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मेरा नाम रानी है, मैं 21 साल की हूँ, पूर्वी उत्तरप्रदेश के एक छोटे कसबे में रहती हूँ. मैंने अपनी बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी कर ली है और अब मेरे पापा ने मेरे रिश्ते को पक्का कर दिया है. घर के पास एक भाभी और कुछ सहेलियां रहती हैं, उनमें जो कुछ सहेलियां शादीशुदा हैं, वो और भाभी मिल कर अक्सर मेरे को चिढ़ाती रहती हैं. भाभी- क्यों मेरी रानी, किसी लंड का स्वाद लिया या नहीं कि पूरी कुवांरी हो हो? “क्या भाभी आप तो बस..!” “क्या बस.. कल शादी होगी.. ऐसे शरमाओगी तो कैसे चलेगा? यदि जुगाड़ करना हो तो कह देना, बहुत से लौंडों से पहचान है. अकसर मेरे आस पास चुदाई के लिए मंडराते फिरते हैं.” “भाभी, आप ज्यादा मत बोलो, आप ही ले लो मजा.. मुझे नहीं लेना है.” “क्या तेरा मन नहीं करता चूत चुदाई करवाने का?” “चलो हटो भाभी.. क्या आपके पास कोई मुद्दा ही नहीं है बात करने का?”
और सभी सहेलियां कहती हैं- अच्छा छोड़ो ये चुत चुदाई की बातें.. बस यही बता दो कि कभी कोई लंड देखा भी है तुमने? सहेलियों के मुँह से लंड का नाम सुनते ही मैं चौंक जाती थोड़ी गर्म होने लगती, मेरा चेहरा लाल होने लगता और मेरी चुत में खुजली होने लगती.
आज जब फिर से मेरी एक सहेली ने लंड के बारे चर्चा की और पूछा कि कभी लंड देखा है? मैंने कहा- नहीं.. और ना ही देखना है. “देख ले.. नहीं तो पछताएगी कुंवारी चुत में चुदाने में जो मजा है वो शादी के बाद कहाँ है और एक बच्चा आ जाएगा तो हो गया काम.. फिर पति भी झांक कर नहीं देखेगा. वो भी बाहर ही मुंह मारेगा.”
मैं उसकी बातें छोड़ कर अपने कमरे आ गई और बाल्कनी में बैठ बाहर देखने लगी थी कि एक लड़का मेरी उम्र का होगा, उसने इधर उधर देखा और अपनी पैन्ट नीचे करके लंड निकाल कर पेशाब करने लगा. मैं उसे देख रही थी कि कितना बड़ा और मोटा लंड था उसका, पूरा लंड बाहर निकला हुआ था. मैंने पहली बार लंड को देखा था, मेरे नीचे चुत में न जाने कैसी अजीब सी हलचल होने लगी. मैं एकटक उसके लंड से निकलती मूत की धार को देख रही थी. उसने पूरा लंड झड़ा कर जैसे ही गर्दन ऊपर की, तो उसकी नजरें मेरे से टकरा गईं.
मैंने मुस्करा कर मुंडी नीचे कर दी.. मगर वो वैसे ही लंड को हाथ में लेकर हिलाने लगा. मैंने शर्मा कर अपनी एक उंगली मुंह में ले ली और अन्दर भाग आई. अन मेरी आंखों में वही लड़का और उसका लंड दिखने लगा.
दूसरे दिन मैं अपनी भाभी के यहाँ बालों में मेहंदी लगवाने चली गई. मैं बोली- भाभी, मेहंदी लगा दो ना. भाभी मान गईं और मुझे चेयर में बैठा दिया. मैंने अपनी शर्ट को खोल कर वहीं रख दिया. मैं समीज पहन कर बालों में मेहंदी लगवाने लगी.
तभी कुछ देर बाद भाभी ने कहा- रानी, तेरा सीना कितना बड़ा हो गया है रे… तेरे बोबे कोई दबाता तो नहीं है ना..! “नहीं भाभी, ये तो पहले से बड़े हैं.” भाभी मेरे मोटे मोटे बोबों की तारीफ करने लगीं.
तभी भाभी ने आवाज लगाई- अरे राजू, जरा पानी तो लाना! “भाभी, अभी थोड़ी देर में लाता हूँ.. अभी नहा रहा हूँ.” मैंने पूछा- ये राजू कौन है? “ये तुम्हारे भाई जी की मौसी के लड़की के लड़का का..” मैं बात काटती हुई बोली- काफी लंबा रिश्ता है. “अबे यहाँ सभी का सब कुछ लंबा है.”
तभी वही लड़का पानी ले आया, वो सिर्फ तौलिया लपेटे था, जिससे उसके अन्दर का माल पूरा उभार लिए दिखने लगा. “चल जल्दी कपड़े पहन कर आ.” वो मेरे को देख चौंक गया- आप? वो जल्दी से चला गया.
“क्यों जानती है क्या इसे..?” “नहीं भाभी कल ही देखा था.. अपने मकान के पास वो मैंने इसे सूसू करते..” “देख लिया था.. कितना लंबा था उसका हथियार.” “क्या भाभी आप भी ना..!”
“बोल तो चुदाई का इंतजाम करा दूँ? दोनों का काम हो जाएगा, वैसे भी एक माह बाद वापस चला जाएगा और हम दोनों ऐश कर लेंगे. तेरे को लंड का मजा मिल जाएगा और मेरे को नया माल मिल जाएगा.” “चलो अपना काम खत्म करो, फिर सोच लेना क्या करना है और नहीं करना.”
