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कहानी का पिछला भाग: मुंबई की शनाया की कुंवारी बुर की चुदाई-1
बहुत प्यार से आशीष मेरी बुर चाट रहे थे. ये उत्तेज़ना के पल मैं सह न पाई और मेरी बुर ने पानी छोड़ दिया. यह मेरा पहला परम आनन्द का अहसास था. मेरी सासों अस्त व्यस्त हो रही थी, हर साँस में मेरी चूचियाँ उठ और गिर रही थी. मैं आनन्द से सराबोर थी, मेरी आँखें बन्द थी, मैंने आशीष के हाथों और जीभ को सब कुछ करने दिया. मैं भरपूर जिस्म की एक सम्पूर्ण नारी थी तो मुझे आनन्द भी भरपूर मिल रहा था.
आशीष ने मेरा हाथ अपने लंड पे रख दिया. उफ्फ… क्या अहसास था गर्म सॉलिड लोहे जैसा… लम्बा मोटा! मैंने भी हाथ नहीं उठाया. पुरुष के यौनांग के पहले स्पर्श के साथ ही मेरी बुर फिर पानी पानी होने लगी, सैंकड़ों चीटियां सी रेंगने लगी मेरे बदन पे… मेरे हाथ खुद-ब-खुद उस कठोर अंग को सहलाने लगे, कभी आगे तो कभी पीछे! मेरा दूसरा हाथ खुद ही उनके नग्न चूतड़ों पर आ गया और मैं आशीष को अपने पास और खींच कर उनके होंठों को चूसने लगी; उत्तेज़ना के वशीभूत हो मैंने उनके लबों पर काट लिया.
आशीष- उफ्फ क्या करती हो शनाया… आराम से!
लेकिन मुझसे तो बर्दाश्त नहीं हो रहा था, दिल कह रहा था कि मेरे आशीष मुझे अपनी बलिष्ठ बाजुओं में जकड़ लें, मुझे अपने जिस्म में समा ले या वो मेरे जिस्म में समा जायें. मगर मैं कुछ ना कह न सकी, मैं पागल हो रही थी, उनको जगह जगह नाखून गाड़ने लगी, काटने लगी.
अनुभवी आशीष को समझ आ गया मेरे बिना कहे ही; वो उठे…
उनके हटते ही मेरी आँखें खुली, देखा आशीष पूर्ण नग्न थे, बीच में करीब सात इंच का लम्बा सा मोटा सा लंड बिल्कुल कड़ी अवस्था में था. मैंने देखा कि उन्होंने कोई पैकेट निकाला, उसको फाड़ कर कुछ निकाल कर अपने लंड पे चढ़ा लिया… ओफ्ह्ह ये तो कंडोम है.
मैंने उनको मना कर दिया कंडोम के लिए… मेरा पहला अहसास था ये और मैं उसको पूरी तरह से महसूस करना चाहती थी बिना किसी अवरोध के, बिना किसी आवरण के, बिना किसी दीवार के… मैं नहीं चाहती थी कि लंड और बुर के मिलन में कोई और आये
वो मेरे पास आये और मेरी टांगों के बीच में बैठ कर अपने लंड को मेरे बुर में घिसने लगे दूसरे हाथ से मेरी चूचियाँ मसल रहे थे तो कभी निप्पल जो सर उठाये खड़े थे, उन्हें मसल देते. मैं फिर से उसी आनन्द के सागर में चली गई, बस आशीष का इंतज़ार था कब लंड को बुर में डालें… मेरी बुर से पानी निकल रहा था लिसलिसा सा! बुर लंड का मिलन ‘उफ्फ… ये आशीष देर क्यों कर रहे हैं?’ वे अपने लंड को मेरी बुर के छेद पे टिकाते फिर हटा लेते. अह्ह्ह्ह तो कभी उफ्फ की आवाज़ निकल ही जाती.
धीरे धीरे वो अपनी सही स्थिति में आये; बुर पे लंड… मेरे कन्धों को पकड़ कर थोड़ा दबाव… उफ्फ ऊई माँ थोड़ा सा अंदर… दर्द हल्का सा बुर की दीवारें फैलती हुई लगी… धीरे धीरे थोड़ा और अंदर थोड़ा और दर्द… “माँ मेरी… उफ्फ आशीष धीरे धीरे दर्द होता है.”
