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कहानी का पिछला भाग : जोशीले जवान जाट का नशीला लौड़ा-1
पहले भाग में आपने पढ़ा कि मैं उस जाट के मोटे लंड को फ्रेंची में से ही चाट रहा था. उसने पूछा- चूसैगा मेरा लौड़ा? मैंने हम्म करते हुए उसके आंडों में मुंह दे दिया और उसने कहा- ठीक है, उतार दे फ्रेंची…
मैंने उसकी मोटी मांसल गांड में फंसी फ्रेंची नीचे सरका दी. उसका फनफनाता लंड जिसमें वीर्य की गंध आ रही थी मेरी नाक से जा टकराया. उसने कहा- मुंह खोल! मैंने मुंह खोल दिया लेकिन उसने लंड मुंह में नहीं डाला बल्कि अपना चेहरा मेरे मुंह के ऊपर लाते हुए मेरे मुंह में थूक दिया जिसमें से बीयर की गंध आ रही थी- साली रंडी पहले मुंह चिकना तो कर ले… कहते हुए उसने फिर थूका और एकदम से लंड मुंह में दे दिया, मेरे बालों को नोंचते हुए उसने पूरा लंड गले में उतार दिया. और मेरी सांस रुक गई.
वो बोला- यो ए लेना था नै तन्नै… ले इब साले… पूरा चूस!(यही लेना था ना तुझे..ले अब पूरा चूस)
मैंने मन ही मन कहा- आज तो बुरा फंस गया बजाज… ये नहीं छोड़ेगा आज… धक्के मारते हुए वो मेरे मुंह को चोदने लगा… लंड बार-बार मेरे गले में फंस रहा था जिससे मेरी सांस रुकने लगी और उल्टी होने लगी. लेकिन उसको बीयर का नशा था जो उसके लंड में तूफान भर रहा था.
फिर उसने मुझे जमीन पर गिरा दिया, मैं पीठ बल गिर पड़ा, उसकी जींस उसके घुटनों के नीचे पहुंच गई थी लेकिन जांघें मोटी होने की वजह से फ्रेंची वहीं फंसी हुई थी. वो मेरे मुंह के पास अपनी जांघें ले आया और उसने फ्रेंची मेरे मुंह पर लगा दी, बोला- ले चाट बेटा… जी भर कै…
मैं थोड़ा होश में आया और उसकी फ्रेंची को अपने मुंह में लेकर चूसने लगा जिसमें बीयर की गंध भरी थी और साथ में ही उसके कामरस का भी स्वाद आ रहा था. इस बीच उसने मेरी बेल्ट खोल ली, पैंट का हुक भी खोल दिया और मेरी कमर के नीचे से हाथ ले जाने की कोशिश करने लगा. मैंने भी थोड़ा ऊपर उकसते हुए उसके हाथ को रास्ता दे दिया और उसका मोटी उंगलियों वाला रफ सा हाथ मेरी कमर से होते हुए नीचे मेरी कोमल गांड को दबाने लगा.
और अगले ही पल उसने मुझे पलट दिया जिससे मैं छाती के बल जमीन पर दब गया. उसने मेरी पैंट नीचे खींच दी और दोनों हाथों से मेरी गांड को दबाने लगा; मसलने लगा. मुझे थोड़ा अच्छा तो लगा लेकिन डर ज्यादा था कि आज ये क्या करने वाला है मेरे साथ… मैंने सोचा, गलत जाट के लौड़े के नीचे फंस गया आज तो!
एक मिनट तक गांड को मसलने के बाद उसने अपनी उंगली पर थूका और मेरी गांड में दे दी… आह… उसकी कठोर उंगली मेरी गांड में मिर्च जैसा अहसास कराती हुई घूमने लगी. मैंने कहा- यार गलती हो गई… मैं गांड नहीं मरवाता… प्लीज़ मुझे जाने दो. तो वो बोला- ना साले… जब लंड नै देखै था जब ना सोच्ची तन्नै अक गैंड भी मारी जावगी…(जब लंड की तरफ देख रहा था तब नहीं सोचा तूने कि गांड भी मारी जाएगी) यह कह कर उसने दूसरी उंगली भी गांड में डाल दी.
