिलाने लगा।

पहला निवाला ही आंटी ने मुंह में रखा था और उनकी आँखों में आंसू आ गये, उन्होंने कहा- संदीप, मैं तुम्हारा किन लफ्जों से आभार मानूं, समझ नहीं आ रहा है, एक औरत के लिए उसके पति के मरते ही दुनिया वीरान हो जाती है, और तब या तो वो मर जाती है या विधवा होकर लाश जैसा जीवन बिताने पर मजबूर हो जाती है। पर संदीप, तुम्हारी वजह से मैं आज फिर से अपने जीवन में उन्हीं सुखों का अनुभव कर रही हूँ जो एक औरत अपने जीवन में महसूस करना चाहती है।

संदीप पहले मैंने तुम्हें इसलिए मना किया था क्योंकि उस समय तुमने मेरे मन को नहीं जीता था पर अब तुमने मुझे जीत लिया है, और आज मैं तुम्हें अपनी आत्मा भी सौंप दूंगी। संदीप कल मैं तुमसे इसीलिए शरमा गई क्यूंकि मैंने अपने जीवन के सबसे खुशनुमा और प्यार भरे पल का अनुभव किया, कोई भी किसी के हाँ कहने का इतना इंतजार नहीं करता जितना तुमने किया है.

संदीप तुम जानते हो कि आज ये साड़ी मैंने क्यों पहनी है, क्योंकि ये साड़ी कविता (तनु) के पिता ने मेरी सालगिरह पर भेंट की थी, और वो इस साड़ी को मुझे पहने देखना चाहते थे और ये भी चाहते थे कि जब मैं ये साड़ी पहनूं उस दिन हम बहुत अच्छी तरह सम्भोग करें। पर उस समय मुझे महीना आया था, और फिर हम कुछ कामों में व्यस्त हो गये और इसी बीच वो हमें छोड़ कर चले गये। और उनके मन की बात अधूरी रह गई।

संदीप आज मैं तुम्हारे साथ उनकी ख्वाहिश को पूरा करना चाहती हूं। और तुम्हें पता है वो बहुत ही रंगीन आदमी थे, लोगों को सख्त नजर आते थे, पर बिस्तर पर उनका अलग ही मिजाज रहता था, उन्होंने मेरे जीवन में कभी सेक्स की कमी नहीं होने दी, शायद इसलिए उनके जाने के बाद मुझे गाजर मूली का सहारा भी लेना पड़ा। यह बात कहते हुए उन्होंने अपना सर दूसरी ओर घूमा लिया, ऐसे भी वो ये सारी बातें शरमा कर ही कर रही थी, शायद वो मुझे इशारों में समझा रही थी कि मुझे उनके साथ क्या करना है।

हम ये बातें पराठा खाते हुए कर रहे थे, अब तक आंटी ने बातों की वजह से सिर्फ एक पराँठा ही खाया था, और मैंने अपने दोनों पराँठे खा लिये थे, तब मैंने आंटी से कहा- आंटी लो ना, आप इसे भी खाओ, ये आपके हिस्से का है. आंटी ने फिर ना कहा, तो मैंने उनको अपनी कसम देनी चाही पर उससे पहले ही उन्होंने अपना हाथ मेरे मुंह पे रख कर मुझे रोक दिया और शरमा कर अपना मुंह दूसरी ओर फेरते हुए कहा- पता नहीं संदीप, सब लोग तुम्हें सेक्स का खिलाड़ी क्यों समझते हैं, तुम तो एकदम ना समझ हो, क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि खाना खा कर सेक्स करने से पेट दुखता है या उल्टी और अटपटापन लगता है, मतलब बहुत अच्छे सेक्स के लिए औरत का कम खाना या खाली पेट रहना कितना अच्छा होता है।

इतना सुनने के बाद तो मेरा रुक पाना संभव ना था, मैंने बचे हुए एक पराँठे वाली थाली किनारे सरका दी, पानी का गिलास उठाया और वहीं बाजू में अपना हाथ धोकर, आययय हाययय मेरी जानेमन कहते हुए मैंने आंटी को अपनी बांहो में उठा लिया और मकान के उस चौथे कक्ष की ओर बढ़ गया जिसे हम लोगों ने इलाज और इस काम के लिए ही आरक्षित कर रखा था।

आंटी के साथ मैंने क्या और कैसे किया, आंटी ने कैसा साथ दिया, छोटी को इलाज का लाभ मिला या नहीं ये सब अगली कड़ी में! कहानी जारी रहेगी.

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