मेरी बुर फैलती गई, लंड अंदर जाता गया… एक जोरदार असहनीय पीड़ा का अनुभव… कुछ फटता सा लगा, कुछ निकलता सा लगा और फिर पूरा लंड मेरी बुर में! ‘उफ्फफ्फ्फ़ अहह ओह्ह ओह्ह उफ्फ…’ गहरी गहरी सांसें लेने लगी. दर्द का अहसास अभी भी था. मैं एक परिपक्व लड़की थी, कुंवारी थी पर भरपूर बदन की मालकिन थी तो आराम से दर्द के साथ आशीष को अपने अंदर आत्मसात कर लिया.
आशीष भी थोड़ा रुक कर धीरे धीरे लंड को अंदर बाहर करने लगे, दर्द के साथ एक नए अनुभव के रास्ते हम दोनों चल पड़े. ‘ओह्ह अह्ह्ह आशीष… यस यस यस ओह्ह्ह यस आशीष ऐसे ही… ओह्ह ओह्ह अह्ह्ह अहह आह्हः उफ्फ!’ मेरी सिसकारियां उस शरीफ इंसान को हिंसक बना दे रही थी. शायद मर्द स्त्री की सिसकारी की आवाज़ से उत्तेजित होता है, वो भूल जाता है कि एक कोमल जिस्म की मलिका उसके भार के नीचे दबी है.
आशीष पूरा लंड निकल कर एकबारगी अंदर तक डाल देते मेरे न चाहते हुए भी चीख निकल जाती ‘उईइइ ईई ई ई ई आह्हः उफ्फ ओह्ह्ह आ…शी…ष..ष ..ष अहह ओह्ह्ह ओह्ह ओह्ह यस यस यह ये ये ये अस्ष अहहा!’ “उईइइ ईई ई ई ई आह्हः उफ्फ ओह्ह्ह तेज़ ओह्ह्ह और तेज़…” मैं न जाने क्या क्या बोल रही थी. वो मेरी बुर का बाज़ा बजा रहे थे, अंदर तक उनका लंड महसूस होता लगता कि गले तक आ गया है- अहह ओह्ह्ह ओह्ह ओह्ह यस यस यह उम्म्ह… अहह… हय… याह… अस्ष अहहा!
मेरे चूचियाँ हिल रही थी, हर झटका मुझे हिला देता था, मैं भरपूर साथ दे रही थी, न जाने कब मेरे भारी चूतड़ भी उछलने लगे, वो अंदर आते तो मैं चूतड़ उछाल कर उनको और अंदर लेने की कोशिश करती- ओह्ह श श श श हश हश या या ओफ्फ…अह्ह्ह… ओफ़्फ़्फ़ आशीष ओह्ह यस आशीष यस! मेरी सांसें बेकाबू थी; मेरी बुर कई बार पानी छोड़ चुकी थी पर आशीष तो रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.
अचानक उनकी स्पीड और बढ़ सी गई, कुछ 10-12 झटकों के साथ लगभग चीखते हुए आशीष में मुझे जकड़ लिया और एक जोर का शॉट… और वो मेरे ऊपर गिर पड़े. मैं भी चरम पे थी, मैंने भी उनको जकड़ लिया, मेरे चूतड़ों ने उछाल भरी, मेरा योनिरस भी उनके साथ ही छूट गया.
अस्त व्यस्त सांसों के बीच पसीने से तरबतर एक दूसरे को बाँहों में जकड़े हुए न जाने कितने देर हम दोनों उसी अवस्था में रहे. सच कहूँ, इस समय मुझे उनका भार बिल्कुल महसूस नहीं हो रहा था, मैं बिल्कुल हल्का महसूस कर रही थी. न जाने क्या सोच रही थी, कई सवाल मन में थे.
पर आँख लग गई, जब आँख खुली तो आशीष मेरे पास नहीं थे, मैं चादर से ढकी थी पर अंदर से नग्न थी.
तभी आशीष कॉफ़ी लेकर आये, सच में मुझे इसकी दरकार भी थी, मैं चादर के साथ उठी, बोली- आप थोड़ी देर के लिए बाहर जाइए! और बाथरूम में जाकर मैंने अपने को अच्छे से धोया, मेरी बुर तो फूल सी गई थी धुलाई में खून भी था जो मेरी जांघों में भी लगा था.
