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मेरा नाम बुशरा कमाल है, 26 वर्ष की हूँ, मैं एक गरीब परिवार से हूँ. परिवार में सिर्फ मैं ही कमाती हूँ, मेरी पिछले वर्ष ही एक छोटे कस्बे में बैंक में नौकरी लगी है. नौकरी ज्वाइन करने के बाद मैं वहाँ किराए का एक कमरा ढूँढने निकली.
बैंक के एक कर्मचारी ने मुझे एक दुकानदार का पता दिया और बोला- शायद वो आपको कमरा दिलवा दे. मैं दुकानदार से मिली, तो उसने मुझे एक पण्डित जी का एड्रेस दिया और बोला- वो बड़ा ही खडूस है, पता नहीं कमरा देगा या नहीं, वो शायद शाकाहारी है, शायद इसलिए वो आपको कमरा न दे. लेकिन आप फिर भी बात करके देख लीजिये.
मैं उसके बताये हुए पते पर जाकर उनसे मिली. ‘पण्डित जी’ ने मुझसे दो चार सवाल पूछे और फिर मुझे कमरा दिखा दिया. किराये आदि की बात मैंने कर ली. पण्डित जी बोले- आप जब चाहें, शिफ्ट कर लीजिये. बातो बातों में मैंने उनसे कहा- मैं यहाँ कभी भी माँसाहारी भोजन नहीं बनाऊँगी. इसके जवाब में वो बोले- जी, मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी, आप जैसा चाहे वैसा भोजन बनायें, मैं खुद भी तो बनाता हूँ अपने घर में.
पण्डित जी की उम्र चालीस वर्ष के आस पास होगी, वो विधुर थे, न ही उनके कोई संतान थी. अकेले ही सादा जीवन गुजार रहे थे. बैंक के कर्मचारी उन्हें जानते थे, सबने कहा कि बहुत ही सज्जन व्यक्ति हैं. मैं निश्चिंत होकर अगले दिन ही उनके यहाँ किराए पर रहने पहुँच गयी.
पण्डित जी ने मुझे कमरे की चाभी सौंप दी, फिर बोले- आप को किसी भी प्रकार की तकलीफ हो तो आप बेझिझक मुझे फ़ोन कर दीजिएगा.
मैं अपना सामान कमरे में सेट करने लगी.
पण्डित जी ने चाय नाश्ता बना कर मेरे कमरे में अपने नौकर के हाथ भिजवा दिया. शाम को मैंने उन्हें चाय के लिए धन्यवाद दिया. पण्डित जी ने कहा- अभी आपकी रसोई में तो कुछ सामान तो होगा नहीं. ये छोटी जगह है, यहाँ रात में बाहर कुछ ढंग का नहीं मिलेगा खाने में. जब तक कोई इंतज़ाम नहीं है, आप बेझिझक मेरी रसोई का इस्तेमाल कर सकती हैं. मैंने उन्हें हेल्प के लिए फिर से धन्यवाद दिया.
फिर औपचारिक बातें हुई. मैंने उन्हें अपने परिवार की तंग हालत के बारे में बताया. पण्डित जी ने भी अपनी दुखद जिंदगी के कुछ पहलु मुझसे शेयर किये. फिर मैंने पण्डित जी से कहा- आज दोनों लोगों का खाना मैं ही खाना बनाती हूँ, अगर आपको आपत्ति न हो तो? पण्डित जी बोले- भाई वाह, नेकी और पूछ पूछ. मुझे क्यों आपत्ति होगी?
खाना खाकर पण्डित जी बहुत खुश हुए और बोले- बरसों बाद इतना स्वादिष्ट खाना मिला है. मुझसे तो बन ही नहीं पाता है ऐसा. मैंने कहा- पण्डित जी, आपको जब भी स्वाद चेंज करने का मन हो तो बोलियेगा, मैं बना दिया करुँगी.
खाना खाकर मैं अपने कमरे में आकर सामान सेट करने लगी. फिर घर पर फ़ोन करके अपनी खैरियत बता दी. कुछ दिन में मेरा कमरा ठीक से सेट हो गया. कुछ महीने तक सब कुछ सही चला.
