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सभी पाठकों को मेरा नमस्कार! मेरा नाम रितिका है, मैं हिमाचल प्रदेश के कुल्लू शहर से हूं। ये मेरी पहली एडल्ट स्टोरी है तो कोई त्रुटि हो जाए तो माफ़ी चाहूंगी।
सबसे पहले मैं अपने बारे में बता दूं। मेरी उम्र 43 वर्ष है और 7 साल पूर्व मेरा तलाक हो चुका है। मेरा एक 18 वर्षीय बेटा है जो अब दिल्ली में पढ़ाई कर रहा है। तलाक के बाद से मैं अपने बेटे के साथ एक अलग घर में रहने लग पड़ी जो मुझे कोर्ट के फैसले के बाद मिला। शादी के बाद से मैं पति के बिज़नेस में साझेदार थी लेकिन तलाक़ होने के बाद मैंने उनसे अलग हो के अपना बिज़नेस अलग कर लिया। मेरा रंग गोरा है और मेरा फिगर 34-32-36 का है। पिछले 7 सालों से मैं शहर में एक ट्रैवल एजेंसी संचालित कर रही हूँ। तलाक के बाद मेरा ध्यान बेटे की पढ़ाई, उसकी परवरिश और बिज़नेस सम्भालने में लग गया और कभी अकेलापन महसूस नहीं हुआ।
इसी तरह 7 साल बीत गए लेकिन कुछ समय पहले कुछ ऐसा हुआ कि जिसने मेरी ज़िंदगी को बदल के रख दिया। ज़्यादा देर न करते हुए वो किस्सा सुनाती हूँ।
इस साल जुलाई में मेरे पास एक दिल्ली से कॉलेज के लड़के लड़कियों का ग्रुप घूमने के लिए आने वाला था जिसमें कुल मिला कर 40 लोग थे। अधिकांश लोग एक ही कॉलेज से थे और बाकी कुछ लड़के एक अलग ग्रुप के थे जो पढ़ते नहीं थे पर दिल्ली में नौकरी करते थे। एजेंसी का नियम है कि बुकिंग बैच में ही होती है इसलिए उन्होंने भी इसी ग्रुप के साथ पैकेज बुक करवा लिया था। दिल्ली से लक्ज़री बस से आने तक से ले कर के घूमने, 2 दिन ठहरने और उसके बाद शिमला पहुंचाने तक की जिम्मेदारी एजेंसी की थी।
तय कार्यक्रम के अनुसार बस शुक्रवार की सुबह ग्रुप को ले कर कुल्लू पहुंची और सबको होटल में ठहराया गया। मेरे स्टाफ के एक कोऑर्डिनेटर को ग्रुप को गाइड करने की जिम्मेदारी दी गयी थी
सुबह के करीब 11 बज रहे थे और मैं दफ्तर में थी कि तभी उस ग्रुप में से 4 लड़के मेरे पास आये और उन्होंने बताया कि जो जगहें पैकेज में हैं वो लोग पहले वो जगहें देख चुके हैं। वो लोग मनाली के पास एक झील है, वहां का ट्रैक करना चाहते हैं। पहले तो मैंने मना कर दिया क्योंकि यह एजेंसी के नियमों के खिलाफ है और अलग पैकेज बनता है। लेकिन जब वो एक्स्ट्रा पैसे भुगतान करने के लिए मान गए तो मैंने उन्हें एक गाइड और पोर्टर अरेंज करवा के ट्रेक के लिए भेज दिया। उनकी रविवार को शाम 4 बजे की बस थी तो उन्हें उससे पहले वापिस आने के लिए बता दिया गया। उसके बाद मैं ऑफिस के बाकी कामों में व्यस्त हो गई।
तय कार्यक्रम के अनुसार शनिवार शाम तक या ज़्यादा से ज़्यादा रात तक उस ट्रेकिंग को गए हुए दल को वापिस लौट आना चाहिए था लेकिन वो लोग नहीं पहुंचे।
मौसम और अन्य कारणों से ऐसा होना सामान्य बात है इसलिए मैंने इस बारे में ज़्यादा नहीं सोचा। रविवार को जब मैं सुबह दफ्तर पहुंची तब तक भी वो लोग वापिस नहीं आये थे; तब मुझे चिंता होने लगी; ट्रेकिंग पर ऊपर पहाड़ों में नेटवर्क नहीं होता है जिस वजह से उनका फोन नहीं लग रहा था पिछले दो दिनों से। लेकिन जब रविवार को भी किसी का फोन नहीं लगा तो मेरी चिंता बढ़ने लगी, शाम होने को आ गयी थी और उनकी अभी तक कोई खबर नहीं थी।
