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अभी तक इस कहानी में आपने पढ़ा कि मैं तनु को चोदने वाला था तो उसकी मम्मी आँख की शर्म के कारण बहाना बना कर बाजार चली गई. अब आगे:
मैं अपनी जीभ की करामात दिखाते हुए ऊपर की ओर बढ़ने लगा, मेरे लिंग महराज को भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था, पर हम अपनी पहली मुलाकात को आम से खास बनाना चाह रहे थे। मैंने चुम्बन का यह क्रम जारी रखा और उसकी जांघों पर आकर चाटने और चूसने के गति बढ़ा दी। उसके जांघें और पिंडलियाँ थी ही इतनी सुंदर कि कोई चाटे बिना, सहलाये बिना रह ही नहीं सकता। और फिर उसकी खूबसूरती के पूरे सम्मान के लिए उसके हर अंग के साथ न्याय करना भी जरूरी था, मेरे हर दांव में मेरा अनुभव नजर आ रहा था, पर मेरी हर हरकत ऐसी थी कि मुझे आज पहली बार ही कोई भोगने को मिला है।
उसकी गोरी गुंदाज जांघों से जब मैं थोड़ा और ऊपर बढ़ा तो मेरा दिल धक से कर गया, उसकी पेंटी कामरस से भीग चुकी थी और योनि प्रदेश फूला हुआ था, जिस पर भीगी पेंटी चिपक रही थी, जिससे उसकी दरार और योनि के आकार का स्वतः ही आभास हो रहा था। मैं कुछ पल यूं ही बुत बना रहा और मेरा लिंग इस कदर अकड़ रहा था कि मैंने योनि देखते हुए उसे हल्के से क्या छुआ, मेरा लंड खुद ही फूट कर रो पड़ा, मेरी पिचकारी की मार तनु की नाभि तक पहुँची. तनु हँस पड़ी और कहने लगी- क्यों जनाब, हमारा हक यूं ही बहा दिया?
अब मेरे पास कहने को कुछ नहीं था फिर भी मैंने कहा- अभी तो तुम्हारे हक का बहुत कुछ बाकी है, तुम्हारे हक में कटौती नहीं करेंगे। और मैंने उसकी पेंटी उतारनी शुरू कर दी, उसने भी मेरा साथ दिया, पेंटी उतार कर मैंने उसके पेट पर गिरा अपना वीर्य साफ किया और अपने लिंग को छुआ तक नहीं।
पेंटी उतरते ही उसकी योनि की खूबसूरती और मादकता देख कर मेरा लिंग पूरा बैठ भी नहीं पाया था कि फिर से तनाव में आने लगा, मैंने अपने हल्के हाथों से उसकी योनि प्रदेश का हर कोना सहलाया और फिर अपनी उंगलियों से उसकी योनि की फांकों को फैला कर देखा और देखा क्या देखता ही रह गया।
गुलाबी रंग की दीवारों पर सफेद शबनम जैसे मोती नजर आ रहे थे, और चिकनाई ऐसी थी कि मैं तो क्या कोई संत भी होता तो फिसल जाता, और तनु ने इस तरह से वहाँ की शेविंग की थी मानो वहाँ कभी बाल उगे ही ना हों। मुझसे तो अब रहा ना गया, मैंने उसकी योनि के दाने पर अपना मुंह लगा दिया, और जीभ की करामात से तनु को पागल करने लगा, सिसकियाँ सीत्कार में और सीत्कार कराह में बदलते देर ना लगी, तनु ने मुंह से आहहह ऊहहहह निकालनी शुरू कर दी और कराहते हुए मुझसे चूसने के लिए लिंग मांगने लगी।
