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तनु की मम्मी ने बाल साफ़ करने वाली क्रीम और रेजर मनवाया तो मुझे लगा कि आंटी अब चुदाई के लिए तैयार हैं शायद! मैं सामाँन लेकर दूसरे दिन वहाँ पहुँच गया, मैंने थैले से रेजर और क्रीम निकाल कर आंटी की ओर मुस्कुरा कर अर्थपूर्ण निगाहों से देखा तो उन्होंने कहा- तुम मेरे सपने देखना छोड़ दो, जैसे तैसे मैं उमर काट लूंगी इस उम्र में राह भटकने का मेरा कोई इरादा नहीं। अब चलो, मालिश करने में छोटी को लाने पकड़ने में मेरी मदद करो। मैंने मन में कहा- ठीक हैं आंटी जी, आप राह मत भटको… पर आपको अगर मैं अपने रास्ते पे ना लाया तो मेरा नाम भी संदीप नहीं।
अब हम दोनों छोटी के पास गये, उसे बेड पे बिठाया और उसकी माँ ने उसके कपड़े उतारने शुरू किये. लेकिन छोटी मुझे देख कर घबरा गई, फिर उसकी माँ ने बहुत समझाया- हम दोनों तुम्हारी मालिश करेंगे तुम्हें अच्छा लगेगा. पर उसका डर कम ही नहीं हो रहा था. फिर भी उसकी माँ ने उसके कपड़े उतार दिये।
वो ज्यादातर समय गाऊन ही पहने होती थी, गाऊन के अंदर उसने नीले रंग की पेंटी पहन रखी थी, ब्रा नहीं पहनी थी, रुखा सा बदन, बाल बिखरे से, स्तन चिपके से मालूम होते थे। कमजोरी के कारण शरीर के किसी भी अंग में सुडौलता नहीं थी। गोरापन तो था पर त्वचा में झुर्रीयों सा प्रतीत हो रहा था, कुल मिला कर वो बेजान सा जीवन व्यतीत कर रही थी। वो डर कर अपने माँ से सिमट गई, अगर मैं किसी सामान्य लड़की के विषय में बात कर रहा होता तो कहता कि वो शर्म के मारे सिमट गई। पर अभी छोटी का मस्तिष्क बच्चों जैसा हो गया था, कामुकता सेक्स और यौवन की बातों से वो परे डर भय और सशंकित हृदय को लिए अपने अस्तित्व को बिसरा कर दिन काट रही थी।
मुझे उसके अंदर शर्म हया, समझ, आनन्द भरने के लिए कठोर परिश्रम करना था, किसी के मन में बसे डर को भगाना बहुत मुश्किल होता है, और जब किसी का डर उसकी धारणा बन चुका हो तब तो उसकी धारणा बदलना असंभव सा प्रतीत होता है।
मैं छोटी के बगल में बैठ गया और छोटी के कंधे पर हाथ रखा, वो और डर गई, फिर मैंने उसके दोनों कंधों को पकड़ कर उसको अपनी ओर किया. वो कांप रही थी तो मैंने उसे कहा- जहाँ दर्द देने वाला है, वहाँ दर्द से बचाने वाला भी होता है। अब मैं हूँ ना… तुम्हें अब कभी कोई तकलीफ नहीं दे सकता। छोटी ने सिसकते हुए कहा- अगर तुम हो तो उस समय कहाँ थे जब लोग मेरे दर्द की परवाह किये बिना मुझे नोच रहे थे। मैं कुछ देर शांत रहा… कहता भी क्या… फिर कुछ सोचकर कहा- मैं उस समय नहीं था छोटी, पर अब तो मैं हूँ ना, अब तुम हमारा कहना मानो, फिर सब ठीक हो जायेगा।
बाद में आंटी ने बाद में मुझसे कहा- अब छोटी में थोड़ा सुधार आ रहा है इसलिए वो ऐसी बातें कर पाती है, पहले तो वही गंदे शब्दों के अलावा उसके मुंह से कुछ निकलता ही नहीं था। छोटी ना नुकुर करके हमारी बात मानने लगी, कुछ चीजें हमें जबरदस्ती करनी पड़ती थी, जैसे उसकी पेंटी निकालना।
उसकी माँ ने उसकी पेंटी नीचे खींच दी, मैंने उसे पैरों से बाहर कर दिया, अब हमारे सामने बालों से ढकी मरीयल जांघों के बीच बदबूदार योनि उजागर हो गई। शायद उसकी ऐसी हालत पागलपन की वजह से हो गई होगी, वरना ऐसी चूत के लिए कोई दुष्कर्म जैसा अपराध नहीं करता।
