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इस रात की सुबह नहीं-1
कहानी के पहले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे मैंने अपनी बुआ और भाभी को अजनबी मर्दों से चुदवाते देखा. फिर छोटी दीदी को सुहागरात के बाद बड़े जीजाजी से चूत चुदाई करवाते देखा. फिर बुआ को जीजा जी से चुदते देखा.
इस दौरान मैंने कोई लाइव चुदाई नहीं देखी है, आज शायद मौका मिले. वैसे अभी मैंने अनीता दीदी की चूत तो देखी ही नहीं… मैं रात का इंतजार करने लगा. रात को मैं टॉम की आँखों से दीदी के कमरे में झाँका.
दीदी जीजाजी की तरफ घूम कर बच्चे को सुला रही थी और जीजाजी खिड़की (जो आँगन में खुलता है) के पास बिस्तर पर अध लेटे हुए लॅपटॉप पर पोर्न मूवी देख रहे थे. उन्होंने लॅपटॉप दीदी की तरफ घुमाया और अपना मूसल लुंगी से बाहर निकाल लिया. वाहह… ये तो पहले से भी विकराल लग रहा था.
फिर उन्होंने दीदी की नाईटी को कमर तक सरका दिया और उनकी चूत देखने लगे. मुझे दीदी की चूत तो नहीं दिखी पर उनकी गांड की बड़ी बड़ी गोलाइयाँ मेरी आँखों के आगे नाचने लगी. मुन्ना सो चुका था, जीजाजी ने इशारा किया, दीदी ने बच्चे को साइड कर हाथ बढ़ाकर मूसल पकड़ लिया और सहलाने लगी… फिर धीरे से मुँह में ले लिया.
‘आहह…’ जीजा जी के मुँह से निकला और वो हाथ बढ़ाकर दीदी के चूतड़ सहलाते हुए पीछे से चूत में उंगली करने लगे. मुझे कमरे की भरपूर रोशनी में पहली बार अनीता दीदी की चूत की झलक मिली, मेरे छोटे उस्ताद ने तुरंत उछल कर सलामी दी.
तभी मैं चौंका, मुझे खिड़की के बाहर कोई साया हिलता महसूस हुआ… कहीं कोई चोर तो नहीं? मेरा खून सूखने लगा. मैं चिल्लाकर जीजाजी को बता भी नहीं सकता था. फिर साया दिखना बंद हो गया.
इधर जीजाजी दीदी को चित लिटाकर उनके ऊपर चढ़ चुके थे और हुमच हुमच कर चोद रहे थे. दीदी मस्ती में कराह रही थी. फिर जीजाजी रुक गये और बोले- अनु, बच्चे के कारण तुम्हारी चूत थोड़ी फैल गयी है, मुझे मज़ा नहीं आ रहा है. “लेकिन मुझे बहुत मज़ा आ रहा है मेरे राजा…” दीदी अपनी चूत उचकाती हुई बोली- थोड़ी देर और… बस मैं झड़ने वाली हूँ! और जीजाजी से चिपक कर झड़ने लगी.
जीजा जी ने अपना लंड निकाल लिया. रॉड की तरह तना हुआ… दीदी की चूत का रस पीकर और ख़ूँख़ार लग रहा था.
“अनु, अभी मेरा हुआ नहीं है… प्लीज़ आज गांड मारने दो ना?” दीदी की जगह मुझे घबराहट होने लगी. चूत तो ठीक था… वो होती ही है चुदने के लिए… लेकिन इतना मोटा लंड दीदी की गांड के छोटे से छेद में कैसे घुसेगा?
परंतु आश्चर्यजनक ढंग से दीदी ने कुतिया की तरह बन कर अपनी गांड ऊपर उठा दी और लॅपटॉप सामने रखकर चुदाई सीन देखने लगी. जीजाजी ने बच्चे की मालिश के लिए रखी तेल की कटोरी से दीदी की गांड के छेद पर तेल डाला और फिर अपना लंड गांड की मुहाने पर रखकर ज़ोर लगाने लगे. लंड अंदर सरकने लगा, मैं मुँह बाए देख रहा था.
तभी तेज हवा के कारण अधखुली खिड़की का पल्ला धाड़ से खुला और बंद हो गया. शायद बाहर आँधी चलने लगी थी.