मैंने भी देर किये बिना 69 की पोजीशन ले ली और अपना पहले से वीर्य से सना लिंग उसके मुंह मे दे दिया, मेरे सात इंच से बड़े लंड को चूसने की खुशी वह पहले से मनाने लगी, उसने भी बिना किसी परहेज के चहक कर उसे मुंह में ले लिया, प्रशिक्षित तो वो पहले से ही थी. अब हम कामुकता के चरम पर थे, वो मेरा लिंग कभी पूरे गले तक डाल लेती तो कभी ऊपर चाटती और गोलियों को चूस लेती, अगर मैं एक बार झड़ ना गया होता तो शायद तनु के मुंह की गर्मी दो मिनट भी बर्दाश्त ना कर पाता।
उसकी अनुभवी हरकत ने मेरा लिंग लोहे का बना दिया और मैंने भी उसकी योनि में अपने सारे जौहर दिखा दिये, कभी अंदर तक जीभ डाल कर चाटता तो कभी जीभ से योनि प्रदेश को हल्के से सहलाता.. उहहह आहहह की चीत्कार के साथ ही मैंने तनु के शरीर में अकड़न और छटपटाहट महसूस की। उसके अंगों में स्वतः थिरकन होने लगी… योनि लिंग के लिए तड़पने लगी, कांपने लगी और मुझे अपने मुंह में एक पिचकारी सी महसूस हुई, शायद तनु का भी एक बार हो गया था। उसके कामरस का स्वाद बहुत ही लजीज था, सच कहो तो उसमें स्वाद नहीं रहता पर आप जिस मूड में रहो, वैसा स्वाद वहाँ से प्राप्त होने लगता है।
हम दोनों ही मदहोशी में थे, मैंने तनु को एक पल भी राहत नहीं दी और फिर से योनि चाट चूस कर उसे तैयार करने लगा. इस बार तो मैंने अपने हाथ की उंगली भी उसकी योनि में डाल दी।
तनु का शरीर दूसरे राऊंड के लिए जल्द ही तैयार हो गया और उसने मेरे लिंग को भी दूसरे राउंड के लिए तैयार कर लिया था।
अब मैं तनु के दोनों पैरों के बीच बैठ गया, उसके पैरों को अपने कंधे पर रख लिया, इसके पहले ही मैंने तनु को एक बार चुम्बन करके आई लव यू जान कहा.. और उसकी योनि के ऊपर मैं अपना लिंग घिंसने लगा। मेरा लिंग पहले से ही उत्तेजित था और उत्तेजित अवस्था में उसकी नसें भी फटने के कगार पर आ चुकी प्रतीत हो रही थी, विकराल-काय लिंग और योनि के इस स्पर्श से हम दोनों ही सिहर उठे।
मेरा शिश्न मुंड गुलाबी रंगत के साथ चमक रहा था और अब तो वो योनि के रस का शृंगार कर चुका था तो उसकी खूबसूरती भी सातवें आसमान में थी। मुझे नहीं पता कि लिंग को हमारे मुख की तरह स्वाद का पता चलता है या नहीं पर उस वक्त मेरा लिंग तनु की तरबतर और लपलपाती योनि का स्वाद महसूस किये जैसा ऊपर नीचे खुद बा खुद झटके ले रहा था।
योनि अनुभवी थी इसलिए बहुत अच्छे से फूली हुई थी और उसके मुख्य द्वार हल्के से रास्ता देते हुए खुले से प्रतीत हो रहे थे। इस वक्त तनु के अंदर शायद डर बिल्कुल नहीं था, पर संकोच था कौतुहल था, बेचैनी थी, कामुकता और समर्पण था, लालित्य था और अनुरोध के अलावा भी बहुत कुछ था। जिसे भांपते हुए मैंने शिश्न मुंड़ पर हल्का जोर दिया, इस वक्त तक तनु दम साधे अपने शरीर में मेरी पहल का इंतजार कर रही थी।