जब बाहर आई तो देखा एक कुरता रखा था सफ़ेद… मैंने ऐसे ही उसको पहन के आशीष को आवाज़ लगाई तो वो अंदर आ गए. पता नहीं क्यों, मुझे शर्म सी आ रही थी उनके सामने! इस बीच चादर वो बदल चुके थे.
हम दोनों काफी देर तक चुप बैठे रहे, जो कुछ हम कर चुके थे उसका मुझे तो कोई मलाल नहीं था, आशीष का पता नहीं! घड़ी में दो बज रहे थे. तभी डोरबेल बजी, वो बाहर गए और जब अंदर आए तो उनके हाथ में खाने के पैकेट थे.
हम दोनों ने साथ में खाना खाया, मैंने जब तक टेबल साफ की, वो बैडरूम में टीवी देखते रहे थे, मैं भी उनके पास आकर बेड पे बैठ गई. हम वैसे ही टीवी देख रहे थे, मुझे उन पर प्यार सा आया तो मैं उनसे चिपक कर बैठ गई. उन्होंने भी मुझे कमर में हाथ डाल कर अपने से चिपका लिया. वही मादक मरदाना गंध मुझे फिर से मदहोश करने लगी… मैंने उनको धीरे से धक्का दिया तो वो बिस्तर पर लेट से गए; मैं उनके ऊपर आ गई और उनके जिस्म पे चौड़ी छाती पर अपने कोमल हाथों से सहलाने लगी.
मेरे अंदर फिर वही सब कुछ करने का दिल करने लगा. किसी ने सच ही कहा है कि इस सम्भोग नाम का वर्जित फल जिसने एक बार खाया उसका दिल बार बार उसको खाने का करेगा. कुछ ऐसा ही हाल मेरा था शायद आशीष का भी! मैं झुक कर उनके लबों को चूसने लगी… आशीष ने पूरी तरह समर्पण कर दिया, वो कुछ नहीं कर रहे थे बस मुझे पकड़ कर रखा था. गर्दन, कान, लब, निप्पल हर जगह मैंने उनको चूमा, चाटा, काटा; वो सिसकारी भरते रहे और मैं जंगली होती गई… मैंने उनका शार्ट और जॉकी दोनों ही उतार दिया. लंड पूर्ण विकसित और उत्तेजित अवस्था में था, मैंने उसको सहलाना शुरू किया, आगे पीछे करने पर उनका गुलाबी मुंड मुझे बहुत प्यारा लग रहा था… झुक कर मैंने उसको चूम लिया.
आशीष- उफ्फ शनायाआ आ आ आह! बदन में उनके थिरकन सी हुई… जीभ में थूक से भर के पूरा सुपारा मुँह में ले लिया. और आशीष का तो बुरा हाल था मेरे लंड चूसने के कारण! फिर मैं उठी और आशीष के पेट पर बैठ कर झुक कर मुँह में लंड को भर कर चूसने लगी. आशीष ने मेरी गांड को सहलाने लगे, मेरे को थोड़ा पीछे खींचा और मेरी बुर पे अपनी जीभ रगड़ने लगे.
मैं दिल से लोलीपॉप की तरह लंड चूस रही थी तो वहीं आशीष मेरी बुर को चाट रहे थे. मेरी हालत बर्दाश्त के बाहर थी, दिमाग में ब्लू फिल्मों के पोज़ एक एक करके याद आते गए. मैं उठी और लंड को बुर पे सेट किया और एक बारगी अनाड़ीपन से बैठ गई लंड पे…
‘उई ईई ई ई माँ आ आ आ आ आह…’ दर्द की तीखी अनुभूति हुई… एकबारगी ऐसा लगा कि साँस ही रुक गई है. पर कुछ पलों के बाद ही बुर के रस से लंड भीग गया और… मैं सुकून से लंड पे उछलने लगी, मेरी चूचियाँ भी रिदम में उछल रही थी. “ओह्ह्ह आअह्ह आअह्ह!” “उफ्फ उफ्फ ये ये ये यस यस यस!” “आह्ह आअह्ह आअह्ह्ह उई उई उईईई माँ!”