अब उसकी माँ ने रेजर निकाल लिया और मुझे दोनों टांगों को पकड़ने को कहा, वो एक मग में पानी लाई और पानी से वहाँ के बाल को नर्म करने लगी, छोटी छटपटाने लगी तो मैंने उसे ऐसे पकड़ा कि उसके पैर भी संभाल सकूँ और ऊपरी हिस्सा भी संभाल सकूँ।
अब आंटी ने अपने हाथ से उसकी चूत के बालों में साबुन का झाग जैसा बनाया और रेजर उठा के बाल साफ करने लगी, ये सब बहुत आहिस्ते करना पड़ा. फिर उसकी बगल के बाल भी साफ किये, और सर के बाल भी नाई की तरह काट कर कंधों तक कर दिए और जितना हो सका अच्छे से सेट करने का प्रयास किया।
उसके बाद टांगों के या शरीर के अन्य अनावश्यक बाल भी वीट क्रीम की मदद से साफ किये। यह अनुभव बहुत ही अटपटा था और गंदा भी था, पर ये पुण्य कार्य मेरे हजार गुनाहों पर पर्दा डालने वाला था। छोटी की छटपटाहट, हड़बड़ाहट के कारण इस काम में हमें लगभग दो घंटे से लग गये।
अब बारी थी मालिश की, तो मैंने आंटी से कहा- सारी चीजें आज ही करना ठीक नहीं है, आज आप छोटी को ऐसे ही नहला दो और शरीर पर नहाने के बाद कपूर डले नारियल तेल को लगा देना। ये आपको रोज ही लगाना है, बस कल से नहाने के पहले वाली मालिश मैं आपको बता दूंगा। आंटी ने ‘हाँ, ठीक है…’ कहा और धन्यवाद दिया. फिर मैं दुकान लौट आया।
दूसरे दिन मैं फिर जल्दी ही उनके यहाँ पहुँच गया। आंटी ने मालिश की तैयारी कर रखी थी, हमने पहले चाय पी फिर छोटी के पास गये, और आंटी ने उसके कपड़े उतारे और मेरे कहने पर मालिश के लिए उल्टा लिटा दिया। छोटी आज भी डर झिझक रही थी, पर हर बार उसका डर या झिझक कम होती जा रही थी।
मैंने एक कटोरे में जैतून का तेल रखा और अपने दोनों हाथों में तेल लेकर पैरों से मालिश करना शुरू किया। मालिश करने का मैंने कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है, पर लंबे समय तक इस काम में मन लगाने से मैं एक प्रशिक्षित मसाज करने वाला बन चुका हूँ। मैंने अपना हुनर दिखाते हुए शरीर पर तेल लगाया और शरीर की किन नसों की मालिश कैसे करनी चाहिए इस बात को मैं आंटी को समझाता जा रहा था।
वास्तव में एक प्रशिक्षित और एक अप्रशिक्षित मालिश करने वाले में यही फर्क होता है, एक प्रशिक्षित मालिश करने वाला शरीर की नसों को जानता है और उसके मालिश के अलग अलग तरीकों को बखूबी से अपनाते हुए शरीर को आराम ही नहीं पहुंचाता अपितु अनेक रोगों से मुक्ति भी दिलाता है। और एक अप्रशिक्षित मालिश करने वाला बस हमें थकान से मुक्ति दिलाता है, या किसी नस की मालिश वो ठीक से कर भी ले तो वह केवल तुक्का है।
तो मैंने भी इन बारिकियों को किसी से पूछ कर या पढ़ कर आजमा कर सीख रखा था और अपने हुनर को आंटी को भी सिखाने का प्रयास कर रहा था। मैंने छोटी के एक पैर को उठा लिया और उसे मरोड़े जैसा करते हुए मालिश करने लगा, उसके बाद मैंने दूसरे पैर के साथ भी ऐसा ही किया और बीच बीच में नसों को जैसी मालिश देनी चाहिए दे रहा था. फिर मैंने उसकी जांघों की मालिश की और कूल्हों को छोड़कर सीधे पीठ पर चला गया, मैंने अब कंधों से मालिश करना शुरू किया.