उसकी गीली योनि का मेरे शिश्न मुंड को भिगोते हुए स्वागत करना ऐसा प्रतीत हुआ जैसे तनु मेरे पहले घर आगमन पर लोटे में जल लिए खड़ी हो और मेरे पदार्पण की खुशी में द्वार पर जल उड़ेल कर पर मेरा स्वागत कर रही हो। हमेशा सेक्स का यह पल कामुकता की पराकाष्ठा के अलावा भावुकता से भरा हुआ भी होता है। योनि के अंदर मेरा लिंग लगभग एक इंच प्रवेश कर चुका था, तनु के मुंह से लंबी सिहरन भरी सिस्स… सिस्स सीह निकल आई, शायद ये हल्के मजे वाले दर्द का असर था क्योंकि तनु चाहे जितनी भी अनुभवी हो, मेरे विकराल लिंग के सामने हल्के दर्द के साथ सिसकारी भरना तो स्वाभाविक ही था।
मैंने खुद को कुछ पल उसी अवस्था में रोक लिया और एक बार पुनः मैं तनु के शरीर को यहाँ वहाँ टटोलने लगा, कभी हाथ उरोजों तक ले जाता तो कभी कमर को सहलाता, कभी पैरों को चूम लेता तो कभी जांघों को सहलाता. वास्तव में मैं खुद को यकीन दिलाने की कोशिश कर रहा था कि ये हुस्न की मल्लिका अब मेरी ही है, उस पर मेरा पूरा हक है।
हम दोनों के शरीर से पसीने आने लगे थे, रोयें खड़े हो चुके थे। तभी मैंने हल्के झटकों का प्रवाह किया, इससे लिंग लगभग आधे से ज्यादा योनि में समा गया और अब तनु ने खुद अपनी कमर को आगे धकेल दिया और हाथ आगे बढ़ाकर मेरी कमर अपनी ओर खींच ली. सिस्स्स… की एक कामुक ध्वनि के साथ ही तनु की आँखें बंद हो गई और बंद आँखों के किनारे से गालों पर खुशी के मोती आँसू बन कर ढलक आये।
पता नहीं उस पल उसके मन में तृप्ति के भाव थे या बेचैनी के… पर वास्तव में यह जीवन का ऐसा अनमोल पल होता है जिस वक्त आपको ब्रह्म की प्राप्ति का अनुभव होता है। आप दुनिया के अलौकिक सुख को जान लेते हो, आत्मा परमात्मा के मिलन का आनन्द लेते हो, सम्भोग से आत्मदर्शन पाते हो।
मैंने भी इसी आनन्द सागर में गोते लगाते हुए अपनी कमर को लय के साथ थिरकाना शुरू किया। हर मेरी थिरकन के साथ तनु की सिहरन बढ़ती जा रही थी। मैंने उसकी योनि के ऊपर के दाने को अपने एक हाथ से निरंतर सहला कर उसे आहहह ऊहहह जैसी मादक ध्वनि तरंगित करने को मजबूर कर दिया।
अब वह दौर भी आ गया जब आप अपनी गति को प्रकाश की गति से भी तेज कर लेना चाहते हैं। मैंने भी अपनी क्षमताओं से आगे बढ़ कर लिंग के आवागमन को गति प्रदान करना चाहा, मेरा फूला हुआ गुलाबी शिश्न मुंड अब योनि की रगड़ से लाल हो चुका था और वो रेल के इंजन की भांति अपने कार्य को बखूबी अंजाम तक पहुँचा रहा था, पर वो बुलेट ट्रेन की भांति एक सूत भी इधर उधर हुए बिना एक ही मार्ग पर लगातार आ और जा रहा था।
“आहह… ऊहहह… लव यू संदीप… तुम बहुत अच्छे हो… ऐसा सेक्स मैंने आज तक नहीं किया!” ये सारे बोल लड़खड़ाती और कंपकंपाती जुबान से तनु के मुंह से निकल रहे थे। मैंने अपने सांसों पर नियंत्रण करते हुए अपनी सभी इंद्रियों का जोर अपने लिंग पर लगा रखा था। तनु मेरा भरपूर साथ दे रही थी, मेरी कमर सहला रही थी, अपनी कमर उचका रही थी.
