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आप सभी को संदीप साहू का प्यार भरा नमस्कार, आपके निरंतर संदेशों के लिए हृदय से आभार। मेरी कहानी के पहले भाग में आपने पढ़ा कि मैंने तनु भाभी की बहन और माँ की मदद के लिए एक बड़ा सा घर कम किराये पर ले दिया. अब आगे…
अगले दो दिन बाद तनु भाभी की माँ और उसकी बहन (छोटी) आ गये। उन्हें लाने के लिए बस स्टाप पर मैं ही गया था, मुझे पहुँचने में पांच मिनट की देर हो गई, मैंने बस स्टाप में देखा तो बहुत सी महिलाएं इधर उधर नजर आई, पर उनमें से किसी के साथ कोई पागल जैसी लड़की नहीं थी, और ना ही कोई वृद्धा ही नजर आ रही थी. मैंने तनु को फोन करके कहा- मैं तुम्हारी माँ और बहन को पहचान नहीं पा रहा हूँ, तुम जल्दी से उनकी फोटो व्हाटसप करो। इतना सुनते ही पहले तो वो चिल्लाई- तुम मेरी माँ को पहचान भी नहीं सकते? और फिर जल्दी से पिक भेज दी।
फोटो देखते ही मेरा मुंह खुला का खुला रह गया, वो किसी भी तरह से तनु भाभी की माँ लग ही नहीं रही थी, वो तो तनु की बड़ी बहन नजर आ रही थी। मैंने सोचा कि फोटो में तो सभी अच्छे दिखते हैं, हो सकता है ये पुरानी फोटो होगी। और अब मैंने फोटो से कम सुंदर महिला को ढूंढने का प्रयास किया, पर मैं बड़ी मुश्किल से ही उन्हें ढूंढ पाया क्योंकि वो तो पिक से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत थी, इसलिए मुझे पहचानने में और दिक्कत हुई।
वो हल्के पीले रंग की हरी और लाल बार्डर वाली प्लेन साड़ी पहने हुई थी, फीके पीले रंग की ही ब्लाउज के भीतर से काले रंग की ब्रा स्पष्ट झलक रही थी, 34-28-36 का साईज रहा होगा, पर चौंतीस की साइज के उभार भी छत्तीस के उरोजों जैसे कामुक और भारी लग रहे थे। कूल्हों पर ईश्वर की विशेष कृपा थी, अतिरिक्त उभार लिये नितम्ब देख कर किसी का भी मन मचलना स्वाभाविक था। हाईट शायद 5’2″ की होगी, सर को ढक कर सलीके से खड़ी, सुंदर सी सैंडल और हाथ में बैग के साथ नशीली आँखों में नंबर वाला सुंदर सा चश्मा था।
औरों की तरह मेरी भी नजर उनके उन्नत उभारों पर पड़ते ही मन मचल उठा, फिर सूने गले का ध्यान आते ही उस पर तरस भी आया। सूनी मांग, सूनी कलाई और उम्र दराज होने के बावजूद उसका उजला और कसा हुआ शरीर किसी नव यौवना से प्रतियोगिता के लिए पूर्ण तैयार नजर आ रहा था। मैं तो यही सोच रहा था कि यह मांग उजड़ने के पहले और कितनी खूबसूरत लगती रही होगी। और तनु भाभी ने कभी अपनी माँ की खूबसूरती का जिक्र क्यों नहीं किया। यही सोच रहा था कि मुझे हँसी आ गई और मैंने अपने ही सर पे एक चपत लगाते हुए खुद से कहा ‘पगले, कोई अपनी माँ के बारे में यह थोड़े ना कहता है कि वो कामुक है और तुम्हारे भोगने लायक है।’
उनसे नजर मिली तो उन्होंने भी एक निश्च्छल मुस्कुराहट के साथ अभिवादन किया या कहिए कि उसकी आभा ने प्रकृति को खुशनुमा बना दिया। अब तक मैं चल कर उनके पास तक पहुंच चुका था, मैंने खुद को संभालते हुए बुरे विचारों को मन से बाहर किया या कहिये कि मुझे मेरे संस्कारों ने संभाल लिया और मैंने भाभी की माँ सुमित्रा देवी को पूरी इज्जत देते हुए उनके पैर छूने की कोशिश की पर उन्होंने मना कर दिया तो नमस्ते से काम चल गया।