मैंने मालिश के दौरान महसूस किया कि छोटी के बेजान शरीर में भी असर होने लगा है। मैंने उस असर को इशारे से आंटी को दिखाया उन्होंने भी उपनी उंगलियों से एक छल्ला बना कर इशारे से मेरी तारीफ की। और मैंने हाथों पर बहुत बहुत मात्रा में तेल रख कर छोटी के शरीर की मालिश करना जारी रखा, फिर कूल्हों की भी बारी आ गई, इस वक्त छोटी कसमसाने लगी तो आंटी ने संभाला और मेरा कड़क नाथ भी कड़कने लगा, क्योंकि एक जवान लड़की कैसी भी हो उसे नग्न देखकर जवान मर्द को कुछ तो असर होगा ही। पर मेरी भावना सही थी इसलिए मैंने खुद को बहुत आसानी से काबू में कर लिया था।
कूल्हों की मालिश का मेरा तरीका अनोखा था, आंटी की आँखों का रंग बदलने लगा था, स्वाभाविक है कि मुझे अपना हाथ सरका के चूत की दिशा में भी कुछ दूर तक मालिश करनी थी, यह समय हम तीनों के लिए ही मुश्किल भरा था। फिर भी मुझे तो काम करना था, इसलिए मैनें किसी ईमानदार कर्मचारी की तरह अपना काम पूर्ण किया और आंटी से छोटी को सीधा करने को कहा.
अब मैंने फिर छोटी के पैरों से मालिश करना शुरू किया, और जांघों तक मालिश करने के बाद ऊपर की ओर बढ़ गया।
छोटी सामने से ज्यादा कमजोर नजर आ रही थी, कहीं कहीं तो उसकी पसलियाँ भी नजर आ रही थी। अब मैंने उसके सर को अपने हाथों कि उंगलियों से मालिश किया, मस्तक, कान के ऊपरी भाग और सर के पिछले भाग पर हल्के हाथों से मालिश करता रहा और फिर गले और कंधे के बीच मालिश करने लगा. आप लोगों को बता दूं कि मालिश करने के लिए ये उत्तम जगह होती है यहाँ से बहुत सी नसों की मालिश की जा सकती है, पर यहाँ पर गुदगुदी भी होती है।
इसलिए छोटी भी मचलने लगी, तो मैंने हाथ और नीचे की ओर बढ़ा दिया, मतलब अब मैं कंधों से होते हुए सीने और पेट तक की मालिश करने लगा, छोटी के स्तन के अगल बगल से मैंने हाथ फेरना चालू किया, क्योंकि उसके अधो विकसित स्तन को स्पेशल ट्रीटमेंट की जरूरत थी।
मेरा हाथ नाभि पर पहुँचा तो छोटी को ज्यादा संभालने की जरूरत पड़ी, आंटी अच्छी तरह सहयोग कर रही थी और मालिश का तरीका भी सीख रही थी, मैं ये सब काम समझ के कर रहा था इसलिए खुद पर पूरा कंट्रोल किये हुए था।
अब मैंने छोटी के स्तनों को हल्के हाथों से मालिश करना प्रारम्भ किया, स्तनों की पूरी गोलाई पर तेल लगा के हर दिशा से नीचे से ऊपर की ओर मालिश करते रहा, स्तन का ऊपरी छोर पर अपनी बड़ी बहन तनु की तरह भूरे रंग का छोटा घेराव था, और निप्पल नर्म और बहुत छोटे आकार के चिपके से थे। मैं अपनी कलाबाजी दिखाते हुए दोनों स्तन को लगभग बीस मिनट की मालिश दी। इस दौरान लंड देव ने भी सलामी दी।
अब बारी थी कमर योनि प्रदेश और भगनासा की, मतलब वह जगह जहाँ औरत को स्पर्श करते ही औरत की कामाग्नि प्रज्वलित हो जाती है।
कल उसकी योनि की सफाई की गई थी इसलिए आज वह जगह अच्छी लग रही थी, योनि चिपकी हुई जरूर थी, पर छोटी के साथ हुई हरकत की वजह से एकदम अक्षत योनि की तरह नहीं थी, मैंने दोनों हाथों में तेल लिया और कमर से मालिश करते हुए अपनी उंगलियों को उसकी चूत के अगल बगल की मालिश करते हुए ऊपरी भाग से लेकर निचले भाग तक हाथ फिराने लगा।
मैंने अपनी उंगली चूत के ऊपर से नीचे तक लंबी रख के उसकी अधखुली दरारों पर भी मालिश करने का प्रयास किया, तब मुझे वहाँ पर बहुत हल्का सा चिपचिपा पन महसूस हुआ मतलब की छोटी का दिमाग में भले ही पागलपन हो, पर शरीर में एक औरत का अहसास बाकी था। मेरे लंड देवता की कठोरता और छोटी की कसमसाहट बढ़ती जा रही थी, इसलिए मैंने मालिश का काम यहीं रोक दिया, वैसे मालिश का काम पूरा हो भी गया था।