मैं चौंका… खिड़की के पल्ले के नीचे कपड़े का एक टुकड़ा फँसा था. मैंने ध्यान से देखा, वो किसी साड़ी का पल्लू लग रहा था. जीजाजी ने भी आवाज के कारण खिड़की की तरफ देखा, उनके चेहरे पर भी चौंकने के भाव आए. फिर उन्होंने हाथ बढ़ाकर कपड़े को पकड़ लिया और उसके छोर को उंगली में लपेट लिया. फिर आराम से अपना लंड दीदी की गांड में पेलने लगे. दीदी की कामुक कराहट कमरे में गूँज रही थी.
मैंने देखा कि जीजाजी की कपड़ा लपेटी उंगली कई बार बाहर को खिंची… लेकिन जीजाजी कपड़ा छोड़ने को तैयार नहीं थे. अब मुझे पक्का विश्वास हो गया कि दूसरी तरफ कोई है… शायद कोई औरत… लेकिन कौन? मेरा दिल धड़का… मैं टेबल से उतारकर बे आवाज़ दरवाजा खोला और माँ के कमरे में देखा… दरवाजा खुला था… मम्मी गायब थी… मैं टायलेट तक आया, वो भी खाली था. आँगन वाला दरवाजा सटा था… लेकिन खुला था. टायलेट के बाहर वॉशबेसिन के ऊपर खिड़की से उचक कर देखा, मम्मी ही थी.
मेरा दिल बैठने लगा, मम्मी फँस गयी थी.
मम्मी अपने पल्लू ढीला करके खींच रही थी, उन्हें लग रहा था कि शायद किसी कील में फँस गया है. जीजाजी शातिर थे… मम्मी जितना पल्लू ढीला करती, उतना ही वह अंदर खिंच जाता.
मम्मी ने आधी साड़ी खोल ली और फिर ढीला करके पूरा झटका देकर देखा. इतने में तो साड़ी फट कर बाहर आ जाती अगर कील में फंसी होती. लेकिन उसे ना बाहर आनी थी, ना आई. मम्मी परेशान… अंत में उन्होंने अपनी पूरी साड़ी खोली और धीरे से खिड़की के अंदर फेंक दिया. अब वह पेटीकोत और ब्लाऊज में दीवार से सट कर गहरी साँसें लेने लगी.
तभी मुझे जीजाजी के कमरे के खुलने की आवाज़ सुनाई दी. मैं झट टायलेट में घुस गया. जीजाजी आए और उन्होंने आँगन के दरवाजे की कुण्डी लगा दी और लौट गये.
थोड़ी देर बाद मैं चुपचाप टायलेट से निकला और अपने कमरे में दौड़ गया. डर इतना था कि ख्याल ही नहीं रहा कि आँगन का दरवाजा खोलता आऊँ!
मैं फिर टॉम की आँखों से देखने लगा. दीदी सो चुकी थी… जीजाजी पैग पी रहे थे और लॅपटॉप पर पॉर्न देख रहे थे. मेच्योर औरत और जवान लड़कों की क्लिप्स… मैं समझ गया कि जीजाजी के मन में क्या है. लेकिन मैंने मम्मी को बचाने का फ़ैसला कर लिया.
जैसे ही मैं अपने कमरे से बाहर निकल कर आगे बढ़ा, दीदी के कमरे का दरवाजा खुला. मैं हड़बड़ा कर सामने माँ के कमरे में घुस गया.
जीजा जी मेरे कमरे तक आए और आहिस्ते से दरवाजे की सिटकिनी बाहर से लगा दी. फिर सिगरेट सुलगाते हुए आँगन का दरवाजा खोला और वहीं खड़े पीने लगे. फिर उन्होंने आँगन की लाइट जला दी. अब मम्मी कहाँ छुपती?
कौन है वहाँ? बाहर से एक डंडा उठाकर उनकी तरफ बढ़ते हुए जीजा जी बोले. मम्मी क्या बोलती? “सासु माँ… आप यहाँ? और इस हालत में??”
मैं अब तक वॉशबेसिन के पास आकर खिड़की से देखने लगा.