शाम के 4 बज गए और बस के जाने का वक़्त हो गया। बाकी लोगों के कार्यक्रम को खराब न करते हुए कुछ देर इंतज़ार करने के बाद बस चली गई।
इस बैच को निपटाने के बाद मैं भी कुछ दिनों के लिए अपनी गाड़ी से शिमला जा रही थी। मेरी सहेली रीमा को भी शिमला जाना था इसलिए वो भी साथ में चलने वाली थी। लेकिन जब वो ट्रेक्किंग पर गया हुआ दल वापिस नहीं पहुंचा तो मैंने सहेली को बोला कि अब मैं आज नहीं जा पाऊंगी इसलिए कल चलते हैं। लेकिन रीमा का शिमला पहुंचना ज़रूरी था क्योंकि अगले दिन उसके किसी रिश्तेदार के घर में कुछ कार्यक्रम था तो मैंने एजेंसी वाली बस में ही रीमा का अरेंजमेंट करवा दिया और वो चली गई।
लगभग 7 बजने को हो गए थे, जब मैंने ऑफिस के बाहर कुछ मर्दों के बहस करने की आवाज़ सुनी। मैंने बाहर निकल कर देखा तो वो दल लौट कर मेरे दफ्तर की तरफ ही आ रहे थे और एक पोर्टर के साथ बहस कर रहे थे। मैंने सब को सकुशल देख के चैन की सांस भरी और समझ गयी कि कुछ गड़बड़ ज़रूर है।
वो सब मेरे ऑफिस में आए और पोर्टर के साथ तब भी उनकी बहस जारी थी। जिस गाइड को मैंने साथ में भेजा था वो छुट्टी के चक्कर में पोर्टर के हवाले कर के भाग गया था। और पोर्टर ने ज़्यादा पैसे बनाने के चक्कर में उनको एक बड़े ट्रेक पर ले जाने की डील कर ली थी जहां का रास्ता उसे खुद नहीं पता था। 2 दिन जंगलों, पहाड़ों में भटकने के बाद बमुश्किल वो लोग वापिस पहुंचे थे। काफी देर की बहसबाजी के बाद जब असल बात का पता मुझे चला तो मैं बहुत शर्मिंदा हुई। मैंने उनसे माफी मांगी और उनके पैसे रिफंड करने की बात की तब वो लड़के जा के शांत हुए।
अब समस्या यह थी कि वो लोग उसी दिन शिमला जा के बाकी के ग्रुप के साथ आगे का कार्यक्रम जारी रखना चाहते थे।
मैंने राज्य परिवहन निगम और बाकी ऑपरेटरों की बसों के टिकट ऑनलाइन चेक किये लेकिन सब बसें पहले से ही बुक हो चुकी थी। मैंने उनसे कहा कि आप लोग आज फ़्री में होटल में रुक जाओ जहां आपके रहने खाने का बंदोबस्त मुफ्त होगा और कल दिन को बस में शिमला चले जाना। लेकिन उन्होंने मना कर दिया और कहा- हम नौकरी करते हैं और सारा कार्यक्रम अवकाश के हिसाब से तय है इसलिए ऐसा मुमकिन नहीं है।
उनमें से एक लड़का बोलने लगा- आप राइटिंग में दे दीजिए, बाकी हम कंज्यूमर कोर्ट में देख लेंगे। अब सारा मसला वहीं सुलझ जाएगा।
ऐसी नौबत पहले कभी नहीं आयी थी और मैं इस झंझट में नहीं पड़ना चाहती थी। ऊपर से मैं बहुत शर्मिंदा थी। तभी मेरे दिमाग में ख्याल आया कि मैंने कल शिमला के लिए जाना है क्यों न मैं आज ही निकल जाऊं और इन लड़कों को भी साथ में ले जाऊं। साथ भी हो जाएगा और सब मामला भी निपट जाएगा।
वो लोग भी मान गए और मैंने उन्हें होटल जा के डिनर करने और फिर 1 घण्टे में वापिस दफ्तर के बाहर मिलने के लिए बोल दिया। वो लोग बताए गए समय पर पहुंच गए और हम लोग चल पड़े। लेकिन मुझे शिमला में मशोबरा जाना था इसलिए मैंने पण्डोह से अलग रास्ता लिया।