मेरी ‘आह…’ निकल गई. मैंने कहा- यार छोड़ दे प्लीज़… वो बोला- ना बेटा आज तो मरवानी पड़ेगी… कह कर वो मेरे ऊपर लेट गया और गांड में उंगली घुमाते हुए पीछे से गर्दन पर किस करने लगा. मुझे उसके किस करने से बहुत अच्छा लगने लगा और मैं डर को भूल गया जिससे गांड अपने आप ही खुल गई, उसकी उंगली आसानी से अंदर बाहर होने लगी.
वो मेरी पीछे से मेरी गर्दन को चूमे जा रहा था, मुझे उसकी तेज़ हो चुकी सांसों से बीयर की गंध आ रही थी लेकिन मजा भी आ रहा था. वो अब एक हाथ से मेरे कोमल चूतड़ों को चूचियों की तरह दबा रहा था और दूसरे हाथ से गांड में उंगली कर रहा था। 2-3 मिनट तक ऐसे ही हम पड़े रहे; फिर अचानक वो उठ गया, मैंने पीछे गर्दन घुमाकर देखा तो वो अपनी हथेली पर थूक रहा था और उस थूक को अपने लंड के बड़े से टोपे पर अच्छी तरह मल रहा था। लंड पर अच्छी तरह थूक लगाने के बाद उसने एक दो बार लौड़े को मुट्ठ मार कर ऊपर नीचे करते हुए हिलाया और वापस मेरी तरफ झुकते हुए एक हाथ से मेरी गर्दन दबोच ली और दूसरे हाथ से लंड मेरी गांड के छेद पर लगाता हुआ मेरे ऊपर लेट गया.
उसके मुंह से निकल गया- हाय रै मेरी जान… गांड तो कती गरम ले रया है (गांड तो बिल्कुल गर्म है तेरी)… कहते हुए उसने अपना पूरा वजन मेरे ऊपर डाल दिया और धीरे-धीरे उसका लंड मेरी गांड के छेद को फाड़ता हुआ अंदर जाने लगा.
मैंने जोर की चीख मारी और उसने मेरे मुंह पर हाथ रख लिया और दूसरे हाथ को जमीन पर सहारा बनाते हुए वो अपना लौड़ा मेरी गांड में उतारने लगा. मैं दर्द के मारे तिलमिलाने लगा, उसका लंड बहुत ही कड़ा और मोटा महसूस हो रहा था। मेरी गाण्ड फट गई. वो बोला- बस मेरी जान थोड़ा और…
लंड पूरा अंदर उतरने ही वाला था कि किस्मत से उसी वक्त पार्क का गार्ड सीटी मारते हुए आवाज़ लगाने लगा- कौन है वहां? वो एक दम से खड़ा होने लगा और उसका लंड गांड से निकलते ही मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने लोहे रॉड को मिर्च लगाकर मेरी गांड से निकाला हो! मेरी दोबारा चीख निकल गई. गार्ड कुछ आवाज सुनकर हमारी दिशा में बढ़ने लगा और उसने जल्दी से पैंट ऊपर की और मुझसे भी उठने को कहा. मैं भी हड़बड़ी में दर्द भूलकर अपनी पैंट ऊपर करता हुआ उठ गया और खुद को संभालते हुए नॉर्मल किया और उसके पीछे चला.
जब तक गार्ड हमारे पास पहुंचा हम नॉर्मल हो गए. उसने पास पड़ी बोतल उठा ली. गार्ड बोला- भाई, पार्क बंद करने का टाइम हो गया है, बाहर जाकर पी लो.
हम बाहर निकलने लगे तो वो बोला- फोन दिखा कौन सा है तेरे पास? मैंने उसको फोन दिखाया तो उसने फोन मेरे हाथ से अपने हाथ में ले लिया और बोला- अब ये मेरा है… चल जा तू… मैंने कहा- यार, इसमें मेरे सारे कॉन्टेक्ट्स हैं, मैं तुझे दूसरा फोन लेकर दे दूंगा लेकिन ये फोन छोड़ दे…
वो नहीं माना और मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. मुझे अपने किए पर पछतावा हो रहा था. घर पर जाकर क्या जवाब दूंगा… नये फोन के लिए पैसे कहां से आएंगे. अपनी हवस के बस हो कर मैं कहां तक आ गया और अब क्या हो रहा है मेरे साथ… मुझे अपने आप से घिन्न हो रही थी और अपने गे होने पर भगवान को कोस रहा था. लेकिन कर्म तो मेरे ही थे जिन्होंने मुझे इस सिचुएशन तक पहुंचाया… इसमें भगवान का क्या दोष!