अब मैं पसीने से नहा गया, और एक ही मार्ग के आवागमन से योनि अभ्यस्त हो गई। और जब कोई चीज अभ्यस्त हो जाये तब उससे वो कार्य और अच्छे से हो पाता है पर नयापन खो जाता है, इसलिए तनु ने पुनः नयेपन के लिए आसन बदना चाहा, उसने मुझे लेटने का इशारा किया, मैंने लिंग योनि से निकाला तो एक पक की आवाज आई और मेरे पीठ के बल लेटते ही वो मेरे ऊपर आकर अपनी योनि लिंग के ऊपर घिसने लगी, हम दोनों कब का झड़ चुके होते अगर हमरा ओरल के समय ही एक राऊंड नहीं हुआ होता।
हम एक बार फिर सुखद अहसासों के सागर में खोने वाले थे। तनु ने जैसे ही योनि को लिंग के ऊपर रखकर दबाव डाला योनि का मुख किसी द्वार की भांति दो भागों में बंट गया, और उसने मछली या सांप की भांति मेरी लिंग को अपना शिकार समझ कर खुद ही अंदर खींच लिया। ऐसा सुखद अहसास वाला पल आज अचानक नहीं आया था, मैंने इसके लिए धैर्य के साथ लंबा इंतजार किया था और आप सबने भी मेरा इस काम में मेरा बखूबी साथ दिया है, आप सबका धन्यवाद। तो आइए आप सब भी तनु को मेरे साथ भोग लीजिए।
तनु अभी इस अवस्था में और ज्यादा कामुक और उत्तेजित हो गई थी, उसके बिखरे बाल और फैल चुकी लिपस्टिक बता रहे थे कि अब तनु आपे से बाहर है, उसके उन्नत सुडौल नोकदार उरोज और भी भारी और रसीले लग रहे थे, वो अब लटक कर मेरी आँखों के सामने आ रहे थे। तनु ने अपनी गति बढ़ानी शुरू की और इस गति के साथ एक लय में हिल रहे उसके स्तन को मैंने लपक कर मुंह में लेना चाहा तो तनु ने मेरी मदद की। अब हम लिंग और योनि के साथ ही गति उन्माद और आनन्द के गहरे सागर में पूरी गहराई तक गोते लगा रहे थे।
मुझे नहीं पता कि मेरा लिंग तनु के पेट तक पहुँच रहा था या योनि के किसी कोने में गुम हो जाता था, पर तनु ने अपने हाथ से योनि के दाने को सहलाने के साथ ही पेट और भगनासा के बीच को सहलाना शुरू कर दिया।
अब हम दोनों बुदबुदाने, बड़बड़ाने लगे- वाह हहह संदीप तुम सच में बहुत अच्छे हो.. तुम्हें सेक्स का ही नहीं अपितु मानव मन का भी ज्ञान है, आहह ओहहह बहुत ज्यादा मजा आ रहा है संदीप… तुम मुझे यूं ही प्यार देते रहोगे ना… मेरी योनि को सुख देते रहोगे ना! मेरा ना कहने का तो सवाल ही नहीं था, मैंने कहा- बस तुम करती रहो, उछलती रहो.. और ऐसे ही अपनी योनि में मेरा लिंग घुसाये सदियों की समाधि में खो जाओ। मैं ये लिंग तुम्हारी योनि से एक पल के लिए भी जन्मों जन्मों तक नहीं निकलना चाहता, ओहह तनु करती रहो तनु… बस करती रहो!