हम लगभग 8 बजे के करीब निकले थे और लगभग रात का एक बजने को हो आया था। मेरा अक्सर शिमला चंडीगढ़ आना जाना लगा रहता है इसलिए मुझे ड्राइव करने की आदत है। पीछे बैठे हुए लड़के थके थे इसलिए सो गए थे; आगे जो लड़का बैठा था उससे बीच बीच में सामान्य बातें हो रही थी।
जुलाई के दिन थे और मॉनसून शुरू हो चुका था। बीच बीच में हल्की बारिश भी हो रही थी। इस रूट पर ट्रैफिक काफी कम था।
थोड़ा आगे चल कर एक लड़के ने बोला कि फ्रेश होने के लिए रुकना है। मैंने गाड़ी साइड में एक जगह खड़ी कर दी और वो लोग उतर गए। 5 मिनट बाद जब दोबारा चलने के लिए मैंने गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश की तो गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई। मैंने 4-5 बार फिर कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ। सब नीचे उतर के बोनट खोल के इंजिन चेक करने लगे लेकिन फिर भी समस्या हल नहीं हुई। समस्या है क्या यही नहीं पता चल रहा था।
रात के 2 बजे के करीब हो चुके थे और हम सुनसान सड़क के किनारे खड़े थे; आसपास कोई बस्ती नहीं थी और न ही कोई ढाबा या मैकेनिक की दुकान दिख रही थी जहां किसी से मदद की उम्मीद की जाए। तभी उन लड़कों ने आपस में डिसाइड किया कि उनमें से 3 लोग आगे पैदल जा के कोई मेकेनिक या बस्ती या दुकान वगैरा ढूंढते हैं और तब तक मैं और एक लड़का गाड़ी में ही इंतज़ार करें। सबने हामी भरी और वो लोग चले गए।
अब हम अंदर गाड़ी में बैठे बातें कर रहे थे। मुझे थोड़ा अजीब सा लग रहा था, सुनसान सड़क पर 4 अजनबी मर्दों के साथ; किसी परेशानी में न पड़ जाऊं। लेकिन अब किया भी क्या जा सकता था। मेरे चेहरे पर परेशानी देख कर वो लड़का मुझसे बातें करने लग पड़ा; उसका नाम यश था; उसने अपने बारे में बताया था कि वो सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और गुड़गांव में नौकरी कर रहा है।
मैं किसी से अपने निजी जीवन के बारे में बात करना पसन्द नहीं करती थी लेकिन जब उसने परिवार के बारे में पूछा तो उसे मैंने बातों बातों में बताया था कि मैं तलाकशुदा हूँ। उसने मुझसे पूछा कि क्या आपका कोई बॉयफ्रेंड है? मैंने मना किया तो वो कहने लगा कि मैं मान ही नहीं सकता हूँ कि आप जैसी सुंदर और 30-32 साल की सक्सेसफुल औरत का कोई बॉयफ्रेंड न हो।
मुझे अपनी इतनी तारीफ सुन के बड़ा अच्छा लग रहा था। जब मैंने उसे अपनी उम्र बताई तो उसकी आंखें फ़टी रह गई। वो मेरे साथ अब थोड़ा खुल के फ्लर्ट कर रहा था और मैं ज़्यादा साथ तो नहीं दे रही थी बस मुस्कुरा के सवालों के जवाब दे रही थी।
बारिश होने की वजह से ठंड हो गयी थी और तभी उसने पूछा- क्या आप ड्रिंक करती हो? मैंने कहा- हां कभी कभी शैंपेन लेती हूं। तो उसने अपने बैग से व्हिस्की की एक छोटी बोतल निकाली और पूछा कि मुझे अगर कोई आपत्ति न हो तो क्या वो एक पेग ले सकता है। मैंने उसे मना नहीं किया।
मैं फोन में मेसेज देखने में व्यस्त थी जब उसने 2 पेपर कप निकाल कर उनमें व्हिस्की डाल के सजा दिये। जैसे ही मेरी नजर पड़ी मैंने पूछा- ये दूसरा किसके लिए है? मैं नहीं पीती हूँ और ड्राइव करते हुए तो बिल्कुल नहीं।