एक बार मेरे घर में कुछ तकलीफ हो गयी, मुझे काफी रूपए भेजने पड़े. रात में मैं अम्मी से बात करते समय रो रही थी. अगले दिन मुझे घर का किराया देना था. मैंने पण्डित जी को सुबह किराया दिया. पण्डित जी बोले- बुशरा, बुरा न मानो तो एक बात पूछूं? मैंने कहा- नहीं, पूछिए? पण्डित जी बोले- मुझे पूछने का हक तो नहीं, लेकिन कल रात तुम कुछ परेशान थी, तुम्हारे रोने की आवाज़ आ रही थी?
मैंने पण्डित जी को घर की तंगी के विषय में बता दिया. उन्होंने उसी पल मुझे वो किराया और पिछला जमा किया अडवांस लौटा दिया और बोले- अगर तुम मुझे ये रूपए बाद में दे दो, तो भी कोई बात नहीं, अभी ये तुम रख लो, तुम्हें जरूरत है. मैंने न-नुकुर की तो वो बोले- बुशरा तुम्हारा एहसान है मुझ पर, वो उस दिन जो खाना खिलाया था.
मैं भाव विह्वल हो कर बोली- पण्डित जी, मैं अब हर रोज आपके लिए खाना बना दिया करुँगी, मना मत करियेगा, कम से कम एहसान का बदला तो चुकाने दीजिये मुझे. मैं जल्द से जल्द आपके पैसे लौटा दूँगी. पण्डित जी बोले- ठीक है बुशरा, अब परेशान मत हो, पैसों की मुझे कोई ऐसी जल्दी नहीं जब हों तब दे देना.
तब से पण्डित जी और मेरी रसोई एक हो गयी. पण्डित जी अक्सर राशन खुद ही ला देते थे, कभी मैं ला देती थी. इस तरह हम दोनों का खर्चा भी कम होता था. पण्डित जी अकसर चिकन लाकर पकवाते थे और चाव से खाते थे.
एक दिन की बात है. मैं बाथरूम में नहा रही थी, मुझे ऐसा लगा कि कोई रोशनदान से झाँक रहा है. मैंने ध्यान से देखा तो पण्डित जी थे. मुझसे नज़र मिलते ही पण्डित जी वहाँ से खिसक लिए. मुझे पण्डित जी पर गुस्सा नहीं आया बल्कि तरस आने लगा, क्योंकि वो लम्बे समय से विधुर थे, औरत का सानिध्य उन्हें मिलता नहीं. शायद यही आकर्षण उन्हें अन्दर झाँकने पर मजबूर कर रहा हो. नहाने के बाद मैं रात का खाना बनाने रसोई में गयी तो पण्डित जी मुझसे नज़र चुरा रहे थे. मैंने खाने की दो थाली लगा दी, फिर पण्डित जी को खाने के लिए बुलाया. पण्डित जी अपराध बोध से मुझसे नज़र नहीं मिला रहे थे. मैंने उन्हें तसल्ली दी- पण्डित जी, अगर आप सोच रहे हैं कि मैं आप पर नाराज़ हूँ, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. आप प्लीज़ खाना खाइए. पण्डित जी धीरे धीरे बेमन से खाना खाने लगे. खाना खाने के बाद उन्होंने मुझसे माफ़ी मांगी.
मैंने पण्डित जी को गले लगा लिया और बोली- मैंने कहा न आपसे! कि मैं कतई नाराज़ नहीं हूँ आपसे. मुझे पता है, आपकी पत्नी के देहांत के बाद आपने शारीरिक सुख नहीं पाया है. किसकी इच्छा नहीं होती उस सुख को पाने की. जैसे आप तड़प रहे हैं उस सुख के लिए, वैसे ही मैं भी कभी कभी तड़पती हूँ. ये तो हर इंसान की जिस्मानी जरूरत है. हम दोनों चाहें तो एक दूसरे की जरूरत पूरी कर सकते हैं. पण्डित जी! प्लीज़ न मत करियेगा. पण्डित जी को काटो तो खून नहीं! ‘अब आप आराम करिए, मैं जरा किचन साफ़ कर देती हूँ.’