“हाँ संदीप, मत निकालना, कभी मत निकालना.. बिल्कुल मत निकालना… आअहह संदीप…” ऐसी ऐसी बातों के साथ ही उसका शरीर अकड़ने लगा, उसके हाथ मुझे नोचने जैसा दबाने रगड़ने लगे, मैं भी सिहरन और अकड़न महसूस करने लगा, मैं उसके उरोजों के निप्पल को उमेठने मरोड़ने लगा और कमर को सहलाते हुए अपनी पिचकारी तनु की चुत में ही छोड़ दी।
पर अब मुझे एक नया अनुभव होने वाला था क्योंकि तनु का अभी हुआ नहीं था और उसे रोक पाना भी किसी के वश में ना था तो वो यूं ही मेरे लिंग पर पागलों की भांति उछलती रही. चूंकि मेरा लिंग योनि के भीतर था और तुरन्त ही लिंग मुरझाता भी नहीं, इसलिए मुझे एक अलग तरह का अहसास हो रहा था और अकड़ और सिहरन के हाथ ही तनु का तूफान भी थमने लगा. वो अंतिम कुछ धक्के तेज मारे और एकदम आखिर के तीन चार धक्कों पर अपनी गति बहुत धीमी कर दी जैसे कि वह ट्रेन की प्रशिक्षित चालिका हो, और एक बार में ही ब्रेक मारने से दुर्घटना हो जायेगी।
तनु मुझ पर ही लुढ़क गई और लिपट कर लेट गई, मैं तनु के पूरे शरीर को सहला रहा था, अब हमारा तन मन फूल जैसा हल्का निश्छल और निर्मल हो चुका था। शायद ऐसे लेटे ही हमारी नींद लग गई.
तभी दरवाजे पर आहट हुई, मैंने अपने कपड़े जल्दी से पहने बाल बिखरे हुए ही थे..और जाकर दरवाजा खोला बाहर आँटी जी ने आँख दिखाते हुए कहा- कहीं बीच में तो परेशान नहीं कर दिया मैंने? उनका यह कथन व्यंग्य था। मैंने हकलाते हुए कहा- नहीही… आँटी वो व़ववो नींद लग गई थी।
उन्होंने फिर तीखे स्वर में कहा- आजकल किसी को थोड़ी आजादी दो तो सर पे चढ़ जाते हैं, मैं दो घंटे के बजाय चार घंटे में लौटी हूँ, फिर भी मुझे दरवाजे पर आधे घंटे खड़े रखा। अब मुझे समय का अहसास हुआ क्योंकि अभी तक मैंने इस बारे में सोचा ही नही, और सोचता भी कैसे ऐसे समय में दिमाग कुछ और सोचता है क्या!
मैंने सर झुका कर सॉरी कहा और आँटी के साथ सामान रखने लगा. आँटी के चेहरे की खीझ बता रही थी कि वो अपनी जगह तनु के साथ ये सब होने से थोड़ी नाखुश थी। पर मैं कर भी क्या सकता था ये खीझ एक ना एक दिन तो होनी ही थी।
अब तक तनु ने कपड़े पहन लिये थे, बाल और चेहरा ठीक कर लिया था, और वो किसी नौयवना की पहली सुहागरात के बाद वाली खूबसूरती और शर्मों हया के साथ कमरे से बाहर निकली. अब वो अपनी माँ से नजर नहीं मिला पा रही थी इसलिए वो तुरन्त विदा लेकर अपने घर के लिए निकल गई।
मुझे भी वहाँ ज्यादा देर रुकना ठीक ना लगा तो मैंने आँटी से इजाजत मांगी, तो उन्होंने थोड़े धीमे स्वर में कहा- तो अब इलाज कब शुरू होगा? और इलाज के लायक सब कुछ हुआ या नहीं? वास्तव में वो हमारे सम्भोग कार्यक्रम को जानना चाहती थी। अब मैंने चुटकी लेते हुए कहा- तनु आपकी बेटी है आँटी जी, हर अदा, हर कार्य में माहिर है। मैं तो उसे एक पल भी ना छोड़ूं… पर इलाज का प्रोग्राम दो दिन बाद का बना लेते हैं।
मेरी इन बातों पर आँटी का भी चेहरा खिल गया था, या शायद ये मेरा भ्रम था.. पर फिर भी उन्होंने खुशी को छिपाते हुए कहा- ठीक है, जैसा तुम ठीक समझो। और मैंने मुस्कुरा कर ही धन्यवाद ज्ञापित किया और लौट आया।
कहानी जारी रहेगी… अपनी राय इस पते पर दें. [email protected] [email protected]
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