लेकिन यश ने मुझे प्यार से काफ़ी बार पूछा। पता नहीं मुझे क्या हुआ कि मैंने सोचा एक ड्रिंक ले लेती हूँ; मैंने गिलास उठाया और पी लिया। गिलास बाहर फेंक के वापिस अंदर बैठ के बातें करने लगे।
यश अब फ्लर्टी बातें थोड़ी ज़्यादा करना शुरू हो गया। अब मुझे भी हल्का सा नशा होने लग गया था; मैं भी उससे थोड़ा खुल के बातें करने लग पड़ी।
कुछ देर बाद हम दोनों के चेहरे बात करते करते करीब आ गए। मेरा नशा एक दम से टूटा जब अचानक से मुझे किस कर दिया। मुझे कुछ समझ आता, इससे पहले मेरे होंठ उसके होंठों से मिल गए थे। मेरा नशा टूटा और जब मुझे एहसास हुआ तो मैंने उसे धक्का देकर खुद से अलग किया और उतर के बाहर चली गयी।
यश भी गाड़ी से बाहर उतरा और मेरे पास आ कर मुझसे बात करने की कोशिश करने लगा। मुझे कुछ होने लगा था। मैं उसकी आँखों में देख रही थी कि उसने पास आकर मुझे बाहों में जकड़ लिया और बेतहाशा चूमने लगा। मेरे शरीर में करेंट सा दौड़ गया और मैं उससे अलग होने की कोशिश करने लगी लेकिन वो 5 फीट 9 इंच का जिम जाने वाले शरीर का मालिक था और मैं फूल सी कली; ज़ोर लगाना बेकार ही था। मैं भी उसका साथ देने लगी।
उसके हाथ मेरी पीठ और मेरे चूतड़ों पर पहुंच गए और मेरे गोलमटोल चूतड़ों को दबाने लगे; मुझे आनन्द आने लगा; मैं कुछ समझ पाती, इससे पहले उसका हाथ झट से मेरी सलवार में था और उसने मेरी पैंटी में डाल कर मेरी चूत में उंगली घुसा दी। मेरे मुंह से हल्की सी आह की आवाज़ निकली; मेरा खुद को उससे छुड़ाने की कोशिश बेकार साबित हो रही थी। मेरी बाजुएँ निर्बल पड़ गई, मैं बहकने लग पड़ी थी, मैंने भी विरोध करना छोड़ दिया। उसने मुझे टाँगों से उठाया और जहां गाड़ी खड़ी थी उससे दायीं तरफ पेड़ थे वहां ले गया। उसने मुझे नीचे उतारा और मुझे फिर से चूमना शुरू कर दिया, मैं भी साथ दे रही थी। उसने मेरी कमीज़ उठाई और ब्रा उतारे बिना साइड कर के मेरे मोम्मे दबाने लगा। उसके सख़्त हाथ मेरे कोमल मोम्मों को बड़ी बेरहमी से मसल रहे थे। फिर उसने उन्हें चूसना शुरू कर दिया, वो एक निप्पल को हाथ में मसल रहा था और दूसरे को मुँह में ले कर चूस रहा था। मैं तो जैसे पागल हुई जा रही थी।
वो अचानक से रुका और नीचे झुक के मेरी सलवार नीचे खींच दी; मैं खड़ी रही और वो घुटनों पर बैठ कर पैंटी के ऊपर से मेरी गीली चूत को किस करने लग पड़ा। आह! मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी। उसने मेरी पैंटी नीचे की और मेरी चूत चाटने लग पड़ा। वो पागलों की तरह मेरी चूत चाट रहा था और मेरे सीत्कारों से बुरे हाल थे। ऐसा आनन्द मुझे सालों बाद अनुभव हो रहा था। मेरी शर्म हया सब खत्म हो रही थी। मैं अनजान मर्द के सामने लगभग पूरी नँगी खड़ी थी।
वो उठा और अपनी पैंट की ज़िप खोल के मेरे हाथ में अपना लन्ड थमा दिया। वो कोई 7 इंच लम्बा था और काफी मोटा था। वो उठा और मेरी चूत में उंगली करने लगा और मैं उसका लन्ड पकड़ के आगे पीछे कर रही थी। उसने पैंट सिर्फ थोड़ी सी नीचे की थी.