मैंने उन्हें अपना नाम बताया- जी मैं संदीप हूँ, छोटी (अनीता) कहाँ है दिखाई नहीं दे रही है? शायद भाभी ने उन्हें मेरे बारे में बता रखा था इसलिए उन्होंने मुझे तुरन्त ही पहचान लिया था, फिर इशारा करके छोटी को दिखाया, वो प्रतीक्षालय के एक कोने में सिमट कर बैठी थी, अधोविकसित स्तन और मैली कुचैली सी लड़की, बाल बिखरे से थे। खाने पीने का होश नहीं, पतली दुबली सी लागभग 5’3″ हाईट की लड़की जिसके शरीर की हड्डियाँ नजर आ रही थी, आँखों में डर चेहरे पर खौफ… जी हाँ वही लड़की तनु भाभी की छोटी बहन अनिता थी, जिसे सब छोटी कहकर बुलाते थे।
मैं उन्हें अपनी कार में बिठा कर सीधे तनु भाभी के घर गया, पर रास्ते में छोटी ने एक अजीब हरकत की उसने मुझे जोर से चुटकी काटते हुए कहा- क्या तुम भी मुझे चोदोगे? और मेरे माथे से पसीना फूट पड़ा, लेकिन उसकी माँ ने तुरन्त उसका मुंह दबाते हुए कहा- संदीप, ये ऐसे ही बड़बड़ाते रहती है। यही इसकी बीमारी है। यह कहते हुए उसकी माँ की आँखें भर आई थी और गला भारी हो गया था, वो बेइतहां शर्मिंदगी के बोझ में दबने लगी थी।
मैंने कुछ नहीं कहा, बस उन्हें तनु भाभी के घर पहुँचाया, वहाँ उनका पारिवारिक मिलन हो ही रहा था कि मैं उनसे विदा लेकर और दूसरे दिन उन्हें किराये के मकान में शिफ्ट कराने की बात कह कर मैं वापस आ गया। दूसरे दिन मैं सुबह दस बजे ही उनके घर पहुँच गया, उस वक्त भाभी अपने पति देव से फोन पर बात कर रही थी कि लल्ला (भाभी का बेटा) को स्कूल से बुला कर अपने पास ही रख लेना, रात को मुझे देर हो सकती है, आपके लिए खाना बना कर रख दिया है, आप घर आकर दूसरी चाबी से ताला खोल लेना।
सामने से क्या जवाब आया मैं नहीं जानता, लेकिन इतना कह कर भाभी ने मुस्कुराहट के साथ मुझे ‘अब चलें?” कहा, और मैं यंत्रवत उनका सामान उठाने लगा।
हमारे अगले दो तीन घंटे मकान को व्यवस्थित करने, और जरूरत की छोटी मोटी चीजें लाने, पौंछने, जमाने में निकल गये, भाभी खूबसूरत और मार्डन होने के साथ ही घरेलू महिला भी थी, उसकी माँ प्रशिक्षित गृहणी थी, और मैं स्थानीय व्यक्ति इसलिए हमें घर को रहने लायक बनाने में ज्यादा देर भी नहीं लगी।
उसके बाद उन्होंने जान पहचान की कुछ बातें आगे बढ़ाते हुए जल्दी से खाना बनाया, और मैं कुछ आवश्यक छूटी हुई चीजों को बाजार से खरीद लाया, फिर मैंने भी उनके साथ ही खाना खाया. इस दरमियान छोटी ने फिर वही बात दोहराई- क्या तुम भी मुझे चोदोगे?
सभी सर झुका कर खाना खाने लगे, तो छोटी ने फिर कहा.. तुम्हारा लौड़ा कितना बड़ा है? इस बार उसकी माँ ने उसे डाँटा और उदास हो गई तो छोटी ने मिमयाते और रोते हुए कहा- बहुत दर्द होता है माँ..! खून भी आता है, इसलिए पूछ रही हूँ। फिर उसकी माँ और तनु भी रो पड़े।
गनीमत है कि हमारा खाना लगभग खत्म हो चुका था, लेकिन इन बातों के बाद मेरी आँखों से भी आँसू बह आये, और बचा हुआ दो चार निवाला भी नहीं खाया जा सका।
फिर उसकी माँ ने उसे जबरदस्ती एक गोली खिलाई और बिस्तर पर लिटा दिया और थोड़ी ही देर में छोटी गहरी नींद में सो गई।