मेरी चूचियों को आशीष मसलने लगे, मेरी कामुक चीखों, उसकी कामुक आहों और चुदाई की फच्च.. फच्च.. की आवाजों से बेडरूम गूंज उठा। पूरा कमरा मेरी और आशीष की मादक चीखों से संगीतमय था और..फच्च.. फच्च.. की आवाजों से गुंजायमान था. लंड के अंदर जाते ही फच्च.. फच्च.. की जोरदार आवाज़ आती.
पर मैं ज्यादा देर ठहर न सकी, मैंने लम्बी सांस ली और अपना कामरस छोड़ के गिर सी पड़ी. पर आशीष का नहीं हुआ था, आशीष ने मुझे लिटाया और मेरे दोनों पैर अपने कंधों पर रखे और एक जोरदार शॉट में एक ही बार में पूरा लंड मेरी बुर में डाल दिया.
मेरी तो चीख ही निकल गई उसकी बेहरमी से- ईई ई ई एई ओह्ह्ह ओह्ह्ह! एक स्त्री को मर्दाने जिस्म का सुखद अनुभव ही तभी होता है जब मर्द उसको मसल के रख दे; पोर पोर में करेंट दौड़ा दे; बेरहम बन के शॉट मारे अपने लंड को बुर में में बेहरमी से डाल के ताबड़तोड़ झटके लगाए; चूचियों को मसले निप्पल को काटे. यही अनुभव मुझको भी हो रहा था, आशीष की बेहरमी मुझे अलग कामुक संसार में ले गई थी, मेरा अंग-अंग थिरक रहा था, मेरी साँसें गर्म थी. “उफ्फ आशीष ष…ष…ष आह्ह्ह्ह ये आह्हः उफ्फ उई उई उई आअह्ह्ह ये यस…”
मेरी जाँघें मेरे पेट से चिपक सी गई थी, गांड उठ गई थी, लंड पूरा अंदर तक जा कर मुझे गले तक महसूस होने लगा था पर वो धमाकेदार शॉट्स बुर से रगड़ खाते अंडकोष एक सिहरन सी पैदा करने लगे, मैं फिर से झड़ने के कगार पे थी… “आशीष मेरा फिर से हो जायेगा.” “हम्म ओह्ह शनाया… मेरा भी हो जायेगा…”
फिर आशीष के वो दमदार अंतिम 10-12 झटके और एक तेज हुंकार… भीगी सी फुहार, मेरी बुर के अंदर वीर्य की बरसात ने मेरे अंतर्मन तक को भिगो सा दिया.. ऐसा सुकून… उफ्फ आशीष का मेरे नंगे बदन पर बिखर कर गिर जाना, दोनों की गहरी सांसों का मिलन. लंड मेरी बुर में ही था… आशीष का पूरा भार मैंने अपने पे ले रखा था.. दोनों के नग्न जिस्म एकाकार हो गए. मैंने भी उनको बाँहों में समेट कर चूम लिया.
थोड़ी देर के बाद जब वो उठे तो मेरी बुर से भरभरा के वीर्य और मेरे रज का मिश्रण बाहर आ गया, मेरी जांघें और बिस्तर भीग गया और जो सुकून मिला वो शब्दों में मैं बयां नहीं कर सकती. हम दोनों ही नग्न एक दूसरे से चिपके पड़े थे.
एक बार यौन सम्बन्ध बने तो बनते ही रहे. ये कहिये कि जिसके लंड से मैंने अपना कौमार्य खोया, उसको ही पति मान लिया था मैंने बिना शादी के! आखिरकार एक दिन आशीष ने मुझे शादी के लिए कहा तो मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया.
आशीष मेरे घर आये और मेरा हाथ मेरे घर वालों से माँगा. घर में तो बवाल मच गया और मचता भी क्यों नहीं.. वो 10 साल बड़े थे मुझसे, एक बच्चा भी था.
पर हम दोनों अभी भी अपने फैसले पे अडिग हैं, देखना यह है कि मेरे घर वाले कब मानते हैं. अब आप लोग ही बतायें कि मुझे और आशीष को क्या करना चाहिए? आपके सार्थक और सभ्य भाषा में सुझावों का इंतज़ार रहेगा. मैं अपनी पहचान गुप्त रखना चाहती हूँ तो यहाँ सिर्फ राहुल जी की आई डी ड़े रही हूँ, [email protected] आप इस पर ईमेल कर सकते हैं जो मुझ तक पहुँच जाएगी.
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