फिर आंटी छोटी को नहलाने की तैयारी करने लगी, यह मालिश लगभग एक घंटे से ऊपर चली होगी।
और मैंने बाथरूम जाकर हस्तमैथुन किया। मैं देख रहा था कि आंटी की आँखें भी चूत और सीने की मालिश के वक्त चमक उठी थी, शायद उन्होंने भी बाद में खुद को शांत किया होगा।
इस तरह मैं रोज छोटी को बेहतर से बेहतर मालिश देने लगा, अब छोटी का विरोध कम हो रहा था पर रोज मालिश के असर और अच्छे खान पान के असर से छोटी के शरीर में जान आने लगी थी, मेरे कहे अनुसार उसकी माँ उसे बादाम, दूध, अंडे और ज्यादा पोषक तत्व वाले आहार देने लगी थी, साथ ही साथ जितना संभव हो सके उतना व्यायाम या योगा भी कराने को कहा था। इस तरह छोटी को सभी तरह की ट्रीटमेंट मिलने लगी थी।
किसी भी बिमारी का सबसे अच्छा इलाज होता है कि उसकी देखभाल मन से और नियमबद्ध तरीके की जाय जो अभी पूर्ण रूपेण हो रहा था। इसी वजह से अब मालिश के वक्त उसकी चूत भी ज्यादा चिपचिपी हो जाती थी, और मेरा खुद को संभालना अब बहुत ही मुश्किल हो रहा था। फिर भी मैं धैर्य बनाये हुए था।
छोटी की मालिश लगभग सात आठ दिन हो चुके थे, इस बीच तनु तीन चार बार आ चुकी थी, वैसे तो हमारी चुदाई थैरेपी सोमवार या मंगलवार को हो जानी थी पर तनु को पीरियड आ जाने की वजह से उस हफ्ते का प्रोग्राम नहीं हो पाया।
अब मैं पूरी तरह उनके कामों में ध्यान देने लगा। छोटी और आंटी की बातें और उनकी जिन्दगी के रहस्य मेरे मस्तिष्क में छाने लगा था। अब मैं दिन में दो तीन बार उनके यहाँ जाने लगा था, आंटी से इधर उधर की बातें करता, छोटी का हाल चाल पूछता था। छोटी भी मेरे से कम डरने लगी थी।
मेरे और आंटी की बीच बातें खुलकर होती थी, सभी तरीके की बातें हम बड़े आराम से कर लेते थे, इसलिए एक दिन मैंने उन्हें सीधे पूछ लिया- आपको मुझसे सेक्स करने में क्या परेशानी है? तनु और छोटी के साथ मेरी इन हरकतों को या अपनी आँखों के सामने हो रही इन बातों को आप किस नजरिए से देखती हो? मैं आपके मन की बात खुल कर जानना चाहता हूँ, और यह भी जानना चाहता हूँ कि आपकी जिन्दगी में सेक्स की क्या अहमियत रही है क्योंकि एक माँ एक परिवार को आगे बढ़ाती है, उसी के जीवनकाल के आधार पर उनके बच्चों का व्यवहार निर्भर करता है। और अपनी बेटियों के बीच आपका इस तरह रहना भले ही मजबूरी हो पर आपके मन का हाल क्या है ये जानना मेरे लिए भी बहुत जरूरी है।
और यह जानना मेरे पाठकों के लिए भी बहुत जरूरी है।
आंटी की आँखों में आँसू आ गये, कुछ देर रो लेने के बाद उन्होंने कहा- मैं तुम्हें अपनी जिन्दगी के बारे में सब कुछ बताने को तैयार हूँ, पर अभी मेरी आँखों के सामने मेरी बेटियों के साथ जो होता है, और ये बेशर्मी मुझे बहुत चुभती है, मुझे सीमाएं लांघना बिल्कुल भी पसंद नहीं, मैंने बचपन से लेकर जवानी तक और उम्र के इस पड़ाव तक कभी सीमाएं नहीं लांघी, अवसर बहुत से आये जब मेरे कदम बहक सकते थे, पर मैंने कभी अपने पैर डिगने नहीं दिये पर आज अपनी आँखों के सामने ऐसा सब होता देख मन बेचैन हो उठता है। ये सब गलत है, अनैतिक है, मैं ऐसी चीजों के लिए कैसे राजी हो गई, यह मैं खुद नहीं जानती, मैं मरने के बाद छोटी और तनु के पिता को क्या मुंह दिखाऊंगी।
कहानी जारी रहेगी… आप अपनी राय इस पते पर दे सकते हैं. [email protected] [email protected]
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