मैं सांस रोके ये सब देखते रहा, अब उसकी माँ हमारे पास आकर जोर जोर से रोने लगी, तनु पहले से ही सिसक रही थी और सिसकते हुए ही उसने कहा- देखा संदीप, माँ ने उसे कैसे नींद की गोली खिला के सुलाया, किसी दिन उसे ऐसे ही जहर देकर सुलाना ना पड़ जाये। छोटी सभी के साथ ऐसा ही बर्ताव करने लगती है और कभी कभी तो ऐसी हरकतें भी कर जाती हैं जिसे बता पाना भी संभव नहीं है, पता नहीं इस पागल लड़की का इलाज कैसे होगा। बोलो संदीप तुम मेरी बहन को ठीक कर दोगे ना..! बोलो ना तुम चुप क्यों हो, तुम ही हमारी आखरी उम्मीद हो। आखिर समाज के दरिंदों ने इस मासूम को पागल, विक्षिप्त बनाया है, तो समाज का ही कोई व्यक्ति इसे फरिश्ता बन कर ठीक कर सकता है। और अगर ऐसा नहीं हुआ तो मेरे साथ पूरी नारी जाति इस समाज और इश्वर को कभी माफ नहीं करेगी।
तनु ने बहुत ज्यादा बड़ी बात कह दी थी। अब मुझे काटो तो खून नही..! मैंने खुद को संभालते हुए और इस काम से बचने के लिए कहा- देखो तनु, मैं कोई डॉक्टर तो हूँ नहीं, हाँ, मैं कोशिश जरूर कर सकता हूँ, पर उसके लिए आप लोगों को मेरी हर बात माननी पडेगी, लाज शर्म के दायरे से बाहर आना होगा, तन मन धन तीनों की बरबादी के लिए तैयार रहना होगा, और तब भी मैं इसके पूर्ण रूप से ठीक होने की गारंटी नहीं दे सकता। ये सब मैंने उससे पीछा छुड़ाने के लिए यूं ही कहा था।
पर भाभी ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा- मुझे तुम्हारी हर बात मंजूर है.
तभी उसकी माँ ने कहा- संदीप, मुझे जब तनु ने तुम्हारे बारे में बताया तो मैंने तुम्हारे बारे में बारीकी से जानकारी मांगी, तब इसने मुझे तुम्हारी सारी बातों के साथ तुम अन्तर्वासना के लेखक हो इस बारे में भी बताया, मैंने तुम्हारी कहानियाँ भी पढ़ी हैं, और ये सब पढ़ कर, जान कर मैं तुम पर पूरा भरोसा कर सकती हूँ। और अभी हम जिस हालात में है उस हालात में ना ही शर्म बाकी है और ना ही कुछ और सोच समझ बाकी है। नहीं तो कोई सामान्य हालातों वाला इंसान अपनी बेटी से ऐसी बातें नहीं करता, और ना ही किसी के सामने हाथ फैला कर ऐसी मदद मांगता। हम बहुत सी जगहों से निराश हो चुके हैं। कुछ जगहों पर धोखा भी खा चुके हैं, अब तुम पर भरोसा करने के अलावा और कोई उपाय भी नहीं है। तुम चाहे जो करो, पर मेरी बेटी को पहले जैसा ठीक कर दो। और इसीलिए हम यहाँ आये भी हैं ताकि बदनामी का डर भी ना हो, और इसकी पागल हरकतों को कोई जान या सुन ना पाये, शायद इसकी हरकतों की वजह से ही हम तनु के घर भी नहीं रह पा रहें हैं। ऐसा कहते हुए उसने मेरे सामने अपने हाथ जोड़ लिए।
मैं पसीने से तर बतर हो गया। मैंने एक गिलास पानी मांगा और ‘ठीक है, मैं तैयार हूँ.’ कहते हुए दूसरे दिन मिलने की बात करके मैं आ गया। और दिन भर, रात भर उनकी बातों को ही सोचता रहा, अपने दिमाग में बुरे काम की वजह से पागल हो चुकी लड़की को ठीक करने का कोई उपाय सोचता रहा, पर कुछ सूझता ही नहीं था, उस दिन मैं ठीक से सो भी नहीं पाया। पर दूसरे दिन अनमने मन से मैं तनु की माँ के घर पहुँचा।
वहाँ तनु की माँ काम कर रही थी और एक कोने में छोटी बड़बड़ाते बैठी थी। आज तनु नहीं आने वाली थी।
उसकी माँ ने मुझे पानी दिया और बैठने के लिए कहा, पर मैं छोटी के सामने चले गया, तो छोटी ने रोते हुए फिर कहना शुरू कर दिया- तुम मुझे चोदने आ रहे हो ना.. तुम मेरी गांड भी फाड़ोगे ना? तुम मेरी चूत, गांड सब फाड़ डालोगे, तुम मुझे मत चोदो… तभी उसकी माँ ने उसे चुप कराने की कोशिश की, तब मैंने उसकी माँ से कहा.. यहाँ मेरे अलावा और कोई नहीं आता, अब आप मेरे से मत शर्माइये, इसे जैसा बोलना है बोलने दीजिए।