फिर यश ने मुझे रोका और मेरी सलवार और पैंटी उतार दी। अब मैंने ऊपर जो कुर्ती पहन रखी थी वो ऊपर तक उठी थी और नीचे मैं बिल्कुल नँगी थी। तभी उसने मुझे घुटनों के बल झुकने को कहा और मेरे मुंह के आगे अपना मोटा लन्ड कर दिया। मुझे पहले लौड़ा चूसना पसंद नहीं था पर उस दिन मैं पागल हो गयी थी। मैंने उसे 1-2 बार न नुकर की और झट से मान कर उसका लौड़ा मुँह में ले कर चूसने लगी।
मैं उसका लौड़ा चूसने में इतनी मदहोश थी कि मुझे आवाज सुनाई दी- ये क्या हो रहा है?
मैंने एक दम से पीछे मुड़ के देखा तो पीछे बाकी 3 लड़के खड़े थे। मैं घुटनों के बल बैठी थी और मैंने हाथ में यश का लौड़ा पकड़ रखा था। मैं कुछ रिएक्ट कर पाती इससे पहले ही उनमें से एक बोला- क्या बात है यश, तू तो बड़े अच्छे से पैसे वसूल कर रहा है मैडम से? मैं झट से खड़ी हो गयी और अपनी सलवार पहन के कपड़े ठीक करने लगी।
तभी उन में से एक लड़का मेरे पास आया और बोला- अरे रहने दो मैडम, ऐसे बहुत खूबसूरत लग रही हो। मैं शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी। वो मेरे पास आया और ज़िप से अपना लन्ड निकाल के मेरे हाथ में पकड़ा दिया। मैंने उसे कहा- मैं ऐसी औरत नहीं हूँ।
तो बाकी के 2 लड़के आगे आये और बोले- हां, अभी दो मिनट पहले यश का लौड़ा चूस रही थी तब देख लिया हमने कि तुम कैसी औरत हो। थोड़ा मजा हमें भी करने दो। यश अब तक चुप खड़ा था। मैं कहाँ फस गयी मैं ऐसा सोच रही थी।
तभी एक लड़का जिसने मुझे अपना लन्ड पकड़ाया था; उसने फिर से मेरे हाथ में ज़बरदस्ती अपना लन्ड दे दिया और मेरा हाथ पकड़ के आगे पीछे करने लगा। मुझे लग गया पता कि आज ये सब मेरी चूत मारे बिना मुझे नहीं छोड़ेंगे। मैं भी सेक्स की आग में तप रही थी, कब तक सहन कर पाती; मैं बेशर्म हो के उसके लन्ड को हिलाने लगी।
बाकी सबको तो जैसे हरी झंडी मिल गयी; सबने पैंट उतारी और मेरे इर्द गिर्द खड़े हो गए। अब मैं दोनों हाथों से मुठ मार रही थी और एक लड़के जिसका नाम अंकित था, उसने मेरे मुंह में लौड़ा डाल दिया वो चूसने लगी। थोड़ी देर बाद अंकित ने अपना लौड़ा मेरे मुँह से निकाला और मेरे हाथ में दे दिया। एक लड़का जो साइड में खड़ा था अब वो मुझे चुसवा रहा था। मैं किसी रण्डी की तरह ये सब कर रही थी।
तभी यश हटा और जेब से कॉन्डोम निकाल के अपने लन्ड पर लगाने लगा; अंकित ने भी कॉन्डोम चढ़ा लिया। मेरी चूत का भर्ता बनने वाला था; मैं 4 लौंडों से चुदने वाली थी।
तभी यश ने मुझे घोड़ी बनने को कहा। मैं नीचे झुकी और घुटनों के बल बैठ गयी। अब एक लड़के ने मेरे मुँह में अपना लौड़ा घुसा दिया और यश ने धीरे धीरे अपना लन्ड मेरी चूत में डालना शुरू किया। मैं नीचे से इतनी भीग चुकी थी कि ज़्यादा परेशानी नहीं हुई और उसने लौड़ा अंदर डाल दिया। अब वो पीछे से धीरे धीरे झटके मारने लगा और मैं मस्त हो कर सिसकारियाँ लेने लगी। मैंने दोनों हाथ जमीन पर रखे थे।