“गर्मी लग रही थी इसलिए बाहर टहलने चली आई. अब मुझे अंदर जाने दीजिए दामादज़ी…” धीरे से कहते हुए मम्मी ने अंदर आना चाहा. “हूँ…” जीजाजी ने रास्ता रोकते हुए कहा- लगता है गर्मी कुछ ज़्यादा ही लग रही थी. तभी आप साड़ी खोल कर इस हालत में आँगन में घूमने आ गयी. “प्लीज़, मुझे जाने दीजिए दामाद जी!” “बाइ द वे, आपने साड़ी खोल कर फेंकी कहाँ?”
दामादज़ी, आपको शर्म आनी चाहिए ऐसी वाहियात बाटें अपनी माँ जैसी सास से करते हुए!” मम्मी धीमे से तुनक कर बोली “अपनी बेटी दामाद की चुदाई देखते हुए आपको शर्म नहीं आई तो मुझे बोलते हुए क्यों?” जीजाजी ने खुल्लम खुल्ला बोला- मैं अभी अनु को जगाता हूँ और बताता हूँ कि आपने साड़ी खोल कर कहाँ फेंकी.
मम्मी शर्म से पानी पानी हो गयी… फिर हौले से बोली- दामादज़ी, प्लीज़ जाने दीजिए, बात क्यों बढ़ा रहे हैं. ग़लती हो गयी. “ग़लती हो गयी तो सज़ा भी भुगतिए.” जीजाजी कुटिलता से डंडा लहराते बोले- डंडे खाने पड़ेंगे. आगे झुक जाइए.
मम्मी विवशता वश आगे को झुक गयी, जीजाजी आगे बढ़े और झटके से उनके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया. मेरा दिल धक से रह गया.
मम्मी का पेटीकोट खुल कर ज़मीन पर गिर पड़ा. मम्मी ने तुरंत झुककर पेटीकोट उठाने की कोशिश की लेकिन जीजाजी ने पेटीकोट पर पैर रख दिया था.
अपनी नाकाम कोशिश के बाद मम्मी तुरंत दरवाजे की तरफ भागी पर जीजाजी लपककर दरवाजे पर खड़े हो गये. मम्मी सिर्फ ब्लाऊज में दीवार से सट कर अपना बदन छुपाते उकडू बैठ कर सुबकने लगी. जीजा जी उनके तरफ बढ़ते हुए बोले- ये तो ग़लत बात है सासु माँ… आप मुझे नंगा देख सकती हैं तो मैं आपको क्यों नहीं? अगर देखना ही था तो मुझे कहती, बहुत अच्छे से आपको दिखाता.
फिर अपनी लुंगी खोल कर अपना घोड़े जैसा लंड मम्मी की आँखों के आगे लहराने लगे. मम्मी नज़र उठाकर भी नहीं देख रही थी. जीजाजी अपना मूसल उनके चेहरे पर रगड़ने लगे, फिर कमर को आगे पीछे करते हुए मम्मी के चेहरे पर ठोकर मारने लगे. कुछ देर ऐसा ही चलता रहा.
अचानक मम्मी ने मुँह खोल कर जीजाजी का हथौड़ा अपने होंठों से दबा लिया और जंगली बिल्ली की तरह चूसने लगी. “आहह… सासु माँ… आप तो अनु से भी अच्छा चूसती हो…” और मम्मी का सर पकड़कर उनका मुँह चोदने लगे. फिर उन्होंने मम्मी को खड़ा किया, दोनों हाथों से उनके ब्लाउज को विपरीत दिशा में खींच कर फाड़ दिया और उनके बड़े बड़े पपीते चूसने लगे. फिर उनकी जांघें फैलाई और थोड़ा झुक कर खड़े खड़े अपना दनदनाता मूसल मम्मी की चूत में पेल दिया.
उसी समय मैं अपनी पैंट में ही झड़ गया.
उस रात जीजाजी ने मम्मी की गांड भी बुरी तरह मारी.
मैं सोच रहा था कि जीजाजी ने मेरे घर की सभी औरतों को चोद दिया. अनैतिक सम्बन्धों की शृंखला जिसे मैं रात कह रहा हूँ. कम से कम इस जन्म में इसकी सुबह नहीं!
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