पण्डित जी बगैर कुछ बोले अपने बेडरूम की ओर चले गए. मैंने फटाफट किचन और बर्तन साफ़ किये और पण्डित जी के बेडरूम पहुँच गयी. पण्डित जी लाईट ऑफ़ करके लेटे हुए थे. मैंने अपना गाउन उतारा और पण्डित जी के बगल में लेट गयी. उस समय मैंने सिर्फ ब्रा और पैंटी पहन रखी थी. पण्डित जी ने सिर्फ अंडरवियर ही पहन रखी थी.
मैं जैसे ही पण्डित जी से चिपकी, वो चौंक के जग गए. मैं बोली- पण्डित जी, मैं हूँ बुशरा, मुझसे रहा नहीं गया. आपकी तरह मैं भी प्यार की भूखी हूँ. प्लीज़ मुझे प्यार करिये.
मैं पण्डित जी के लिंग को अन्डरवियर के ऊपर से सहलाने लगी. उनका लिंग भी उत्तेजित होने लगा था. मैंने धीरे से उनका अंडरवियर नीचे करके लिंग को हाथ में पकड़ लिया. उनका लिंग और सख्त होने लगा. पण्डित जी एकदम चुप थे. मैंने उनके लिंग को मुंह में ले लिया और चूसने लगी. अँधेरे में भी मुझे अंदाजा लग गया था कि पण्डित जी का लिंग बहुत विकराल साइज़ का है.
पण्डित जी धीरे धीरे सिसकारी ले रहे थे. मैंने पण्डित जी के हाथ को थोड़ी देर में अपने दायें स्तन पर महसूस किया. वो बहुत ही हल्के हल्के मेरे स्तन को दबा रहे थे. पांच मिनट में ही मैंने उनका लिंग चूस चूस कर पूरा उत्तेजित कर दिया था.
पण्डित जी उठकर बैठ गए और मेरी ब्रा का हुक खोलने की कोशिश करने लगे, कई कोशिशें नाकाम गयी तो मैंने खुद ही अपनी ब्रा उतार के अपने उरोजों को बेपर्दा कर दिया. अब पण्डित जी मेरे दोनों स्तनों को दबाते हुए मुखमैथुन का मजा ले रहे थे, जिसकी गवाही कमरे में गूँज रही उनकी सिसकारी दे रही थी.
जब मैंने उनके अंडकोष का चुम्बन लिया तो पण्डित जी ने मेरे स्तनों को जोर से भींच दिया, जो मुझे बहुत आनन्ददायी लगा. जितनी देर मैंने उनके अन्डकोशों को हाथ में लेकर चूसा और पुचकारा, उतनी देर वो मेरी चूचियों को जोर जोर भींचते रहे.
फिर मैं धीरे से बिस्तर से उठी, अपनी पैंटी उतारी और पण्डित जी की गोद में बैठ कर उनसे चिपक कर उन्हें चुम्बन देने लगी. पण्डित जी ने इस बार जोरदार साथ दिया और मेरे होठों का खूब रसपान किया. वो अपनी कमर हिला हिलाकर लिंग को मेरी योनि से रगड़ रहे थे.
मैंने धीरे से अपनी कमर उठाई और उनका लिंग पकड़कर अपनी योनि के मुंह पर सेट किया और धीरे धीरे उस पर बैठने लगी. उनके लिंगमुंड का गर्मागर्म स्पर्श जब मेरी योनि पर हुआ तो मेरे शरीर में सुरसुरी दौड़ गयी. उनका लिंग मुंड मेरी योनि में प्रवेश कर गया.
पण्डित जी उत्तेजनावश मुझे कमर से पकड़ कर नीचे खींच रहे थे. मुझे मीठा मीठा उत्तेजक दर्द होने लगा. मैंने धीरे धीरे ऊपर नीचे करते हुए उनके लिंग का अपनी योनि में मर्दन किया. योनि से तरल स्राव होने लगा, जिससे लिंग आराम से अन्दर बाहर हो रहा था. मैं आनन्द सागर में तैरने लगी.