तब तक राजू कपड़े पहन कर आ गया. “अच्छा चल, तेरा काम तो हो गया, अब मेरा काम कर दे. तुम दोनों उस कमरे से सामान ला ला कर दो मैं मचान में जमा देती हूँ.
मैंने शर्ट पहन ली और हम दोनों कमरे में जाकर सामान ला ला कर देने लगे. जब मैं झुकती तो राजू मेरे मम्मे देखता और आगे चलती तो वो अपने हाथ मेरे पीछे टच करने लगा. मैंने एक बार घूर कर देखा, फिर हंस दी. ये सिलसिला बढ़ चला. अब उसकी हिम्मत और बढ़ गई, वो मेरी गांड को पूरा दबाने लगा और धक्का मार आगे निकल जाता. मैं भी उसे धक्का मारने लगी.
अब तो खेल शुरू हो चुका था, काम के बीच में मैं जैसे ही झुकी, उसने अपने हाथ से मेरे बटले दबा दिए. मैं चिहुंक गई और मेरे कंठ से एक आवाज निकल पड़ी- ओह उम्म्ह… अहह… हय… याह… ओह.. फिर क्या था, उसके दोनों हाथों ने शर्ट के ऊपर से ही मेरे मम्मे पकड़ लिए और मुझे अपनी ओर खींच लिया. मैं भी उसे अपनी बांहों में लेकर किस देने लगी और अगले ही पल उसका तना हुआ लंड मेरे सामने खड़ा हिल रहा था. उसने मेरे एक हाथ को अपने लंड पर रख कर दबा दिया. साथ ही उसने उत्तेजना से मेरे पूरे बदन में किस शुरू कर दिया.
तभी भाभी ने आवाज लगाई- हो गया सारा सामान? और भाभी की आवाज सुनकर हम दोनों अलग होकर बचा हुआ सामान ऊपर करने लगे.
उसने कहा- आई लव यू. मैंने हंस कर हामी कर दी और दोनों का खेल शुरू हो गया.
दूसरे दिन मौक़ा निकाल कर हम दोनों को मेरे कमरे में नंगे बदन चिपक कर प्यार करने लगे. मैंने उसके लंड को पहली बार हाथ में पकड़ा था. वो मेरी चुत को पीने लगा, मैंने भी बदले में उसके लंड को मुँह में ले कर रस पान किया. कुछ देर बाद उसका लंड चुत में समाने लगा, मुझे दर्द तो हुआ मगर परम आनंद ने उस दर्द को हावी होने नहीं दिया. पहली बार चुदाई के खेल में मस्त हो गए.
अचानक यह सब मम्मी ने देख लिया तो उनको शॉक लगा और उन्होंने राजू को गाली गलौच करके थप्पड़ मार कर भगा दिया. इसके बाद मेरे ऊपर पहरा लग गया. मैं कहीं अकेली आ जा नहीं सकती थी और ना ही मोबाइल यूज कर सकती. जिसे मिलना होता मम्मी के सामने बात करके, मिल कर चला जाता.
शादी हो गई, ससुराल गई तो देखा एक बाप की उम्र का आदमी मेरे से 15.20 साल बड़ा रहा होगा. उसने कहा- आज से ये तुम्हारा घर है और तुम इसकी मालकिन हो. तभी 2 बच्चे दौड़ते हुऐ आए.. और मेरे से लिपट गए. वो बुढ़ऊ बोला- ये मम्मी है तुम्हारी!
यह सुन कर मेरे पैरों तले से धरती खिसक गई. शादी में सगाई में कोई और शख्स था और सुहागरात कोई और मनाएगा. मैं रो पड़ी, पर करती क्या, जो हुआ मेरे बस में नहीं था. मुझे हालात से समझौता करने के सिवाय कुछ नहीं समझ आया. सुहागरात में ज्यादा कुछ नहीं हुआ केवल एक पुरूष ने मेरी आबरू से खेला और पहले ही हार कर निढाल हो गया. दुख और चिंता से ग्रसित एक एक दिन मुझे एक वर्ष जैसे लगने लगे.
सुबह बच्चे और रात में पति की सेवा मेरा ख्वाब चकनाचूर करते चले गए, जिसे देखने और समझने वाला कोई ना था. घर में सब कुछ था मगर ना था तो मेरा प्यार, मेरी जवानी की बातें, जिसे याद कर जी पाती.
मैं 2 माह के लिए अपने मायके आ गई. मेरे साथ मेरे वो बच्चे थे, जिनकी माँ में अभी अभी बनी थी. मम्मी और पापा को यह देख बहुत दुख हुआ मगर अब क्या करते, जो होना था वो सब हो चुका था. मैं अपनी भाभी के पास आई, वो मुझे देख रो पड़ी- तेरे साथ जो हुआ दुश्मन के साथ भी ना हो. हमने क्या सोचा था उससे एकदम उल्टा हुआ.
मैं वो प्यार याद करने लगी थी, जिसे मम्मी ने थप्पड़ मार कर भगा दिया था. उसके नंबर ढूंढा और रिंग किया. उसकी शादी हो चुकी थी, वहीं पास के शहर में था. उसने मिलने को बोला और हम मिले मगर वो दिन निकल चुके थे. उसकी नजरों में वो कशिश नहीं थी और मेरी चाहत में उतना दम नहीं था कि दोनों एक नया जीवन फिर से शुरू कर सकते.
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