5 मिनट के बाद यश झड़ गया और दूसरा लड़का उसकी जगह आ गया, उसने भी मेरी चूत मारी, उसने कोई 10 मिनट तक मुझे चोदा। जिसका लन्ड मेरे मुँह में था, वो भी झड़ने को हो गया तो मैंने उसे मुँह में झड़ने से मना कर दिया, उसने लन्ड बाहर निकाल लिया।
पीछे से दूसरा लड़का ज़ोर ज़ोर से झटके मार रहा था; मुझे बच्चेदानी तक लन्ड महसूस हो रहा था; तब तक मैं 2 बार झड़ चुकी थी।
अब अंकित ने मुझे खड़ा किया और मुझे हग कर के गोद में उठा लिया; मैंने दोनों टाँगें उसकी कमर पर लपेट ली; उसने नीचे से मेरी चूत में लंड डाला और मुझे चूतड़ों से पकड़ कर ऊपर नीचे करने लगा। 10 मिनट उसने मुझे इसी पोज़ में चोदा। मैं एक बार फिर इसी पोजीशन में झड़ गयी। उसके बाद उसने मुझे नीचे उतारा, मेरी एक टांग उठाई और खड़े खड़े लन्ड डाल के चोदने लगा।
5 मिनट में वो झड़ गया। तब तक दूसरा लड़का आया और उसी पोजीशन में मुझे थोड़ा झुका के फिर चोदने लगा।
मैं रण्डी बन के चुद रही थी। जब वो झड़ गया तो मैंने मना कर दिया कि बस मैं और नहीं कर सकती। फिर मैंने कपड़े उठाये और गाड़ी की तरफ चल पड़ी।
एक लड़के ने मुझसे कपड़े ले लिए और बोला- ऐसे ही रहो थोड़ी देर! मैं पिछली सीट पर यश और एक लड़के के बीच में बिल्कुल नंगी बैठ गयी और अंकित और दूसरा लड़का आगे बैठे थे। यश ने अपना लन्ड बाहर ही रखा था और दोनों अपना लन्ड निकाल कर बोले कि अभी हमारा और चोदने का मन है। मैंने कहा कि मैं नहीं चुद सकती इससे ज़्यादा तो उन्होंने बोला- चूस के ही काम चला दो।
मैं यश का लौड़ा मुँह में ले लिया और दूसरे हाथ से लड़के की मुठ मारने लगी। यश उठ उठ के मेरे मुँह में अपना लन्ड ठूस के झटके मारने लगा। उसके बाद मैंने दूसरे लड़के का लौड़ा चूसा। अंकित और वो लड़का पीछे आ के बैठे और उन्होंने भी मुझे अपना लन्ड चूसवा दिया।
अब सुबह के 4 बज रहे थे और सब थक के चूर हो गए थे, सब वैसे ही कुछ देर सो गए।
थोड़ी देर बाद मैंने बाहर जा के कपड़े पहने, यश को जगा के मैंने किसी मैकेनिक को ढूंढने के लिए बोला। थोड़ी देर में सुबह गाड़ियां चलना शुरू हो गईं। यश और एक लड़का लिफ्ट ले के मैकेनिक को ढूंढने गए। करीब आधे घण्टे बाद वापिस लौटे। उसने गाड़ी देखी और मुरम्मत करने लग पड़ा। गाड़ी ठीक होते और हमें निकलते सुबह के 6 बजने को आ गए थे।
मैंने थकावट के बावजूद ड्राइविंग की और 11 बजे मशोबरा पहुँची। वहां उन सबको उतारा और टैक्सी का प्रबंध करवा के गेस्ट हाउस गयी। जाते ही बिस्तर पर धड़ाम से गिरी और सो गई।
दोपहर में उठी तो सारा शरीर दर्द कर रहा था। बरसों बाद इतनी जबरदस्त चुदाई हुई थी वो भी 4 लौंडों से! गर्म पानी से नहाई तो जा के आराम मिला। सारे शरीर में निशान पड़े थे और मीठा सा दर्द हो रहा था।
पिछली रात की बातें याद करते हुए ख्यालों में खोई रही। उस रात के बाद से मैं लुच्ची होने लग पड़ी। और भी किस्से हुए उसके बाद… वो फिर कभी सुनाऊँगी।
मेरा ईमेल एड्रेस [email protected] है। मेरी आपबीती एडल्ट स्टोरी कैसी लगी सुझावों में ज़रूर बताइएगा।
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