पण्डित जी ने कमर उठा कर नीचे से एक थाप मारा, तो थोड़ा सा लिंग मेरी योनि में और घुस गया. मुझे हल्की सी पीड़ा हुई. पण्डित जी ने मेरे स्तन के अग्र भाग को मुंह में ले लिया और चूसने लगे. उत्तेजना ने मेरी पीड़ा को हर लिया, मेरे निप्पल एकदम तन गए. पण्डित जी ने बारी बारी से दोनों निप्पलों को जोर जोर से चूसते हुए नीचे से थाप मारते हुए अपना लिंग पूरा मेरी योनि में प्रवेश करा दिया.
उनका लिंग बहुत विकराल था लेकिन उन्होंने अनुभवी प्रेमी की तरह प्यार करते हुए उसे मेरी योनि में घुसा ही दिया. मेरी योनि ने छल्ले की तरह से उनके लिंग को जकड़ रखा था. अब मैंने मोर्चा संभाल लिया, पण्डित जी चित लेट गए और मैं धीरे धीरे ऊपर नीचे करते हुए सम्भोग का मजा लेने लगी. उधर पण्डित जी मेरे स्तनों को भींच भींच कर दूध दुहने की नाकाम कोशिश में लगे पड़े थे और बीच बीच में वो अपनी कमर उठा उठाकर तेज तेज लिंग को मेरी योनि में मर्दन कर देते थे.
उनकी इस क्रिया की मेरे बदन में प्रतिक्रिया हुई, मैं इतनी ज्यादा उत्तेजित हो उठी कि मेरे शरीर में सुरसुरी उठने लगी, साँसें तेज हो गयीं, स्तनों और निप्पलों में सख्ती बढ़ गयी, योनि और गुदा दोनों के सुराख और कस गए और ऐसा महसूस हुआ जैसे योनि की दीवारों से पानी रिस रहा हो.
इसी बीच पण्डित जी ने फिर कमर उठा उठा कर जोरदार झटके मारना चालू कर दिए. मैं अपने हाथों से उनकी कमर को नीचे दबाकर उन्हें रोकने लगी मगर वो नहीं रुके. मैं जोर से चिल्ला उठी उम्म्ह… अहह… हय… याह… और उनके ऊपर निढाल होकर चित लेट गयी. मेरा चरमोत्कर्ष हो गया था, बदन काँप रहा था, योनि बार बार मेरी तेज सांस के साथ साथ संकुचित हो रही थी और मुझे योनि के अन्दर पानी रिसता हुआ महसूस हो रहा था.
पण्डित जी ने झटके मारना रोक लिया और उन्होंने मुझे बांहों के घेरे में ले लिया और मुझे चूमने लगे.
हम दोनों लोग कुछ मिनट तक वैसे ही लेटे रहे. मैंने पास रखी बोतल से पानी पिया और पण्डित जी को भी पिलाया. फिर दुबारा मैं अपनी कमर को ऊपर नीचे चलाने लगी. पण्डित जी अब बैठ गए और मेरे निप्पलों को चुटकियों में पकड़ कर गोल गोल घुमाते हुए रगड़ने लगे. वो बीच बीच में स्तन को मुंह में लेकर निप्पल को खूब चूसते थे और कभी कभी दांत से स्तन पर हल्के से काट लेते थे. मेरी उत्तेजना की सिसकारी उन्हें बता रही थी कि मुझे ऐसा किया जाना अच्छा लग रहा है. उन्होंने अपनी एक ऊँगली से मेरी गुदा के सूराख को सहलाया, मुझे गुदगुदी से हंसी आ गयी. पण्डित जी ने ऊँगली पर थूक लगा कर मेरी गुदा के छेद पर लगाया फिर धीरे धीरे सहलाते हुए ऊँगली के पोर को गुदा में डाल दिया और अन्दर बाहर करने लगे.
उनकी उंगली ठीक-ठाक मोटी थी, मगर उनकी ये हरकत भी मुझे उत्तेजक ही लगी.