फिर मैं छोटी के पास जाकर बैठा तो वो और डर गई और रोते हुए मुझे मारने पीटने लगी। यह बात तो तय थी कि उसके साथ बुरा काम ही हुआ था। मैंने छोटी को मारने या कुछ कहने से नहीं रोका, हालांकि मुझे चोट लग रही थी, पर मैं सब सहता रहा। फिर जब वो थकने लगी तब मैने कहा- देखा छोटी, तुमने मुझे मारा पीटा, तब भी मैंने तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया! इस दुनिया में सभी लोग बुरे नहीं होते.. कुछ अच्छे लोग भी होते हैं। और बुरे लोगों को उनके किये की सजा भी मिल ही जाती है।
छोटी अचानक हंसने लगी- सजा.. सजा… सजा तो मुझे मिली है… तो क्या मैं बुरी हूँ। मैं हड़बड़ा गया मेरे पास जवाब नहीं था, लेकिन एक विक्षिप्त इंसान से बात करते हुए उसे बच्चों जैसा बहलाने फुसलाने की कोशिश कर रहा था- नहीं छोटी, तुम तो बहुत अच्छी हो, उन दुष्टों को सजा मिलेगी जिन्होंने तुम्हारी ये हालत की है और वो भी बहुत भयंकर सजा मिलेगी। तो उसने अचानक ही रोते हुए कहा- कब मिलेगी सजा.. बताओ ना उन्हें सजा कब मिलेगी? मैंने भी दृढ़ स्वर में कहा- जल्द ही मिलेगी छोटी… बहुत जल्द मिलेगी।
मेरे इतना कहते ही छोटी नाचने लगी, अपनी माँ की बाहों में झूल गई और कहा- ये आदमी बहुत अच्छा है माँ। ये मुझे नहीं चोदेगा, ये मुझे मारेगा भी नहीं। उसकी माँ खुश भी हुई और शर्मिंदा भी, फिर उसकी माँ ने कहा- चल छोटी अब तुझे दवाई खिला देती हूँ! तो छोटी मना करने लगी और मैंने भी कह दिया कि आज से छोटी को नींद की दवाई नहीं खिलानी है.
उसकी माँ ने अगर मगर करने की कोशिश की लेकिन मैंने साफ कह दिया- छोटी को और कोई जरूरी दवाई हो तो ही खिलाना है, नहीं तो नींद की गोली बिल्कुल ही नहीं खिलानी है, बल्कि अब आप उसकी सेहत का ध्यान रखते हुए अच्छे पौष्टिक आहार जो उसके शरीर को जल्दी मजबूत कर सके, डॉक्टर की सलाह लेकर उसे खिलाइये। उन्होंने हाँ कहा और मैं उनसे इजाजत लेकर लौट आया।
ये तो मेरे मन में उस समय जो आया, मैं कह गया या करवा दिया, पर मैं छोटी के इलाज की कोई प्लानिंग अब तक नहीं कर पाया था। ऐसे ही लगभग एक हफ्ते होने को आये, मैं दस पंद्रह मिनट ही समय देकर लौट आता था पर आगे क्या करना है, ये बता नहीं पा रहा था।
एक दिन दोपहर के वक्त तनु भाभी का फोन आया, उसने मुझे अपने घर बुलाया। फोन पर आवाज ज्यादा स्पष्ट नहीं थी पर मुझे पता था कि उस वक्त उनके घर पर कोई नहीं है, इसलिए मैं बिंदास चला गया और मन में लालच भी था कि हो ना हो भाभी आज मेरी इच्छा पूरी करने के मूड में मुझे बुला रही है।
पर वहाँ जाते ही मुझे झटका लगा, तनु भाभी का रो रोकर बुरा हाल हो गया था, मेरे जाते ही वो मुझसे लिपट गई और फूटकर रोने लगी, रोने के कारण कुछ कह नहीं पा रही थी, मेरे बहुत समझाने पर उसने कहना शुरू किया- मेरे कारण पूरा परिवार कि बर्बादी हो गई; रोहन चला गया; छोटी पागल हो गई; बाबू जी को दिल का दौरा पड़ गया और अब माँ… मैंने फिर पूछा- माँ को क्या हुआ तनु? तो वो और जोरों से रोने लगी और वैसे ही रोते हुए कहने लगी- और अब माँ… की जिन्दगी भी.. बाबू जी के बिना बिखर गई है।
तनु के पिता को गुजरे चार साल से ज्यादा हो गये थे, फिर माँ की जिन्दगी आज अचानक कैसे बिखर गई है, ये मेरे समझ में नहीं आ रहा था।
कहानी जारी रहेगी.. [email protected] [email protected]
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