ये सब सोच कर मैं रोता हुआ उससे बोला- यार प्लीज… मैं दूसरा फोन दे दूंगा.. लेकिन अभी ये फोन मुझे दे दे। वो नशे में था और मेरी बात सुन ही नहीं रहा था- चल साले गंडवे, फोन तो अब मेरा है. लेकिन मैंने उसे रिक्वेस्ट की- प्लीज़… ये फोन मुझे दे दे… मैं घर वालों को क्या जवाब दूंगा. उसने मेरी आंखों में देखा… और बोला- पक्का दूसरा फोन लायेगा मेरे लिए? तो मैंने कहा- हां यार..पक्का लाउंगा लेकिन इसमें मेरा सारा डेटा है ये फोन मत छीन मुझसे.
नशे में होते हुए भी उसके दिल में एक कोना ऐसा था जिसमें दया थी… और उसने फोन मुझे दे दिया. बस जाटों की यही अदा मेरी कमजोरी है. उसने मुझे वापस बस स्टैंड तक छोड़ा… यहां तक भी पूछा कि भूख लगी हो तो कुछ खा ले… पैसे मैं दे दूंगा. मेरी आखों से फिर आंसू आ गए और मैंने कहा- नहीं यार… तूने फोन दे दिया वही बहुत है. उसने कहा- अपना फोन नम्बर दे मुझे… और फोन चाहिए मुझे जल्दी ही! मैंने कहा- ठीक है।
उसने मुझ पर भरोसा किया और बाइक उठाकर अंधेरे में ओझल हो गया। रात के 11 बज चुके थे, सड़क सुनसान थी और मैं पैदल-पैदल भगवान का शुक्र मनाता हुआ घर की तरफ चल पड़ा। सोच रहा था कि आइंदा अपनी सेक्स की प्यास बुझाने के लिए ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे मुझे अपने घर वालों के सामने शर्मिंदा होना पड़े। लेकिन ये मन है, इसको तो अच्छे-अच्छे ऋषि भी काबू नहीं कर पाए, फिर मैं ठहरा एक साधारण सा गाण्डू… 8-10 दिन बाद वही ललक फिर से शुरु!
और ये कहानी कभी खत्म नहीं होती। खैर, इतना सब हो जाने के बाद उस जोशीले जवान जाट का भरोसा मैंने भी नहीं तोड़ा.
महीने भर बाद जैसे ही मेरे पास कुछ पैसे इकट्ठा हुए मैंने एक हल्का कम दाम वाल टच स्क्रीन फोन लिया और फोन करके उसको उसी जगह पर बुलाया जहां पर हम पहली रात मिले थे. वो फोन बकायदा मैंने उसको गिफ्ट पैक में पैक करवा कर दिया…और कहा- अभी मेरे पास इतने ही पैसे थे भाई… इसी से काम चला ले. वो ठहाका मारकर हंसने लगा… और बोला- तेरे यार के पास फोन की कमी है क्या… मैं तो तेरा भरोसा देख रहा था… जा तू ही रख ले… हां, लेकिन अपने चाल-चलन में सुधार कर… किसी और के हाथों में मत फंस जाइयो… सब मेरे जैसे नहीं मिलेंगे. यह कह कर उसने बाइक घुमाई और अंधेरी गली में मेरी आंखों से ओझल हो गया.
उसका लंड मैं कभी नहीं भूलता और ना ही उसका वो अंदाज़… लेकिन दोस्तो, उसने सच ही कहा था, हमेशा उसके जैसे नहीं मिलते.
मेरे पास कई पाठकों की मेल आई जिसमें उन्होंने अपने लुट जाने की बात बताई… तो ज़रा संभलकर रहिए और पढ़ते रहिए आपकी पसंदीदा साईट अंतर्वासना सेक्स स्टोरीज़… इस कहानी पर अपने कमेंट्स देना न भूलें…
मैं अंश बजाज.. जल्द लौटूंगा अपने गाण्डू जीवन की कहानी के किसी नए किस्से के साथ! [email protected]
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