उन्होंने दूसरे हाथ को मेरे चूतड़ के नीचे ले जाकर मुझे तेज तेज झटके मारने में सहारा दिया. अब मुझे एक साथ निप्पल, योनि और गुदा के जरिये उत्तेजित कर रहे थे. मैं फिर से पिछली बार की तरह तीव्र उत्तेजना महसूस करने लगी, फिर से मेरे शरीर में सुरसुरी उठने लगी, साँसें तेज हो गयीं, स्तनों और निप्पलों में सख्ती बढ़ गयी, योनि और गुदा दोनों के सुराख फिर से कस गए.
मैं पण्डित जी से रुकने को बोली तो वो बोले- बुशरा, अबकी मत रुको मेरा भी हो जाएगा.
उन्होंने धीरे धीरे करके पूरी उंगली मेरी गुदा में डाल दी. मैंने कमर उचका कर कोशिश की, उनकी उंगली को अपनी गुदा से बाहर निकालने की, मगर उन्होंने दुबारा डाल दी. मेरा बदन फिर से कांपने लगा और फिर से मेरी योनि से पानी छूटने लगा. मैं फिर से निढाल होने लगी, मगर पण्डित जी ने मेरे चूतड़ों को उठा उठा कर चोदना जारी रखा.
अचानक उन्होंने खूब जोर से मुझे नीचे को दबाकर अपना लिंग मेरी योनि में अन्दर तक ठूंस दिया और फिर रुक गए. उनका बदन भी कांपने लगा और वो भी जोर की सिसकारियां भरने लगे. मैं समझ गयी कि उनका भी स्खलन हो रहा है, मैंने उनको बाहों में लेकर अपनी छाती से कसकर चिपका लिया. उनका लिंग झटके ले-लेकर मेरी योनि में स्खलित हो रहा था. मुझे योनि के अन्दर गर्म गर्म तरल महसूस होने लगा.
पण्डित जी बिस्तर पर निढाल हो गए और मैं उनके ऊपर वैसे ही पांच मिनट पड़ी रही. इस बीच मैं पण्डित जी के सीने के बालों को सहलाते हुए उन्हें चूम रही थी और वो मेरे सर और पीठ को सहला रहे थे. मन ही मन मुझे जैसे उनसे ‘प्यार हो गया हो’ जैसी भावना लगने लगी. मैंने बगल में पड़ी अपनी पैंटी उठाई, फिर धीरे से पण्डित जी के ऊपर से उठी और तुरंत पैंटी से योनि के सूराख को ढक लिया.
पण्डित जी का लिंग शिथिल हो गया था और उनके वीर्य से सना हुआ था. मैंने पण्डित जी के लिंग को चूसा और उस पर लगे वीर्य को चूस चूस कर साफ़ कर दिया.
मैं बाथरूम में जाकर अपनी योनि को धोकर वापस पण्डित जी के बगल में लेट गयी.
हम दोनों की नींद गायब हो चुकी थी. पण्डित जी ने उठकर कमरे की लाईट जला दी, उन्होंने मेरी ओर देखा और फिर मंत्रमुग्ध से मेरे बदन को निहारते रहे. मैं दौड़ कर उनके बदन से जा चिपकी. पण्डित जी ने भी मुझे बाहों में ले लिया.
हम लोगों ने उसके बाद चाय पी.
पण्डित जी ने आधे घंटे बाद ही दुबारा सम्भोग की इच्छा जाहिर की, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकृति दे दी, क्योंकि मुझे भी इच्छा जागृत हो रही थी. हम दोनों इस बार फिर सम्भोग क्रीड़ा में रत हो गए. हम दोनों की जिन्दगी की वो सबसे खुशनुमा रात थी. हम लोगों ने सुबह तक कई बार सेक्स किया.
आज भी मैं पण्डित जी के साथ ही रहती हूँ. हर दिन हर रात खुश हूँ. शीघ्र ही आपको अपनी अगली कथा प्रेषित करुँगी जिसमे पण्डित जी ने मेरे गुदामैथुन किया था.
मेरी हिंदी सेक्स कहानी कैसी लगी, मुझे लिखें! [email protected]
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